ममता, करुणा, वात्सल्य से भरी ‘गौ’ माता को मिले संरक्षण

ममता, करुणा, वात्सल्य से भरी ‘गौ’ माता को मिले संरक्षण

गौ में माँ जैसी ममता, करुणा और वात्सल्य है, वह मानव मात्र का हित करने वाली है। ऐसे संवेदनशील प्राणी के लिए ऋग्वेद ‘गावो विश्वस्तर मातरः’ अर्थात् गाय विश्व की माता कहता है। अग्निपुराण-‘गावोः पवित्र्या मांगल्या गोषुः लोकाः प्रतिष्ठा’ अर्थात् गाय को पवित्र और मंगलदायिनी बताता है। इसीलिए यजुर्वेद गाय को ऐसा प्राणी मानता है जिसका कोई भी मूल्य नहीं दे सकता, क्योंकि गाय अमूल्य है ‘गोस्तु मात्र न विद्यते’।

परम पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं ‘गौ’ की हमारे पूर्वज इसलिए पूजा व रक्षा करते थे क्योंकि ‘गौ’ में माँ जैसी ममता, करुणा और वात्सल्य है, वह मानव मात्र का हित करने वाली है। पूज्यवर तो इस सृष्टि में मानव की तरह ही सम्पूर्ण जीवों के प्रति भी संवेदनशीलता, दया, करुणा भाव जन-जन में जगाने का संकल्प रखते हैं। जिससे सृष्टि के सुख, सौन्दर्य, आनंद को विकसित किया जा सके। वैसे हमारा भारत सत्य, अहिंसा एवं सदाचार के मूल्यों में विश्वास रखने वाला देश है। पर दुःखद कि गाय को लेकर हमारे समाज में एक बड़ा विरोधाभास है। एक ओर हम गाय को माता का स्थान देते हैं और गाय हमारी श्रद्धा हमारे प्रत्येक कर्म के साथ जुड़ी दिखाई पड़ती है। एक तरफ गौ ग्रास निकालने की परम्परा है, तो वहीं दूसरी ओर ‘गौ की हत्या’ की जाती है।

एक तरफ बताया जाता है कि गाय के दूध, दही, घी आदि से शरीर पुष्ट होता है। मूत्र में औषधीय गुण हैं, गोबर कृषि के लिए खाद का कार्य करता है और गौवंश से श्रेष्ठ खेती होती है। स्वावलम्बी जीवन-यापन की श्रृंखला गाय के साथ जुड़ी है। भगवान कृष्ण के साथ गोपाल, गोविन्द नाम उनकी गाय भक्ति के कारण ही जुड़ा है। भगवान राम के पूर्वज राजा दिलीप ने तो स्वयं वन में जाकर गाय की सेवा की थी। गाय के ये अनंत उपकार और मातृत्व सहित अनन्त भाव के बावजूद हम उसे
प्रताणित करने से बाज नहीं आते, जो दुःखद है। आज भी उस श्रद्धा के कारण हिन्दू समाज उसे पूजनीय मानता है, परन्तु अपनी दिनचर्या-जीवनशैली में धीरे-धीरे बदलाव से हम गौ माता से दूर होते जा रहे हैं।

यंत्रीकरण से खेती में किस प्रकार की तबाही हो रही है यह जगजाहिर है। लाखों, करोड़ों की सब्सिडी दी जाती है रासायनिक खाद के नाम पर उसके बाद भी किसान परेशान है और खेती हानि का धंधा बनती जा रही है। इसका कारण है कृषि का गाय से दूर होते जाना। गाय और गोवंश के कृषि प्रक्रिया से बाहर हो जाने पर न केवल धरती बंजर हो रही है, अपितु मानव के अस्तित्व को ही खतरा उत्पन्न हो गया है। रासायनिकी से मानव के स्वास्थ्य एवं सुख-शांति पर गम्भीर संकट आ गया है, जिस पर ध्यान देना होगा। यद्यपि वैज्ञानिक

शोधों ने सिद्ध कर दिया है कि जो तत्व गाय के दूध में हैं, स्वास्थ्य एवं औषधीय दृष्टि से वह अन्य किसी भी दूध में नहीं है। गोमूत्र में कैंसर तक को ठीक करने के औषधीय गुण हैं। पर यह कहने मात्र से काम नहीं चलेगा, अपितु हमें इसे संरक्षण देना होगा। विश्व जागृत मिशन गाय की सेवा से लेकर उसके संरक्षण-
संवर्धन की दिशा में प्रयत्नशील है। आइये! आप सब भी गुरु के इस अभियान में हाथ बटायें। इस राष्ट्रीय और
धार्मिक आंदोलन से जुड़कर आप सभी उसे गति प्रदान करें। तभी जीवन का संतुलन ठीक रहेगा।

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