परमात्मा का संकल्प है कि वह धरती को कभी मिटने नहीं देगा। यही कारण है कि जब भी धरती पीड़ा, दुख, कष्ट से भर जाती है, तो परमात्मा अनेक मुक्त आत्माओं में से ही किसी को अपनी शक्तियां देकर अपना प्रतिनिधि बनाकर सद्गुरु के रूप में धरती पर भेजता है। परमात्मा की सम्पूर्ण शक्तियों के साथ वह करुणामय गुरु लोगों के कल्याण के लिए कार्य करता है। मानव मात्र का दुख, कष्ट, पीड़ा मिटाने और सुख, शांति, संतोष, आनन्द के लिए जीवन खपा देता है।
गुरु में परमात्मा की सारी शक्तियां बीज रूप में समाई होती हैं। गुरु ये शक्तियां लोगों में धारण कराने के लिए समाज में सत्संग, सेवा, साधना जैसे प्रयोगों से हुंकार भरता है, ऐसे पात्रों को खोजता है, जिन्हें वह उन शक्तियों द्वारा परमात्मा से जोड़ सके।
जो व्यक्ति गुरु के साथ पिछले कई जन्मों से जुड़कर कार्य करते आये हैं, वे सब सामने आते हैं। और उन्हें गुरु के सौभाग्यशाली शिष्य बनने का सुवसर मिलता है। गुरु समर्पित शिष्य की यही पहचान होती है कि उसे अपने गुरु को पहली बार देखने मात्र से लगता है कि इनसे तो जैसे हम पहले से परिचित हैं।
इस प्रकार एक गुरु द्वारा समाज के लाखों लोगों के पीड़ा-पतन निवारण के साथ उसकी आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। देखते ही देखते परमात्मा का कार्य होने लगता है और सेवा-साधना के अनेक प्रकल्पों के साथ एक विराट मिशन खड़ा होता है।
करोड़ों लोगों के दुख-दर्द मिटते हैं। उनके सुख-शांति-आनन्द-सौभाग्य के द्वार खुलते हैं। यह विश्व जागृति मिशन ऐसे ही दिव्य गुरु और शिष्यों की सम्मिलित यात्रा है यह विराट आध्यात्मिक संगठन है। निश्चित ही हम सबकी यह गुरु-शिष्य की यात्रा आज की नहीं, अनेक जन्मों से चली आ रही है।
एक ओर परमात्मा ने हमारे करुणास्वरूप गुरु पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज को अपनी शक्तियां देकर अपने प्रतिनिधि रूप में धरती के कष्ट हरने के लिए भेजा, तो दूसरी ओर हमें उनके शिष्य बनाकर परमात्मा के कार्य में सहयोग के लिए इकट्ठा कर दिया। ऐसे दैवीय मिशन एवं दैवीय कृपा पात्र शिष्य अपने परमात्मा द्वारा अपने प्रतिनिधि रूप में भेजे सद्गुरु के दैवीय अभियान को पूरा करने में जुटे तो यह मिशन सहज ढंग से खड़ा होता गया।
करुणाकर हमारे गुरुदेव:
हमारे सद्गुरुदेव पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज ने उस परमपिता का प्रतिनिधित्व स्वीकार करते हुए अपने करुणाभाव को लेकर समाज के बीच उतरे तो लोगों की गरीबी, दुख को निकट से देखा और उसे दूर करने के लिए संकल्पित हुए। इस प्रकार इस विराट विश्व जागृति मिशन को पूज्य सद्गुरु जी की करुणामयी पीड़ा की उपज कह सकते हैं।
आज इस वट वृक्ष की छाया में लाखों-करोड़ों भक्त-शिष्य सेवा, सत्संग, स्वाध्याय, समर्पण, शांति एवं संतोष का संदेश ग्रहण कर रहे हैं। जन-जन में नये संकल्प, नई सोच और समाज को नये प्रकाश का सौभाग्य मिल रहा है। गुरुवर के मिशन से जुड़कर लाखों लोग भारत के खोये सांस्कृतिक आध्यात्मिक सौभाग्य को वापस लाने में जुटे हैं।
