वृद्धजनों के प्रति सम्मान से भी उनमें बढ़ती है आरोग्यता | Vishwa Jagriti Mission

वृद्धजनों के प्रति सम्मान से भी उनमें बढ़ती है आरोग्यता

 

जिसने हमें पाला-पोसा, लायक बनाया, चलना-बोलना सिखाया, सभ्यता दी, भाषा दी, कुछ बनकर खड़े होने के लिए अधिकार दिया, उन माता-पिता एवं बड़ों के प्रति हम सबका भी कर्तव्य बनता है कि उम्र बढ़ने पर उनके स्वस्थ-आरोग्यतापूर्ण बुढ़ापा का मार्ग प्रशस्त करें। इसलिए सर्वाधिक आवश्यक है उनके प्रति प्रेम, स्नेह-सम्मान भरे व्यवहार को बढ़ाना। उनके प्रति उपेक्षा का व्यवहार न करे। बुजुर्गों के चिकित्सा विश्लेषक कहते हैं कि ‘‘बुजुर्ग रोगी के लिए औषधि से अधिक आवश्यक है उनके प्रति स्नेह, सम्मान भरे व्यवहार को बढ़ाये। हमारी भारतीय परम्पराओं में दिये गये सूत्र इसके लए अधिक कारगर साबित हुए हैं। क्योंकि उनके प्रयेाग से बुजुगों में ऊर्जा संचरित होती है और वे दीर्घ जीवी, आरोग्यपूर्ण जीवन की अभिलाषा से भर उठते हैं। जबकि उपेक्षा से उनका मनोबल गिरता ही है, बुजुर्गों को इससे बीमारी घेरने लगती है। उपेक्षा से रोग घेरते हैं। मनु स्मृति में वर्णन है किµ

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।

चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।

अर्थात् ‘‘तुम अपने बड़ों का आशीर्वाद लो, निश्चित रूप से बड़ों के आशीर्वाद से तुम्हारी आयु बढे़ेगी। सच है कि उन बुजुर्गों में इससे आरोग्यता बढ़ती है।’’

बुजुर्ग व माता-पिता को लम्बी आयु तक स्वस्थ रखने का हमारे ट्टषियों द्वारा प्रदत्त यह महत्वपूर्ण अनुसंधान है। इस संदर्भ में देखें तो देश के बुजुर्गों की स्मृतियां दयनीय और दर्दनाक हैं, इस समय 60 वर्ष से अधिक आयु वाले 16 करोड़ लोग भारत में हैं। आज आवश्यकता वृद्धाश्रम की नहीं, अपितु अपने घर में ही बुजुर्गों को सम्मान देकर उन्हें स्वास्थ्य लाभ दिलाने की है। प्रस्तुत है आयुर्वेद आधारित कुछ व्यावहारिक आर्रोग्य सूत्र ।

परिवार के सभी सदस्य प्रतिदिन प्रातः काल अपने वृद्ध माता-पिता तथा बड़ों बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर प्रणाम करें। संस्कृति अनुसार दाहिने हाथ से दाहिने पैर का एवं बायें हाथ से बायें पैर का अंगूठा स्पर्श करने से दोनों को प्राण ऊर्जा मिलती है। जिससे पारस्परिक प्रेम एवं अटूट बन्धन के साथ बुजुर्गों की आरोग्यता बढ़ता है।

प्रतिदिन वृद्ध पुरुषों के साथ कुछ समय व्यतीत करना भी स्वास्थ्य विज्ञान है। अतः उनसे परस्पर वार्तालाप करें, उनका समाचार जानें, हंसी-विनोद की बातें करें। इससे समरसता के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

प्रतिदिन प्रातः एवं सायंकाल सन्ध्या के समय बुजुर्गों के साथ आरती, भजन, संकीर्तन अवश्य करें।

प्रतिदिन उनकी सामर्थ्य एवं ऋतु के अनुसार समय पर उन्हें भ्रमण के लिये ले जायें। इससे प्रकृति दर्शन के साथ-साथ शरीर की हलचल के कारण साधारण व्यायाम भी हो जाता है और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

