पटियाला में रविवार सुबह धूमधाम से मनेगा गुरुपूर्णिमा महापर्व

गुरुसत्ता अपने शिष्य को सृजन, विश्वास व आनन्द की त्रिधारा से जोड़ती है – श्री सुधांशु जी महाराज

Fort-Patiala-14-July-2018-Sudhanshuji maharajपटियाला, 14 जुलाई। गुरु धरती पर परमात्मा के स्थूल प्रतिनिधि हैं। वह पृथ्वी पर मानव काया में जन्मे व्यक्तियों को जीवन की दिशाधारा देते हैं। गुरुसत्ता सृजन, विकास और आनन्द की त्रिधारा से व्यक्ति को जोड़ देती है, जिससे उसके जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन आ जाता है। फलतः वह न केवल अपने सभी हित साधने में सफल होता है बल्कि अन्य अनेकों का कल्याण करने में सक्षम होते हैं।

यह बात आज सायंकाल पंजाब के प्रमुख महानगर पटियाला के फ़ोर्ट परिसर स्थित मुख्य सभागार में प्रख्यात चिन्तक-विचारक आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने कही। वह विश्व जागृति मिशन के गुरुपूर्णिमा से जुड़े विशेष महोत्सव की पूर्व सन्ध्या पर उपस्थित साधकों-शिष्यों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ये तीनों धारायें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की विशेष व सम्मिलित कृपा से संपुष्ट होती है। इन तीनों को प्राप्त करा सकने की सामर्थ्य गुरुसत्ता में विद्यमान होती है। इसीलिए वेदमन्त्र में गुरु: ब्रह्मा गुरु: विष्णु: गुरु: देवो महेश्वर: कहकर गुरु के महत्ता बतायी गयी है।

श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि दुर्दिनों के समय अपने समीप के स्वजन भी व्यक्ति का साथ छोड़ जाते हैं। ऐसे समय में सदगुरु का सहारा सबसे मज़बूत सहारा होता है। उन्होंने मानव जीवन को 84 लाख योनियों में सबसे बड़ी योनि बताते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन रोने, कल्पने और निराशा में झींकने के लिए नहीं है। यह तो उभय ‘योनि’ है जिसमें व्यक्ति बहुत ऊँची बुलंदियों पर जा सकता है और पतन के गहरे गर्त में भी गिर सकता है। गिरने से रोकने और निरन्तर ऊँचा उठाने का रास्ता गुरुदेव सुझाते हैं। उनका ध्यान हरपल समर्पित शिष्य की ओर रहता है, गुरुपूर्णिमा उस देने और पाने का सबसे ख़ास दिन है और वह वार्षिक महापर्व है।

मिशन प्रमुख सन्तश्री सुधांशु जी महाराज ने पंजाब की धरती को सच्चे और महान गुरुओं की पावन धरती बताया और कहा कि इस वीरभूमि ने राष्ट्र को, विश्व को महान सन्देश दिए हैं। उन्होंने महात्मा कबीर, गुरु नानक देव और आइंस्टीन के अनूठे कथा प्रसंग सुनाते हुए प्रेम और सहकार से इस समय के भारतवर्ष और इस संसार को एक सूत्र में बाँधने का आह्वान सभी से किया।

इसके पूर्व पंजाब सरकार के वरिष्ठ क़ाबीना मन्त्री श्री ब्रह्म महिन्द्रा उनकी पत्नी श्रीमती हरप्रीत महिन्द्रा एवं पटियाला के महापौर श्री संजीव कुमार शर्मा ‘बिट्टू’ सहित कई गण्यमान व्यक्तियों ने श्रद्धेय महाराजश्री का नागरिक अभिनंदन किया। इस मौक़े पर स्वास्थ्य मन्त्री श्री ब्रह्म महिन्द्रा ने कहा कि सन्त दर्शन जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है। उनका मार्गदर्शन जीवन को बदल डालने में समर्थ होता है।

विश्व जागृति मिशन पटियाला मण्डल के प्रधान श्री अजय अलिपूरिया ने बताया कि कल रविवार को प्रातःकाल गुरु दर्शन और गुरुपादपूजन का विशेष कार्यक्रम फ़ोर्ट परिसर सम्पन्न होगा। सभा समन्वयन व संचालन मिशन के निदेशक श्री राम महेश मिश्र ने किया।

विश्व जागृति मिशन के शिवधाम आश्रम, पंचकुला-चण्डीगढ़ में मना गुरुपूर्णिमा पर्व

अपना समय, शक्ति, धन एवं बुद्धिमत्ता राष्ट्रनिर्माण और विश्वहित में लगाएँ

पंचकुला-हरियाणा। आगामी 27 जुलाई को पावन गुरुपूर्णिमा महापर्व की पूर्व वेला में देश के प्रमुख महानगरों में आहूत गुरुपूर्णिमा महोत्सवों की शृंखला में आज शनिवार के पूर्वांहक़ाल में पंचकुला में विशेष समारोह सम्पन्न हुआ। विश्व जागृति मिशन के चण्डीगढ़-पंचकुला मण्डल द्वारा आयोजित इस समारोह में भाग लेने नयी दिल्ली से मिशन प्रमुख श्रद्धेय आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज पहुँचे। कार्यक्रम में हरियाणा, पंजाब एवं संघशासित राज्य चण्डीगढ़ प्रान्तों के हज़ारों मिशन साधकों ने सहभागिता की।

