अनचाहा को मनचाहा बना लेने वाले बनते हैं जीवन में सुखी

श्रीमदभगवदगीता पुष्प चढ़ाने व माथे से लगाने का नहीं वरन मष्तिष्क में बिठाने का ग्रन्थ है’

‘’महात्मा और माता में अणुमात्र भी अन्तर नहीं’’

”इन्द्रनगरी के दशहरा मैदान में गूँजा गायत्री महामन्त्र”

अमरावती में विराट भक्ति सत्संग महोत्सव शुरू

इन्द्रपुरी के पावन नाम से विख्यात है अमरावती

Virat Bhakti Satsang Amravati-06-02-20 | Sudhanshu Ji Maharajअमरावती, 06 फरवरी। महाराष्ट्र के अमरावती जनपद मुख्यालय के दशहरा मैदान प्रांगण में आज सन्ध्याकाल चार दिनी विराट भक्ति सत्संग महोत्सव का श्रीगणेश हुआ। विश्व जागृति मिशन के अमरावती मण्डल के तत्वावधान में आयोजित सत्संग समारोह के सात सत्रों को सम्बोधित करने के लिए मिशन प्रमुख आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज आज मध्याह्नकाल यहाँ पहुँचे। इन्द्र देवता की नगरी के रूप में विख्यात अमरावती के इस ज्ञानयज्ञ में भाग लेने महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों के मिशन साधक एवं ज्ञान-जिज्ञासु भारी संख्या में यहाँ पहुँच रहे हैं।

नई दिल्ली स्थित आनन्दधाम से आये संगीत दल के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत दिव्य ईश-भजनों से आरम्भ हुए सत्संग महोत्सव का दीप प्रज्ज्वलन कर उदघाटन करने के बाद श्रद्धेय श्रीसुधांशुजी महाराज ने कहा कि ईश्वरीय सत्ता के जो गुण होते हैं उन गुणों को जीवन में आत्मसात करने वाले मनुष्यों पर ईश कृपा अवश्य बरसती है। ईश्वर उन गुणों के कारण अपनी सृष्टि का मंगल कराने के लिए उस व्यक्ति को चुनते हैं और अपने अनुदान-लाभ प्रदान करते हैं। एक उदाहरण के माध्यम से उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति ईश्वर के गुण ‘उदारता’ को जीवन में उतारता है, वह सड़क पर घायल पड़े अनजान व्यक्ति को अस्पताल ले जाने का पुरुषार्थ करके ईश्वर-अंश उस पीड़ित व्यक्ति का जीवन बचा लेता है। वास्तव में उस ईश्वरीय कार्य के लिए प्रभु अपने उस खास को विशेष रूप से चुनते हैं।उन्होंने कहा कि इसलिए मन्त्र उच्चारण हो या भजन या प्रार्थना-सन्ध्या, सबमें अपने ईष्ट के गुणों का ध्यान करना चाहिए तथा उन गुणों को अपने जीवन में उतारने का अभ्यास करना चाहिए।

श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि ज़िन्दगी में अनचाहा को मनचाहा बना लेने वाले लोग जीवन में सुखी बनते हैं। उन्होंने सुखी जीवन के अनेक सूत्र कई हजार की संख्या में मौजूद ज्ञान-जिज्ञासुओं को दिए। उन्होंने श्रीमद्भगवदगीता पर प्रवचन करते हुए कहा कि गीता मरणधर्मा मानव को परम-जीवन प्रदान करती है। गीता मृत्यु के समीप पहुँच रहे व्यक्ति के लिए नहीं वरन गरम खून वाले युवाओं के लिए है। गीता से प्रकाश लेकर इस देश की कारागारों में निरुद्ध (कैद) महान स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने राष्ट्र की आजादी का प्रकाश पाया था। चाहे वह बाल गंगाधर तिलक हो या महामना पं.मदन मोहन मालवीय अथवा महात्मा गांधी, सबने गीता से रोशनी ग्रहण कर ऐसे-ऐसे काम किये, जिनके कारण उनकी कीर्ति सदा-सदा के लिए अमर हो गई। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी विदेशी राष्ट्राध्यक्षों एवं शासनाध्यक्षों को ‘गीता’ भेंट करके भारत का, महाभारत का गौरव बढ़ाते हैं। उन्होंने गीता को केवल पुष्प चढ़ाने और माथे से लगाकर प्रणाम करने का ग्रन्थ नहीं बल्कि गीता-सन्देशों को माथे (मष्तिष्क) में बिठाने की प्रेरणा सबको दी।

