गोवर्धन पूजा के दिन गौग्रास और गौदान महापुण्य फलदायी
गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रजलित हैं कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्रीकृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतसार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्रीकृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया ‘मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं’ कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं। मैया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण बोले हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिये क्योंकि हमारी गायें वहीं चरहती हैं, इस दृष्टि से गोवर्धन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अतः ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिये।
लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्धन पर्व की पूजा की। देवराज इन्द्र ने अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समा वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरल कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूजा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछड़े समेतशरण लेने के लिये बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधिक हुए फलतः वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिये तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से कहा
आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हें एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहंी हो सकता। अतः वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृत्तान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरुषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका। इसलिये अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिये मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।
इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है। व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।
बृज में गोवर्धन पूजा के साथ पूरे भारतवर्ष में अन्नकूट के दिन गोवर्धन पूजा के साथ गोपूजन किया जाता है। सभी लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार गौग्रास के लिये अन्न और गौ-चारे आदि का दान करते हैं। बहुत से भक्त गोवर्धन पूजा के दिन गोदान भी करते हैं। इस दिन गौग्रास और गौदान अति पुण्य फलदायी माना जाता है। सद्गुरु सुधांशुजी महाराज के आशीर्वाद से विश्व जागृति मिशन द्वारा देश में 6 बड़ी गौशालाएं संचालित है। आनंदधाम आश्रम दिल्ली की गौशाला एक आदर्श गौशाला है। जहां विभिन्न गिर गाय, देसी गाय व अन्य नस्लों की 125 से धिक गऊओं का बड़ी श्रद्धा से पालन-पोषण किया जाता है।