गोवर्धन पूजा के दिन गौग्रास और गौदान महापुण्य फलदायी

गोवर्धन पूजा के दिन गौग्रास और गौदान महापुण्य फलदायी

Govardhan Puja

 

गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रजलित हैं कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्रीकृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतसार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्रीकृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया ‘मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं’ कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं। मैया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण बोले हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिये क्योंकि हमारी गायें वहीं चरहती हैं, इस दृष्टि से गोवर्धन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अतः ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिये।

लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्धन पर्व की पूजा की। देवराज इन्द्र ने अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समा वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरल कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूजा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछड़े समेतशरण लेने के लिये बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधिक हुए फलतः वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिये तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से कहा
आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।

इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हें एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहंी हो सकता। अतः वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृत्तान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरुषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका। इसलिये अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिये मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।

इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है। व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।
बृज में गोवर्धन पूजा के साथ पूरे भारतवर्ष में अन्नकूट के दिन गोवर्धन पूजा के साथ गोपूजन किया जाता है। सभी लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार गौग्रास के लिये अन्न और गौ-चारे आदि का दान करते हैं। बहुत से भक्त गोवर्धन पूजा के दिन गोदान भी करते हैं। इस दिन गौग्रास और गौदान अति पुण्य फलदायी माना जाता है। सद्गुरु सुधांशुजी महाराज के आशीर्वाद से विश्व जागृति मिशन द्वारा देश में 6 बड़ी गौशालाएं संचालित है। आनंदधाम आश्रम दिल्ली की गौशाला एक आदर्श गौशाला है। जहां विभिन्न गिर गाय, देसी गाय व अन्य नस्लों की 125 से धिक गऊओं का बड़ी श्रद्धा से पालन-पोषण किया जाता है।

इस दिवाली गणेश-लक्ष्मी पूजन-यजन से खोलें समृद्धि के द्वारा

गणेश-लक्ष्मी पूजन-यजन से खोलें समृद्धि के द्वारा

इस दिवाली गणेश-लक्ष्मी पूजन-यजन से खोलें समृद्धि के द्वारा

 

गणेश जी को धार्मिक कार्यों में सबसे पहले पूजे जाने का वरदान प्राप्त है। इसके अलावा ये बुद्धि के देवता और विघ्न विनाशक है। यदि किसी व्यक्ति को लक्ष्मी जी की पूजा से धन तो प्राप्त हो जाये पर उसमें बुद्धि न रहे तो यह धन उसके लिये किसी काम का नहीं है। अतः धन के साथ भी बुद्धि जरूरी है जो लक्ष्मी और गणेश पूजन से ही सम्भव है। इसलिये दीपावली पर श्रीगणेश और लक्ष्मी की पूजा एक साथ की जाती है।
भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात नारायणी हैं। भगवान श्री गणेश सिद्धि-बुद्धि एवं शुभ-लाभ के स्वमाी तथा सभी अमंगल एवं विघ्नों के नाशक एवं सद्बुद्धि प्रदान करने वाले हैं। अतः इन दोनों के पूजन से सभी का कल्याण और आनंद की प्राप्ति होती है।
दीपावली में कुछ चीजों को ध्यान देकर आप अपने जीवन, घर-परिवार व व्यापार में स्थिर लक्ष्मी का वास करवा सकते हैं।
1- घर, दुकान व व्यापारिक प्रतिष्ठान में स्वच्छता व पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
2- मकड़ी के जाले कहीं भी न लगे हों।
3- घर में गाय के घी की जोत जलायें।
4- कमलगट्टे की माला से ‘¬ श्रीं श्रियै नमः’ का जाप करें।
5- स्त्रियों का सम्मान करें।
6- गरीब, अनाथ, जरूरतमंद लोगों को भोजन, वस्त्र आदि का दान करें।
7- मां लक्ष्मी को गुलाब के पुष्प चढ़ायें और खीर का भोग लगायें।
उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम चारों दिशाओं में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम मानवमात्र के लिये श्रद्धा और आस्था के केन्द्र हमेशा से रहे हैं। भगवान राम के जीवन से हमें प्रेरणा प्राप्त होती है कि चाहे जीवन में कैसी भी स्थिति क्यों न हो, कितनी भी आपदाएं, मुसीबतें, हानियां, दुखों का अंधेरा बन कर सामने आ जाए, किन्तु अपने श्रद्धा के दीप को कभी कमजोर न पड़ने दना, अपनी आस्था के फूलों को कुम्हलाने न देना, एक न एक दिन बहार जरूर खिलेगी।

