गुरुमंत्र सिद्धि साधना विशेष
गुरु और गुरुमंत्र का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। गुरुमंत्र के माघ्यम से गुरुशिष्य के जीवन में उतरता है और शिष्य का जीवन धन्य बनाता है। पर जीवन में गुरुमंत्र फलित करने के लिए कुछ तत्वों की खास जरूरतें होती हैं। प्रथम जीवन में सत् का सान्निय। सत का जागरण तभी होता है, जब अंतःकरण में ‘श्रद्धा’ हो। श्रद्धा जीवन की पवित्रतम गहराई में कहीं बिन्दु मात्र में स्थित रहती है, पर इसे फलीभूत होने के लिए सत्संग जरूरी है। सत्संग, स्वाधयाय, महापुरुषों का सान्निघ्य, गुरु की भावनात्मक निकटता। इसी के सहारो सद्गुरु के मंत्र को जीवन में फलित करने के लिए सर्वाधिक गहरा शिष्यत्व जगता है। हमारा शिष्यत्व भाव जिस स्तर का होगा, उसी गहराई से जीवन में मंत्र प्रभाव डालेगा तथा उसी स्तर के गुरुत्व की प्राप्ति होगी और उसी गहराई पर जीवन में गुरुमंत्र फलित होगा।
हम सबने हनुमान की शिष्य भावना देखी है, उनके जीवन में मंत्र फलित ही नहीं हुआ था, अपितु उनके रोम-रोम से मंत्र झरता था। वे राम के साथ एक स्वयं सेवक रूप में ही नहीं थे, अपितु उन्होंने राम को गुरु मान कर वरण किया था और एक शिष्य के रूप में जो-जो भूमिकायें जरूरी थीं उन्हें हनुमान ने निभाया भी था। देखें तो राम के दल में अनेक लोग थे, पर सभी राम की निजता के अनुरागी थे, लेकिन हनुमान को राम से अधिक ‘राम का काज’ प्रिय था। वे साहसी थे, सद्संकल्प एवं समर्पण के भी धनी थे, पर लेश मात्र का उनमें कर्तृत्व का अभिमान नहीं था। प्रभु स्मरण एवं प्रभु समर्पण ही उनके जीवन का सार था। इसी समर्पणमय पुरुषार्थ के बल पर उन्होंने जीवन में मंत्र फलित ही नहीं किया था, अपितु सम्पूर्ण जीवन ही पफ़लित कर लिया था।
कहा जाता ब्रहमा, विष्णु और महेश की शक्तियां गुरु में प्रकट होती हैं, जिसके सहारे शिष्य में भक्ति, शक्ति जागती है और भाग्य का उदय होता है। ब्रहमा का अर्थ है शिष्य में सदैव सकारात्मक सृजन का भाव हो, विष्णु का आशय शिष्य में सदैव लोकमंगल, लोक सेवा के लिए कुछ कर गुजरने की ललक हो और महेश का आशय उचित-अनुचित का भेद करने व औचित्य के साथ खड़ा होने का साहस भी हो। जिस शिष्य में ये तीनों भाव जाग्रत होते हैं उनके जीवन में गुरुमंत्र फलित होने से कोई रोेक नहीं सकता।
सद्गुरु समदर्शी होता है और शिष्य के लिए अनुदान बरसाना उसका धर्म है। पर खास यह कि जैसे परमात्मा की कृपा का जल सबके अन्दर एक-सा ही बह रहा, लेकिन कृपा का पात्र वही होता है जो पनिहार बनकर अपना खाली बर्तन लेकर उसके द्वार पर जाएगा। उसी प्रकार शिष्य को अपने गुरु के पास खाली झोली लेकर पुकारना होता है कि हे गुरुवर! मैं कोरा कागज हूं, जो लिखना चाहो लिख दीजिए। खाली बर्तन हूं, पूर्णरूपेण रिक्त होकर आज तेरे दर पर आया हूं, जो भरना चाहो भर दीजिए। गुरु ऐसे शिष्य को सुनिश्चितपूर्णता से भरना चाहता है, लेकिन एक तथ्य और है, जो खाली पात्र को भी भरने नहीं देता, वह है शिष्य में ‘श्रद्धा’ का प्रवाहित न होना। जिस प्रकार खाली पात्र यदि निर्वात हो तो उसमें कुछ भी रख पाना असम्भव है। ठीक उसी प्रकार शिष्य की श्रद्धा उसे निर्वात होने से बचाती है। उसी श्रद्धा के सहारे गुरु शिष्य में सब कुछ उड़ेल देता है।
गुरु की कृपा तो अनवरत बरसती रहती है, पर गुरु कृपा पाने के लिए जरूरत है शिष्य में पात्रता के विकास की। पात्रता के आधार पर गुरुमंत्र को गहराई मिलती है। जिसके बल पर शिष्य में गुरु की प्रकृति को पहचानने, उसे आत्मसात करने की क्षमता जगती है। खास बात और शिष्य को सांसारिक कामनाओं, लालसाओं के साथ मंत्र जप नहीं करना चाहिए। इससे परमात्मा की ओर से मिलने वाले अन्नय अनुदानों में बाधा पहुंचती है। चूंकि गुरु के पास शिष्य को देने के लिए कोई भौतिक वस्तु नहीं होती, इसलिए भौतिकता की चाहत भी मंत्र के फलित होने में बाधा पहुंचाती है। वास्तव में गुरु तो पूर्णता का ड्डोत, पुन्ज होता है, इसलिए जरूरत होती है मंत्र जप करते करते उस ड्डोत से शिष्य को छू जाने मात्र की। छूते ही वह पारस बन सकता है, यदि उसमें सांसारिक चाहते न हों।
इतना होते ही शिष्य की प्रसुप्त चेतनाशक्ति जागृत होकर देवत्व के तल पर जीवन जीने की कला में रूपांतरित हो जाती है। शिष्य क्षुद्रताओं के घेरे से बाहर निकलकर निराशा, विषाद, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, क्रोध एवं वैमनस्य से रहित होने लगता है। वह कठिनाई, भय व चिंता से परे हो जाता है, परिणामतः उसमें सुख-शांति एवं समृद्धि से परिपूर्ण जीवन जीने की शक्ति जग उठती है। यही है गुरुमंत्र का फलित होना, आइये हम भी इन आयामों से अपने जीवन में गुरुमंत्र को फलित कर जीवन को धन्य बनायें।
Amazing Grace!
Meri jigyasa thi ki mntr phalit hone ke kya lakchhan hote h….guruji aapki bdi kripa ..h…bas itna hi kah sakti hu
Very nice message
अति अति सुंदर ।
गुरुवर के श्री चरणों में शत शत नमन ।
Jay Gurudev… Ham apni aantaraatma se pryas karenge.bas Aapka ashirwad sadayv hamare sath ho.
Best