इस अवसर पर सन्तश्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि गुरुपूर्णिमा पर्व शिष्यों के भीतर श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास के नए-नए बीज रोपने और उन्हें खाद-पानी देने के लिए आता है। इसके ज़रिए साधक-शिष्यों की क्षमताओं को और अधिक बढ़ाकर उनका नियोजन समाज और राष्ट्र के हित में करने के बहुविधि प्रेरणाएँ दी जाती हैं। उन्होंने अपना समय, धन, ज्ञान यानी बुद्धि को भगवान के खेत में बो देने को कहा। उन्होंने आश्वस्त किया कि ऐसा करने से किसान को एक बीज के बदले सौ-सौ दाने मिलने की भाँति बोयी गयी चीज़ का अनेक गुना वापस मिलना सुनिश्चित है। उन्होंने नौ तरह की धर्मादा सेवाओं की भी चर्चा की और बताया कि ये सेवाएँ विजामि द्वारा चलायी जा रही हैं। उन्होंने धर्मादा को ऋषि-राष्ट्र भारतवर्ष की महाशक्ति बताया। उन्होंने देशवासियों का आह्वान किया कि इस ताक़त को समाप्त होने से बचाएँ।

श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि सदगुरु इस धरती पर प्रभु परमेश्वर के स्थूल प्रतिनिधि होते हैं। शिष्यों द्वारा अपना समय, ज्ञान, सम्पत्ति शक्ति, बुद्धिमत्ता आदि को गुरुद्वारे के माध्यम से समाज कार्य में लगाने से न केवल अपना कल्याण होता है, बल्कि ऐसा करने से परिवार, पड़ोस, समाज, राष्ट्र सभी के दूरगामी हित सधते हैं। उन्होंने शरीर से दी जाने वाली सेवाओं के अलावा अपने धन का और मन का दसवाँ अंश समाज सेवा में लगाने की प्रेरणा सभी उपस्थितजनों की दी।

सदगुरु महाराज ने अपने मन का १०वाँ अंश भगवान के ध्यान में लगाने को कहा। प्रार्थना में अपनी ग़लतियों की माफ़ी माँगने की राय दी। कहा- इससे साधक के जीवन-परिवार में गुरु का पहरा बैठ जाता है और उसके प्रारब्ध कटते हैं, कम होते हैं। उन्होंने सबका आह्वान किया कि साधना के बल पर भीतर की सहारा देने वाली ताक़त पैदा करो और उस शक्ति को लगातार बढ़ाओ। किसी दिन अपने मार्गदर्शक से दूर मत रहो। आप जब अन्दर से निर्मल होंगे, गुरु को सदैव साथ अनुभव करोगे। बताया कि सदगुरु के पीछे गुरुओं की परम्परा होती है, ईश्वरीय शक्तियाँ होती हैं। उनके ज़रिए पूरा का पूरा देव-मण्डल आपसे जुड़ता है।

श्री सुधांशु जी महाराज ने माता-पिता की ससम्मान सेवा को भगवान तक पहुँचने का सबसे बढ़िया माध्यम कहा। उन्होंने परिवारों की सुख-शान्ति के लिए तीनों पीढ़ियों में सामंजस्य व सन्तुलन बिठाने की सलाह देशवासियों को दी। कहा कि इससे हमारा समाज और राष्ट्र मज़बूत होगा।

आज का कार्यक्रम प्रेरक
भजनों से सज़ा था। आकाशवाणी व दूरदर्शन की कलाकार मीनाक्षी, केएल चुग, महेश सेनी ने भजन प्रस्तुत किए। मिशन मण्डल प्रधान श्री एस.के.गुप्ता एवं सहयोगियों ने गुरुपादपूजन किया। संचालन मिशन निदेशक श्री राम महेश मिश्र ने किया।

परम्परागत ढंग से आनन्दधाम में मनाई गयी पूर्णिमा

Purnima Anand Dham Ashram June 2018-Sudhanshuji Maharajआज आनन्दधाम परिसर में परम्परागत ढंग से हर्षपूर्वक गुरुपूर्णिमा मनाई गयी। इस अवसर पर देश के अनेक प्रांतों से सैकड़ों भाई बहिन गुरु-आशीर्वाद लेकर पर्व मनाने आनन्दधाम परिसर पधारे। पूनमगुलाठी मुरादाबाद, साधना वर्मा करनाल सहित अनेक मिशन के गायकों द्वारा प्रस्तुत भाव भरे भजन से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। तत्पश्चात देश के विविध मण्डलों से पधारे विश्व जागृति मिशन मण्डल प्रमुखों एवं अन्य गणमान्यों ने पूज्यवर को माल्यार्पण कर आशीर्वाद लिया। इस दौरान डा अर्चिका फाउण्डेशन की ओर से 250 विधवा-वेसहारा महिलाओं को सहारा-स्वाभिमान स्वरूप प्रतिमाह की तरह राशन आदि जीवनोपयोगी किट भेंट किये गये। पूज्य सुधांशु जी महाराज ने अपने हाथों से पांच महिलाओं को यह किट प्रदान कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।

