भारत में गौ सेवा, गौदान, गौ संवर्धन के लिए दान एवं गुरुकार्यों को बढ़ाने के लिए दान की अनन्त कालीन परम्परायें चली आ रही हैं। साथ ही सावधान भी किया गया है कि दान सद्पात्र को ही देना चाहिए। सद्पात्र का आशय जहां गुरु का संरक्षण हो, गौशाला में गायों की सेवा होती हो, गुरुकुल एवं वृद्धाश्रम चले रहे हों तथा स्वास्थ्य सेवा का अभियान चलता हो वह स्थान तीर्थ बन जाता है। ऐसे स्थान पर दिया गया दान अनन्त गुना होकर फलित होता है। साथ ही सत्पात्र को दिया गया दान दान देने वाले को दिन-दिन समृद्ध करता है।
इस संदर्भ में कथानक आता है कि प्राचीनकाल में ब्रह्मचारी सत्यकाम जाबाल के उपनयन-संस्कार पर उनके गुरु ने सैकड़ो दुबली-पतली गौएं सत्यकाम को सौंपते हुए बोलेµबेटा! तू इन गौओं को चराकर हृष्ट-पुष्ट करके ले आओ। कुशाग्र बुद्धि सत्यकाम गुरु के भाव को समझ गये। गुरु की आज्ञा मानकर वह जंगल में गौओं के ही बीच में रहते, उनकी सेवा-शुश्रूषा करते, वन के सभी क्लेशों को सहते। उस बालक ने अपने जीवन को गौओं के जीवन में लगा दिया। सत्यकाम गो सेवा में ऐसा तल्लीन हो गये कि पता ही न चला कि गौएं कितनी हो गयी हैं। साथ ही गौओं की इस निष्काम सेवा-शुश्रूषा से सत्यकाम परम तेजस्वी ब्रह्मज्ञानी भी होते गये।
कुछ समय बाद उसने पहले से अनेक गुनी गौओं को ले जाकर गुरु के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। गुरु ने उसके मुख को देखा तो देदीप्यमान। यह देखकर अत्यन्त प्रसन्नता से बोले ‘बेटा सत्यकाम! तुम्हारे मुखमण्डल को देखकर तो मुझे ऐसा लगता है, तुझे ब्रह्मज्ञान हो गया है। पर तुझे यह ब्रह्मज्ञान का उपदेश किसने किया?’
सत्यकाम ने अत्यन्त विनीत भाव से कहा ‘गुरुदेव! आपकी कृपा और इन गायों की सेवा से क्या नहीं हो सकता है। पर जब आप मुझे अपना उपदेश करेंगे, तभी मैं अपने को पूर्ण समझूंगा।’ वास्तव में गुरु और गौ सेवा का शिष्यों के आत्म उत्थान में सदियों से महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसीलिए गुरुकुल में गुरु सान्निध्य में जीवन निर्वहन एवं गौदान, गो सेवा को हमारी संस्कृति में जीवन का सौभाग्य माना गया है। गायों की सेवा व दान आदि की प्राचीन काल से इसीलिए महिमा चली आ रही है। अग्नि पुराण के अनुसार गायें परम पवित्र और मांगलिक मानी गयी हैं। गाय का गोबर और गौ मूत्र जीवन की दरिद्रता दूर करता है। उन्हें सहलाना, नहलाना, पानी पिलाना, चारा खिलाना अत्यन्त पुण्यफलदायक बताया गया है। यह उपनिषद कहता है कि गोरक्षा के लिए लगा हुआ, गौ ग्रास देने वाला व्यक्ति सद्गति प्राप्त करता है। गौ दान करने से समस्त कुल का उद्धार होता है। गौ के श्वांस से भूमि पवित्र होती है। गाय के स्पर्श से पाप नष्ट होते हैं। इसी तरह स्कन्दपुराण कहता है कि ‘ब्रह्माजी ने गौओं को दिव्य गुणों से युत्तफ़ अत्यन्त
मंगलकारिणी बनाया है। अतः सदैव उनकी परिक्रमा और वन्दना करनी चाहिए। गौओं के गौ मूत्र, गोबर, दूध, दही, घीµये पांचों वस्तुएं पवित्र मानी गई हैं और ये सम्पूर्ण जगत को पवित्र करने वाली हैं।’
मारर्कन्डेयपुराण तो गाय को साक्षात् वेद ही कहता है। इसके अनुसार विश्व का कल्याण गाय पर आधारित है। गाय की पीठ-ट्टग्वेद, धड़µयर्जुवेद, मुखµसामवेद, ग्रीवाµइष्टापूर्ति सत्कर्म, रोमµसाधु सूत्तफ़ है। उसके मल मूत्र में शांति और पुष्टि समाई है। इसलिए जहां गाय रहती हैं, वहां के लोगों के पुण्य कभी क्षीण नहीं होते। गौ भक्त को गाय पुण्यमय जीवन को धारण कराती है। गौ उत्थान को इसीलिए सभी संतों-ट्टषियों ने प्रोत्साहित किया है।
कहते हैं गौसेवा, गौसंवर्धन के विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दान अवश्य देना चाहिये। गोदान हो अथवा अन्न आदि का दान सद्पात्र के हाथ दिया जाता है, तो वह दाता को सुख, शांति, समृद्धि, आनंद, ईश्वर कृपा से भर देता है।
जिस प्रकार से अपने हाथ से भूमि में निवेश किया गया धन, मनुष्य की आवश्यकतानुसार जब चाहे काम में आ सकता है, उसी प्रकार अपने हाथ से किया गया गौसेवा के लिए दान भी प्रत्यक्ष फलदायी है। इसीलिए हमारेदेश की संस्कृति परम्पराओं में गौदान की परम्परा भी महत्व रखती है। सच कहें तो गौ की सेवा और उनके अमृततुल्य दूध और उनके अन्य सभी उत्पाद से हमें लौकिक और पारलौकिक सुख की प्राप्ति होती है। अतः हम-आप भी गुरुधाम की गौशाला में गौ सेवा के लिए अपना धन लगायें, जीवन में गुरुकृपा, सुख-सौभाग्य पायें।
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माता-पिता, बुजुर्गों के प्रति सम्मान सांस्कृतिक तप | Sudhanshu ji Maharaj
भारतीय ट्टषि प्रणीत इस संस्कृति पर पिछली कुछ शताब्दियों में अनेक आघात हुए। आक्रमण केवल राजनीतिक एवं सैन्य ही नहीं थे, अपितु इन हमलों ने देश की संस्कृति, जीवन मूल्य, संस्कार, जीवन शैली सबको छिन्न-भिन्न कर दिया है। परिणामतः अन्य सामाजिक मूल्यों के साथ-साथ, समाज के अपने वृद्धजनों, माता-पिता व अग्रजों के प्रति दृष्टिकोण में भारी अंतर आया। रही-सही कसर 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उपजी उपभोगवादी विचारधारा ने पूरी कर दी। इसने तो संयुक्त परिवारों के विघटन को जन्म दिया और भारत के बड़े-बूढ़ों के सामने समस्याएं उत्पन्न हुईर्ं। वे उपेक्षा, अकेलेपन व असुरक्षा के शिकार हुए। उन बुजुर्गों की संताने, अर्थात् नई पीढ़ी भी परिस्थिति बस यह सब होते देखती भर रह गयी। क्योंकि उसके सामने जीवन की आर्थिकी का भयावह प्रश्न जो खड़ा था। इससे परिवार टूटे, वे संस्कार टूटे जिनके सहारे नई पीढ़ी को मातृदेवो-पितृदेवो भव का संदेश मिलता था। दुःखद पहलू यह कि घर छूटा और एक तरफ नई पीढ़ी अपने आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए भटकने लगी। दूसरी ओर अनुभव समेटे वृद्धगण बेसहारा और लाचार जीवन जीने लगे। दोनों पीढ़ियां आज एक दूसरे के आमने-सामने जो प्रतिद्वन्द्वी बनकर खड़ी हैं, उसमें सांस्कृतिक क्षरण एवं आर्थिक अतिमहत्वाकांक्षा प्रमुख कारण है।
सम्बन्धों का महत्व समझेंः
यही नहीं वृद्धगणों को प्राकृतिक एवं स्वाभाविक रूप से अनेक शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं के शिकार होते देख भी अपनी महात्वाकांक्षावस युवा-पीढ़ी उनसे कतराने लगी। युवावर्ग उपयोगिता की दृष्टि से माता-पिता के प्रति देखने लगा, तो बुजुर्ग पीढ़ी युवावर्ग पर स्वार्थी, संस्कार हीन होने का आरोप लगाने लगी। हमें दोनों पीढ़ियों को एक धुरी पर लाकर भारत भूमि को इस दंश से उबारना होगा। इसके लिए प्राचीन ट्टषि परम्परा को पुनः आत्मसात करना होगा।
भारत की संस्कृति एवं चिन्तन शैली में मातृ देवो भव, पितृ देवो भव अर्थात् माता-पिता देव स्वरूप माने गये हैं, मानवीय सम्बन्धों के इस पक्ष का हमारे पवित्र ग्रन्थों में विस्तृत उल्लेख है। शास्त्रें में माता-पिता, गुरु व बढ़े भाई को कर्म या वाणी द्वारा अपमानित न करने का स्पष्ट संदेश दिया गया है।
आचार्येश्च पिता चैव, माता भ्रात च पूर्वजः। नर्तिनाप्यवमन्तव्या, ब्राह्मणेन न विशेषतः।।
कहते हैं ‘‘आचार्य, माता-पिता, सहोदर बड़े भाई का अपमान दुःखित होकर भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि आचार्य परमात्मा की, पिता प्रजापति की, माता पृथ्वी की और बड़ा भाई अपनी स्वमूर्त्ति होता है।’’ हमें परस्पर सम्बन्धों के महत्व बताने होंगे।
सलाह लें, सम्मान देंः
यही नहीं भारत में अनन्तकाल से कोई भी निर्णय करने से पूर्व वृद्धों-बुजुर्गों से परामर्श लेने की परम्परा चली आ रही है। पर बुजुर्गों के चरण छूना, उनसे बातें करना, उनके सुख-दुःख की जानकारी रखना, कठिनाईयों के निराकरण में उनसे परामर्श लेना, उनकी शारीरिक-भावनात्मक व मन अनुकूल आवश्यकताओं का ध्यान रखना, उनकी छोटी-सी भी आज्ञा का जहां तक संभव हो पालन करना, उनसे आशीर्वाद लेने के अवसर खोजना आदि हमारी संस्कृति के मूल्य रहे हैं। यह कटु सच है कि ‘‘संतान उत्पन्न होने, गर्भधारण, प्रसव वेदना, पालन, संस्कार देने, अध्ययन-शिक्षण आदि के समय माता-पिता घोर कष्ट सहते हैं, अपने को निचोड़ देते हैं। जिसका सैकड़ों व अनेक जन्मों में भी बदला नहीं चुकाया जा सकता है। यह बात नई पीढ़ी को गहराई से सोचना होगा।
