गुरु कृपा से तय करें अपने कर्म की दिशा
मौसम बदलता है, बाहरी दृष्टि से सर्दी पड़ती है, पर व्यक्ति सर्दी तो हटा नहीं सकता, सर्दी से बचाव करता है। तेज धूप पड़ रही है, तो सूरज को मना नहीं कर सकते कि धूप इतनी क्यों दे रहे हो, खुद का ही बचाव करना पड़ता है। वैसे ही सूक्ष्म कर्मों से प्राप्त होने वाले फल के लिए भी विधान हैं।
मनुष्य के संचित कर्म पकने की स्थिति में आ गये, तो वह सुख बनकर या दुःख बनकर आपके सामने आएगा ही। इस प्रकार सौभाग्य आ गया तो अनुकूल स्थितियां बनेंगी। तब कर्म की अनुकूल स्थितियां ऐसी बनेंगी कि खुद थोड़ा कर्म करोगे और दूसरों से बड़ा सहारा मिलेगा। कोई मित्र मिलेगा, कोई अच्छा भरोसेमंद व्यक्ति मिल जाएगा, कोई साथी मिल जाएगा, बहुत सारे सम्बन्धी बनेंगे और व्यापार, काम-धंधा बढ़ चलेगा। कारोबार में, आपके पद-प्रतिष्ठा में तरक्की होगी। यही नहीं सौभाग्य के दिनों में जब आप कोई भी बात जाने-अनजाने में गलत भी बोल दें, तो भी दूसरा बुरा नहीं मानेगा।
अगर समय बुरा आ गया, दुर्भाग्य आ गया तो फिर सब उल्टा होगा। यदि दुर्भाग्य आया और आप अच्छी बात कहेंगे, तो भी लोग बात का बुरा मान जायेंगे। योजना आपने सही बनाई उसके बाद भी घाटा हो जाएगा या फिर फायदा नहीं होगा। एकदम उल्टा हो जाएगा। इसी के साथ यह भी सत्य है कि कर्म से कर्म को काटा जा सकता है। पर तब जब कर्म ज्ञानपूर्वक किया जाए, होश पूर्वक किया जाए। यह हमारे गुरुओं, संतों, शास्त्रें का मत है। इसलिए जीवन में सुखद-अनुकूलता के जहां लिए तीन चीजें महत्वपूर्ण है-ज्ञान, कर्म और उपासना। बढ़ी ईश्वर व गुरुकृपा भी जरूरी है। कर्म हमें सुख सौभाग्य से जोड़ते हैं, गुरु इसमेें सहारा बनता है। यही हमारे दुःख की घड़ी से बचाव का अस्त्र है।
मनुष्य को अपनी प्रकृति का अवलोकन भी करते रहना पड़ता है। अपने दुख एवं कष्टों पर भी दृष्टि बनाये रखनी पड़ती है कि यह दुख हमारे कर्मों की जटिलताओं से उपजा है या मौसम या किसी अन्य स्थिति से व स्वाभाविक है। इस प्रकार आंकलन से भी राहत मिलती है। वैसे मानव मन की एक विशेष प्रकृति है अगर मनुष्य गरमी में है, तो वह छाया की तरफ भागेगा। ठंडक की तरफ बहुत चला गया, तो गरमी की तरफ वह दौड़ना ही चाहेगा। इस स्वभावजन्य पड़ाव से भी वह सहज अपने दुःख से निपट सकता है। गुरु पर विश्वास करके चलने वाले हर स्थिति में सही आंकलन करने में सफल होते हैं और निश्चिंत रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि समस्या को तो सदैव मिटा नहीं सकतें, वह कर्म विधान से जुड़ी हो या सहजवस, पर एक रास्ता है अपनी सामर्थ्य शक्ति को बढ़ाना और गुरु-भगवान की कृपा प्राप्त करना। इसप्रकार गुरु के मार्गदर्शन एवं कृपा का सहारा लेकर अपनी कठिनाइयों से पार पायें, जीवन को सौभाग्यशाली बनायें।