अपने उद्बोधन के दौरान पूज्यवर ने अपने शिष्यों एवं साधकों को दूसरों की गलतियों से सीखते हुए जीवन में सुधार लाने की प्रेरणा दी तथा जीवन को ऊंचा उठाने के लिए किसी की नकल करने से बचने को कहा। महाराज श्री ने कहा जीवन में साहस का बड़ा महत्व है। आदमी का साहस हारता है तभी उसकी जिन्दगी हारती है। उन्होनें कहा जिनके कन्धे थक गये वही दूसरों को अपनी हथेलियां दिखाकर अपनी किस्मत पूछते हैं। अतः अपने कन्धों को मजबूत करें, अपने वर्तमान को सम्मान दें कर्म करें। क्योंकि सम्भव है हथेलियों में व्यक्ति की किस्मत बंद हो, लेकिन हथेलियों के पूर्व व्यक्ति की उगलियां होती हैं जो उसे कर्म की प्रेरणा देती हैं।

महाराज श्री ने कहा अपने अंदर चुम्बक पैदा करों क्योंकि इसमें बहुत कुछ खींचने की ताकत होती है, उन्होंने कहा भाव के चुम्बकत्व से भगवान को खींचा जा सकता है। दुनियां में चुम्बक ही काम करता है और इस आनन्द धाम परिसर में जीवन को चुम्बकत्व से भरने के लिए अनन्त सम्भावनायें हैं। महाराज श्री ने दुखमुक्त जीवन की प्रेरणा देते हुए कहा कि सदैव जीवन में प्रसन्नता और उल्लास भाव के साथ कर्म के स्वागत के लिए तैयार रहने का अभ्यास डालिए, क्योंकि यदि दुख को जीवन में स्थापित करने की आदत डाल ली तो दुख कभी दूर नहीं होगा।

महाराज श्री ने आगामी गुरुपूर्णिमा पर गुरुमंत्र सिद्धिसाधना के लिए सभी को आमंत्रित करते हुए जीवन में मंत्र फलित करने की विधि सीखने के लिए न्यूनतम 20 दिन तक नित्य ग्यारह माला जप करने का निर्देश दिया और कहा जीवन को सुधार और परिष्कार से गुजारने के लिए साधक डायरी लेखन का अभ्यास करें।

ऐसे फलित करें शिष्यगण अपने जीवन में गुरुमंत्र

गुरुमंत्र सिद्धि साधना विशेष

Guru Mantra Siddhi Sadhna - Sudhanshuji Maharaj
गुरु और गुरुमंत्र का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। गुरुमंत्र के माघ्यम से गुरुशिष्य के जीवन में उतरता है और शिष्य का जीवन धन्य बनाता है। पर जीवन में गुरुमंत्र फलित करने के लिए कुछ तत्वों की खास जरूरतें होती हैं। प्रथम जीवन में सत् का सान्निय। सत का जागरण तभी होता है, जब अंतःकरण में ‘श्रद्धा’ हो। श्रद्धा जीवन की पवित्रतम गहराई में कहीं बिन्दु मात्र में स्थित रहती है, पर इसे फलीभूत होने के लिए सत्संग जरूरी है। सत्संग, स्वाधयाय, महापुरुषों का सान्निघ्य, गुरु की भावनात्मक निकटता। इसी के सहारो सद्गुरु के मंत्र को जीवन में फलित करने के लिए सर्वाधिक गहरा शिष्यत्व जगता है। हमारा शिष्यत्व भाव जिस स्तर का होगा, उसी गहराई से जीवन में मंत्र प्रभाव डालेगा तथा उसी स्तर के गुरुत्व की प्राप्ति होगी और उसी गहराई पर जीवन में गुरुमंत्र फलित होगा।

हम सबने हनुमान की शिष्य भावना देखी है, उनके जीवन में मंत्र फलित ही नहीं हुआ था, अपितु उनके रोम-रोम से मंत्र झरता था। वे राम के साथ एक स्वयं सेवक रूप में ही नहीं थे, अपितु उन्होंने राम को गुरु मान कर वरण किया था और एक शिष्य के रूप में जो-जो भूमिकायें जरूरी थीं उन्हें हनुमान ने निभाया भी था। देखें तो राम के दल में अनेक लोग थे, पर सभी राम की निजता के अनुरागी थे, लेकिन हनुमान को राम से अधिक ‘राम का काज’ प्रिय था। वे साहसी थे, सद्संकल्प एवं समर्पण के भी धनी थे, पर लेश मात्र का उनमें कर्तृत्व का अभिमान नहीं था। प्रभु स्मरण एवं प्रभु समर्पण ही उनके जीवन का सार था। इसी समर्पणमय पुरुषार्थ के बल पर उन्होंने जीवन में मंत्र फलित ही नहीं किया था, अपितु सम्पूर्ण जीवन ही पफ़लित कर लिया था।

