बच्चों के लिए पैसा जमा करके छोड़ जाने की बजाय उन्हें धन कमाने की विद्या सिखाएं
अपनी प्राणशक्ति को प्रबल बनाए रखने के लिए प्रतिदिन प्राणायाम अवश्य किया करें
सभी प्रकार के नशे व्यक्ति के मन मस्तिष्क को खोखला बनाते हैं
नागपुर के कविवर्य सुरेश भट्ट प्रेक्षागृह में आज की शाम बनी अनूठे आध्यात्मिक संवाद की शाम
“जीवन में सुखी कैसे रहे” विषय पर दो हजार ज्ञान जिज्ञासुओं ने श्री सुधांशु जी महाराज से पाया मार्गदर्शन
नागपुर, ५ फरवरी। महाराष्ट्र की द्वितीय राजधानी कहे जाने वाले नागपुर महानगर के विशालकाय कविवर्य सुरेश भट्ट प्रेक्षागृह में आज संध्याकाल का दृश्य बेहद खास था। नगर महापालिका नागपुर द्वारा नवनिर्मित आडिटोरियम में मौजूद लगभग दो हजार स्त्री, पुरुषों एवं युवाओं को “जीवन में सुखी कैसे रहे” विषय पर सशक्त मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुख्य वक्ता थे – राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से आज मध्याह्नकाल पधारे विश्व जागृति मिशन के संस्थापक – संरक्षक आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज।
विषय पर व्याख्यान करते हुए श्रद्धेय श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि सुख की निजी व्याख्या लगभग हर व्यक्ति यह करता है कि जो उसे अच्छा लगे, जो खुद के अनुकूल पड़ता हो, जो उसके मन को रुचे; जो उसे पसन्द आए; वहीं सुख है। यह व्याख्या ठीक नहीं है। प्रायः देखा गया है कि लोग उनके पास जो उपलब्ध है वे उसका सुख नहीं उठा पाते। उल्टे जो उनके पास नहीं है उसके लिए वह दुःखी रहते हैं।
श्री सुधांशु जी महाराज ने परम पिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त और उपलब्ध चीजों एवं सुविधाओं का लाभ उठाकर उनके सुख का अनुभव करने को कहा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी वस्तु का सुख एक सीमा तक ही हो सकता है। मिष्ठान्न पसंद व्यक्ति भी एक सीमा तक ही किसी मिष्ठान्न के स्वाद का सुख उठा सकता है। गीतों के शौकीन आदमी को एक ही गीत बार – बार सुनाया जाय तो वह बुरी तरह ऊबने लगेगा। उन्होंने जीने का सलीका ठीक करने की सलाह सभी को दी। कहा कि जिस दिन हम अपनी कद्र करना सीख जाते हैं, ईश्वर उस पर मेहरबान होने लगता है। श्री सुधांशु जी महाराज ने उपस्थित व्यक्तियों का आह्वान किया कि वे बच्चों के लिए पैसा जमा करके छोड़ जाने की बजाय उन्हें धन कमाने की विद्या सिखाएं।
श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि चिन्ता और डर सुखी जीवन के सबसे बड़े अवरोध होते हैं। हमें अनावश्यक चिंता से बचना चाहिए, चिंता और चिता में कोई अन्तर नहीं। चिता मानव को एक बार जलाती है और चिंता उसे बार – बार जलाती है। कई बार अकारण डर व्यक्ति को असमय मृत्यु के द्वार पर लाकर खड़ा कर देता है। उन्होंने कहा कि सुखी जीवन के लिए अपने आहार, विहार, दिनचर्या आदि को व्यवस्थित करना पड़ता है। कहा कि प्राणशक्ति को प्रबल बनाए रखने के लिए प्रतिदिन प्राणायाम अवश्य किया करें। उन्होंने कहा कि निरोगी काया, घर में संपन्नता, संस्कारी सन्तान, समाज में प्रभाव, अच्छे लोगों के बीच निवास इत्यादि को जरूरी बताया गया है।
मिशन प्रमुख ने कहा कि सुखी जीवन के लिए आपको योद्धा बनना होगा। योद्धा संघर्षमय जीवन जीता है। मानव जीवन ही वस्तुतः एक संग्राम है। उन्होंने जीवन संघर्षों से कभी नहीं घबराने का आह्वान सभी से किया। उन्होंने अपनों से दो मीठे बोल और तारीफ के शब्दों का मर्म भी समझाया। उन्होंने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ द्वारा ऋषि विश्वामित्र की उनकी प्रत्यक्ष अनुपस्थिति में की गई प्रशंसा का जिक्र किया और बताया कि उनके दो अवगुणों ईर्ष्या और क्रोध की चर्चा उस प्रशंसा के दौरान कर देने पर उन पर प्रहार करने आए पेड़ पर छुपे बैठे ऋषि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के चरणों में दंडवत हो गए थे। और, तब उदारमना वशिष्ठ ने विश्वामित्र को चिर प्रतीक्षित ब्रह्मर्षि की पदवी से संबोधित किया था। विश्वामित्र तभी ब्रह्मर्षि बन सके थे क्योंकि देवराज इन्द्र की यह अनिवार्य शर्त थी कि ब्रह्मर्षि वशिष्ठ द्वारा विश्वामित्र की ब्रह्मर्षि स्वीकार करने के बाद ही उन्हें ब्रह्मर्षि घोषित किया जा सकेगा।
आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने आरोग्यता, आर्थिक आत्मनिर्भरता, पारिवारिक प्रसन्नता, सामाजिक प्रतिष्ठा के सूत्र भी सुखी जीवन जीने के लिए सभी को समझाए।
इस विशिष्ठ संगोष्ठी का मंचीय समन्वयन व संचालन विश्व जागृति मिशन नयी दिल्ली निदेशक श्री राम महेश मिश्र ने किया।