इसके पूर्व अमरावती के जिला मजिस्ट्रेट श्री शैलेश नवाल की धर्मपत्नी श्रीमती ऋतिका नवाल सहित अनेक गण्यमान्य व्यक्तियों ने आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज का अभिनंदन सत्संग मंच पर पहुंचकर किया। श्रद्धेय महाराजश्री का स्वागत करने महाराष्ट्र स्थित विभिन्न मण्डलों के वरिष्ठ प्रतिनिधिगण भी पहुँचे, जिसमें नागपुर, पुणे, अकोला, खामगांव, औरंगाबाद, नासिक, मुम्बई, ठाणे, उल्हासनगर आदि मण्डल सम्मिलित थे।

सत्संग महोत्सव का मंचीय समन्वयन व संचालन नई दिल्ली से अमरावती पहुँचे विश्व जागृति मिशन के निदेशक श्री राम महेश मिश्र ने किया। इस अवसर पर नागपुर के सुरावर्णी स्थित श्री दिव्य निर्मल धाम आश्रम के वरिष्ठ धर्माचार्य शिवदत्त मिश्र सहित कई विद्वान मौजूद रहे।

विश्व जागृति मिशन के अमरावती मण्डल के प्रधान श्री नन्दलाल खत्री ने बताया कि सत्संग समारोह रविवार 09 फरवरी की सायंकाल तक चलेगा। उसी दिवस दोपहर में बड़ी संख्या में स्त्री-पुरूष आचार्य श्रीसुधांशुजी महाराज से गुरु दीक्षा ग्रहण करेंगे।

चिंता और डर सुखी जीवन के हैं बड़े अवरोध

बच्चों के लिए पैसा जमा करके छोड़ जाने की बजाय उन्हें धन कमाने की विद्या सिखाएं

अपनी प्राणशक्ति को प्रबल बनाए रखने के लिए प्रतिदिन प्राणायाम अवश्य किया करें

सभी प्रकार के नशे व्यक्ति के मन मस्तिष्क को खोखला बनाते हैं

नागपुर के कविवर्य सुरेश भट्ट प्रेक्षागृह में आज की शाम बनी अनूठे आध्यात्मिक संवाद की शाम

“जीवन में सुखी कैसे रहे” विषय पर दो हजार ज्ञान जिज्ञासुओं ने श्री सुधांशु जी महाराज से पाया मार्गदर्शन

Worry and fear are big barriers to a happy lifeनागपुर, ५ फरवरी। महाराष्ट्र की द्वितीय राजधानी कहे जाने वाले नागपुर महानगर के विशालकाय कविवर्य सुरेश भट्ट प्रेक्षागृह में आज संध्याकाल का दृश्य बेहद खास था। नगर महापालिका नागपुर द्वारा नवनिर्मित आडिटोरियम में मौजूद लगभग दो हजार स्त्री, पुरुषों एवं युवाओं को “जीवन में सुखी कैसे रहे” विषय पर सशक्त मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुख्य वक्ता थे – राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से आज मध्याह्नकाल पधारे विश्व जागृति मिशन के संस्थापक – संरक्षक आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज।

विषय पर व्याख्यान करते हुए श्रद्धेय श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि सुख की निजी व्याख्या लगभग हर व्यक्ति यह करता है कि जो उसे अच्छा लगे, जो खुद के अनुकूल पड़ता हो, जो उसके मन को रुचे; जो उसे पसन्द आए; वहीं सुख है। यह व्याख्या ठीक नहीं है। प्रायः देखा गया है कि लोग उनके पास जो उपलब्ध है वे उसका सुख नहीं उठा पाते। उल्टे जो उनके पास नहीं है उसके लिए वह दुःखी रहते हैं।

