सद्गुरु साधक हैं युक्ति, भुक्ति और मुक्ति के। शब्द तीन हैं युक्ति, भुक्ति और मुक्ति, किन्तु इनमें मानव जीवन का उद्देश्य, संसार में जीवन और मोक्ष के रहस्य छिपे हुए हैं अर्थात् ये तीनों ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। यहां साधक से अभिप्राय साधना करने वाला नहीं है, अपितु इसका अर्थ है कि केवल सद्गुरु ही हैं ऐसे साधन जो हमें लोक में सुख से जीने और परलोक प्राप्त करने के तरीके बताते हैं। शिष्य का समूचा जीवन सिमट जाता है इन तीनों में। पहला ही शब्द हमारे इस जीवन के सभी पक्षों को अपने अन्दर समेटे हुए है, तीसरे शब्द मुक्ति के रहस्यों को भी गुरुदेव बतलाते ही हैं। मैं यहां जीवन के केवल संकट पक्ष की चर्चा करूंगा।
जीवन के संकट पक्ष से मेरा अभिप्राय है जब स्थितियां मनुष्य की समय और पकड़ से बाहर हो जायें, बुद्धि काम न करे, हर समय मस्तिष्क सोच में उलझन में कोई काम करे, तो जो सोचा, परिणाम उसके विपरीत, तब सब साथ छोड़ जाते हैं, घर वाले भी, जिन के लिये आप जीवन भर सब कुछ करते रहे, वे भी ताने देते हैं, सकपकाते हैं और व्यक्ति सब ओर से हारकर निराशा में, अवसाद में, डिप्रेशन में चला जाता है। ऐसी स्थिति को संकट की स्थिति कहते हैं और तब सद्गुरु सम्भालते हैं, जीवन दान देते हैं।, विश्वास जगाते हैं, हौंसला देते हैं और अपने आशीष का हाथ शिष्य के सिर पर रखकर उसे मृत्यु अर्थात् आत्म हत्या के द्वार से वापिस ले आते हैं। इससे बड़ा उपकार क्या होगा? दो उदाहरण इसे स्पष्ट करते हैं।
उदाहरण देने से पूर्व, वर्तमान समय में गुरुदेव जी ने दो कृपाएं की हैं, कर रहे हैं कोरोना काल में। कृपाएं तो उनकी सब पर अनेक हैं, किन्तु मार्च 2020 के मध्य से आनन्दधाम की पावन माटी से, गुरुधाम रुपी तीर्थ से, सात्विक ज्ञान की भगीरथी प्रवाहित कर दी गुरुदेव जी ने। सम्पूर्ण विश्व में शिष्यों का जीवन जैसे धन्य हो गया, ज्ञान का ज्ञान और लाईव गुरु दर्शन। आतंक, भय और निराशा काल में वैदिक ज्ञान, गीता ज्ञान, गुरुगीता ज्ञान, ध्यान साधना, मन्त्र सिद्धि साधना, मृत संजीवनी साधना से शिष्यों के जीवन को धन्य कर दिया।
गुरुदर्शन हो गये, गुरुपूजन हो गया, गुरुज्ञान मिल गया और सिद्ध सफल हो गई गुरुपूर्णिमा चांद भी मिल गया, चान्दनी भी मिल गई स्नाान भी हो गया, ज्ञान गंगा में और गुरुदर्शन का पुण्य भी अर्जित कर लिया। यह है आनन्द कृपा से गुरुकृपा की प्राप्ति।
पहला उदाहरण एक तमिल विद्यार्थी का है। स्कूली शिक्षा में श्रेष्ठतम, विज्ञान में शत-प्रतिशत अंक हर कक्षा में, आई- आई- टी मद्रास से इंजीनियरिंग में प्रथम, कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से एमबीए किया, अमेरिका में अच्छी सर्विस मिल गई, एक सुन्दर शिक्षित तमिल कन्या से विवाह हो गया, पांच कक्षों वाला विशाल मकान खरीद लिया, दो बच्चे हो गये, सुखद, हंसता-खेलता मुस्कुराता चहचहाता जीवन, दो महीने पूर्व परिवार सहित आत्महत्या कर ली। कैलीफोर्निया इन्टीट्यूट ऑफ किनीकल साईकालोनी से इस पर शोध किया और निष्कर्ष निकाला कि वह संकट की स्थितियों से घबरा गया, कोरोना में उसकी नौकरी छूट गई, मकान की किश्त नहीं दे पाया, घर चलाना मुश्किल हो गया और घबराहट में पूरा परिवार समाप्त कर लिया।
