पुण्यवर्धक है नववर्ष में ब्रह्मयज्ञ
‘यज्ञ‘ का अर्थ आग में घी डालकर मंत्र पढ़ना नहीं होता। यज्ञ का अर्थ है- शुभ कर्म। श्रेष्ठ कर्म। सतकर्म। वेदसम्मत कर्म। सकारात्मक भाव से ईश्वर-प्रकृति तत्वों से किए गए आह्वान से जीवन की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है। मांगो, विश्वास करो और फिर पा लो। यही है यज्ञ का रहस्य। यजुर्वेद मुख्यतः यज्ञ करने की सही प्रक्रिया व उसके महत्व के बारे में बताता है। इसी कारण इसे कर्मकांड प्रधान ग्रंथ भी कहते हैं। अश्वमेध, राजसूय, वाजपेय, अग्निहोत्र आदि अनेक यज्ञ करने, करवाने का विस्तारपरक वर्णन इसी में है। आज कोरोना संकट काल के जिस दौर में पूरा ब्रह्माण्ड विक्षुब्ध है, इस ब्रह्मयज्ञ की महिमा और बढ़ जाती है। यह यज्ञ कृमिनाशक एवं वातावरण, पर्यावरणशोधक भी तो है।
यज्ञ प्रयोजन में प्रयुक्त होने वाली औषधियों की प्रार्थना महिमागान करते हुए यजुर्वेद में कहा गया है।-
‘शयिता नो वनस्पतिः’। सहस्व मे अरातीः सहस्व पृतनायतः। सहस्व सर्व पाप्नात ¦ सहमानास्योषधेः।।
अर्थात् हे यज्ञदेव वनस्पतियां हमें शांति-प्रदान करें। रोगों को दूर करें। पूज्य गुरुदेव कहते हैं ‘‘दिव्य संकल्पों के साथ यज्ञाहुतियों से वातावरण का परिष्कार एवं संवर्धन होता है, साथ ही मंत्र प्रयोग से देवशक्तियों के सूक्ष्म प्रभाव से जुड़ी शक्तिधाराओं का साधक के जीवन में स्थापना होती है। यजुर्वेदीय यज्ञ में यह क्षमता और भी बढ़कर देखने को मिल सकती है।’’ क्योंकि रोगों, कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए यज्ञ धूम्र की शक्ति को प्राचीनकाल में भली प्रकार परखा जा चुका है। इसके उल्लेख स्थान-स्थान पर उपलब्ध हैं। यजुर्वेद परम्परा का यह मंत्र यही तो संदेश एवं प्रयोग की प्रेरणा देता है।
दिवि विष्णु व्यक्तिस्त जागनेत छंदसा। तते निर्भयाक्ता यो–स्यमान द्वेष्टि यंच वचं द्विषमः।
अन्तरिक्षे विष्णुव्यक्रंस्त त्रेप्टुते छन्दसा। सतो नर्भक्तो।
पृथिव्यां विष्णुर्व्यक्रस्तंगायणे छन्दसा। अस्यादन्नात्। अस्ये प्रतिष्ठान्ये। अगन्य स्वः संज्योतिषाभूम।
इस विशिष्ट ब्रह्मयज्ञ द्वारा यज्ञ के इसी ज्ञान एवं विज्ञान का प्रयोग ही तो आनन्दधाम आश्रम में पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में सम्पन्न होने जा रहा है। इसके लिए गुरुधाम में यज्ञीय प्रयोगशाला निर्माण सहित सभी तैयारियां पूरी हो चुकी है। हवन सामग्री मंत्रें का चयन इस स्तर का हो रहा है कि याजकों के सातों ऊर्जा चक्रों में जागरण सम्भव हो सके वातावरण के सूक्ष्म विकार मिटे। इससे साधक दीर्घ जीवन, सुख, सौभाग्य, शांति, आरोग्यता और सम्पन्नता प्राप्त करे। ‘दिव्य शक्तियों’ का सान्निध्य प्राप्त करें, यही गुरुवर की अपेक्ष है। इसी कारण आश्रम में विगत 20 वर्षों से सम्पन्न हो रहे महायज्ञों में नववर्ष का यह यज्ञ अति विशेष है।