श्री सुधांशु जी महाराज ने परम पिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त और उपलब्ध चीजों एवं सुविधाओं का लाभ उठाकर उनके सुख का अनुभव करने को कहा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी वस्तु का सुख एक सीमा तक ही हो सकता है। मिष्ठान्न पसंद व्यक्ति भी एक सीमा तक ही किसी मिष्ठान्न के स्वाद का सुख उठा सकता है। गीतों के शौकीन आदमी को एक ही गीत बार – बार सुनाया जाय तो वह बुरी तरह ऊबने लगेगा। उन्होंने जीने का सलीका ठीक करने की सलाह सभी को दी। कहा कि जिस दिन हम अपनी कद्र करना सीख जाते हैं, ईश्वर उस पर मेहरबान होने लगता है। श्री सुधांशु जी महाराज ने उपस्थित व्यक्तियों का आह्वान किया कि वे बच्चों के लिए पैसा जमा करके छोड़ जाने की बजाय उन्हें धन कमाने की विद्या सिखाएं।

श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि चिन्ता और डर सुखी जीवन के सबसे बड़े अवरोध होते हैं। हमें अनावश्यक चिंता से बचना चाहिए, चिंता और चिता में कोई अन्तर नहीं। चिता मानव को एक बार जलाती है और चिंता उसे बार – बार जलाती है। कई बार अकारण डर व्यक्ति को असमय मृत्यु के द्वार पर लाकर खड़ा कर देता है। उन्होंने कहा कि सुखी जीवन के लिए अपने आहार, विहार, दिनचर्या आदि को व्यवस्थित करना पड़ता है। कहा कि प्राणशक्ति को प्रबल बनाए रखने के लिए प्रतिदिन प्राणायाम अवश्य किया करें। उन्होंने कहा कि निरोगी काया, घर में संपन्नता, संस्कारी सन्तान, समाज में प्रभाव, अच्छे लोगों के बीच निवास इत्यादि को जरूरी बताया गया है।

मिशन प्रमुख ने कहा कि सुखी जीवन के लिए आपको योद्धा बनना होगा। योद्धा संघर्षमय जीवन जीता है। मानव जीवन ही वस्तुतः एक संग्राम है। उन्होंने जीवन संघर्षों से कभी नहीं घबराने का आह्वान सभी से किया। उन्होंने अपनों से दो मीठे बोल और तारीफ के शब्दों का मर्म भी समझाया। उन्होंने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ द्वारा ऋषि विश्वामित्र की उनकी प्रत्यक्ष अनुपस्थिति में की गई प्रशंसा का जिक्र किया और बताया कि उनके दो अवगुणों ईर्ष्या और क्रोध की चर्चा उस प्रशंसा के दौरान कर देने पर उन पर प्रहार करने आए पेड़ पर छुपे बैठे ऋषि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के चरणों में दंडवत हो गए थे। और, तब उदारमना वशिष्ठ ने विश्वामित्र को चिर प्रतीक्षित ब्रह्मर्षि की पदवी से संबोधित किया था। विश्वामित्र तभी ब्रह्मर्षि बन सके थे क्योंकि देवराज इन्द्र की यह अनिवार्य शर्त थी कि ब्रह्मर्षि वशिष्ठ द्वारा विश्वामित्र की ब्रह्मर्षि स्वीकार करने के बाद ही उन्हें ब्रह्मर्षि घोषित किया जा सकेगा।

आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने आरोग्यता, आर्थिक आत्मनिर्भरता, पारिवारिक प्रसन्नता, सामाजिक प्रतिष्ठा के सूत्र भी सुखी जीवन जीने के लिए सभी को समझाए।

इस विशिष्ठ संगोष्ठी का मंचीय समन्वयन व संचालन विश्व जागृति मिशन नयी दिल्ली निदेशक श्री राम महेश मिश्र ने किया।

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-7 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace and compassion Part 7 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace and compassion Part 7

Life devoted to human development:

His beliefs touch the entire course of human life. Serene thoughts give relaxation and peace to the brain. And peaceful mind generates power. It helps to increase the concentration, retention power, confidence, willpower and many more traits that help to move ahead in life. He believes that thoughts shape the entire personality of an individual. They enable us to carry on our endeavors in the right path. He also emphasizes on drifting away from both being coward and weakness as they are sins. The brave people carry moral values and hence are fearless.

As mentioned earlier he had established Vishwa Jagriti Mission, an organization to give a meaningful touch to his dream. He foresees his dream to become a reality, His dream being; the enlightenment across the Globe (vishwa mei jagriti). This awareness is in the form of looking into the inner self and getting immersed in the treasure of knowledge.