कहा जाता ब्रहमा, विष्णु और महेश की शक्तियां गुरु में प्रकट होती हैं, जिसके सहारे शिष्य में भक्ति, शक्ति जागती है और भाग्य का उदय होता है। ब्रहमा का अर्थ है शिष्य में सदैव सकारात्मक सृजन का भाव हो, विष्णु का आशय शिष्य में सदैव लोकमंगल, लोक सेवा के लिए कुछ कर गुजरने की ललक हो और महेश का आशय उचित-अनुचित का भेद करने व औचित्य के साथ खड़ा होने का साहस भी हो। जिस शिष्य में ये तीनों भाव जाग्रत होते हैं उनके जीवन में गुरुमंत्र फलित होने से कोई रोेक नहीं सकता।

सद्गुरु समदर्शी होता है और शिष्य के लिए अनुदान बरसाना उसका धर्म है। पर खास यह कि जैसे परमात्मा की कृपा का जल सबके अन्दर एक-सा ही बह रहा, लेकिन कृपा का पात्र वही होता है जो पनिहार बनकर अपना खाली बर्तन लेकर उसके द्वार पर जाएगा। उसी प्रकार शिष्य को अपने गुरु के पास खाली झोली लेकर पुकारना होता है कि हे गुरुवर! मैं कोरा कागज हूं, जो लिखना चाहो लिख दीजिए। खाली बर्तन हूं, पूर्णरूपेण रिक्त होकर आज तेरे दर पर आया हूं, जो भरना चाहो भर दीजिए। गुरु ऐसे शिष्य को सुनिश्चितपूर्णता से भरना चाहता है, लेकिन एक तथ्य और है, जो खाली पात्र को भी भरने नहीं देता, वह है शिष्य में ‘श्रद्धा’ का प्रवाहित न होना। जिस प्रकार खाली पात्र यदि निर्वात हो तो उसमें कुछ भी रख पाना असम्भव है। ठीक उसी प्रकार शिष्य की श्रद्धा उसे निर्वात होने से बचाती है। उसी श्रद्धा के सहारे गुरु शिष्य में सब कुछ उड़ेल देता है।

गुरु की कृपा तो अनवरत बरसती रहती है, पर गुरु कृपा पाने के लिए जरूरत है शिष्य में पात्रता के विकास की। पात्रता के आधार पर गुरुमंत्र को गहराई मिलती है। जिसके बल पर शिष्य में गुरु की प्रकृति को पहचानने, उसे आत्मसात करने की क्षमता जगती है। खास बात और शिष्य को सांसारिक कामनाओं, लालसाओं के साथ मंत्र जप नहीं करना चाहिए। इससे परमात्मा की ओर से मिलने वाले अन्नय अनुदानों में बाधा पहुंचती है। चूंकि गुरु के पास शिष्य को देने के लिए कोई भौतिक वस्तु नहीं होती, इसलिए भौतिकता की चाहत भी मंत्र के फलित होने में बाधा पहुंचाती है। वास्तव में गुरु तो पूर्णता का ड्डोत, पुन्ज होता है, इसलिए जरूरत होती है मंत्र जप करते करते उस ड्डोत से शिष्य को छू जाने मात्र की। छूते ही वह पारस बन सकता है, यदि उसमें सांसारिक चाहते न हों।

इतना होते ही शिष्य की प्रसुप्त चेतनाशक्ति जागृत होकर देवत्व के तल पर जीवन जीने की कला में रूपांतरित हो जाती है। शिष्य क्षुद्रताओं के घेरे से बाहर निकलकर निराशा, विषाद, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, क्रोध एवं वैमनस्य से रहित होने लगता है। वह कठिनाई, भय व चिंता से परे हो जाता है, परिणामतः उसमें सुख-शांति एवं समृद्धि से परिपूर्ण जीवन जीने की शक्ति जग उठती है। यही है गुरुमंत्र का फलित होना, आइये हम भी इन आयामों से अपने जीवन में गुरुमंत्र को फलित कर जीवन को धन्य बनायें।

अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस आज आनन्दधाम में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया

योग विज्ञान भारतीय मनीषियों द्वारा मानव कल्याण हेतु दिया गया विशेष उपहार
भारतीय योग विद्या विश्व स्तर पर रोजगार का साधन बनी
नियम व अनुशासन का पालन ही है वास्तविक योग
आनन्दधाम में विश्व जागृति मिशन प्रमुख श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा

International Yoga Day 2018-Sudhanshuji Maharaj-Anand Dham Ashramआनन्दधाम, नयी दिल्ली। चतुर्थ अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस आज आनन्दधाम में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। प्रातःकालीन कक्षा में जहाँ सैकड़ों बालक-बालिकाओं, युवक-युवतियों ने योगाभ्यास किया, वहीं पूर्वाह्नकालीन सत्र में मिशन प्रमुख आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने योग जिज्ञासुओं का प्रभावी मार्गदर्शन किया। यज्ञशाला में स्वस्थ भारत व विश्व की कामना के साथ विशेष यज्ञाहुतियाँ भी दी गयीं। मिशन मुख्यालय आनन्दधाम के सभागार से रसोई तक सभी जगह योग का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था।

आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने योग साधकों एवं ऋषिकुमारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जीवन में नियमों एवं अनुशासनों का पालन करने का नाम ही योग है। यह नियम व अनुशासन निजी स्वास्थ्य एवं पारिवारिक स्वास्थ्य के साथ-साथ समाज व राष्ट्र की सेहत बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है। भारतभूमि को योग भूमि की संज्ञा देते हुए उन्होंने कहा कि यहाँ का हर व्यक्ति पतन्जलि के ‘अथयोगानुशासनम’ सूत्र पर सदा से विश्वास व अमल करता रहा है। हाल के कुछ दशकों में इधर इसमें भारी कमी आयी है। उन्होंने पशु-पक्षियों द्वारा छोटे-बड़े प्रत्येक विश्राम के बाद कोई न कोई आसन करने की तरफ संकेत करते हुए कहा कि इसीलिए अधिकांश योगासनों के नाम पशु-पक्षियों के नाम पर ही रखे गये हैं।

श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि योग केवल शरीर का ही व्यायाम नहीं है, बल्कि यह मानसिक व आत्मिक स्वास्थ्य प्रदान करने की भी अमूल्य विद्या है। इक्कीसवीं सदी में आयुष की प्रगतिशील विधाओं के बढ़ते प्रभाव का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि योग के क्षेत्र में मिली सफलताओं को देखते हुए एलोपैथी चिकित्सा के साथ-साथ योग एवं आयुर्वेद को अनिवार्य रूप से जोड़ा गया है, जिसके उत्साहजनक परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने योगासनों के साथ सात प्रकार के प्राणायामों को अपनाने तथा सभी रंगों की सब्जियों, दालों एवं फलों का उपयोग करने का सुझाव उपस्थित जनसमुदाय को दिया।

सभा मंच का समन्वयन व संचालन विश्व जागृति मिशन के निदेशक श्री राम महेश मिश्र ने किया। उन्होंने बताया कि ध्यान-योगगुरु डॉ. अर्चिका दीदी द्वारा आज आदियोगी भगवान सदाशिव के धाम कैलास मानसरोवर पर योग साधकों को योगासन सिखाये गये। वह इन दिनों 80 यात्रियों के साथ कैलास यात्रा पर हैं। बताया कि आगामी सितम्बर माह में यात्रियों का एक दल पुनः कैलास मानसरोवर जाएगा। उल्लेखनीय है कि भारत के ऋषियों द्वारा दिया गया योग विज्ञान समाज को जोड़ने के साथ-साथ दुनिया भर को आपस में जोड़ने का सशक्त माध्यम बन रहा है। वक्ताओं ने राष्ट्रनिर्माण के लिए सभी को स्वस्थ रहने की बड़ी जरूरत बतायी और कहा कि योग के माध्यम से सदैव स्वस्थ रहा जा सकता है।

इस मौके पर महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ के महामन्त्री डॉ. नरेन्द्र मदान, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी एवं महाप्रबन्धक श्री एम.एल. तिवारी, युगऋषि आयुर्वेद के सी.ए.ओ. श्री के.के. जैन सहित मिशन के कई अधिकारी भी मौजूद रहे।

सुदूर देश हांगकांग एवं मनीला में गूंजा सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज का अमृत संदेश

हजारों लोगों ने सींखीं गुरु चेतना में जीवन जीने की कला

Hong Kong-Manila-SatsangHong-Kong-Manila-Satsang-Sudhanshuji Maharajभारत से सैकड़ों मील दूर ‘हांगकांग’ व ‘मनीला’ के हजारों महिलाओं, पुरुषों एवं बाल-बुजुर्गों ने अपने सद्गुरु का प्रत्यक्ष सानिध्य पाकर अपने को सौभाग्यशाली और आहलादित अनुभव किया। पूज्य सद्गुरु श्री सुधांशुजी महाराज ने अपने सप्त दिवसीय इस प्रवास के दौरान सानिध्य में आये हजारों स्वजनों को मिशन की चिंतन धारा से अभिशिंचित किया तथा अपने आशीर्वाद से स्वजनों को जीवन की जटिलताओं से मुक्ति के समाधान सूत्र दिये। ज्ञातव्य कि विश्व जागृति मिशन के महामंत्री श्री देवराज कटारीया जी सहित एक टीम भी महाराजश्री के साथ प्रवास पर गयी थी।