भगवान श्रीराम ने वनवास के समय बहुत सी विपत्तियों का सामना किया, दुष्ट राक्षसों की अनैतिक छल-कपट वाली दुखदाई समस्याएं भी सामने आईं, माता जानकी का भी वियोग उन्हाेंने सहन किया, वन में रहकर वन्य प्राणियों की सेना बनाई, विशाल समुद्ध पर सेतु बनाया, अहंकार और हिंसा के पुजारी राक्षसराज रावण पर विजय प्राप्त की, लेकिन अपने गुरुजनों के प्रति, अपनी जन्मभूमि के प्रति, अपनी प्यारी माताओं के प्रति उन्होंने श्रद्ध के महाभाव के कमी नहीं आने दी।

चौदह वर्षों की वनयात्र के उपरांत जब वे अयोध्या में पधारे तब उनका कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही दीप मालाओं से अयोध्या वासियों ने स्वागत किया। तब से लेकर आज तक समूचा हिन्दू समाज धूम-धाम से प्रत्येक वर्ष उसी तिथि को दीपावली मनाता है। परंतु यहां यह कहना प्रासंगिक होगा त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम, माता सीता और अपने अनुज लक्ष्मण सहित अयोध्या आए थे, उस समय जो दीपावली मनाई गई थी, दीए जलाए गए थे, उन दीपों में जो तेल था वह श्रद्धा का ही द्रवित रूप और जो बाती थी, वह आस्था के ही फूलों की कपास से निर्मित थी। और आज भी धरा पर जो प्रकाश कि किरणें जगमगा रही हैं, आज भी जो पूरे देश में दीपावली मनाई जा रही है, वह भी श्रद्धा और आस्था का ही सुपरिणाम है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ-सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नजर आते हैं।

अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उलास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीपावली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढियों से यह त्योहार चल आ रहा है। लोगों में दीपावली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ करते हैं, नये कपड़े पहनते है। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बांटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है। दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है।

आओ! दीपावली पर सब मिलजुलकर श्रद्धा के दीप जलाएं, परस्पर प्रेम का भाव बढ़ाएं और अपने जीवन को विश्वास की सुवास से सजाएं।

Local is the New Global

Local is the New Global

This Diwali, Experience the Beauty of Local Artistry

Diwali and art are inseparable because the auspicious festival is all about beauty, decoration, and joy. There are definitely a few types of art that appeal to all and ‘local art’ belongs to this category only. There is no dearth of artists in our country who are incredible in their craft. Any art connoisseur would say that these artists are wonderful and their art is truly international. Take the following steps and this Diwali, experience the magnificent beauty of the local artistry.

1. Buy Earthen or Clay Diyas to Light Up Your Home

Our local artists beautifully make earthen lamps that are eco-friendly too. These wonderful pieces of art are created from the mother earth and return to mother earth. So, light a lamp made of clay and make a local potter smile.

2. Bring Home Handmade Idols

At every household, Lord Ganesha and Maa Lakshami will be worshiped during Diwali. Choose handmade clay idols created by local artists and make the pure divinity come home.

3. Decorate Your Home with Eye-Catching Toran and Kandeels

Now is the time to decorate homes with torans, beautiful hangings, and kandeels. There are craftsmen who create gorgeous decorative material by using their hands. Explore your market and you’ll get many.