अवमानना से बचेंः
सच में मानवीय व्यवहार, शिष्टाचार तक से अपनी ही संतान द्वारा अपने माता-पिता व परिवारिक बंधु-बांधवों को उपेक्षित होना पड़े तो अस“य पीड़ा होना स्वाभाविक है। अतः अपने मूल्यवान शिष्टाचार निर्वहन की हर युवा से पुनः अपेक्षा है। यदि जिनके सान्निध्य में हम रहे हैं, उनकी ही अवमानना होगी तो न तो नई पीढ़ी को सुख मिलेगा, न शांति। ऐसे में समाज व राष्ट्र निर्माण की कामना भी व्यर्थ साबित होगी। कहा भी गया है कि सैद्धान्तिक रूप से मतभेद के बावजूद नई पीढ़ी द्वारा बड़ों को सम्मान देने का उच्च आदर्श निर्वहन करना ही चाहिए। क्योंकि इससे युवाओं का हित है, साथ नई पीढ़ी जो आने वाली है उसे भी सही दिशा मिलेगी। हमारे यहां माता-पिता और गुरु तीनों की शुश्रुषा को श्रेष्ठ तप कहा गया है। माता-पिता और गुरु भूः, भुवः, स्वः तीन लोक व ट्टग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद कहे गये हैं। इनके सम्मान करने से तेज बढ़ता है। महर्षियों, संतों ने जगह-जगह माता-पिता और गुरु की सेवा के श्रेष्ठ फल का बखान करते हुए कहा कि ‘‘जो व्यक्ति व गृहस्थ एवं बुजुर्ग तीनों का आदर, सम्मान व सेवा करके उन्हें प्रसन्न करता है, वह तीनों लोकों का विजेता बनता है और सूर्यादि देवताओं के समान तेजस्वी, कीर्तिवान बनता है। शास्त्र कहते हैं व्यक्ति अपनी माता की भक्ति व सेवा से मृत्युलोक को, पिता की भक्ति से अन्तरिक्ष लोक और गुरु की सेवा से ब्रह्मलोक को जीतता है।
आचार-शिष्टाचार अपनायेंः
भारतीय संस्कृति में बुजुर्गों का सम्मान इतना कूट-कूट कर भरा था कि उसी प्रेरणा से मृत माता, पिता या पितरों के लिए भी श्राद्ध किये जाते हैं। ऐसे में जीवित माता पितादि पालक वृद्धजनों की प्रसन्नता के लिए प्रतिदिन उन्हें आवश्यक अन्न, जल, दूध, दवा अथवा अन्य जीवनोपयोगी व्यवस्थाओं से उन्हें क्यों मरहूम किया जाना, समझ से परे है।
पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं माता-पिता को देवतुल्य मान कर उनकी सेवा व सुश्रुषा करना संतान का कर्तव्य है। यदि प्राचीन संस्कृति को पुनर्जागृत करना चाहते हैं, तो हमें इन जीवन आचार व शिष्टाचार के मूल्यों को अपने परिवार के बीच स्थापित करना ही होगा। वैसे भी सन्तान का किसी विशेष परिवार में जन्म लेना किसी प्रयास का परिणाम नहीं है, अपितु मनुष्य के सुकर्म का प्रभाव है। पूर्व निर्धारित है, इसलिए भी उनके प्रति उचित शिष्टाचार निर्वहन हर नई पीढ़ी के लिए जरूरी है।’’ वैसे भारतीय संस्कृति अनन्तकाल से परोपकार, त्याग, आज्ञाकारिता, एक दूसरे पर निर्भरता पर आधारित है। इन्हीं संस्कारों में परिवारों के वृद्धजनों की जीवनपर्यन्त देखभाल करने की परम्परा भी है। परिवारीजनों का सहज सहयोगी व्यवहार वृद्धावस्था में वृद्धजनों को अपनत्व की ताकत देता है। इस भावनात्मक आदान-प्रदान के कारण उन्हें एकाकीपन की पीड़ा नहीं सहनी पड़ती। सम्बन्धों की दृष्टि से दादा-दादी, नाना-नानी के रूप में जो विशेष भूमिकायें बनाई गयी हैं, उसके पीछे भी सेवा, सहायता, सम्मान का जीवनभर रिश्ता कायम रखना ही उद्देश्य है। इससे व्यक्तिगत जीवन व परिवार दोनों सुखमय बनते हैं। आज पुनः जरूरत है कि भारतीय संस्कृति को पुनर्जागृत करके हम सब देश में परिवारों को सुखमय व आनंदपूर्ण बनायें। इस अभियान से संस्कृति की शक्ति बढ़ेगी। परिवारों में परस्पर देवत्व जागृत होगा। यही नई पी़ी का सांस्कृतिक तप है।
आइये! जवानी में ही बुढ़ापे को रोकने की करें तैयारी | Sudhanshu Ji Maharaj | VJM
आइये! जवानी में ही बुढ़ापे को रोकने की करें तैयारी मनुष्य की चिंतनशैली असंतुलित-अशांत रहने पर उसके प्राणों की गति भी असंतुलित होती है, जिसका दण्ड सम्पूर्ण शरीर को रोग के रूप में भुगतना पड़ता है। पर इसका प्रभाव सबसे पहले उसके पाचन तंत्र पर पड़ता है। क्योंकि व्यक्ति द्वारा खाया हुआ अन्न अच्छी तरह पचता नहीं अथवा कभी-कभी पाचक तंत्र अधिक तीब्र हो जाता है और जठराग्नि बन जाती है। परिणामतः प्राणों के सूक्ष्मतम प्रवाह के साथ बिना पचे अन्न के परमाणु स्तर के कण भी घुलकर प्राणों तक जा पहुंचते हैं और वहां जमा होकर सड़ने लगते हैं, जो अंत में मानसिक रोग-‘आधि’ उत्पन्न करते हैं। इन्हीं आधियों से शारीरिक रोग-‘व्याधि’ उत्पन्न होते हैं। जानकारी के अभाव में व्यक्ति इन्हें ठीक करने के लिए बाहरी औषधियों का सहारा लेता है, जो कारगर साबित नहीं होते क्योंकि रोग तो उसकी मनोदशा में उपजे बिकारों का परिणाम होते हैं। इसके चलते व्यक्ति में बुढ़ापा जल्दी आ धमकता है। मनोविकार हमें बुजुर्ग न बनायें इसलिए कम उम्र में होने वाले रोगों के पीछे के कारणों को ध्यान देने की बात शरीर विज्ञानियों द्वारा कही जाती है।
विशेष शोधाः
उन दिनों के प्रसिद्ध मनोविश्लेषक डॉ- कैनन ने अमेरिका के पेट रोगियों में पाया कि ‘‘पेट रोग के अधिकांश व्यक्ति दूषित विचारों एवं मनः स्थिति वाले पाये गये। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यदि व्यक्ति मानसिक चिन्ताओं, दूषित विचारों एवं आवेगों से पीड़ित होगा, तो उसके पेट की क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ना सुनिश्चित है और बूढ़ा व्यक्ति तो सदैव पेट का रोगी बना रह सकता है।’’ ऐसे में सामान्य स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए मनुष्य को सत्संग, गुरुदर्शन, नामस्मरण, जप द्वारा सकारात्मक एवं पवित्र विचारों का बना रहना अत्यावश्यक है। बुजुर्गावस्था में मन की थोड़ी विकृत अवस्था से परिणाम का नकारात्मक आना सुनिश्चित है। बुजुर्गों में तो सामान्य रूप से लगातार थकावट अनुभव होती रहती है। सामान्यतः लोगों का मानना है कि थकान का कारण अत्यधिक शारीरिक श्रम करना है। लेकिन शरीर विशेषज्ञों के अनुसंधान बताता है कि ‘‘थकावट का कारण शारीरिक परिश्रम नहीं, अपितु कार्य के दौरान विषम मनःस्थिति का होना प्रमुख कारण है।’’ इसी के साथ ‘‘उतावलापन, घबराहट, चिन्ता, हताशा-निराशा, अतिभावुकता, वैचारिक उलझनें आदि जीवन में थकान उत्पन्न करते हैं।’’ ऐसी स्थिति में व्यत्तिफ़ द्वारा दो कदम चलना भी भारी हो जाता है।
ऐसा भी होता हैः
कभी-कभी भावनात्मक एवं मानसिक टूटन के कारण हुए अपच से सिर दर्द, चक्कर, मूत्रशय में सूजन जैसी बीमारियां, गले के दर्द, गर्दन दर्द, पेट एवं वायु विकार सम्बन्धी रोग से बुजुर्ग पीड़ित होने लगते हैं। डॉ- केन्स डेलमार जैसे अनेक विशेषज्ञों द्वारा शरीर और मन के सम्बन्धों को लेकर किये शोध कार्य का निष्कर्ष रहा कि ‘‘शरीर में कोई रोग उत्पन्न नहीं हो सकता, जब तक कि मनुष्य का मन स्वस्थ है।’’ उन्होंने मनःस्थिति और रोगों के बीच सम्बन्धों को स्पष्ट करते हुए बताया था कि जैसे ‘‘गठिया’’ का मूल कारण ईर्ष्या है। इसीप्रकार जो व्यक्ति निराश-हताशा में जीते हैं तथा सदैव दूसरों का छिद्रान्वेषण करते हैं, दोषारोपण के आदी होते हैं, वे कैंसर जैसे घातक रोग के शिकार होते हैं। इसी प्रकार कुछ लोग सदैव कांपते, ठंड से सिकुड़ते देखे जाते हैं उनके प्रति डॉ- केन्स डेलमार की मान्यता थी कि अनावश्यक ठंडी लगती ही उन लोगों को है, जो दूसरो को सदैव परेशान करने में अधिक रुचि लेते हैं।
रोग के अन्य कारणः
