गुरुकृपा एवं गौ आशीर्वाद का दोहरा लाभ पायें
गाश्च शुश्रूषते यश्च समन्वेति च सर्वशः।
तस्मै तुष्टाः प्रयच्छन्ति वरानपि सुदुर्लभान्।।
अर्थात् जो व्यक्ति गायों की हर विधि से सेवा करता और उस पर सर्वस्व समर्पित करता है, उससे संतुष्ट होकर गौएं उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती हैं।
घस मुष्टिं परगवे दद्यात् संतत्सरं तु यः।
अकृत्वा स्वयमाहारं व्रतं तत् सार्वकामिकम्।।
जो व्यक्ति एक वर्ष तक प्रतिदिन स्वयं भोजन करने से पहले गाय को एक मुट्ठी घास खिलाता है, उसका यह सेवा संकल्प जीवन की सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करता है।
वास्तव में गाय आशीर्वाद ही नहीं देती, अपितु गौ सेवा से हमारे जीवन में एक रक्षाकवच भी बनता है, जो हर परिस्थिति में व्यक्ति के साथ रहता है। वह कष्ट-कठिनाइयों में गौसेवक का संरक्षण करता है। गौ सेवा घर-परिवार की समृद्धि को भी जगाता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि यदि जिस गाय की सेवा की जा रही है वह गाय गुरु आश्रम की हो, तो उसके तीर्थ परिसर व गुरुसत्ता से जुड़ी होने के कारण गौ सेवक पर कृपा अनन्तगुना बढ़ जाती है। गुरुकुलों, गुरु आश्रमों, गुरुतीर्थों में इसीलिये अनन्त काल से गौ सेवा, गौशाला स्थापना का विधान चला आ रहा है।
भारतीय संस्कृति में गुरु, गाय, गुरुआश्रम एवं गुरु आराधना का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। युगों-युगों से साधक गुरु भक्त व शिष्य वहां आकर गौसेवा कर अपने दुख-कष्ट से छुटकारा पाते आ रहे हैं। पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज ने इस संकल्प से ही अपने आनन्दधाम आश्रम में गौसेवा परम्परा का शुभारम्भ किया है। आश्रम में गुरुदेव स्वयं नित्य गौसवा करके भक्तों को प्रेरणा देते हैं कि देश में गौ सेवा की संस्कृति को बढ़ावा मिले। इस हेतु विश्व जागृति मिशन के अन्य आश्रमों में भी गौशाला का अभियान जोड़ रखा है।
आनन्दधाम तपोमय तीर्थ में वर्षों से देश-विदेश के हजारों साधक गौसेवा के लिए पधारते हैं तथा गुरु आशीर्वाद के साथ-साथ गौसेवा द्वारा जीवन में अपने पुण्य-परमार्थ जगाते हैं। सद्गुरुदेव ने तपोमय क्षेत्र आनन्दधाम की इस गौशाला को कामधेनु नाम दिया है, यह है भी उसी तरह, क्योंकि यहां गौसेवा करने वाला खालीहाथ कभी नहीं जाता। कोरोना महासंकट मिटने के बाद जब कभी आप आनन्दधाम आश्रम पधारें, तो यहां गौसेवा से जुड़ें, अपने हाथों गायों को चारा खिलायें तथा गुरु कृपा, गौ आशीर्वाद से अपने परिवार का सुख-शांति, समृद्धि, आनन्द, सौभाग्य जगायें।
Bahut shubh