आध्यात्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी अति लाभकारी है यज्ञ
आइए! ऑनलाइन यजमान बनें आनन्दधाम के यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ में विश्व कल्याण की भावना से ओतप्रोत वैदिक संस्कृति के मूल आधार हैं ‘वेद’ और वेद ‘यज्ञमय’ हैं। जिस कर्म विशेष में देवता हवनीय द्रव्य, वेदमंत्र, ट्टत्विक और दक्षिणा इन पांचों का संयोग हो उसे यज्ञ कहते हैं।
हमारे देश की धार्मिकता और यज्ञ परम्परा समपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। हमारे देश की धार्मिकता और यज्ञीय परम्परा से संतुष्ट होकर देवगण सर्वदा यहीं निवास कते हैं। इसलिए हमारे देव भारतवर्ष को ‘देवभूमि’ कहा गया है।
जिस प्रकार श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितर तृप्त और संतुष्ट होते हैं, उसी प्रकार यज्ञ की अग्नि में हवनीय द्रव्य हवन करने से देवत तृप्त और संतुष्ट होते हैं। ‘देवतोद्देशेन अग्नौ हविर्द्रव्यत्यागो यागः’ के अनुसार देवी-देवताओं की प्रसन्नता के उद्देश्य से अग्नि में हविर्द्रव्य का जो त्याग किया जाता है, उसे यज्ञ कहते हैं।
गीता के अठारहवें अध्याय के पांचवे श्लोक में लिखा है कि यज्ञ, दान और तप ये तीनों मनुष्यों को पावन करते हैं, इसलिए हर एक व्यक्ति को अपने जीवन में इन चीजों को अवश्य अपनाना चाहिए।
यज्ञ से अनंत आध्यात्मिक और दैवीय लाभ तो हैं ही, यज्ञ के वैज्ञानिक सिद्धांतों पर भी अनेकानेक लाभ हैं। यज्ञ पर हुए कई वैज्ञानिक शोधों और अनुसंधानों से पता चला है कि यज्ञ से उठने वाले धुएं से वायु में मौजूद 94» हानिकारक जीवाणु-विषाणु नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इसके धुएं से वातावरण शुद्ध होता है और बीमारियों के फैलने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है।
शोध से पता चलता है कि यज्ञ का धुंआ वातावरण में 30 दिन तक बना रहता है और उस समय तक जहरीले कीटाणु नहीं पनप पाते। यज्ञ धूम्र से न केवल मनुष्य के स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ता है अपितु यह खेती में भी काफी लाभकारी सिद्ध हुआ है। खेतों में मौजूद फसल के लिए हानिकारक कीटाणु भी यज्ञ धूम्र से नष्ट हो जाते हैं। शोध यह भी कहता है कि मनुष्य को दी जाने वाली दवाओं की तुलना में यज्ञ का औषधियुक्त धुआं काफी लाभदायक है। यज्ञ के धुएं से शरीर में पनप रहे रोग खत्म हो जाते हैं, जबकि दवाएं रोग-बीमारियों को दबा तो जरूर देती हैं लेकिन इनके कुछ-न-कुछ दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) भी जरूर रह जाते हैं।
वैज्ञानिक शोध से यह भी सिद्ध हुआ है कि यज्ञ में हवनीय पदार्थ के मिश्रण से एक विशेष तरह का गुण तैयार होता है, जो हवन होने पर वायुमंडल में एक विशिष्ट प्रभाव पैदा करता है। वेद मंत्रें के उच्चारण की शक्ति से उस प्रभाव में और अधिक वृद्धि होती है।
वैज्ञानिक अभी तक कृत्रिम वर्षा कराने में सफल नहीं हो पाये लेकिन यह देख गया है कि यज्ञ द्वारा वर्षा हुई है। कई लोग वर्षा कराने के लिए यज्ञ का सहारा लेते हैं और जहां यज्ञ होता है वहां के आसपास के खेतों में अच्छी फसल भी होती है। प्रचुर अन्न उपजता है।
यज्ञीय प्रभाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है आनन्दधाम आश्रम के आसपास के खेतों की हरियाली जहां आज से 20 वर्ष पूर्व बहुत कम फसलें होती थी। वहां आज हरी-भरी नर्सरियां हैं, खेतों में बहुतायत में अन्न उपजता है। आसपास के गावों के लोग बताते हैं कि पहले यहां कुछ भी नहीं बोया जाता था। जंगल जैसा स्थान था लेकिन जब से गुरुवर सुधांशु जी महाराज ने यहां आश्रम बनाकर यज्ञ करवाना शुरू किया तब से यहां के क्षेत्र में हरियाली ही हरियाली है। बीते काफी समय से आश्रम में सेवारत सेवादारों और कर्मचारियों ने भी यह प्रत्यक्ष तौर पर देखा है।
आनन्दधाम आश्रम में विगत 20 वर्षों से होता आ रहा यज्ञ इस वर्ष अति विशेष है। हर वर्ष जहां श्रीगणेश लक्ष्मी यज्ञ का पंचदिवसीय आयोजन किया जाता था वहीं इस वर्ष यजुर्वेद यज्ञ के साथ श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ का 11 दिवसीय आयोजन किया जा रहा है। यह 108 कुण्डीय महायज्ञ 26 अक्टूबर से 5 नवम्बर तक आयोजित किया जायेगा।
महायज्ञ में 26 से 30 अक्टूबर पांच दिन तक यजुर्वेद के मंत्रें से विशेष आहुतियां दी जाएंगी और प्रतिदिन श्रीगणेश लक्ष्मी के दिव्य अर्चन एवं कुछ आहुतियां भी दी जाएंगी। 31 अक्टूबर से 5 नवम्बर, 2020 मे छः दिन श्रीगणेश-लक्ष्मी के महामंत्रें से विशेष आहुतियां दी जाएंगी और प्रतिदिन कुछ आहुतियां यजुर्वेद के मंत्रें से भी दी जाएंगी।
महाराज श्री के सान्निध्य में वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला यह यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ भक्तों के लिए स्वास्थ्य-सुख, धन-समृद्धि, नौकरी-व्यापार में उन्नति-प्रगति के साथ हर शुभ मनोकामना पूर्ण करने वाला है। इसलिए हर व्यक्ति को इस यज्ञ में यजमान बनकर यज्ञ का लाभ लेना चाहिए। भक्तजन घर बैठे ऑनलाइन यजमान बनकर यज्ञ का पुण्यफल प्राप्त करें।
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