Maharaji’s philosophy circumvents every minute aspect of human life. His sermons move in the direction of integrating masses with the Supreme virtues of love, sympathy, compassion, cooperation, coordination, serenity and divinity. He gives super most importance to the feeling of love and help for the poor that originates as a fountain from the seat of his heart.

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-6 | Sudhanshuji Maharaj

An Apostle of Peace and compassion Part 6 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace and compassion Part 6

Inculcating values amongst youth:

Revered Shri Sudhanshu Ji Maharaj established Yuva Manch i.e. the Youth Forum of the Mission on 9th January 1997 with a view to inculcate good habits (Sanskaras) of national service, for service to mankind and self-improvement among young men and women of the country. He blessed the youth to undertake various activities to serve parents and help the poor, helpless needy persons and bring some cheer in their lives. The youth have kept their word and served the poor with devotion and earnestness. More than 200 dignitaries like former President Dr. Shankar Dayal Sharma have been honored by youth forum of the mission, which is now renamed as International Youth Wing (IYW) and is further headed by Dr. Archika Didi. This practice is known as Shraddha Parv and is continuing since 1997.

International Youth wing organizes Blood donation camps to donate blood to Red Cross, armed forces and patients of the thalassemia. The IYW filed S.L.P. in the Supreme Court of India seeking a ban on ragging in all the educational institutions across India. In 2001 the Supreme Court announced its historic judgment that ragging should be stopped forthwith in all educational institutions and was declared as criminal offence. IYW has done society-transforming projects and will continue to do so.

Providing shelter to old and senior citizens:

Mission has established Saket Dham Vridhasram in Anand Dham Ashram, Delhi in order to ensure that the old and the neglected senior citizens of Indian society can live here with dignity, having good health and security so as to ensure mental and spiritual progress in natural environment.

Gaushalas:

With the object of rearing, promoting and protecting cows, Sudhanshu Ji Maharaj established Gaushalas (cowsheds) in Anand Dham Ashram and other ashrams across the India, which accommodates more than hundred cows. Many rich breeds are reared in all the cowsheds. The milk is distributed free to the students of Gurukul and Oldage home inhabitants. Such Gaushalas have been established at six other Ashrams of the mission like Kanpur, Hyderabad, Panipat, etc.

Magnificent Temples:

With the guidance and inspiration of Sudhanshu Ji Maharaj, twenty-four magnificent temples have been constructed in Anand Dham and other Ashrams. The temples built by the Mission have many unique features, which are quite different from those of other spiritual organizations. These temples are the symbols of religious faith where one experiences complete solace. Mission has set up libraries to provide facilities for people to read holy books so that they could gain knowledge.

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Sudhanshu Ji Maharaj

Activities of the Mission

To give practical shape to its objectives, Mission not only preaches human values but also has constructed temples, established educational institutions, and has undertaken humanitarian projects for the poor and weaker sections so that all the God loving people could follow the principles expounded by the Mission and make their lives meaningful.

Social Service Projects:

Vishwa Jagriti Mission, founded by revered HH Sudhanshu Ji Maharaj over last 27 years, has established more than 85 Mandals and Sewa Samitis all over India for upliftment of society, service to poor and downtrodden, and for dissemination of faith and religion through religious and spiritual discourses and selfless service to mankind. The efficient running of these centres and samitis under the guidance Of Dr. Archika Didi, the elder daughter of Maharajshri has set high standards for religious awakening of humanity not only in India but across the Globe.

Health Care:

Mission has a long chain of healthcare centers throughout the country. Karuna Sindhu Charitable Hospital is one major amongst the many healthcare initiatives. It was established in 1998 in the natural pollution free environment of Anand Dham Ashram, Delhi for free medical services, medicines and consultation to the poor and helpless patients coming from the nearby underprivileged and less developed areas. The hospital with immense cleanliness and various department such as E.N.T., Eye, General Physician, Homeopathy etc also attract number of well to do people. The hospital ranks one of the best five eye hospitals in Delhi, especially in eye care facilities and is equipped with the latest machines and technology for testing and treating of the eye diseases. Till May 2019, 1502083 patients have been treated and 27055 cataract operations have been performed free of cost in this hospital. Further, Arogya Dham Hospital at Faridabad (Haryana) has also treated more than ten lakh patients and which has all medical facilities.