इस दुर्घटना की तरह मुम्बई के सफल कलाकार सुशान्त राजपूत की सच्ची तात्कालिक घटना है, उसने भी विपरीत परिस्थितियों में विषाद में आत्महत्या कर ली। अत्यन्त योग्य सफल विद्यार्थी, मुस्कराते स्वभाव वाला सफल एक्टर, कई कारणों से फिल्म उद्योग में स्थितियां उसके विपरीत कर दी गईं या हो गईं, कारणों की छानबीन हो रही है।
गुरुदेव सर्वदा सुरक्षा कवच बनकर साथ खड़े रहे। सब शिष्यों के साथ संग-संग रहते हैं गुरुदेव। इसी कारण गुरुदेव अपने प्रवचनों में भावनात्मक और संकट स्थिति वाले कोशेन्ट की चर्चा करते हैं शिष्यों की भलाई के लिये। कोरोना काल में शिष्यों को कितना बल दिया, साहस दिया, बहुत कुछ दिया, जिस का उल्लेख किया गया। शब्दकोश में कोशेन्ट का अर्थ भज फल या उपलब्धि दिया गया है।
कोशेन्ट चार प्रकार का होता है-
1- इन्टैलीजैंस कोशेन्ट – बुद्धिमता कोशेन्ट
2- इमोशनल कोशेन्ट – भावनात्मक कोशेन्ट
3- सोशल कोशेन्ट – सामाजिक कोशेन्ट
4- एडवरसटी कोशेन्ट – संकट या विपरीत काल कोशेन्ट
पहले का आपकी शैक्षणिक योग्यता से सम्बन्ध है, दूसरे का भावनाओं से जुड़ी बातों या घटनाओं से सम्बन्ध है, सोशल में आप सामाजिक जीवन में कैसे सम्बन्ध बनाते हैं और चौथे का सम्बन्ध उन स्थितियों से होता है, जो आपके जीवन में धीरे-धीरे अचानक आ गई हैं। चौथी स्थिति में बहुत सावधान, सतर्क, शान्त, धैर्यवान और सन्तुलन रखने की महती आवश्यकता होती है। विश्व में हर स्तर पर सैकड़ों हजारों उदाहरण हैं, जब बड़े-बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति भी इसके शिकार हो गये। उन उदाहरणों में जाना उचित नहीं है।
मुख्य उद्देश्य यह है कि परमपूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज ने विश्व में सम्पूर्ण मानव जाति पर, विशेष कर अपने शिष्यों पर असंख्य उपकार किये हैं, चाहे वे लौकिक सफलताओं या विफलताओं से सम्बन्धित हों, ईश्वरीय ज्ञान से सम्बन्धित हों, शिष्यों के लोक और परलोक दोनों को सुधारा हो। गुरुवर ने इसीलिए तो प्रारम्भ में भारत देश की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को बारीकी से देखने के लिये भ्रमण किया, फिर जो स्वयं ज्ञान, ध्यान, जप, साधना, अंतर्बोध से प्राप्त किया, उसे इन चालीस बयालीस वर्षों में जनसाधारण के दुखों को कम करने और सुख देने के लिये उन्हें बांट दिया। गुरुदेव ईश्वर के अवतार हैं, ज्ञान-विज्ञान के असीमित सागर हैं, कोमल-करुण हृदय वाले महामानव हैं। ईश्वर गुरुदेव जी को स्वस्थ, सुखी, दीर्घ आयु देने की कृपा करना।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।।