उन्होंने ‘‘स्नायुशूल’’ पर निष्कर्ष दिया कि इसके रोगी व्यावहारिक जीवन में आवश्यकता से अधिक स्वार्थी, खुदगर्ज तथा हिंसक होते हैं। इसी क्रम में हिस्टीरिया और गुल्म जैसे रोगों के शिकार भी किसी न किसी दुष्प्रवृत्ति के शिकार होते हैं। उन्होंने आगे बताया चोर, ठग-दुष्ट प्रकृति के व्यक्ति को हताशा-निराशा घेरती है, अजीर्ण, झगड़ालू लोगों को होता है। तात्पर्य यह कि हर बीमारी मनुष्य की मानसिक विकृति का परिणाम है। आज संसार में रोग-शोक की बाढ़ है, उसका कारण विकृति और बुरे विचारों का व्यक्ति के मन के अंदर गहरी पैठ होना है। यदि मनुष्य अपनी मनःस्थिति को ऊर्ध्वगामी बना सके, तो अक्षय आरोग्यता का वह स्वामी बन सकता है। जीवन को मनचाही दिशा में नियोजित कर सकना, हंसी-खुशी का लाभ उठाना उसकी सहज जीवनरीति बन सकती है। सद्गुरु पूज्य श्री सुधांशुजी महाराज का अपने शिष्यों पर सोने-जागने, आहार ग्रहण करने के तरीके सहित विविध अवसरों पर सदैव सकारात्मक सोच एवं सद्विचारों को अपनाये रखने के निर्देश के पीछे ये तथ्य ही प्रमुख कारण हैं। अतः जरूरत है हम सब गुरु चिंतन, गुरु प्रेरणा को जीवन का अंग बनाकर शरीर, मन एवं भावना को रोग-शोक से मुक्त रखें और बुढ़ापे को आने से पहले ही रोक लें।
गुरु संकल्पों का व्यावहारिक विस्तार है विश्व जागृति मिशन | Sudhanshu Ji Maharaj
अध्यात्म एवं राष्ट्र निर्माण की गंगा को जिस मिशन ने आधार बनाकर जन-जन का उद्धार किया। सेवा, सिमरन, स्वाध्याय, सत्संग, संतोष, समर्पण के सूत्र देकर लाखों लोगों को धर्म की ओर मोड़ा। वृद्धों की पीड़ा, संवेदना को सृजनात्मक जनभाव में बदलने के लिए श्रद्धापर्व चलाया, सुख-शांति की नई दृष्टि व दिशा दी। जिनके संकल्प अभियान से करोड़ों श्रद्धालुओं का जीवन परिवर्तित हुआ, करोड़ो घरों में प्रेम, सद्भाव एवं सद्संकल्प के दीप जले तथा भत्तिफ़ पथ प्रशस्त हुआ। लाखों जनों के दुर्भाग्य-सौभाग्य में बदले। जिनके सतत प्रयास से कॉलेजों में रैगिंग रोकने के लिए कानून बना। जिस अभियान से जुड़कर सैकड़ों युवक धर्मोपदेशक एवं धर्माचार्य बनकर भारत की सनातन संस्कृति का रक्षण करने निकलेे। जिन्होंने अनाथों के दर्द को समझकर बालाश्रम देवदूत अभियान के माध्यम से लाखों छात्रें को संरक्षण, पोषण, शिक्षा एवं स्वावलम्बन दिया। जिनके अभियान में आदिवासी निराश्रित बच्चे निःशुल्क शिक्षा व पोषण-संरक्षण प्राप्त कर रहे हैं। उन सद्गुरु का केन्द्रीय धाम है नई दिल्ली स्थित आनंदधाम आश्रम। उनके विराट अभियान का नाम है ‘विश्व जागृति मिशन’। 1991 की चैत रामनवमी को ओंकारेश्वर मंदिर से प्रवाहित हुई इस मिशन रूपी गंगोत्री की धारा में असंख्य सेवा, साधना, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वाध्याय, सत्संग रूपी सेवा सरिताओं का प्रवाह जुड़कर विराट आकार पा रहा है।
पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज की इस मिशन रूपी विराट यात्र में उपेक्षित वृद्धों, अनाथों, निर्धन बालकों सहित करोड़ों भावनाशील नर-नारी को आध्यात्मिक, धार्मिक पोषण मिल रहा है तथा समाज में फैली अनेक भ्रामकताओं के अन्धकूप में पड़े जन-सामान्य को पीड़ा से मुक्ति का अवसर मिल रहा है। जन-जन में आत्मिक शक्तियों का विकास कर उन्हें मानवसेवा एवं जन-जागृति से जोड़कर श्रेष्ठ समाज के सुनिर्माण हेतु सरअंजाम जुटा रहा यह मिशन अपने में अनुपम है।
करुणा व सेवा का समन्वयः
जहां पुरुषोत्तम भगवान राम की मर्यादा, कृष्ण का कर्मयोग, बुद्ध की करुणा, महावीर की अहिंसा, नानक, कबीर, रैदास एवं अन्य सभी संत महापुरुषों के दिव्य भावों को आपस में समेट इस मिशन ने मानव चेतना को नई दिशा दी, वहीं भारतीय संस्कृति में निहित जीवन मूल्यों, मानवीय सम्बन्धों, आदर्शों, मर्यादाओं एवं परम्पराओं को पुनर्स्थापित करने का भी यह महा-अभियान बनकर उभर रहा है। समाज के समक्ष ‘धर्म एवं विज्ञान’ को एक-दूसरे का पूरक मानकर जीवन को गरिमा पूर्ण ढंग से स्थापित करना इस मिशन का लक्ष्य है। इस प्रकार विश्व जागृति मिशन का धर्म, आस्था एवं मानवसेवा तथा मानव उत्थान का यह अभियान देश भर में पूज्यश्री के सान्निध्य में चल रहा है। आज विश्व के करोड़ों नर-नारी आह्लादित भाव से पूज्यवर एवं उनके अभियान को अपना प्रेरक मानकर सद्पुरुषार्थ रत हैं।
त्रिस्तरीय विस्तारः
विश्व जागृति मिशन गुरुवर के विराट संकल्प को तीन व्यापक आधारों पर कार्यान्वित कर रहा है। पहला हैµदेश-विदेश में विराट भक्ति सत्संग एवं ध्यान-शिविरों के आयोजन से गुरुदेव द्वारा अपने सरल, सरस, दिव्य उद्बोधनों, प्रवचनों, व्याख्यानों एवं प्रेरणाप्रद सम्बोधनों से मनुष्य की आत्मा को पोषित तथा मानव की प्रसुप्त चेतना शक्ति को जागृत कर उसे देवत्व के तल पर स्थापित करना। दूसरा अपने तप-पुण्य से जन-जन को क्षुद्रताओं के घेरे से बाहर निकालकर निराशा, विषाद, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, क्रोध एवं वैमनस्य से रहित सुख-शांति एवं समृद्धि से परिपूर्ण जीवन जीने की सेवा शक्ति जगाना। तीसरा है भारतीय ट्टषि परम्परा, भारतीय सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत, आर्षकालीन गौरव से भारत को गौरवान्वित करना।
ताकि खुशियों के कमल मुस्करा उठेंः
पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि ‘‘जैसे इस शरीर को पोषित करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, वैसे ही शरीर के अन्दर विद्यमान आत्मा के पोषण हेतु सद्ज्ञान की आवश्यकता रहती है।’’ इस दृष्टि से व्यक्ति की आत्मा को सबल बनाने और उसे उदात्त मानवीय भावों से ओत-प्रोत करने हेतु पूज्यश्री वेदादि शास्त्रें से लेकर आधुनिक युग तक के सभी ट्टषि-मुनि, सिद्ध-सन्त, ज्ञानी, विचारक, चिन्तक, दार्शनिक मनोवैज्ञानिक आदि के गूढ़ जीवन रहस्य के संजीवनी सदृश विचारों को एक साथ अपनी सरल, सरस तथा अलौकिक माधुर्ययुक्त वाणी से जन-जन तक पहुंचाने का स्तुत्य कार्य कर रहे हैं।
जिससे सम्पूर्ण समाज में ऐसा स्वर्गिक वातावरण निर्मित हो, हर व्यक्ति के आंगन में खुशियों के कमल मुस्करायें। घर-परिवार और समाज में वरिष्ठजनों, वृद्धजनों और गुरुजनों का सतत सम्मान-सहकार होने लगे। सन्तानें माता-पिता को सुख, सम्मान और आदर दें, युवा अपने कर्त्तव्य एवं दायित्व को समझें और अपनी ऊर्जा का प्रयोग धर्म, संस्कृति एवं जीवनमूल्यों की रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रनिर्माण में करे। समाज का हर वर्ग नारी को सम्मान दे और हर बच्चा मां की ममता और पिता के प्यार की छांव में आत्मविकास का पथ पाये। इस धरा पर कोई अनाथ न रहे। सम्पूर्ण विश्व शांति, सौहार्द, भ्रातृभाव, सहयोग और अहिंसा की उत्कृष्ट मानवी भावधारा से ओतप्रोत हो, मानवता देवत्व की ऊंचाईयों को स्पर्श करे। इसी को पोषित कर रहा है यह मिशन।
सेवा का बहुआयामी बीजारोपणः
विश्व जागृति मिशन के अनेक सेवा प्रकल्प व्यावहारिक रूप में समाज की आवश्यकता अनुरूप क्रियाशील हैं। वास्तव में मिशन कोई व्यावसायिक प्रतिष्ठान नहीं, अपितु मानव सेवा के क्षेत्र में इस युग का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभियान है। यह मिशन की सेवा मानवता के आंगन को वानप्रस्थ परम्परा, गौ उत्थान, अनाथ बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा आदि रूप में सिंचित कर रही है। आनन्दधाम स्थित शिवशक्ति धाम वानप्रस्थाश्रम को पूज्यश्री ने वानप्रस्थ के आदर्श के रूप में संचालित किया है। वे चाहते हैं कि बुढ़ापा जो जीवन की मिठास, अनुभवों का कोष लिए है, उसके भक्ति द्वारा आत्मिक शक्ति जागरण का महान अवसर मिले, इसलिए वृद्धाश्रम को एक प्रकल्प रूप में स्थापित किया गया है। जो आत्मकल्याण एवं समाजकल्याण हेतु उपयोगी सिद्ध हो रहा है।