4. Gift Ethnic Jewellery to Someone You Love

Double your festive joy by gifting your loved ones, beautiful ethnic jewelry. These pieces of art made of gold, copper, silver, and diamonds enhance feminine beauty naturally.

5. Bring Home Marigolds and Mango Leaves

Diwali is incomplete without fresh flowers and mango leaves. Bring home fresh marigolds, jasmine, and Desi Gulaab along with mango leaves. Let the fragrance of a local mali’s labor spread in our homes. And this is how you can support local artists. So, this Diwali, give a local touch to your Instagram reel as Local is the New Global.

Happy Diwali!

अपना शुद्ध मन ही सबसे बड़ा तीर्थ है- कर्म, ज्ञान और भक्ति ही त्रिवेणी (संगम) है

A pure mind is the greatest pilgrimage

मन ही मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण है। मन से मान लिया जाये तो दुख और यदि मन से किसी भी प्रकार के दुख को निकाल दिया जाये तो सुख ही सुख है। यदि आप मन को एकाग्र कर शांति का अनुभव करें तो आपका निर्मल मन आपको चिरशान्ति प्रदान करेगा और आपको लगेगा कि दुनिया की सबसे बड़ी दौलत आपको मिल गई, जिस सम्पत्ति को हम दुनिया में खोज रहे थे, वह हमें अपने अंदर ही मिल गई। चैन, सुकून, शांति बाहर नहीं वह तो हमारे अंदर ही थी लेकिन हम मृगतृष्णा में भटक कर उसे बाहर खोज रहे थे। मन के शांत होने से अब आनंद ही आनंद है। अब समस्त सुखों का संगम हमारे मन में ही हो गया है और हमारा शुद्ध व शांत मन ही सबसे बड़ा तीर्थ है। ज्ञान-कर्म और भक्ति का परस्पर सम्बन्ध है। इसलिये मानव जीवन में तीनों का सामंजस्य अवश्य होना चाहिये। यदि व्यक्ति कर्म-ज्ञान और भक्ति का संतुलन बनाए रखे तो उसका जीवन व्यवस्थित हो जाता है।

ज्ञान आंख है, कर्म पांव है। आंख से देखो और पांव से चलो, बिना देखे चलना कुएं में गिरना है। सिर्फ चलना ही बाकी रहे, देखा न जाए तो वह चलना व्यक्ति को चोट पहुंचाएगा और अगर चलें नहीं केवल देखते ही रहें तो फिर उस देखने का भी कोई लाभ नहीं। इसलिये दोनों का तालमेल बनाकर आत्मा की यात्र को परमात्मा तक अर्थात् मंजिल तक पहुंचाया जा सकता है और परमात्मा रूपी मंजिल को प्राप्त कर लेना ही भक्ति है।

शरीर में ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेन्द्रियां दोनों है -ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त होता है और कर्मेन्द्रियों से कर्म। दोनों का होना ही जीवन है। ज्ञान भी चाहिये और कर्म भी चाहिये। पक्षी के दो पंख है। एक पंख से उड़ा नहीं जा सकता। किसी रथ का एक पहिया हो तो रथ चल नहीं सकता। ऐसे ही ज्ञान के बिना कर्म नहीं हो सकता और कर्म के बिना व्यक्ति ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकता। ज्ञान और कर्म के बिना व्यक्ति एक क्षण भी नहीं रह सकता है ‘न हि कश्चित् क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।’ कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिये भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। प्रकृति ने हमें बनाया ही ऐसा है कि हम हर समय कर्मशील रहें कर्म के बिना कहीं ठहरा नहीं जा सकता। कर्म हमारे स्वभाव में उतर आए और गुरु से ज्ञान प्राप्त कर हम भक्ति के मार्ग पर चलते हुए ईश्वर की प्राप्ति कर लें तो समझना चाहिये जीवन सार्थक हो गया।व्यक्ति कितना भी खाली बैठे तो भी वह खाली नहीं बैठ सकता। कुछ-न-कुछ जरूर करेगा। बच्चों के अन्दर आप देखते हैं-उनका रोम-रोम कर्म से जुड़ा हुआ होता है, वे कहीं चैन से नहीं बैठ सकते-वे हिलेंगे, डुलेंगे, चलेंगे। अगर व्यक्ति चुपाचाप बैठा रहे तो मन चलता रहेगा और मन भी न जाने कहां तक लेकर जाता है। एक क्षण भी हम खाली नहीं बैठ सकते।