Educational facilities for the poor:

Various Schemes in the field of education for the underprivileged, orphan and neglected children are successfully working. Vishwa Jagriti Mission has established two big Bal Ashrams (Orphanages) named as Devdoot Bal Ashrams. One of them is located at Surat and the other at Kanpur. Both of these Ashrams have 100 children each, who are being imparted free public school education. Devdoot Balkalyan Ashram, Surat is recognized by the Govt. of Gujarat.

VJM has set up two Public Schools in tribal areas of India. Mission is running at present two such schools of modern orientation in Khunti and Rukka Village of tribal’s in Ranchi, Jharkhand. More than 700 tribal children are provided free books, school uniforms and mid-day meals in each school.

Gyandeep Vidyalaya, a school was opened in 2001 in Faridabad (Haryana) with 28 girls, at present there are 700 girls in the morning shift and 300 boys in the evening shift. Books, uniform, breakfast and snacks are provided free of cost to them. It is recognized by Haryana Govt. Earlier these children were either begging on streets or sifting through garbage or working as child laborers, but now they have got an opportunity to make their future a better place to be at with the help of VJM.

Also to keep up the heritage and cultural aspect of Hinduism going, Maharishi Ved Vyas Gurukul Vidyapeeth was started in 1999. It is a unique center of ancient and modern disciplines of learning. Located at the consecrated premises of Ashram, around 100 students have received free education. Similarly a gurukul has been established from July 2018 in Siddhidham Ashram, Kanpur. From May 2019 Maharishi Ved Vyas Updeshak Mahavidyalaya has been set up in Anand Dham Ashram, where preachers or Dharmacharyas will be trained to spread the message of Peace, love, harmony and spirituality.

Mission has worked in many verticals in the field of education, to help many brighten their future. We can all contribute in this Call for Education and Brighten Future by sharing our part of care

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part 4 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace, Love and compassion Part 4 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-4

Ideology of the Mission :

Based on the golden principle of Service, devotion, contentment, meditation, cooperation, dedication, endurance, truth, politeness, simplicity and piety, His Holiness Shri Sudhanshu Ji Maharaj founded this Mission to ensure human devotion to God, to attain divine power for service to mankind and ultimately to merge with Almighty God.

His perception :

May the happiness and peace flow in the mainstream of the Universe. May the society be free from hatred, enmity, violence and revenge. May the nectar of knowledge of Saints and Sages reach every section of humanity! May the people with religious bent of mind come forward and serve and help others. We wish that the values, ethics and ideals of Rama and his devotion to his parents should become guiding principles of our life and we should embrace them. We wish the destruction of the wicked people, security for virtuous persons, protection and rearing of cows, adopting Gita’s nectar-like messages descending in our daily life. May the traditions of Gautam, Kapil, Patanjali and Ved Vyas prevail on this earth once again!

God is absolute truth. Each creature is a tiny microcosm of that supreme truth. That eternal and divine essence is present in all the creatures in the form of peace, bliss, perfection and silence. His power is Supreme. The ultimate aim of human life is to attain salvation from birth pangs and worldly affairs and the attraction, allurements and confusion since birth. Man accepts the illusive world as reality and in the process forgets his origin in the Supreme. And human-beings get involved in the lower of emotions of sex, age, hatred, anger, jealousy, envy and violence. He starts living in the world of delusion. He consumes his whole life in the search of illusive peace of mind. His journey never ends. Births after birth is the game he is trapped in. VJM liberates people from these shackles, delusion and motivate them to follow the spiritual path as preached through sacred scriptures like Vedas, Upanishads, Puranas, Ramayan, Gita and preaching of great Rishis, Saints and Gurus (Teachers).

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-3 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace, Love and compassion Part 3 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-3

Sharing Sufferings of the People

He traveled widely in India and studied the life and living of the common man. He felt sad on seeing the plight of the people living a miserable life. He was moved to visualize the condition of the innocent children who were forced to live a pathetic life. Some of them were orphans and others were leading inhuman life. On similar lines, Maharajshri’s tender heart saw the condition of other downtrodden class of people. So he started working towards uplifting their lives on humanitarian grounds.