आदिकाल से ही गाय को विविध रूपों में मानवकल्याण के लिए उपयोगी माना गया है। हमारी सत्य-सनातन धर्म-धारा में प्रत्येक धार्मिक एवं शुभकार्य में गौ माता की आवश्यकता को महत्व दिया गया है। यह मिशन अपनी कामधेनु गौशाला द्वारा लोगों को गौ सेवा की प्रेरणा देता आ रहा है। आनन्दधाम आश्रम परिसर में स्थापित विशाल कामधेनु गौशाला तथा सम्पूर्ण देश में स्थित पूज्य महाराजश्री के अनेक आश्रमों में गौशालाओं द्वारा भक्तजनों को गौ सेवा द्वारा देवकृपा से जोड़ा जाता है। पूज्यश्री का संकल्प है कि ‘‘देशी नस्ल की गायें, भारतीय जनमानस के लिए दैवीय वरदान रही हैं। देश के प्रत्येक साधक को भी इसे अपने घरों में प्रतिष्ठित करने का यह मिशन संदेश देता है।’’ इसी के साथ परिसर में स्थित करुणासिन्धु अस्पताल स्वास्थ्य सेवा के महान प्रकल्प रूप में लम्बे काल से विशिष्ट नेत्र चिकित्सा के साथ अन्य सभी रोगों की चिकित्सा कर जन सेवा के कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। मिशन के ऐसे ही अनेक प्रकल्प देश-विदेश में संचालित हो रहे हैं, जिनसे जन-जन की सेवा द्वारा पीड़ा निवारण होती है।
जनजागरण केन्द्रों का विस्तारः
अपनी व अपने भक्तों, साधकों की जीवन व कार्यशैली को गुरुवर ने छः भागों में बांट रखा है, सत्संग, सिमरन, स्वाध्याय, सेवा, सहानुभूति एवं सहयोग। मिशन के देश-विदेश के 85 केन्द्रों से इन सबके लिए कार्य चल रहे हैं। मिशन मुख्यालय में देवोपासना के लिए 28 भव्य मंदिरों की स्थापना है, जिसमें ओंकारेश्वर महादेव मंदिर, राधामाधव मंदिर, आनन्दधाम मंदिर दिल्ली, सनातन धर्म मंदिर फरीदाबाद, सोमेश्वर महादेव मंदिर पानीपत, मंगल मूति सिद्ध गणपति मंदिर मुम्बई, सिद्धेश्वर महादेव मंदिर पुणे, अमृतेश्वर महादेवालय हैदराबाद आदि। इन मंदिरों में देवोपासना के साथ ध्यान-साधना के केन्द्र भी संचालित किए जाते हैं। साथ ही सामूहिक प्रार्थना पर बल दिया जाता है। पूज्यवर श्री सुधांशु जी महाराज के गुरुकुल विद्यापीठ एवं उपदेशक महाविद्यालय शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए लोकार्पित हैं। इस प्रकार सहयोग एवं सहानुभूति पर आधारित यह विश्व जागृति मिशन समाज के सम्पूर्ण वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हुए सभी के हित के लिए कार्य करता है। बाल युवा, युवती, वृद्ध, वृद्धा, जवान, किसान, श्रमिक, व्यवसायी, इंजीनियर, डॉक्टर समाज के समस्त के जागरण के लिए यह अभियान है, ताकि कोई भी दुःखी, दीन, शोषित वंचित, पद-दलित न रहे। आप भी इस महाअभियान से जुड़ें, जीवन में सौभाग्य जगायें।
धन दान में लगायें, शनि की कृपा पायें | Sudhanshu Ji Maharaj
धन दान में लगायें, शनि की कृपा पायें
शनि हिन्दू धर्म में नौ मुख्य ग्रहों में से एक है। शनि अन्य ग्रहों की तुलना में धीमे चलते हैं। इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है। अर्थात् जो शनैः-शनैः चले। ज्योतिष में शनि का प्रभावकारी वर्णन मिलता है। शनि वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं, पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान कर विशिष्ट फल प्राप्ति का विधान है।
पौराणिक कथा के अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं, सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ। कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाई। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर वहां से चली गई, कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शास्त्रें में इन्हीं शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है।
शनि वास्तव में न्यायकारी हैं। आत्म परिष्कृत, पवित्र एवं श्रेष्ठ आचरणों वाले व्यक्ति के लिए शनि संरक्षक की भूमिका निभाते हैं। बताते हैं शनि जयंती के दिन किया गया दान-पुण्य एवं पूजा-पाठ सभी कष्टों को दूर करने में सहायक होता है। शनिदेव के निमित्त पूजा हेतु शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित कर उसे सरसों या तिल के तेल से स्नान कराने तथा षोड्शोपचार पूजन व शनि मंत्र ¬ शनिश्चराय नमः के साथ पूजा करने का विधान है। पूजन के बाद पूजा सामग्री सहित शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का भी दान किया जाता है। इस दिन निराहार रहकर मंत्र जप करने से भी शनि कृपा की प्राप्ति होती है। वैसे इस दिन तिल, उड़द, कालीमिर्च, मूंगफली का तेल, आचार, लौंग, तेजपत्ता तथा काले नमक को आहार में उपयोग करने व दान करने का विधान है। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए लोग हनुमान जी की पूजा कते हैं। शनि के लिए दान में दी जाने वाली वस्तुओं में काले कपड़े, जामुन, काली उड़द, काले जूते, तिल, लोहा, तेल आदि वस्तुओं को शनि के निमित्त दान देने से सुख शांति मिलती है। दान का सुपात्र ऐसे आश्रमों को माना गया, जिसमें परमात्मा के न्याय को स्थापित करने का अभियान संचालित हो।
शनि देव काले वस्त्रें में सुशोभित, न्याय के देवता हैं जो योगी तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने में रुचि रखते हैं। सभी जीवों को उसके कर्मों का अवश्य फल प्रदान करते हैं। इसलिए इन्हें ‘कर्मफल प्रदाता भी कहते हैं।’ आइये हम सब जीवन में न्याय, गुरु निष्ठा को स्थान देकर सुकर्म द्वारा भाग्य जगायें, दान देकर सेवा में अपना धन लगायें, शनिदेव की कृपा पायें।
हर वायरस के प्रभाव से मुक्त रहें हमारे बुजुर्ग | Sudhanshu Ji Maharaj
परिस्थितियां कैसी भी हो, मौसम बदले, प्राकृतिक आपदा आये अथवा महामारी का प्रकोप बढ़े, अंततः प्रभावित सबसे ज्यादा होते हैं हमारे बुजुर्ग व बच्चे। देश में चल रहे कोरोना वायरस (कोविड-19) के कहर से बुजुर्गों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए इस लेख श्रृंखला में इसी सामयिक पक्ष पर विचार करना आवश्यक है। यद्यपि वायरस अटैक अब तक बहुत सारे हुए पर कोरोना जैसा अड़ियल व खतरनाक वायरस अभी निकट में नहीं दिखा। कष्टकर बात यह है कि अभी तक इसे लेकर न कोई टीका बना, न कोई समुचित उपचार ही है। ऐसे में हमारे बुजुर्गों के लिए सतर्कता और बचाव ही कोरोना (कोविड-19) जैसे वायरस से सुरक्षित रहने के लिए सर्वोत्तम उपाय हैं |
चार दिन की देखभालः
विशेषज्ञों का मानना है कि साबुन व सेनेटाइजर से इसे समाप्त किया जा सकता है। इससे समय-समय पर अच्छी तरह से हाथ धोना, हाथों को सैनिटाइज करना व अपने घर में रहना ही एक मात्र आवश्यक उपाय है। यद्यपि कोरोना से पहले फ्रलू आया, पर फ्रलू जैसा ही वायरस होने के बावजूद इसकी प्रकृति अलग है। अन्य फ्रलू आदि वायरसों की अपेक्षा यह वायरस लोगों में तेजी से फैल रहा है। कोरोना प्रभावितों में सामान्य रूप से बुखार, सिरदर्द, खांसी एवं कफ-बलगम जैसी ही परेशानी होती है, पर किसी को सर्दी-खांसी होने का मतलब यह नहीं कि उसे कोरोना ही हुआ है। फिर भी यदि किसी में इस रोग के लक्षण हैं, तो घर में चार दिन खुद को निगरानी में रखकर कोरोना होने या न होने की पुष्टि की जा सकती है। उक्त लक्षण सामान्य रोग के होंगे तो चार-छः दिन में ठीक हो जायेगा। पर समस्या बढ़ने पर डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
वैसे भी हमारे जिन बुजुर्गों का इम्यून पावर बढ़ा है, तो उन्हें यह घात नहीं करेगा। पर यदि स्वास्थ्य उतना उत्तम नहीं है, तो उम्र के साथ शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण हर बुजुर्ग को अपने शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही लोगों को घबराने की बजाय सतर्कता बरतने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। इस संक्रमण से बचने के लिए (ॅण्भ्ण्व्ण्) विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं सरकार ने भी आवश्यक निर्देश जारी किये हैं।
छूने से पनपता है रोगः
एकबात स्पष्ट करते चलें कि यह वायरस हवा में नहीं तैरता, अपितु हाथ से वायरस प्रभावित वस्तु छूकर उसे मुंह, आंख, नाक, कान में लगाने से यह वायरस व्यक्ति को अपने गिरफ्रत में ले लेता है। यह वायरस मुंह, आंख, नाक, कान द्वारा अंदर जाकर फेफड़े में अपना स्थान बनाता है और धीरे-धीरे व्यक्ति के इम्यून पावर को कमजोर करने लगता है। यदि व्यक्ति का शरीर किसी रोग से पहले से प्रभावित है, तो वायरस उसे तीव्रता से उभार देता है। अंततः रोगी सम्हल न पाया तो उसकी मृत्यु हो जाती है।