कर्म तो जीवन के साथ है। रुकना नहीं है, चलते रहना है। तैत्तिरेय ब्राह्मण का उपदेश हैµ‘‘चरन् वै मधु विन्दते’’ जो चला है, उसी ने जीवन का माधुर्य प्राप्त किया है। ‘‘चरन् स्वादुमुदम्बरम्’’ चलने वालों ने ही जीवन का मीठा, स्वादिष्ठ फल पाया है। सूर्य गतिमान है। संसार को प्रकाशित करता है। चन्द्रमा की शीतलता से संसार रसपूर्ण है। यहां सूर्य गतिशीलता कर्म और प्रकाश का प्रतीक है वहीं चन्द्रमा मन का परिचायक है जो हमेशा घटता-बढ़ता रहता है लेकिन सदा चलायमान है। सतत् प्रकाशित एवं रसपूर्ण होने के लिये चरैवेति-चरैवेति सूत्र को जीवन में उतरना होगा। चलते रहो, कर्म करते रहो, रुको नहीं।

प्रकृति का नियम है कि हर कोई गतिमान है। चीटियों को देखिए। छोटी-सी चींटी अन्धेरे में भी दौड़ी जा रही है। अचानक आप लाईट जलाते हैं देखकर आश्चर्य होता है कि अन्धेरे में भी चींटियां दौड़ी जा रही हैं। रात काफी हो चुकी है, पर उन्हें सोने नहीं जाना। शरीर से ज्यादा सामान उठाकर जा रही होती हैं। उनका ‘वन-वे टैªफिक’ चलता है। एक तरफ जाने का रास्ता है तो दूसरी तरफ आने की व्यवस्था कर रखी है। कहीं दोनों तरफ का मार्ग ‘टू वे टैªफिक’ भी चलता है। चीटियां बहुत तेजी से भागे जा रही हैं। लेकिन एक्सीडेंट बिल्कुल नहीं होता। बीच-बीच में प्रहरी खड़े हुए हैं, वे व्यवस्था देख रहे हैं। जो निरीक्षण कर रहे हैं, वे देख रहे हैं कि व्यक्ति के पास यदि सामान ज्यादा है तो दौड़कर जाएंगे उसका साथ देंगे। छोटे से जीवन को भी पता है कि कर्म करते रहना है खाली नहीं बैठना है वस्तुतः जीवन गति का नाम है

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रपि च ते न प्रसिद्धड्ढेदकर्मणः।।

शरीर की यात्र तभी ठीक रहती है, जब कर्म से जुड़े रहते हैं। यदि कर्म से विमुक्त हो गए तो जीवनयात्र ठीक से चलने वाली नहीं है।
कर्म नियत एवं मर्यादित होकर करना। कर्मों में कभी मत उलझो। कर्म से कर्म को काटना, कर्म से कर्म के बंधन में नहीं आना। पांव में लगे कांटे को कांटे से निकालिये। फिर दोनों ही कांटों को उठाकर फेंक दीजिये। कर्म से कर्म को काटते चले जाएं, बन्धनों को तोड़ते चले जाएं और परमात्मा की ओर अपने कदम बढ़ते जाएं, यही भगवान श्रीकृष्ण का मानव जीवन के लिये सन्देश है और यही प्रभु भक्ति है। कर्म ही पूजा है।

