ऋषि संस्कृति के निर्माता यज्ञ
‘यज्ञो वै विष्णुः’ अर्थात् यज्ञ ही प्रभु का स्वरूप है। ‘स्वर्ग कामो यजेत’ अर्थात् सुख सौभाग्य के लिए यज्ञ करें। समस्त पूजा पद्धति में सबसे पुरातन तथा प्रभावी पूजा पद्धति यज्ञ है। जब कोई पूजा काम न करे, तो यज्ञ करे। दुःख, विघ्न संताप हरने के लिए तथा सुख समृद्धि, धन, ऐश्वर्य, की प्राप्ति हेतु गणेश लक्ष्मी महायज्ञ प्रभावी ईश्वरीय कार्य है।
भारतीय संस्कृति ऋषि व देव संस्कृति के नामों से भी जानी जाती है। इन्हीं देव परम्पराओं में ‘यज्ञ’ को चौबीसवां अवतार माना गया है। यज्ञ को आराध्य, ईष्ट, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का नाभिकेन्द्र कह सकते हैं। यज्ञ जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन के केन्द्रक रूप में कार्य करता है। मानव के दैनन्दिन जीवन तक में यज्ञ का महत्वपूर्ण स्थान है। यही कारण है वेदों, उपनिषदों, गीता, महाभारत, 18 पुराणों से लेकर हर आर्ष ग्रंथ में यज्ञ का विस्तृत वर्णन है। जीव की समस्त कामनाओं की पूर्ति का मूल मार्ग है यज्ञ। यज्ञ समस्त कामनाओं को पूर्ण करता है। ‘यज्ञो{यं सर्वकामधुक’ इस संकल्पना को लोक परम्परा में अक्षुण्य बनाये रखने में हमारे संतों, सद्गुरुओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यज्ञ संस्कृति की विकृति होती परम्पराओं के बीच संत सद्गुरु ही हैं, जो मानव उत्थान की इस शाश्वत वैदिक वैज्ञानिक प्रणाली को अक्षुण्य रखे हुए हैं।
ऋषि कहते हैं ‘यज्ञ में बुद्धि शुद्धि एवं सुख-सौभाग्य, आरोग्य, धन-वैभव, संतति-सुंदरता, दीर्घ जीवन, बल-ऐश्वर्य आदि संबंधी अनन्त शक्तियां निहित हैं। अतः इन समस्त तत्वों की प्राप्ति हेतु विधिवत ‘यज्ञ’ करना आवश्यक है। यही नहीं यज्ञ से अन्न, पशु, वनस्पति, दूध, खनिज पदार्थ आदि का प्रचुर मात्र में उत्पादन सम्भव बनता है। इसलिए यज्ञ में प्रस्तुत अग्नि को पुरोहित का दर्जा दिया गया है। अग्नि ही है जो साधक-याजक की श्रद्धा सद्गुरु तक पहुंचाता है और सद्गुरु परमात्मा से साधक के यश-वैभव की प्रार्थना करता है। यह सामान्य यज्ञ की परम्परा है। पर इस यज्ञ में सद्गुरु जब किसी विशिष्ट देवता का पुट लगाकर यज्ञायोजन करता है, तो साधक याजक को उस देवता की विशेष कृपा का विशिष्ट लाभ मिलता है। इसमें भी शर्त है कि यह यज्ञ समर्थ सद्गुरु के संरक्षण में सम्पन्न कराया गया हो।
इस संदर्भ में सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज जी कहते हैं कि यज्ञ जैसी दिव्य ऋषि प्रणीत पुरातन परम्परा की प्रतिष्ठा समाज में सौहार्द, परिवार की सुख, शांति और समृद्धि, राष्ट्र की यश-कीर्ति की बढ़ोत्तरी के लिए आवश्यक है और इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। धर्मशास्त्रें का भी संदेश है कि देवपूजन, यज्ञ-अनुष्ठान से दुर्भाग्य, सौभाग्य में बदलता है और यदि साधक शिष्य गुरु के सान्निध्य में साधना, पूजा, जप-तप, यज्ञ-अनुष्ठान करे तो वह बड़भागी होता है। वैसे तो धार्मिक अनुष्ठानों के लिये तीर्थस्थल पुण्यप्रद हैं, पर शिष्य के लिए सभी तीर्थों से पावन तीर्थ गुरुतीर्थ होता है, जिस स्थान पर सद्गुरु के चरण पड़ते हों, उनका निवास हो, जहां उनकी रात-दिन रहमत बरसती हो, वहां यदि ऐसे यज्ञ-अनुष्ठान, पूजन-अर्चन का सुअवसर मिलता है, तो वह अनंत गुणा फलदायी जाता है।
इसी भावना से परमपूज्य सद्गुरु सुधांशुजी महाराज के पावन सान्निध्य में वर्ष 2001 से प्रतिवर्ष आनंदधाम आश्रम, नई दिल्ली में श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष भी लोक-कल्याण एवं भक्तों की सुख-समृद्धि की कामना से आनन्दधाम आश्रम, दिल्ली में 21 से 24 अक्तूबर, 2018 तक 108 कुण्डीय श्री गणेश-लक्ष्मी महायज्ञ आयोजित किया जा रहा है, जिसमें साधक यज्ञ में सपत्नीक सम्मिलत होकर विघ्न विनाशक गणेश व मां लक्ष्मी की कृपा पाकर अपने घर-परिवार व राष्ट्र संस्कृति, ऋषि संस्कृति का उत्थान सुनिश्चित कर सकते हैं।
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