इस दौरान हांगकांग के होटल होलीडे में तीन दिवसीय, मनीला के हिन्दू मंदिर में दो दिवसीय एवं पा²सग के बाबा बालक नाथ मंदिर में गुरुदेव के सानिध्य में भक्ति सत्संग एवं ध्यान समारोहों में सैकड़ो भाई-बहिन अपने गुरुसत्ता से गुरुदीक्षा लेकर दीक्षित हुए। साथ ही सभी लोगों ने अपने-अपने क्षेत्रें में घर-घर गुरु संदेश एवं गुरु चिंतन को पहुँचाने तथा ‘गुरु सेवा’ में बढ़चढ़ कर भागीदारी निभाने का संकल्प लिया।

होटल होलीडे इन:

विश्व जागृति मिशन के संस्थापक, अध्यक्ष विचार क्रांति के पुरोधा, विश्व प्रसिद्ध संत, विचारक एवं सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज के नेतृत्व में ‘होटल होली डे इन’ में 11 से 13 जून तक चले भक्ति सत्संग में दूर-दूर से हजार के लगभग भाई-बहिनों ने गुरुसत्ता के भक्ति सत्संग को आत्मसात किया। कार्यक्रम के दौरान नयी पीढ़ी को संस्कारवान बनाने एवं उन्हें भारतीय ट्टषि मूल्यों से जोड़ने के सूत्र दिये गये। युवाओं ने पूज्यवर से अपने जीवन उत्थान से जुड़े प्रश्नों का समाधान प्राप्त किया। इस अवसर पर महाराजश्री ने बताया कि व्यक्ति के मन में चलने वाले 80 से 90 प्रतिशत विचार नकारात्मक होते हैं। इसके परिणामस्वरूप ही व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक परिस्थितियां घटित होने लगती हैं। उन्होंने कहा जरूरत है अपनी सम्पूर्ण जीवनचर्या को विधेयात्मक बनाने की। कार्यक्रम में ध्यान व योगाभ्यास के क्रम को भी जोड़ा गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में हांगकांग वि-जा-मि- के अध्यक्ष नोतन तोलानी, श्री रिकी दानसिंगानी, अशोक गंगवानी, रमाकांत अग्रवाल, प्रकाश सजवानी, सालु सहदादपुरी की टीम ने बढ़चढ़कर भूमिका निभाई।

मनीला, हिन्दू मंदिर:

15 व 16 जून के दो दिवसीय कार्यक्रम में श्री लाटकंबवानी, श्री फ्रैंकी जंगवानी, श्री हरेश मेहतानी एवं श्री प्रकाश चंदनानी ने कड़ी मेहनत करके सुदूर तक के परिवारों में गुरुसत्ता के आगमन का संदेश पहुंचाकर उन्हें कार्यक्रम में आमंत्रित किया। ध्यान-साधना एवं योगाभ्यास के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया।

संबोधित करते हुए पूज्य महाराजश्री ने लोगों को पूजा व प्रार्थना की विधियां समझायीं और बताया कि हम सब जो भी कार्य दिन भर करते हैं, उसमें परमात्मा को शामिल करें। हर पल उसे अंग-संग महसूस करें। धन्यवादी होने का स्वभाव बनाकर हर दिन खुश रहें। अपने सद्गुरु के प्रति गहरी निष्ठा, श्रद्धा रखें। उनके साथ अपना सम्बन्ध बनाए रखें। महाराजश्री ने कहाµसंतों व सद्पुरुषों से मिलकर आगे बढ़ने की आग जीवित रहती है। जो पाना चाहते हैं वही परमात्मा को, सद्गुरु को अर्पित करें। परमात्मा से उसका प्रेम मांगें। सद्गुरु के प्रति श्रद्धा मांगें। बड़ों से आदर की भावना मांगे। बच्चों के प्रति वात्सल्य मांगे।

सद्गुरु ने बताया हर दिन की शुरुआत जागने से होती है, समापन सोने से। इन दोनों टाइम में भगवान को अवश्य याद करें। हाथ में सिमरनी रखें। चलते-फिरते नाम जप करते रहें। उन्होंने कहाµमृगी मुद्रा में जाप से विशेष लाभ मिलता है। जप-पूजा का समय निर्धारित करें ठीक समय नियम से बैठें।

बाबा बालक नाथ मंदिर:

इस अवसर पर सैकड़ों साधकों को संबोधित करते हुए सद्गुरु महाराजश्री ने कहाµमानव जीवन को उत्कृष्ट बनाने में माता-पिता एवं गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बालक मां से ही प्रेम सीखता है। मां बच्चे को इस प्रकार गोद में लेती है कि हृदय से हृदय मिला होता है। प्रेम की तरंगे मां से बच्चे को मिलती है। इसीप्रकार गुरु भी अपने शिष्यों को अपने हृदय में रखता है। सद्गुरु ने कहाµपिता अपने बच्चे के अंदर साहस, हिम्मत, बहादुरी पैदा करता है। इसलिए पिता का स्थान सूर्य का स्थान कहा गया है। गुरुओं पर चर्चा करते हुए बताया कि जीवन में पहला गुरु माँ, दूसरा गुरु पिता एवं सबसे महत्वपूर्ण प्रेरक तीसरा सद्गुरु बनता है। उन्होंने साधकों से कहा भक्ति का नियम बनाएं। यही वह डोर है जो प्रभु से हमें जोड़ता है। उन्होंने प्रकृति से सीखने की प्रेरणा देते हुए कहाµबुलबुल से संगीत सी जिंदगी सीखें। उल्लू से अंधेरे में संघर्ष करना। चींटी से लगातार परिश्रम करना, बादल से खुशियां लाना, पहाड़ से शक्तिशाली बनना, संगठन की शक्ति, विचारों की शान, धन की शक्ति, मोर से उत्सव ही जिंदगी, गुलाब से विकास और सूरज से एक नई शुरुआत सीखें।

इस अवसर पर श्री प्रेम चड्डियार, श्री लाल केशवानी ने उत्साहपूर्व कार्यक्रम में भूमिका निभाई।

क्या है चंद्रायण व्रत – सुधांशुजी महाराज | डॉ आर्चिका दीदी

मनाली में करे चंद्रायण व्रत
मनाली में करे चंद्रायण व्रत - सुधांशुजी महाराज

चंद्रायण व्रत

मानव जीवन में पापकर्मों और कुसंस्कारों का परिशोधन आवश्यक है। प्रायश्चित इसका मार्ग है। धर्मशास्त्रों में इसके लिए कई विधि-विधानों का जिक्र मिलता है। इसमें चंद्रायण व्रत सर्वोपरि है।

वस्तुतः चंद्रमा की सोलह कलाओं के साथ जप-तप व साधना, चंद्रायण व्रत है। साधक चंद्रमा की सोलह कलाओं के साथ जप-तप करते हैं। जैसे-जैसे चंद्रमा की अपनी कलाएं परिवर्तित होती हैं, वैसे-वैसे साधक अपनी साधना पूरी करता है।

पूर्णमासी से चंद्रायण व्रत प्रारंभ होता है। ठीक एक माह बाद, अर्थात् अगली पूर्णमासी को यह समाप्त होता है। इसमें मनुष्य अपने आहार को सोलह भागों में बांटता है। प्रथम दिन (पूर्णमासी) को चंद्रमा सोलह कलाओं वाला होता है। अतः इस दिन व्यक्ति पूर्ण आहार लेता है। आगे इस व्रत के दौरान वह पूर्णमासी के पूर्ण खुराक का सोलहवां हिस्सा प्रतिदिन कम करते जाता है।

इसे यों समझें। यदि किसी मानव का पूर्ण आहार एक सेर है, तो प्रतिदिन एक छटांक आहार कम करते जाना चाहिए। कृष्णपक्ष का चंद्रमा जैसे प्रतिदिन एक-एक कला घटाते जाता है, वैसे ही व्यक्ति को रोजाना एक-एक छटांक आहार कम करते जाना चाहिए। अमावस्या के दिन चंद्रमा अपने सोलवें कला के साथ होता है, बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता। इस दिन और अगले दिन व्यक्ति को आहार का बिल्कुल भी सेवन नहीं करना चाहिए। इसके बाद शुक्ल पक्ष के दूज को चंद्रमा एक कला निकलता है और धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है। अर्थात् अपनी सोलह कलाओं को दोहराने लगता है। व्यक्ति को भी इसी के साथ अपने आहार की मात्रा को बढ़ाते हुए पूर्णमासी तक पूर्ण आहार तक पहुंच जाना चाहिए।

इस एक माह तक साधक को आहार-विहार का संयम, स्वाध्याय, सत्संग में प्रवृति, सात्विक जीवनचर्या व साधना को उत्साहपूर्वक अपनाना चाहिए।

Dhyan Sadhna & Chandrayan Tap 2018 Pre-Press Release

Pre-Press Release of Dhyan Sadhna Shivir – Laghu Chandrayan Tap Sadhna by His Holiness Sudhanshuji Maharaj & Dr.Archika Didi
Pre Press Release Chandrayan Tap Manali-Vishwa Jagriti Mission

Laghu Chandrayan Tap Sadhna

Vishwa Jagriti Mission is organizing Laghu Chandrayan Tap Sadhna and 4 Meditation Camps. It is to be held under the divine guidance & blessings of His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj and Dr. Archika Didi at Sadhna Dham Ashram, Manali from 9 May to 31 May 2018. The Spiritual retreat is an annual feature. It takes hundreds of devotees to enjoy the blissfully tranquil hills of Himachal Pradesh. Manali is a land of  Rishi Manu.

The special feature this year is the Laghu Chandrayan Tap Sadhna. Chandrayan Tap is one of the most significant Sadhnas among many of those mentioned in the ancient texts or by the Yogis. The fast is observed to please Lord Chandra. It helps in overcoming your sins. It should be in sync with phases of the moon. Meditation is practices on the banks of Holy river of Vyas/Beas.

