गौ-सेवा से आती है सुख, शांति और समृद्धि | Sudhanshu ji maharaj | vishwa jagriti Mission

Happiness, peace and prosperity comes from cow-service

भारत में गौ सेवा, गौदान, गौ संवर्धन के लिए दान एवं गुरुकार्यों को बढ़ाने के लिए दान की अनन्त कालीन परम्परायें चली आ रही हैं। साथ ही सावधान भी किया गया है कि दान सद्पात्र को ही देना चाहिए। सद्पात्र का आशय जहां गुरु का संरक्षण हो, गौशाला में गायों की सेवा होती हो, गुरुकुल एवं वृद्धाश्रम चले रहे हों तथा स्वास्थ्य सेवा का अभियान चलता हो वह स्थान तीर्थ बन जाता है। ऐसे स्थान पर दिया गया दान अनन्त गुना होकर फलित होता है। साथ ही सत्पात्र को दिया गया दान दान देने वाले को दिन-दिन समृद्ध करता है।
इस संदर्भ में कथानक आता है कि प्राचीनकाल में ब्रह्मचारी सत्यकाम जाबाल के उपनयन-संस्कार पर उनके गुरु ने सैकड़ो दुबली-पतली गौएं सत्यकाम को सौंपते हुए बोलेµबेटा! तू इन गौओं को चराकर हृष्ट-पुष्ट करके ले आओ। कुशाग्र बुद्धि सत्यकाम गुरु के भाव को समझ गये। गुरु की आज्ञा मानकर वह जंगल में गौओं के ही बीच में रहते, उनकी सेवा-शुश्रूषा करते, वन के सभी क्लेशों को सहते। उस बालक ने अपने जीवन को गौओं के जीवन में लगा दिया। सत्यकाम गो सेवा में ऐसा तल्लीन हो गये कि पता ही न चला कि गौएं कितनी हो गयी हैं। साथ ही गौओं की इस निष्काम सेवा-शुश्रूषा से सत्यकाम परम तेजस्वी ब्रह्मज्ञानी भी होते गये।
कुछ समय बाद उसने पहले से अनेक गुनी गौओं को ले जाकर गुरु के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। गुरु ने उसके मुख को देखा तो देदीप्यमान। यह देखकर अत्यन्त प्रसन्नता से बोले ‘बेटा सत्यकाम! तुम्हारे मुखमण्डल को देखकर तो मुझे ऐसा लगता है, तुझे ब्रह्मज्ञान हो गया है। पर तुझे यह ब्रह्मज्ञान का उपदेश किसने किया?’
सत्यकाम ने अत्यन्त विनीत भाव से कहा ‘गुरुदेव! आपकी कृपा और इन गायों की सेवा से क्या नहीं हो सकता है। पर जब आप मुझे अपना उपदेश करेंगे, तभी मैं अपने को पूर्ण समझूंगा।’ वास्तव में गुरु और गौ सेवा का शिष्यों के आत्म उत्थान में सदियों से महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसीलिए गुरुकुल में गुरु सान्निध्य में जीवन निर्वहन एवं गौदान, गो सेवा को हमारी संस्कृति में जीवन का सौभाग्य माना गया है। गायों की सेवा व दान आदि की प्राचीन काल से इसीलिए महिमा चली आ रही है। अग्नि पुराण के अनुसार गायें परम पवित्र और मांगलिक मानी गयी हैं। गाय का गोबर और गौ मूत्र जीवन की दरिद्रता दूर करता है। उन्हें सहलाना, नहलाना, पानी पिलाना, चारा खिलाना अत्यन्त पुण्यफलदायक बताया गया है। यह उपनिषद कहता है कि गोरक्षा के लिए लगा हुआ, गौ ग्रास देने वाला व्यक्ति सद्गति प्राप्त करता है। गौ दान करने से समस्त कुल का उद्धार होता है। गौ के श्वांस से भूमि पवित्र होती है। गाय के स्पर्श से पाप नष्ट होते हैं। इसी तरह स्कन्दपुराण कहता है कि ‘ब्रह्माजी ने गौओं को दिव्य गुणों से युत्तफ़ अत्यन्त
मंगलकारिणी बनाया है। अतः सदैव उनकी परिक्रमा और वन्दना करनी चाहिए। गौओं के गौ मूत्र, गोबर, दूध, दही, घीµये पांचों वस्तुएं पवित्र मानी गई हैं और ये सम्पूर्ण जगत को पवित्र करने वाली हैं।’
मारर्कन्डेयपुराण तो गाय को साक्षात् वेद ही कहता है। इसके अनुसार विश्व का कल्याण गाय पर आधारित है। गाय की पीठ-ट्टग्वेद, धड़µयर्जुवेद, मुखµसामवेद, ग्रीवाµइष्टापूर्ति सत्कर्म, रोमµसाधु सूत्तफ़ है। उसके मल मूत्र में शांति और पुष्टि समाई है। इसलिए जहां गाय रहती हैं, वहां के लोगों के पुण्य कभी क्षीण नहीं होते। गौ भक्त को गाय पुण्यमय जीवन को धारण कराती है। गौ उत्थान को इसीलिए सभी संतों-ट्टषियों ने प्रोत्साहित किया है।
कहते हैं गौसेवा, गौसंवर्धन के विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दान अवश्य देना चाहिये। गोदान हो अथवा अन्न आदि का दान सद्पात्र के हाथ दिया जाता है, तो वह दाता को सुख, शांति, समृद्धि, आनंद, ईश्वर कृपा से भर देता है।
जिस प्रकार से अपने हाथ से भूमि में निवेश किया गया धन, मनुष्य की आवश्यकतानुसार जब चाहे काम में आ सकता है, उसी प्रकार अपने हाथ से किया गया गौसेवा के लिए दान भी प्रत्यक्ष फलदायी है। इसीलिए हमारेदेश की संस्कृति परम्पराओं में गौदान की परम्परा भी महत्व रखती है। सच कहें तो गौ की सेवा और उनके अमृततुल्य दूध और उनके अन्य सभी उत्पाद से हमें लौकिक और पारलौकिक सुख की प्राप्ति होती है। अतः हम-आप भी गुरुधाम की गौशाला में गौ सेवा के लिए अपना धन लगायें, जीवन में गुरुकृपा, सुख-सौभाग्य पायें।

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