सुझाव व भ्रांतियांः
समाज में इस वायरस को लेकर प्रचलित भ्रांतियों के प्रति सावधानी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (ॅण्भ्ण्व्ण्) ने बताया कि गर्म पानी से नहारे से नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) की रोकधाम सम्भव नहीं है। बल्कि कोरोना से बचने के लिए अपने हाथों को साबुन व पानी से लगातार साफ करते रहना आवश्यक है, जिससे रोगी अपने हाथों पर लगने वाले संक्रमण को खत्म कर सकें।
1. कोरोना वायरस श्वसन संबंधी वायरस है, जो मुख्यरूप से संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने से फैलता है। वायरस प्रभावित व्यक्ति की एक अकेली छींक से हजारों कोरोना परमाणु बाहर गिरते हैं और सामने वाला व्यक्ति सतर्क न रहा तो इस वायरस की गिरफ्रत में आते देर नहीं लगती।
2. यदि सामने खड़े व्यक्ति पर रोगी के खासने-छीकने की एक भी बूंद पड़ गयी, तो रोग से प्रभावित होने के लिए इतना ही काफी है। इसलिए प्रभावित व्यक्ति मुंह पर बांह लगाकर छीकें। सामान्य रूप से बुजुर्गों को तो मुंह पर हर समय रुमाल, अंगौछा आदि लगाकर रखना चाहिए।
3. बचाव के लिए हमेशा अपने हाथों को अल्कोहल युक्त हैंडवॉश या साबुन पानी से ही धोते रहें। बचने का सबसे कारगर तरीका यही है। हाथ धोने के बाद टिश्यू पेपर या हैंड ड्रायर्स से हाथ साफ कर सकते है।
4. पहले से अस्थमा, डायबिटीज, हार्ट सम्बन्धी रोग से ग्रस्त लोगों के लिए यह वायरस अधिक खतरे वाला है।
खान-पान जिसका बुजुर्ग ध्यान रखें:
राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) द्वारा बिना किसी खास औषधि बिना वेंटिलेटर के मात्र पोषण युक्त आहार, गर्म पानी एवं सकारात्मक मोटीवेशन से अनेक वायरस प्रभावित रोगियों को ठीक करने की रिपोर्ट आई है। इस प्रक्रिया को बुजुर्गों के साथ अन्य सभी को अपनानी चाहिए, जिससे वे स्वस्थ बने रहें। इस संदर्भ में जिम्स के डॉयरेक्टर ब्रिगेडियर डॉ- राकेश गुप्ता के अनुसार 20 चिकित्सकों की टीम ने वायरस प्रभावित व्यक्ति पर 24 घंटे नजर रखी। शरीर के घटते-बढ़ते तापमान की समीक्षा की तथा स्टैण्डर्ड प्रोटोकाल को ध्यान में रखकर रोगियों को हेल्दी डाइट, मोटीवेशन, गर्म पानी एवं प्रसन्नता भरे मन से जोड़े रखा। परिणामतः वे सभी रोगी क्रमशः पूर्णता वायरस मुक्त हुए।
1. बुजुर्ग हर समय केवल गर्म पानी ही लें।
2. उच्च रक्तचाप, गले के दर्द, जुकाम व बुखार सम्बंधी लक्षण न उत्पन्न हों, इसके लिए हर समय उचित खान-पान का ध्यान रखें।
3. दाल का पानी एवं सूप नास्ते में लें।
4. चावल, ठंडा पानी, दही व अन्य ठंडी चीजें खाने से पूर्णतः बचें।
6. पपीता, सेव का सेवन इच्छा अनुसार करें।
7. हरी सब्जी लौकी, तोरी अपने डिनर में अवश्य सामिल करें।
8. प्रातः 7 से 8 बजे तक नास्ता अवश्य कर लें।
9. दोपहर का भोजन 12 बजे तक आवश्य लें।
10. रात्रि में 7 से 8 बजे तक भोजन अनिवार्य रूप से कर लें।
11. भरपूर नींद लें जिससे शरीर ताजा रहे।
12. योग, प्राणायाम एवं हल्की फुल्की एक्सरसाइज करें।
13. मनोबल बढ़े ऐसे साहित्य व गुरु सत्संग का श्रवण करें।
14. यज्ञ, ध्यान आदि से जुड़े रहे।
इस प्रकार की दिनचर्या से हर बुजुर्ग कोरोना सहित किसी प्रकार के वायरस से प्रभावित होने से बचा रहेगा।
मुश्किल की इस घड़ी में इन बच्चों के भविष्य निर्माण में सहायक बनें। Vishwa Jagriti Mission
गुरुवर ने अनुभव किया कि समाज, राष्ट्र एवं विश्व में जागृति का कोई भी प्रयत्न क्यों न हो, व्यक्ति के निजी चिन्तन, चरित्र, आचरण एवं व्यवहार में उत्कृष्टता लाए बिना वह पूरा नहीं होगा। इसके लिए निरन्तर गम्भीर आध्यात्मिक पुरुषार्थ करने होंगे, साथ ही नई पीढ़ी को भारतीय ट्टषिप्रणीत गौरव से ओतप्रोत शिक्षा और संस्कारों से जोड़ना होगा। इस प्रकार व्यक्ति की आत्मा को सबल बनाने और उसे उदात्त मानवीय भावों से ओत-प्रोत करने हेतु पूज्यश्री ने शिक्षा क्षेत्र में तपः पूर्ण प्रयोग प्रारम्भ किये। गुरुकुल शिक्षा के साथ-साथ उन नौनिहालों-किशारों को भी अपने तपःपूर्ण शिक्षा से जोड़ा, जो धरती पर जन्म तो ले चुके थे, पर उनका न कोई पालन-पोषण करने वाला था, न ही उनमें जीवन के प्रति आशा जगाने वाला कोई सहारा था। जो बच्चे अपने-माता-पिता से दैवीय व अन्य कारणों से वंचित थे। चौराहों, गलियों के बीच उनका जीवन भूखे-प्यासे बीत रहा था। ऐसे बच्चों के पालक एवं तारण हार बनकर साक्षात नारायण के रूप में सामने आये पूज्य सद्गुरु सुधांशुजी महाराज और उनके शैशव से किशोरकाल तक शिक्षण, पोषण एवं संरक्षण पर शिक्षा संस्थानों की देशभर में स्थापनायें प्रारम्भ की। आज भी देश के करोड़ाें बचपनों को बेहद दुःखी और व्यथित देखकर पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि देश के अनाथ बच्चों के प्रति संवेदनशील होना हर सभ्य समाज का अत्यन्त महत्वपूर्ण दायित्व है। फुटपाथों, गलियों और जंगलों में भटकता इस बचपन को सम्हाला व संवारा न गया, तो ये अपनी ही भारत मां के सीने में घाव कर सकते हैं।’’
इसी संवेदनाओं से विश्व जागृति मिशन द्वारा आनंदधाम परिसर में सर्वप्रथम महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ स्थापित हुआ। तत्पश्चात् सूरत (गुजरात) में बालाश्रम, कानपुर (उ-प्र-) में देवदूत बालाश्रम, ज्ञानदीप विद्यालय फरीदाबाद (हरियाणा), झारखण्ड के रुक्का एवं खूंटी में बाल सेवा सदन सहित अनेक बाल सेवा के संरक्षण केन्द्रों की स्थापनायें हुईं, जिसमें पूज्यवर के स्नेह भरे संरक्षण मार्गदर्शन में हजारों बच्चे निःशुल्क पोषित-शिक्षित एवं
संस्कारित हो रहे हैं।
शिक्षा में गुणवत्ता एवं गरिमा का समुच्चय केन्द्र बालाश्रम, सूरत (गुजरात):
लगभग दो दशक पूर्व जनवरी के गुजरात भूकम्प त्रसदी में अनाथ बच्चों को संरक्षण देने की भावधारा में इस अनाथालय का निर्माण हुआ। उन दिनों मिशन में अल्प साधन के बावजूद इस बालाश्रम का गुरुवर ने निर्माण कराया। माननीय जार्ज फर्नाण्डीज एवं अनेक गणमान्य प्रतिष्ठित जनों की गरिमामयी उपस्थिति में पूज्यवर के सान्निध्य में उद्घाटन किया गया। तब से लेकर आज तक अनवरत चल रहे इस बालाश्रम में सैकड़ों अनाथ बच्चों के स्वर्णिम भविष्य का निर्माण हो रहा है। सैकड़ों विद्यार्थी विश्व जागृति मिशन के प्रयास से भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में उच्च गुणवत्ता वाली अत्याधुनिक स्कूली शिक्षा प्राप्त कर स्वयं को समाज की मुख्य धारा के अनुकूल बना रहे हैं। इसी
में से अनेक बच्चे प्रान्त स्तर पर विविध प्रतिस्पर्धाओं में स्वर्ण पदक भी प्राप्त कर चुके हैं।
संस्कार एवं विज्ञानयुक्त शिक्षा केन्द्र देवदूत बालाश्रम, कानपुर (उ-प्र-):
विश्व जागृति मिशन कानपुर मण्डल के बिठूर स्थित सिद्धिधाम आश्रम में प्रारम्भ हुए इस बालाश्रम में आज सैकड़ों अनाथ बच्चों का जिस रूप में जीवन निर्माण हो रहा है, वह सम्पूर्ण मानव समाज के लिए मानव सेवा का महान आदर्श है। प्राचीन ज्ञान एवं आधुनिक विज्ञान से युक्त यहां की अत्याधुनिक शिक्षा मिशन के कार्यकर्त्ताओं, योग्य शिक्षकों द्वारा प्रदान की जाती है। वेदादि शास्त्रें से लेकर योग, नैतिक मूल्य, सुसंस्कार आदि के साथ कम्प्यूटर, योग, खेल आदि तकनीकों से भी इन बच्चों को जोड़ा जा रहा है। आश्रम के ये बच्चे अपने को मिशन
परिवार का अंग मानकर गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। यहां इनके शिक्षण, आवास, भरणपोषण की उच्चस्तरीय व्यवस्था है। बालाश्रम की उत्कृष्टता मानव निर्माण की महाक्रान्ति को देखने देश-विदेश से अनेक गणमान्य आकर यहां से प्रेरित होते हैं। भविष्य में देश के विभिन्न नगरों में ऐसे गुणवत्ता वाले अनाथालय खोलने की मिशन की योजना है। पूज्यवर द्वारा मिशन के इन अनाथ बच्चों की शिक्षा विश्वविद्यालय स्तर तक कराने एवं उन्हें आत्मनिर्भर बनाने तक जारी रखने का संकल्प है।
सफलताओं का सुनिश्चेतर महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ, आनन्दधाम:
पूज्य महाराजश्री ने वर्षों पूर्व आनन्दधाम आश्रम, नई दिल्ली में इस गुरुकुल की स्थापना की। लक्ष्य रखा संवेदनशील इस आयु वर्ग के बच्चों में वैदिक एवं आधुनिक शिक्षा का समावेश करना। बच्चों को आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक से भी परिचित कराने हेतु कम्प्यूटर, इंटरनेट की शिक्षा से जोड़ने हेतु मिशन ने प्रतिबद्धता दिखाई। विद्यार्थियों की शिक्षा, भोजन, आवास, वस्त्र तथा अन्य सभी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति विश्व जागृति मिशन इन्हें निःशुल्क करता है। छात्रें के लिए यहां का सुंदर विशाल परिसर अपने में उदाहरण है। यही नहीं विद्यार्थियों के लिए बने शिक्षण कक्ष, सभागार से लेकर, खेल का मैदान, प्रतियोगिताशाला, दिव्यतापूर्ण यज्ञशाला, उपासना कक्ष, भोजनालय देखकर किसी का भी मन अपने बालकों को इस गुरुकुल से जोड़ने हेतु मचल उठता है। प्रातः जलपान से लेकर भोजन तक की उत्तम सुरुचिपूर्ण व्यवस्था बच्चों के स्वास्थ्य संवर्धन एवं मानसिक विकास का अपना अलग श्रेष्ठ संदेश देता है। इस गुरुकुल में शिक्षण के लिए उच्च स्तर के शिक्षक तो हैं ही साथ-साथ पूज्य महाराज श्री स्वयं इन बच्चों के लालन में प्रत्यक्ष भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि यहां के बच्चे अनेक आधुनिक प्रतियोगिताओं में उच्च सफलता पाते आ रहे हैं। योग, खेल, ध्यान, गायन, वादन, गीता व वैदिक ज्ञान कण्ठस्थ बच्चों की यहां सहज बहुलता
मिल जाएगी। अपने उत्कृष्ट शिक्षण के चलते दिल्ली संस्कृत अकादमी से लेकर विविध विश्वविद्यालय के कुलपति व आचार्यों की ओर से यह गुरुकुल अपने प्रारम्भ काल से ही प्रशंसा प्राप्त करता आ रहा है। विगत दिनों इस गुरुकुल से निकले अनेक ब्रह्मचारी सम्पूर्ण भारत को धर्म, मानवता, सद्भाव एवं एकता का संदेश देकर धरा को स्वर्ग बनाने का प्रयास करने में लगे हैं।ऐसे गुरुकुल में अपने बच्चों का विद्याध्ययन कराना हर किसी के लिए गौरव का विषय है।
शिक्षा एवं संस्कृति का केन्द्र महर्षि वेदव्यास उपदेशक महाविद्यालय:
देश में धर्मोपदेशकों की आवश्यकता को महसूस करते हुए पूज्यवर ने धर्माचार्य प्रशिक्षार्थियों के निर्माण हेतु उपदेशक महाविद्यालय की स्थापना की। लोक पीड़ा को सेवा में परिवर्तित करने वाले युवाओं को गढ़ना गुरुसंकल्प की यह विशेष कड़ी है। इस विद्यालय में शिक्षार्थियों को योग, ध्यान, यज्ञ, सत्संग, जप-उपवास के साथ रामायण, मानस, भागवत् आदि विषयों में पारंगत करने हेतु महाविद्यालय में इस स्तर पर सरंजाम जुटाये गये हैं कि शिक्षण बाद यहां से निकलने वाले उपदेशक मात्र कथावाचक बनकर न रहें, अपितु लोक पीड़ा का अहसास करते हुए राष्ट्र सेवा में हाथ बंटा सकें। आज देश को वानप्रस्थियों, उपदेशकों की की जरूरत है, जो देश व विश्व के जनमानस को झकझोर कर उन्हें भ्रांति, भय व लोभ से बाहर निकाल सकें। विश्व जागृति मिशन का यह महर्षि वेदव्यास उपदेशक महाविद्यालय इसी संकल्प से स्थापित है। पूज्य गुरुदेव के संरक्षण में प्रशिक्षित हो रहे ये छात्र भविष्य में संवेदना, सेवा, साधना आंदोलन के कर्णधार बनकर उभरे तो आश्चर्य नहीं।
प्रशिक्षण के दौरान संस्कृत, संस्कृति, कर्मकाण्ड, धर्म विज्ञान, योग विज्ञान, संगीत, आयुर्वेद इत्यादि में विद्वानों द्वारा इन्हें निष्णात् कराया जाता है। इन प्रशिक्षणार्थियों को निःशुल्क शिक्षा, भोजन, आवास के साथ-साथ मिशन की ओर से प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी इसलिए दी जाती है, जिससे वे अपने को परावलम्बी अनुभव न करें। प्रशिक्षणोपरान्त देश में विश्व जागृति मिशन के विभिन्न सेवा केन्द्रों में इन उपदेशकों को लोक सेवक की भूमिका में मिशन स्थापित करेगा, जिससे ये अनुभवशील हो सकें।
सद्गुरुदेव जी के स्वप्नों का साकार आदर्श प्रतिमान ज्ञानदीप विद्यालय फरीदाबाद :
ज्ञानदीप विद्यालय फरीदाबाद से दसवीं की कक्षा पास करने के उपरान्त अन्य योग्यताएं प्राप्त कर कविता, सिमरन और खुशबू ने कभी स्वप्न में भी नहीं सोच होगा कि वह एक दिन क्रमशः हरियाणा पुलिस में भरती होकर कांस्टेबल बन जायेंगी या कम्प्यूटर टीचर अथवा सामान्य टीचर बन जायेंगी, किन्तु पूज्य सद्गुरुदेव जी की अनन्य कृपा से समय ने यह सत्य सिद्ध कर दिया। आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व इस मण्डल के तत्कालीन प्रधान गुरुदेव जी के प्रिय शिष्य श्री सतीश सतीजा ने छोटी-छोटी गरीब बच्चियों को प्रातःकाल कूड़ा बीनते, भीख मांगते देखा तो उनके मन में एक भाव जागृत हुआ कि कि क्यों न वह इन बच्चियों के लिये शिक्षा की व्यवस्था करके इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़कर इनके जीवन को संवारा जाये और सत्य में इन बच्चियों का भविष्य संवरने लगा और संवर भी गया। सतीजा जी ने गुरुदेव जी से स्वीकृति लेकर जून 2001 में 5 छोटी-छोटी कन्याओं से लेकर आश्रम में नर्सरी कक्षा प्रारम्भ की। वर्ष 2002 में 28 कन्याएं दाखिल हुईं, जिनमें अब हरियाणा में लेडीज विंग में सिपाही बनी कविता भी शामिल है। जिसको अप्रैल 2002 में प्रवेश दिया गया। इन बच्चियों के मां बाप को प्रारम्भ में समझाने में बहुत कठिनाइयां आईं कि अपनी बच्चियों को पढ़ने के लिए भेजो क्योंकि वे तो उनकी रोटी का साधन थीं। सतीजा जी और उनके साथ उनकी पत्नी और साथी उनके साथ मंदिर के पास झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनियों, राहुल कॉलोनी, चार नम्बर
आदर्श कॉलोनी और संजय कॉलोनी में जाते थे और माँ-बाप बड़ी मुश्किल से कन्याओं को भेजने के लिए तैयार होते थे। कविता राहुल कॉलोनी से आई थी। अब ज्ञानदीप विद्यालय में 700 कन्याएं और 300 बालक हैं। बालिकाएं प्रातः और बालक शा की शिफ्रट में आते है। बालकों का प्रवेश भी 2005 में प्रारम्भ हो गया था। कन्याओं की संख्या जानबूझकर ज्यादा रखी गई है, क्योंकि गुरुदेव मानते हैं परिवार में शिक्षित एक नारी भी पूरे परिवार का रूप बदल देती है। इस विद्यालय में नर्सरी से लेकर दसवीं तक शिक्षा दी जाती है। आठवीं कक्षा तक
इसे हरियाणा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। सभी विद्यार्थियों को एक समय का खाना, पुस्तकें, वेशभूषा, जूते, स्वेटर निःशुल्क दिये जाते हैं। इन्हें पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षा देने के साथ-साथ संगीत, सिलाई, कम्प्यूटर का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। खो-खो, बैडमिन्टन जैसे खेल भी करवाए जाते हैं। यहां विद्यालय में सभी पर्व, त्यौहार, मिशन के पर्व, राष्ट्रीय पर्व बड़े उत्साह से मनाये जाते हैं। सूरजकुण्ड मेले में इन बालिकाओं के विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। यहां की कन्याएं आनन्दधाम आश्रम में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में नाटक, कव्वाली, भजन, नृत्य जैसे कार्यक्रम भी प्रस्तुत करती हैं। विद्यालय की प्रधान अध्यापिका सीमा अरोड़ाा एवं 20 अध्यापिकाएं विद्यालय के
विकास के लिए पूर्णतया समर्पित हैं। विद्यालय की बालिकाओं ने वर्ष 2016 में भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जी से भी भेंट कर उनसे आशीर्वाद लिया।
2012 में श्री राजकुमार अरोड़ाा इस मण्डल के प्रधान बने और उन्होंने विद्यालय के लिए एक नये सुन्दर भवन का निर्माण करवाया गया। वह गुरुदेव जी के साथ काफी व्यस्त रहते हैं, किन्तु उनकी टीम में अनेक समर्पित भक्तजन हैं। सर्वश्री वी-के- सिंह, पी-डी- आहूजा, सतीश विरमानी, कंचन सुनेजा, रविन्द्र शर्मा एवं एच-बी- भाटिया व अन्य, जिन्होंने अरोड़ा जी के आत्मीय मधुर स्वभाव से प्रेरित होकर इस विद्यालय के लिए बहुत परिश्रम किया है। इस क्षेत्र की विधायिका श्रीमती सीमा त्रिखा जी का भी विद्यालय को काफी आशीर्वाद प्राप्त है। प्रत्येक मास विद्यार्थियों को माता-पिता के साथ पी-टी-एम होती है। अब इस विद्यालय में बच्चों को प्रवेश दिलवाने के लिए निवासियों में होड़ लगी रहती है। ज्ञानदीप विद्यालय का नाम अब फरीदाबाद में काफी प्रसिद्ध है। विश्व जागृति मिशन के देश भर में 85 से अधिक मण्डलों में फरीदाबाद मण्डल का नाम हर दृष्टि से शिखर वाले मण्डलों में है। फरीदाबाद आश्रम में विशाल भव्य मंदिर है, शिवालय है, सत्संग हॉल है, परामर्श कक्ष है और आरोग्यधाम अस्पताल है। अस्पताल में ई-सी-जी-, एक्सरे सहित सभी सुविधाएं और विभाग हैं। अब तक इस