वृद्ध लोगों के सामर्थ्यानुसार उन्हें धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक कार्यों में प्रतिभागी बनाते रहें, जिससे वे अपने आपको संसार से अलग व अनुपयोगी न समझें। इससे उनकी प्रसन्नता व आरोग्यता बढ़ेगी।

बुजुर्गों को उनकी आवश्यकतानुसार श्रीमद्भागवद्गीता, रामायण तथा अन्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक पुस्तकें, पत्र-पत्रिकायें पढ़ने को दें। उन्हें स्वाध्याय हेतु प्रेरित करें। पढ़ने में असमर्थ होने पर उन्हें खुद श्रवण करायें। विचारों का यह आदान-प्रदान बुजुर्गों के लिए संजीवनी जैसी काम करती है। रोग मिटते हैं।

अवस्था एवं शक्ति के अनुसार उन्हें समय-समय पर तीर्थदर्शन और किसी धार्मिक स्थल पर अवश्य ले जायें। ऐसे स्थलों पर जाने से उनमें आध्यात्मिक ऊर्जा का विज्ञान काम करता है।

उन्हें भार स्वरूप न मानें, यथा सम्भव उन्हें नौकर अथवा पड़ोसी के आश्रित न होने दें। तथा पूर्ववत जीवन जीने के लिये प्रोत्साहित करें। इससे उनका मनोबल बढ़ता है और व स्वस्थ अनुभव करते हैं।

प्रेम एवं विश्वास बढ़ाने के लिए नन्हें-मुन्नों को बुजुर्गों की गोद में डालते रहें। इससे दोनों ऊर्जा से भरते रहते हैं।

सामयिक जांच के अनुसार रुग्णावस्था में उनका यथा शीघ्र, यथा शक्ति, यथा समय उपयुक्त उपचार का अविलम्ब प्रबन्धन करते रहें। समय पर दवा देकर प्रसन्नतापूर्वक अनुभव करें। अधिक अवस्था की स्थिति में स्मरण शक्ति का ”ास होता है, अतः औषधि लेने का काम बुजुर्गों के भरोसे न छोड़ें। अधिक रुग्णावस्था में उन्हें अकेला न छोड़ें।

खान-पान, वस्त्र आदि में उनकी इच्छा का ध्यान रखें। पथ्यापथ्य के पूर्ण विचार के साथ उन्हें भोजन, दूध, नाश्ता नियमित एवं निर्धारित समय पर दें।

प्रत्येक समय बिना मांगे उनकी समुचित इच्छाओं की पूर्ति करने का प्रयास करें, इससे वे अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर अंदर से ऊर्जावान अनुभव करते हैं।

भूलकर भी बुजुर्गों पर कटाक्ष एवं कटुतापूर्ण शब्दों का प्रयोग न करें, उन्हें दुःखी न करें, शान्त रहें। परिवार के सभी सदस्य उनके साथ धैर्यपूर्वक सामंजस्य बनाकर रखें।

उन्हें इच्छा अनुसार दान-पुण्य करने दें।

इस विचारधारा के साथ बुजुर्गों के प्रति किये गये व्यवहार से हम सब भी पुण्य के भागी होंगे तथा परिवार के सभी प्राणी अनावश्यक मनमुटाव से बचेंगे। इन सूत्रें को पालन करके हम अपने बुजुर्गों की प्रसन्नता, आरोग्यता सहज बढ़ा सकते हैं।

One thought on “वृद्धजनों के प्रति सम्मान से भी उनमें बढ़ती है आरोग्यता | Vishwa Jagriti Mission

  1. बुजुर्गों के लिए बहुत ही सुंदर एवं सारगर्भित बिंदुओ का संग्रह किया गया है। इस को ध्यान में रखकर हम अपने बुजुर्गों की प्रसन्नता एवं उनके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रख सकते हैं।

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