रामनवमी 1991 को स्थापित सद्गुरु पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज के मार्गदर्शन में यह मिशन धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, गौसेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, आयुर्वेद, संस्कार, बृद्धजन सेवा, वानप्रस्थ परम्परा, साधना परम्परा, व्यक्तित्व निर्माण सहित अनेक सेवा प्रकल्पों से जन-जन के गौरव को बढ़ाने में लगातार प्रयास कर रहा है। अनाथों को सहारा देने के लिए पूज्यवर के मार्गदर्शन में मिशन ने अनेक सेवाप्रकल्प प्रारम्भ किये। साथ ही व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व को शांति, सौहार्द से जोड़ने, मानव को मानवता की ऊंचाईयों से स्पर्श कराने, परिवार को भारतीय संस्कारों से जोड़ने घर-घर संस्कारवान पीढ़ी खड़ी करने हेतु सेवा कार्य प्रारम्भ किये।
इसके अतिरिक्त गुरुवर द्वारा धर्म, संस्कृति, मानव को स्वस्थ, सशक्त, आत्मनिर्भर व समृद्धशाली बनाने का अभियान प्रारम्भ हुआ। शिक्षा में आधुनिकता एवं प्राचीन ज्ञान मूल्याें का व्यावहारिक समन्वय करते हुए गुरुकुलों की स्थापनायें प्रारम्भ हुईं। वृद्धों की पीड़ा को श्रद्धापर्व द्वारा दूर करने, उन्हें आत्म गौरव से जोड़ने के लिए वृद्धाश्रम प्रारम्भ किया।
अनाथों के दर्द को अनुभव करके बालाश्रमों का निर्माण प्रारम्भ हुआ और उन्हें संरक्षण, पोषण, संस्कारपूर्ण शिक्षा देकर आत्मनिर्भर बनाने का इस मिशन ने बीड़ा उठाया।
शिक्षा सेवा आंदोलन:
गुरुदेव ने अपने शिष्यों के माघ्यम से जरूरत मंद, गरीब, अनाथ, बेसहारा, झुग्गी-झोपड़ी में बसने वालों के लिए शिक्षासेवा आन्दोलन चलाया। गुरुकुल शिक्षा के साथ-साथ उन नौनिहालों-किशारों को भी अपनी शिक्षासेवा से जोड़ा, जो धरती पर जन्म तो ले चुके थे, पर उनका न कोई पालन-पोषण करने वाला था, न ही उनमें जीवन के प्रति आशा जगाने वाला कोई सहारा था।
जो बच्चे अपने-माता-पिता से दैवीय व अन्य कारणों से वंचित थे। चौराहों, गलियों के बीच उनका जीवन भूखे-प्यासे बीत रहा था, उन्हें अपना प्यार देकर जीवन जीने की आश जगाई।
इसी क्रम में ज्ञानदीप विद्यालय, फरीदाबाद की शुरुवात हुई। फरीदाबाद मण्डल में छोटी-छोटी गरीब बच्चियों को प्रातःकाल कूड़ा बीनते, भीख माँगते देखकर उनकी किस्मत सवांरने को लेकर जून 2001 में ज्ञानदीप विद्यालय की नीव पड़ी। गुरुपीड़ा ही है कि 5 छोटी-छोटी कन्याओं के साथ फरीदाबाद आश्रम में प्रारम्भ नर्सरी कक्षा आज ज्ञानदीप विद्यालय बनकर खड़ा है। यहा से 700 कन्याएं और 300 बालकों की निःशुल्क शिक्षा सेवा हो रही है।
इसी क्रम में मिशन द्वारा झारखंड में रांची के आदिवासी क्षेत्रें में वर्ष 2000 में रुक्का तथा वर्ष 2004 में खूंटी (झारखंड) में आदिवासी पब्लिक स्कूल की स्थापनायें की गईं।
मिशन आज उस आदिवासी क्षेत्र के 700 से अधिक बच्चों को पुस्तकें, यूनिफॉर्म एवं अल्पाहार के साथ निःशुल्क शिक्षा दे रहा है।
शिक्षा के अन्य प्रकल्पों में विश्व जागृति मिशन द्वारा सूरत व कानपुर बालाश्रम में महर्षि वेदव्यास अन्तर्राष्ट्रीय गुरुकुल विद्यापीठ की स्थापना कर शिक्षा सेवा अभियान चल ही रहा है। आज महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ एवं उपदेशक महाविद्यालय आदि शिक्षण संस्थान जहां भारत की सनातन संस्कृति का रक्षण कर रहे हैं। वहीं राष्ट्र समाज के लिए सुयोग्य पीढ़ी भी गढ़ रहे हैं।
वृद्धाश्रम सेवाः
जो लोग घर-गृहस्थी के जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद सेवा, साधना, सत्संग से अपने जीवन को जोड़ना चाहते हैं। उन वृद्ध महिलाओं-पुरुषों के लिए गुरुदेव ने आनन्दधाम आश्रम में वानप्रस्थ आश्रम स्थापित किया। वहीं ऐसे माता-पिता एवं वृद्धजन जो अपने ही स्वजनों द्वारा अपने ही घरों में उपेक्षित हैं, उन वृद्धजनों के लिए आनन्दधाम आश्रम में वृद्धाश्रम की स्थापना की गई। मिशन के अन्य मण्डलों में भी गुरु संरक्षण में यह सेवा लगातार चल रही है।