Sudhanshu Ji Maharaj minutely observed the discrimination, enmity, jealousy, revengefulness, and many other ills and egos of human beings playing havoc in the families and in the society. He believes that such malevolent thoughts are due to the inertia of mind, which needs to be energized.  His Guru Vinayak bestowed super spiritual wisdom and esoteric devotional music upon the unmatched saint. He had awakened his Kundalini Shakti in his childhood.

In 1978 he settled down in Delhi and started giving discourses. Soon the number of devotees grew and the subject matter of discourses widened to include religion, social, national, educational and humanitarian problems. Maharajshri married a Brahmin girl Devi Richa who is educated and well versed in household affairs.

As explained earlier Vishwa Jagriti Mission is engaged in reviving the cultural richness of India. It is devoted to the task of religious awakening, social awareness and human brotherhood amongst the masses, but more particularly amongst the poor and youths of India. Under its banner, he undertook the great mission of making the acquired knowledge accessible to millions of people living in different parts of the world. Attracted by spiritual discourses and divine messages delivered by him, myriads of devotees joined the Mission based on the principles true spirituality, harmony, brotherhood, selfless service and upliftment of the downtrodden.

He interpreted the glorious scriptural knowledge of Rishis and Munis of India, philosophies and writing of philanthropists, psychologists and saints of the whole world, and he successfully related that knowledge to the solve modern-day problems. Sudhanshuji melodious voice creates ripples full of celestial vibrations. The listeners feel such a magnetic force that the magic of his words almost spellbinds them. Many have experienced stillness of time while he speaks and they listen spellbound. Sushanshuji brings home eternal truth in a convincing manner. Sudhanshuji’s face reflects sincerity; eyes shine with a cosmic laser penetrating the listeners. The spell, which his voice creates, spreads tranquility around the listener, sound which goes deep into the innermost consciousness. He belongs to the special tradition of saints who while spinning all the knowledge of sages and philosophies speaks the words of wisdom in the simple yet logical scientific language.

This has motivated millions of people to recognize the greatness of ancient culture of India. He has unveiled the secrets as of Vedas, Upnishads, Darshanshastras, Mahabharat, Gita, Nitigranthas, Ramayan, Sutragranths and other religious scriptures in his captivating voice amongst the millions of people and has thus been instrumental in improving and changing their lifestyles.

He preaches that God can be realized by living in the world, by earning money by honest means, leading a humane simple peaceful and compassionate life, by serving the poor and the needy and having a contended life. He advises his followers to love this nation, to respect elders and women. He himself practices what he preaches.

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-2 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace, Love and compassion Part 2 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-2

Childhood:

His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj was born in Saharanpur on 2nd May 1955 in a Brahmin family. Swami Vijendra Muni Ji initiated his grace Sudhanshu Ji Maharaj to deep Meditation and Yoga at the tender age of ten years. He studied the religious scriptures through Gurukul method of education. He received his Postgraduate degrees in Sanskrit and Hindi.

He spent most of his childhood in the vicinity of Nature. The trees and mountains seem to bade and attract him. He would silently sit and ponder or chant mantras. The purity and beauty of nature so intimately engulfed him that he himself became pure and attractive like Mother Nature. He developed a distinguished way and style even during his childhood days to deliver thoughts, experience and knowledge acquired from epics.

Spiritual Journey:

After completing his education young Guruji disappeared in the Himalayas in the vicinity of Mother Nature. There he roamed amongst the saints and sages who were living in recluse and austerity, meditating since long. He lived in their company for a long time, himself performing meditation and other spiritual occult practices in the Himalayas.

As far as his spiritual journey is concerned, he enjoyed special blessings from two great saints Swami Sadanandji and Swami Muktanandji, who lived in Himalayan caves in seclusion and austerity. At Uttarkashi, he acquired perfect knowledge of traditional and Tibetan culture with the sight and knowledge of deepest spiritual truth and the revelation of divine mysteries. This was possible by prolonged Japa, remembrance of God and meditation in past and present births by him.

At Uttarkashi, His Holiness experienced the initial feeling of divine bliss. Only after tasting the Divine Nectar and realization of the Supreme, His Holiness SudhanshujiMaharaj attained Gurupad (master’s status) and started giving (initiation), thereafter kindling the wave of spirituality throughout the world.

He experienced many supernatural phenomena’s. He engaged himself totally in the study of scriptures and practicing Yoga in aloofness. The personality, which ultimately developed and emerged, was very attractive and impressive Hindu evangelist in pure and unsullied Indian dress. His face reflects the celestial aura.