The Laghu Chandrayan Tap Sadhna is from 15th to 31st May 2018. The 4 meditation camps are scheduled from 9th to 13th May 2018, 15th to 19th May 2018, 21st to 25th May 2018 and 27th to 31st May 2018 respectively.

Vishwa Jagriti Mission (VJM)

It started under the tutelage of His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj. The visionary man, who truly believes in servitude to mankind is the true service to Divine. Service to mankind, humanitarianism, brotherhood, and benevolence were the founding aims of this mission. Vishwa Jagriti Mission (VJM) has established it’s headquarter and the main office at the strategic and picturesque Anand Dham Ashram in New Delhi.

For Registration Please Contact Mr. Lalit Kumar at Central Office.
Contact No: +91 9312284390 | +9111 28344767

Vishwa Jagriti Mission
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Dhyan Sadhna Shivir 2017 – Parmarth Niketan, Rishikesh

Dhyan Sadhna Shivir 2017 is the experience of the ultimate joy.

Dhyan Sadhna Shivir 2017-Parmarth Niketan-Rishikesh-Vishwa Jagriti Mission-Sudhanshuji Maharaj

Dhyan Sadhna Shivir 2017 at holy river Ganga coast in Rishikesh. Skanda Purana has the special significance of donating Ganga bath and Deep in the Kartik month. The scriptures say that God in this month Vishnu awakens from four months of its yogic-sleep. His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj and Dr. Archika Didi with their efficient, effective and yet easy techniques of Meditation have been transforming thousand lives. Their guidance have led people from chaos to joy, dismay to utter eternal happiness. Vishwa Jagriti Mission has been organizing Meditation camps at various divine locations worldwide to empower humanity.

His Holiness Swami Chidanand Saraswati Ji welcomed Pujya Maharaj shri, Gurumaa and Dr. Archika Didi with mantra chanting and ritual welcome by students of Gurukul at Parmarth Niketan in Rishikesh. Every day camp had two sessions starting at 8 am by Dr. Archika Didi who guided the huge crowd of devotees with yogic exercises and Pranayam. His Holiness started his discourse by the verses from Lord Krishna.  I will accept you as mine. Follow the discipline and colour your life into ‘Krishnamay’.

Pujya Maharaj shri guided with Omkar chanting and easy effective Pranayam. The vibrating effect of mental journey to the divine abode was mesmerizing. It was the blissful journey of joy which took every one in trance and solace from the chaotic disturbances. Pujya Swami ji appealed to all for environment awareness and protection. All devotees clad in silver white robes sat in lines to grasp the maximum blessings from their holy Sadguru. Understand the true value of your birth and dedicate your life for higher goals.

The five day Meditation camp concluded but the everlasting memories remain with each devotee. The enthralling divine experiences embraced every heart, seeping inside the soul which is allied with His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj blessings.

 

Shri Ganesh Lakshmi Mahayagya 2017

Shri Ganesh Lakshmi Mahayagya 2017 gives family courtesy, prosperity and health.

Shri Ganesh Lakshmi Mahayagya-October 5-8, 2017-Vishwa Jagriti Mission-Sudhanshu Ji Maharaj

Shri Ganesh Lakshmi Mahayagya 2017 at Anand Dham Ashram in the divine presence of Pujya Sudhanshu Ji Maharaj. Whose inherent spirit and purpose is the peace in the world, human welfare, happiness, health and prosperity for the people. Thousands of devotees from India and abroad participated in the Mahayagya. Prayer for progress and development of the nation

The students of Gurukul welcomed Sudhanshu Ji Maharaj, Guru Maa and Dr. Archika Didi with the bandwagon. Upon joining the Yajya Mandap, Maharajshri started the Mahayagya with Vedic Mantras by the ritualistic Brahmins. Maharajshri said to participants in Yagya, that you are a special representative of God. This place is amazing in its own right. Upon achieving achievement, self-esteem, a strength of self-reliance increases, calm down nature, seek peace in peace, always try to do better.  Yajya is the ancient worship system of our country. It is welfare and happiness-prosperity donor. Make sacrifices to be a part of your life every day.

Always try for health, financial self-sufficiency, family happiness, social reputation and integrity in God and Guru. On the day of Mahayagya, the hosts got the blessing of His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj. Addressing spiritual inquiries, Pujya Maharajshri said that the seekers should set their 5 goals of life. Explaining this about health, economic self-sufficiency, family happiness, social standing and fidelity to God and Guru.

Annual Diary of New Year 2018 released by His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj on Shri Ganesh Lakshmi Mahayagya 2017. Pujya Maharajshri praised his work by taking the names of prominent workers from different Mandals and branches of India. He expressed happiness that the arrival of the devotees from different regions of India has only happened in Mahayagya. Vishwa Jagriti Mission family members from many countries of the world came to Anand Dham Ashram on this occassion.