गौ सेवा का कार्यः
गौसेवा बड़े पुण्य का कार्य है। इस भाव से आनन्दधाम आश्रम में कामधेनु गौशाला की स्थापना भी की गई। जहां वर्तमान में सवा-सौ से अधिक देशी गौएं सेवा पा रही हैं। इसी तरह के 6 से अधिक बड़ी गौशालाएं देश के प्रमुख शहरों के मिशन आश्रमों में स्थापित हैं।
चिकित्सा सेवाः
गुरुदेव ने अनुभव किया कि रोगी होना भी किसी परिवार के लिए बड़ी पीड़ा है। अतः संकल्प लिया कि देश में एक भी व्यक्ति रोगी नहीं रहना चाहिए। क्योंकि रोग व्यक्ति के शरीर, मन के साथ उसके परिवार को आर्थिक दृष्टि से तोड़ता है। साथ ही देखा जाता है कि जिनके पास पैसा है, वे तो स्वास्थ्य सुविधा पा लेते हैं, पर जिनके पास पैसा नहीं है, उनके लिए सहारा कौन बने। इसी संवेदना से गुरुवर ने स्वास्थ्य सेवा अभियान चलाने के लिए परिसर में ही अस्पताल बनवाया।
पीड़ा निवारण एवं स्वास्थ्य सेवा के लिए एक डिस्पेसरी से प्रारम्भ होकर सेवा प्रकल्प आज करुणा सिंधु अस्पताल स्वतः चिकित्सा सेवा का पर्याय बन चुका है।
अन्नपूर्णा योजनाः
‘अन्नपूर्णा योजना’ द्वारा भी असंख्य भक्तगण अपने जन्मदिन, विवाह वर्षगांठ व किसी अन्य मांगलिक कार्य या अपने दिवंगत पूर्वजों की पुण्य स्मृति में अन्नदान-भंडारा करा कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
दिव्य तरंगित ऊर्जा क्षेत्र तपोभूमि आनन्दधाम तीर्थ:
जहां गुरुदेव के चरण पड़ते हैं, वह भूमि तीर्थ ही बन जाती है। तीर्थ के तीर्थत्व को जगाने में धर्म-आस्था के अनेक दिव्य पूजनीय स्थलों, मंदिरों से सुशोभित है तपोभूमि आनन्दधाम परिसर। यहां आने वालों पर यहां के अनेक आस्था केन्द्र मंदिर आदि अपनी कृपा बरसाते ही रहते हैं।
इसके अतिरिक्त सिद्धिविनायक भगवान गणपति मंदिर, गुरु चरणपादुका कुटी, ओंकार ध्यान कुटी, कल्पवृक्ष वाटिका तथा सिद्धशिखर कैलाश पर विराजमान भगवान शिव, माता पार्वती, नंदी, नारद मुनि गंगा मैÕया एवं भगीरथी जी सदैव आध्यात्मिक आशीर्वाद से साधक को सराबोर करते रहते हैं। साधक सुख, शांति, आनन्द से जुड़ता है।
मानसरोवर झील, सद्गुरु कुटी, ध्यान एवं सत्संग हॉल, नवग्रह-शनि मंदिर, पशुपतिनाथ शिवालय, यज्ञशाला, नवग्रह वाटिका, कामधेनु गौशाला आदि ऐसे आस्था के क्षेत्र हैं, जहां से सतत दिव्य तरंगित ऊर्जा आनन्दधाम परिसर में आने वाले हर साधक का कायाकल्प व कल्याण करती रहती है। यहां आने वाले की मनोकामना भी पूरी होती है और भाव-विचार-प्राण परिष्कृत होते हैं तथा उसके पुण्य बढ़ते हैं।
साधना विधान:
गुरुदेव के आशीर्वाद तो फलते ही हैं, भक्तगण द्वारा अपने व अपनों के कष्टों के निवारण के लिए गुरुदेव से की गयी प्रार्थनाओं पर गुरुवर कष्ट दूर करने के लिए उनके निमित्त अनुष्ठान-साधनायें भी यहां कराते हैं। साथ ही गुरुनिर्देशन में आनन्दधाम में सेवारत महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ एवं उपदेशक महाविद्यालय के ऋषिकुमारों व धर्मोंपदेशक प्रशिक्षुओं, विद्वान आचार्यों द्वारा मंत्र जप, अनुष्ठान तथा यज्ञ आहुतियों के माध्यम से दुःख-दारिद्र-रोगमुक्ति की भी कामना की जाती है। यहां समय-समय पर यज्ञ-अनुष्ठान चलते ही रहते हैं। साथ ही इन दिनों पूज्य सद्गुरुदेव का गीता, गुरुगीता पर दिव्य संदेश धारावाहिक सम्पूर्ण परिसर को दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा से भर ही रहा है। जिसके कारण इस परिसर में प्रवेश करते ही साधक सुखी, शांत, आनन्दित व संतोष से भर उठता है।