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-1 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-1 | Sudhanshu Ji Maharaj

An Apostle of Peace, Love and Compassion | Part-1

Perhaps no other country in the world has left behind the spiritual legacy that India has. The very epitome of spirituality and transcendental philosophy, India has given rise to a stupendous pantheon of personalities who have breached the walls of Third Dimensional Reality and reached has gone beyond. His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj is amongst one of those saints who have achieved this. He is a householder saint of India, living in the world but not belonging to it, setting an example for the millions of householders that God is the only truth, who can be realized by leading a pure and simple life, cherishing human values, by performing ones assigned duties, serving the poor people and following the teachings of a true Master.

He has launched a crusade to take the suffering humanity from materialism to spirituality, from sorrow to bliss; He supports both form as well as formless worship of the God. Whether one worships in Saguna or Nirguna way; it is ultimately the same Energy. He teaches his disciples to harmonize, body, mind and soul, various meditation techniques are taught by him, meditation for prosperity, meditation for self – realization, to serve suffering humanity, having a national outlook, and how to live with dignity. A silent revolution is on to change the mindset of the people and is ushering in an era of peace and tranquility.

Cherishing the rich cultural values of great India, Vishwa Jagriti Mission was established by His Holiness  Sudhanshu Ji Maharaj on 24th March 1991, on the auspicious day of Ramnavami, birthday of Lord Rama. VJM has emerged as the premier institution in motivating millions of people on the path of love and affection, in alleviating the miseries of suffering humanity, in teaching thousands of human beings in the world living in mental and emotional pain to lead a happy, stress-free and objective life.

राम तजुँ मैं गुरु न बिसारूँ

सन्त चरणदास, जो हरियाणा के मूल निवासी थे और बाद में दिल्ली के चान्दनी चौक इलाके में आकर यहीं बस गये थे। चरनदास सन्त थे, किन्तु साथ ही बहुत बड़े राष्ट्रभक्त थे। 1839 में उन्होंने अंग्रेजों के आक्रमणें और शासन का विरोध किया था। उनकी दो शिष्याएं सहजोबाई और दयाबाई थीं। दोनों ही परम गुरुभक्त थी। सहजोबाई ने तो गुरु को भगवान से भी बड़ा माना है। वह राम को छोड़ सकती है, किन्तु गुरु को नहीं। सहजो बाई द्वारा गाया गया फ्राम तजुँ मैं गुरु न बिसाऊँय् उन का उस भावना को प्रकट करता है। पूज्य गुरुदेव जी महाराज ने इस भजन को रोहिणी में आयोजित गुरुपूर्णिमा पर्व में वर्ष 2019 में मधुर वाणी में गाकर हजारों-हजारों भत्तफ़ों का मन मोह लिया था गुरुदेव जी ने भजन गाने के साथ-साथ उसकी ऐसी मनमोहक व्याख्या दी थी, जो अत्यन्त मार्मिक और हृदयस्पर्शी थी।

गुरुदेव बिखेरती स्पन्दनयुक्त गुरुदेव जी के विनम्र आत्मीय भाव में जैसे सहजोबाई के मन के भाव उजागर हो रहे थे और सहजोबाई ने भी तो सार-दर-सार सत्य को प्रकट किया था, सहजो कहती है, गुरु के सम हरि को न निहाऊं, अर्थात

जिस मन से, भाव से, आदर से, समर्पण से, श्रद्धा-आस्था से मैं अपने गुरु को देखती हूं, उससे हरि को न देखूं। गुरु के दर्शन करके शिष्य कितना धन्य होता है, उसका मन कितना प्रफुल्लित होता है, उसे तो वही आन और मान सकता है, जिसके अपने भाव भी वैसे ही हो। तरसी हैं आंखें सद्गुरु तेरे दर्शन को, तेरे दीदार को, बहुत बड़ी कोशिश है तेरी हस्ती में। गुरुदर्शन से मन को एक चैन सा आ जाता है, जैसे कोई बहुत बड़ा अनमोल खजाना पा लिया, अपने हृदय-रूपी मंदिर में सजा लिया। दूर-दूर से, देश-विदेश से सैंकड़ों हजारों भक्त जो आते हैं गुरुदर्शन के लिए, गुरु-आशिष पाने के लिए, हम यह रोजाना — महसूस करते हैं, तो सहजो ने सच ही कहा हरि ने जल दिया जग मांहि, गुरु ने आवागमन छुड़ाई चौरासी लाख योनियों के चक्कर काटते रहो, जन्म-मृत्यु-जन्म, यह सिलसिला तो खत्म नहीं होती, पर गुरु ने ऐसी सीख सिखाई, ऐसी तरकीब बताई कि आवागमन की बात ही खत्म कर दी।