अस्पताल में 10 लाख से अधिक मरीजों का उपचार हो चुका है।
प्रत्येक मास सत्संग का आयोजन किया जाता है जिसमें सैंकड़ों भक्तजन उपस्थित होते हैं। प्रत्येक वर्ष नगर में गुरुदेव जी के सान्निध्य में भव्य विराट भक्ति सत्संग का आयोजन किया जाता है, जिसकी व्यवस्था और प्रबन्ध देखने योग्य होता है। प्रत्येक वर्ष सत्संग के सुगम आयोजन में श्री एच-सी- सुनेजा विशेष परिश्रम करते हैं। शारीरिक मजबूरी के बावजूद घर-घर जाकर लोगों को सहयोग देने और सत्संग में आने की प्रार्थना करते हैं। इस मण्डल को सेवाकेन्द्र कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। सेवकों और कार्यकर्त्ताओं की भरमार है, जो हर सेवा के लिए निरन्तर तत्पर रहते है। निःस्वार्थ अधिकारियों के सेवाभाव व समर्पण से ही मण्डल सेवा केन्द्र बन जाते हैं।
यथार्थ में फरीदाबाद में ज्ञानदीप विद्यालय सद्गुरुदेव जी महाराज की सात्विक और परोपकारी सोच, समाज कल्याण के चिन्तन का साक्षात स्वरूप है। गरीब बच्चों को अमीर परिवारों के बच्चों जैसा वातावरण और सुविधाएं देकर उनके जीवन को सुधारने, सजाने और संवारने का काम कई वर्षों से चल रहा है। खुदा की रहमत से एक दरवेश ने मासूम बच्चियों की किस्मत संवार दी, जो भटकती थीं गलियों में दर-बदर, उनकी हालत सुधार दी, अब उन्हें भी जीने में फखर है। हजारों दुआएं देती हैं, वे उस महामानव को, जिसने उनका समाज में मान बढ़ाया है, जिसने उनको जिन्दगी में जीना सिखाया है।
वृद्धजनों के प्रति सम्मान से भी उनमें बढ़ती है आरोग्यता | Vishwa Jagriti Mission
जिसने हमें पाला-पोसा, लायक बनाया, चलना-बोलना सिखाया, सभ्यता दी, भाषा दी, कुछ बनकर खड़े होने के लिए अधिकार दिया, उन माता-पिता एवं बड़ों के प्रति हम सबका भी कर्तव्य बनता है कि उम्र बढ़ने पर उनके स्वस्थ-आरोग्यतापूर्ण बुढ़ापा का मार्ग प्रशस्त करें। इसलिए सर्वाधिक आवश्यक है उनके प्रति प्रेम, स्नेह-सम्मान भरे व्यवहार को बढ़ाना। उनके प्रति उपेक्षा का व्यवहार न करे। बुजुर्गों के चिकित्सा विश्लेषक कहते हैं कि ‘‘बुजुर्ग रोगी के लिए औषधि से अधिक आवश्यक है उनके प्रति स्नेह, सम्मान भरे व्यवहार को बढ़ाये। हमारी भारतीय परम्पराओं में दिये गये सूत्र इसके लए अधिक कारगर साबित हुए हैं। क्योंकि उनके प्रयेाग से बुजुगों में ऊर्जा संचरित होती है और वे दीर्घ जीवी, आरोग्यपूर्ण जीवन की अभिलाषा से भर उठते हैं। जबकि उपेक्षा से उनका मनोबल गिरता ही है, बुजुर्गों को इससे बीमारी घेरने लगती है। उपेक्षा से रोग घेरते हैं। मनु स्मृति में वर्णन है किµ
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
अर्थात् ‘‘तुम अपने बड़ों का आशीर्वाद लो, निश्चित रूप से बड़ों के आशीर्वाद से तुम्हारी आयु बढे़ेगी। सच है कि उन बुजुर्गों में इससे आरोग्यता बढ़ती है।’’
बुजुर्ग व माता-पिता को लम्बी आयु तक स्वस्थ रखने का हमारे ट्टषियों द्वारा प्रदत्त यह महत्वपूर्ण अनुसंधान है। इस संदर्भ में देखें तो देश के बुजुर्गों की स्मृतियां दयनीय और दर्दनाक हैं, इस समय 60 वर्ष से अधिक आयु वाले 16 करोड़ लोग भारत में हैं। आज आवश्यकता वृद्धाश्रम की नहीं, अपितु अपने घर में ही बुजुर्गों को सम्मान देकर उन्हें स्वास्थ्य लाभ दिलाने की है। प्रस्तुत है आयुर्वेद आधारित कुछ व्यावहारिक आर्रोग्य सूत्र ।
परिवार के सभी सदस्य प्रतिदिन प्रातः काल अपने वृद्ध माता-पिता तथा बड़ों बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर प्रणाम करें। संस्कृति अनुसार दाहिने हाथ से दाहिने पैर का एवं बायें हाथ से बायें पैर का अंगूठा स्पर्श करने से दोनों को प्राण ऊर्जा मिलती है। जिससे पारस्परिक प्रेम एवं अटूट बन्धन के साथ बुजुर्गों की आरोग्यता बढ़ता है।
प्रतिदिन वृद्ध पुरुषों के साथ कुछ समय व्यतीत करना भी स्वास्थ्य विज्ञान है। अतः उनसे परस्पर वार्तालाप करें, उनका समाचार जानें, हंसी-विनोद की बातें करें। इससे समरसता के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
प्रतिदिन प्रातः एवं सायंकाल सन्ध्या के समय बुजुर्गों के साथ आरती, भजन, संकीर्तन अवश्य करें।
प्रतिदिन उनकी सामर्थ्य एवं ऋतु के अनुसार समय पर उन्हें भ्रमण के लिये ले जायें। इससे प्रकृति दर्शन के साथ-साथ शरीर की हलचल के कारण साधारण व्यायाम भी हो जाता है और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
वृद्ध लोगों के सामर्थ्यानुसार उन्हें धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक कार्यों में प्रतिभागी बनाते रहें, जिससे वे अपने आपको संसार से अलग व अनुपयोगी न समझें। इससे उनकी प्रसन्नता व आरोग्यता बढ़ेगी।
बुजुर्गों को उनकी आवश्यकतानुसार श्रीमद्भागवद्गीता, रामायण तथा अन्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक पुस्तकें, पत्र-पत्रिकायें पढ़ने को दें। उन्हें स्वाध्याय हेतु प्रेरित करें। पढ़ने में असमर्थ होने पर उन्हें खुद श्रवण करायें। विचारों का यह आदान-प्रदान बुजुर्गों के लिए संजीवनी जैसी काम करती है। रोग मिटते हैं।
अवस्था एवं शक्ति के अनुसार उन्हें समय-समय पर तीर्थदर्शन और किसी धार्मिक स्थल पर अवश्य ले जायें। ऐसे स्थलों पर जाने से उनमें आध्यात्मिक ऊर्जा का विज्ञान काम करता है।
उन्हें भार स्वरूप न मानें, यथा सम्भव उन्हें नौकर अथवा पड़ोसी के आश्रित न होने दें। तथा पूर्ववत जीवन जीने के लिये प्रोत्साहित करें। इससे उनका मनोबल बढ़ता है और व स्वस्थ अनुभव करते हैं।
प्रेम एवं विश्वास बढ़ाने के लिए नन्हें-मुन्नों को बुजुर्गों की गोद में डालते रहें। इससे दोनों ऊर्जा से भरते रहते हैं।
सामयिक जांच के अनुसार रुग्णावस्था में उनका यथा शीघ्र, यथा शक्ति, यथा समय उपयुक्त उपचार का अविलम्ब प्रबन्धन करते रहें। समय पर दवा देकर प्रसन्नतापूर्वक अनुभव करें। अधिक अवस्था की स्थिति में स्मरण शक्ति का ”ास होता है, अतः औषधि लेने का काम बुजुर्गों के भरोसे न छोड़ें। अधिक रुग्णावस्था में उन्हें अकेला न छोड़ें।
खान-पान, वस्त्र आदि में उनकी इच्छा का ध्यान रखें। पथ्यापथ्य के पूर्ण विचार के साथ उन्हें भोजन, दूध, नाश्ता नियमित एवं निर्धारित समय पर दें।
प्रत्येक समय बिना मांगे उनकी समुचित इच्छाओं की पूर्ति करने का प्रयास करें, इससे वे अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर अंदर से ऊर्जावान अनुभव करते हैं।
भूलकर भी बुजुर्गों पर कटाक्ष एवं कटुतापूर्ण शब्दों का प्रयोग न करें, उन्हें दुःखी न करें, शान्त रहें। परिवार के सभी सदस्य उनके साथ धैर्यपूर्वक सामंजस्य बनाकर रखें।
उन्हें इच्छा अनुसार दान-पुण्य करने दें।
इस विचारधारा के साथ बुजुर्गों के प्रति किये गये व्यवहार से हम सब भी पुण्य के भागी होंगे तथा परिवार के सभी प्राणी अनावश्यक मनमुटाव से बचेंगे। इन सूत्रें को पालन करके हम अपने बुजुर्गों की प्रसन्नता, आरोग्यता सहज बढ़ा सकते हैं।
A Global Surge in Domestic Violence | When will this Pandemic End? | Vishwa Jagriti Mission
An appeal from UN Chief Antonio Guterres that calls for measures to address a “horrifying global surge in domestic violence” directed towards women and girls, linked to lockdown imposed, on his twitter raises an issue of utter shame for Humanity at this hour of crisis.
