यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्। इष्टकाम समृद्धयर्थं पुनरागमनाय च।।
अर्थात् हे देवगण! हमारी पूजा को स्वीकार करके आप स्वस्थान को पधारें, लेकिन पुनः हम अपनीइष्टपूर्ति हेतु आपका आवाहन करेंगे। यही है देवताओं के प्रति सही श्रद्धा-सम्मान, जो अनन्तकाल सेभावनाशील, पवित्र, समर्पित भक्तों को सुख-शांति, समृद्धि से भरता आया है। देवताओं का नमनपूर्वकआह्नान, सम्मान और सम्वेदनात्मक विदाई हमारी सांस्कृतिक ट्टषि परम्परा है। यही कारण है कि पूजाविधि में देवता का आवाहन, पूजन और पूजा समाप्ति के पश्चात उनका विसर्जन भी करते हैं।खासबात यह है कि जिस तत्व से सम्बन्धित देवता उसी तत्व में उसका विसर्जन-विलय भी जरूरी है। चूंकि गणेश जी जलतत्व के अधिपति हैं, अतः गणपति को जल में विसर्जित करने कीश्रेष्ठ परम्परा चली आ रही है। आइये! गणपति विसर्जन कर उनसे विघ्न-बाधाओं को दूर करने,मनोरथपूर्ण करने की प्रार्थना करें, साथ ही आगामी वर्ष पुनः पधारने का निवेदन भी, जिससे जीवनसौभाग्य के द्वार खुल सकें। इसलिए विसर्जन के समय यह कहा भी जाता है ‘‘गणपति बप्पा मोरियाअगले बरष तु जल्दी आ।’’