फिर सहजो बाई कहती है, हरि ने कुटुम्ब जाल में गेरी, गुरु ने काटी ममता मेरी। भगवान ने इन्सान को दुनिया में भेजा और रिश्तेदारी का, मोह का ऐसा जाल तैयार कर दिया कि उसमें से निकलना ही दूभर हो गया। इन्सान की सारी उमर कट जाती है, मोह ममता में घरवालों की सेवा करते-करते, रिश्ते निभाते-निभाते, जिस का आप से स्वार्थ पूरा हो, वह तो खुश और जिस को कुछ कहा, बस नाराज, करतेे रहो सेवा सब की, तो आप अच्छे हो, गुरु ने मोह ममता की डोरी ही काट दी, सारा जंगल ही खत्म कर दिया आसान तो नहीं है यह, पर मन पक्का कर लो, गुरु का आदेश मान लो, सच्चाई को जान लो, गुरु की मान लो, तो कल्याण हो जायेगा। गुरुदेव कहते हैं, परिवार से प्रेम करो, पर मोह में मत फंसों। यही तो राज़ है जिन्दगी में खुशी का आनन्द का।

सहजोबाई आगे सन्देश देती है, हरि ने रोग-भोग उलझायो, गुरु जोगी कर सब छूड़ायो भगवान ने तो शरीर दिया, शरीर तो रोगों का घर है, भोगों में लालायित क्षणिक सुख की अनुभूति में शरीर को रोगी बना लेता है मनुष्य, काम, क्रोध, मोह, लोभ में कितने गलत काम करता है और सारी मुसीबतें अपने लिये स्वयं खरीदता है आदमी और गुरु शिष्य के इन भोगों के प्रति उदासीन बना कर उसे मुक्त कर देता है।

और सबसे बड़ा गिला है सहजोबाई को, भगवान से, ईश्वर सारे काम करता है, सर्वशक्तिमान है, सर्वनियन्ता है, सब कुछ उसी के बस में हैं, सब कुछ करने वाला वो ही है, किन्तु नज़र नहीं आते, स्वयं को छुपा कर रखा हुआ है और गुरु, जिन्होंने ने इतने उपकार किये, उन के साक्षात दर्शन कर लो, सुरा स्वरूप को देख कर धन्य हो जाओ, बात कर लो आशीष ले लो, गुरु की कृपा पा लो, साक्षात दर्शन करो।

गुरु को इतनी कृपाओं से धन्य सहजोबाई अपने सद्गुरु चरणदास पर तन-मन वार कर कहती है, मैं ने सोच-समझकर ठीक फैसला किया कि गुरु न तजूँ, हीर को जत डारुँ। सहजोबाई की तरह दयाबाई ने भी अपने गुरु की बहुत महिमा गाई है। वह भी सन्त चरणदास की शिष्या थी। वह करती हैं, गुरु बिन ध्यान नहीं होवै, गुरु विन चौरासी मग जोवै। गुरु बिन राम भक्ति नहीं जागो गुरु बिना — कर्म नहीं त्यागै, गुरु ही दीन दयाल –, गुरु सरनै जो कोई जांई,– करै काग नूँ हंसा, मन को मेरत है सब संसा। दयाबाई की बानी में और भी बहुत विचार हैं, जो गुरु की महिमा का बखान करते हैं, जिनसे उसकी गुरु के प्रति, भक्ति के भाव उजागर होते हैं। आप दिल्ली में चांदनी चौक के अन्तिम छोर पर आज भी जायें, तो वहां चरणदास गली का एक बोर्ड लगा हुआ है।

ऐसी ही प्रीति हो अपने सद्गुरु से, ऐसी आस्था और विश्वास हो शिष्य को अपने गुरु के प्रति। सहजोबाई और दयाबाई की अपने गुरु के प्रति भक्तिभाव अनन्य है।