It is considered that homes are the safest place for an individual but what about these women and girls who are facing violence at their own houses? Reportedly in many countries, the situation has worsened because of the lockdown that took place to avoid spread of Covid-19.
In France, domestic violence rates surged by one third in a week. In South Africa, authorities received nearly 90,000 reports of violence against women in the first week of its lockdown. Australia’s government says online searches for support on domestic violence have risen 75%, while in Turkey, activists are demanding greater protections after the killing of women rose sharply after a stay at home order was issued March 11. While in Lebanon and Malaysia, for example, have seen the number of calls to helplines double, compared with the same month last year; in China they have tripled; and in Australia, search engines such as Google are seeing the highest magnitude of searches for domestic violence help in the past five years.
One of the three women in world experience physical or sexual violence in their lifetime, acc. To World Health Organization, making it, “the most widespread but amongst the least reported human rights abuses.” But the rise of gender-biased violence always escalates during wars, epidemics and natural disasters.
Why Does it Happen ?
Ray Jones said, “We know that domestic violence is rooted in Power and Control.” Right now each one of us is facing a lack of control in their lives; many are facing major downfall in their businesses, some men have lost their jobs and moreover sitting at home during quarantine have left people frustrated and tensed. And for these “men”, their partners are a perfect option to ooze out their frustration. What a shame!The crisis has further made it difficult for these women to take any medical assistance.
This “Inmate Terrorism” is a result of the patriarchal society, where men think it as their natural right to abuse their female partners. The excited and angered mind with the innate feeling of superiority makes it difficult for them to understand how inhuman it is to sexually, physically or mentally abuse your partner or any woman. It will not come in a day, it is the duty of the parents to grow their boy child into a well thought gentlemen, teaching them the true values of equality and emotion management. Similarly, a girl child must grow strong enough to stand for herself and speak against any abuse.
No family would want their girl to be treated in the same way, as they are treating the other!
Lets Understand
It is important to understand that this upsurge in anger must be controlled and for that, if only one is willing to do so, Meditation & Yoga plays a very important role. Calming your mind by merely sitting and practicing few breathing patterns or for that matter simple deep breathing will help you control your anger. At this time of home quarantine, listening to positive thoughts and reading good books will direct the energy in the right direction.
You can also always remember this very important example from the life history of a great philosopher, George Gurdjieff , “where he mentioned that I have got the most beautiful wealth from my father”. When asked what is that? He replied, “My Father told me that whenever you think of doing anything wrong, just wait for 24 hours. I further asked, should then I proceed for what I wanted to do, to which my father replied with a smile that you will not be able to do anything wrong thereafter. This changed my life forever.”
All these things can help you change your life style and thought process but only if you are willing too. You as a men and an individual of the society must understand how important it is to keep the dignity of a woman and a person intact. Not one- step ahead and not one-step behind, feminism aims at being equal and treating each other equal.
Lets Pledge!
It is important for us all belonging to any city, Nation or Continent to stop domestic violence and extend help to the victim anytime but especially during this crisis. Be it in your neighbor’s, your maid’s house or your own house, report it immediately to women helpline numbers and Take A Stand!
This is the only Pandemic that each one of us individually can stop just by being mentally strong and having this basic understanding of the other self as an individual self.
Eventually, the Covid-19 catastrophe will end resulting in the closure of the lockdown but when will this Pandemic end?
References:
https://news.un.org/en/story/2020/04/1061052
https://www.voanews.com/science-health/coronavirus-outbreak/un-chief-coronavirus-pressures-leading-global-surge-domestic
नियमों, सिद्धांतों एवं अनुशासनों का पालन ही है सच्चा धर्म व अध्यात्म
नियमों, सिद्धांतों एवं अनुशासनों का पालन ही है सच्चा धर्म व अध्यात्म
शिव महिमा गायन से गूँजा इन्द्रपुरी का पावन श्रीराम उद्यान
विराट भक्ति सत्संग महोत्सव के पूर्वाह्नकालीन सत्र में छायीं भक्ति की विविध धाराएँ
अमरावती, 08 फरवरी (प्रातः)। विश्व जागृति मिशन के अमरावती मण्डल द्वारा यहाँ दशहरा मैदान में बीती छः फरवरी से चल रहे विराट भक्ति सत्संग महोत्सव के तीसरे दिवस के पूर्वाह्नकालीन सत्र में भक्ति की त्रिविध धाराएँ प्रवाहित हुईं। सुरम्य संगीतमय वातावरण में मिशन प्रमुख आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने अपने उदबोधन में भक्ति-यज्ञ, कर्म-यज्ञ एवं ज्ञान-यज्ञ का सम्मिलित ज्ञान-प्रसार प्रसारित करके उपस्थित जनमानस को भावविभोर किया।
इस अवसर पर विश्व जागृति मिशन प्रमुख श्रद्धेय श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि नियमों, सिद्धांतों एवं अनुशासनों का पालन करना ही वास्तव में सच्चा धर्म है, वास्तविक अध्यात्म है। जो इस राह पर चलते हैं वे वास्तव में अध्यात्मवादी हैं। सृष्टि नियन्ता परमेश्वर को परिपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर की हर रचना अक्षुणण है, उसके किसी सिद्धान्त और नियम में बदलाव नहीं आया करते। इसके उलट मनुष्य की प्रत्येक रचना में हर बार बदलाव आया करता है। इसलिए मानव को अपूर्ण कहा गया तथा परमात्मा को ‘पूर्ण’ की संज्ञा दी गई। श्री सुधांशु जी महाराज ने सत्संग व कथा का महत्व समझाया और कहा कि कथा मानव की व्यथा को हरने का एक सशक्त माध्यम है।
श्री सुधांशु जी महाराज ने मानव काया में व्याप्त ‘आत्मा’ का ज्ञान-विज्ञान समझाया और कहा कि आत्मा सूक्ष्म है। परमात्मा का स्वरूप उससे भी अधिक सूक्ष्म है, महासूक्ष्म है। आत्मा का परम विराट स्वरूप परमात्मा है, वह उसी परमेश्वर का ही अंग है। परमात्मा आत्मा के भीतर तो विराजमान हैं, वह आत्मा के चारों ओर-सभी ओर विद्यमान है। उन्होंने परमेश्वर की सृष्टि से हर पल सीखने और खुद में सुधार लाने की प्रेरणाएँ सभी को दीं।
विश्व जागृति मिशन मुख्यालय नई दिल्ली स्थित आनन्दधाम से आए धर्मादा सेवा अधिकारी श्री गिरीश चन्द्र जोशी ने बताया कि धर्मादा सेवा में- स्वास्थ्य सेवा, वृद्धाश्रम एवं वानप्रस्थ सेवा, प्राकृतिक आपदा सेवा, गौपालन एवं संवर्धन सेवा, योग-साधना, गौसेवा, मन्दिर निर्माण सेवा, गुरुकुल सेवा, देवदुत (अनाथ) सेवा इत्यादि शामिल हैं। उन्होंने सभी लोगों को आह्वान किया कि इस सेवा से जुड़ें।