कर्म की भी परीक्षा होती है। यदि थोड़ा-सा कर्म करके बैठ जाएं तो बात बनने वाली नहीं है। जैसे यज्ञों का अपना विधान है। कौन से यज्ञ में कितनी आहुति देनी है, उसका विधान हैं। ऐसे ही प्रत्येक कर्म का भी एक संविधान है। कर्म एक यज्ञ है, उसमें कितनी आहुति देनी पड़ेगी, कितने पसीने की बूंदे डालनी पड़ेंगी, कितनी मेहनत करनी पड़ेगी। यह निश्चय अवश्य करें। उतनी देर तक थके नहीं, हारे नहीं और घबराएं नहीं। अपना कर्म ज्ञानपूर्वक करते जाएं। इस तरह कर्म में कुशलता आने से दुर्भाग्य दूर हटकर सौभाग्य सामने आ जाता है।
इस संसार में सफलता उन्हीं को मिलती है। जो निष्ठापूर्वक कर्मों को सम्पन्न करता है और उसके सभी कर्म बिना फल की इच्छा से प्रभु को समर्पित होते हैं। ऐसा समर्पण ही भक्ति का रूप लेता है और फिर व्यक्ति का परमात्म भक्ति में खोये हुये विशुद्ध मन में ही सभी तीर्थों का वास हो जाता है।

शरदपूर्णिमा पर यज्ञ से होती है धन-समृद्धि और आरोग्यता की अमृत वर्षा

 

Sharad Purnima

शरदपूर्णिमा पर यज्ञ से होती है धन-समृद्धि और आरोग्यता की अमृत वर्षा

शरद ऋतु में आकाश के बादल वर्षा काल के बढ़े हुए जीव, पृथ्वी के कीचड़ और जल के मटमैलेपन को नष्ट कर देती है। जैसे ईश्वर की भक्ति ब्रह्मचारी गृहस्थ वानप्रस्थ और संन्यासियों के सब प्रकार के कष्टों और अशुभता को नष्ट कर देती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी जी शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र से उत्पन्न हुई थी। लक्ष्मी के आराधकजन पूर्णिमा की रात को रात भर जागकर चन्द्र देव का दर्शन करते हैं और लक्ष्मी माता की उपासना करते हैं। इस कारण शरदपूर्णिमा को कोजागरी के नाम से भी जाना जाता है।

इस रात चंद्रमा से अमृत वर्षा होती है। पूर्णिमा को व्रत रखकर कई देवी-देवताओं के पूजन का विधान है। शरद पूर्णिमा के दिन और रात का विशेष महत्व है। पूर्णिमा का दिवस जहां ईश्वर का आशीर्वाद प्रदान करता है तो वहीं पूर्णिमा की रात निरोगी काया का उपहार देती है।
ऐसी मान्यता है कि इस रात चन्द्रमा अपनी पूरी 16 कलाओं का प्रदर्शन करते हुए दिखाई देता है। मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को माता लक्ष्मी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर आती हैं और जो भी साधक उपासक उनकी पूजा, उपासना, यज्ञ-अनुष्ठान कर रहा होता है उसे धन-समृद्धि, प्रेम-प्रसन्नता आरोग्यता का वरदान देती है।

अतः इस पावन अवसर पर हर किसी को शुभ कर्म अवश्य करना चाहिए। सद्गुरु श्री
सुधांशु जी महाराज भक्तों के कल्याणर्थ प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा के अवसर पर आनंदधाम आश्रम में 108 कुण्डीय यज्ञ का आयोजन करवाते हैं। इस वर्ष 26 अक्टूबर से 5 नवम्बर तक 11 दिवसीय श्री गणेश लक्ष्मी और यजुर्वेद महायज्ञ किया जा रहा है। 31 अक्टूबर शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर मां महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए विशेष अनुष्ठानिक प्रयोग किए जा रहे हैं।
ऐसे शुभ अवसर पर हर किसी को इस यज्ञ में सहभागी बनना चाहिए। शरदपूर्णिमा के अवसर पर महायज्ञ में ऑनलाइन यजमान बनने के

संपर्क करें:- +91 8826891955, 7291986653, 9599695505, 9312284390, 9560792792

 

रोग-व्याधि नाशक और सुख-समृद्धिवर्धक है श्रीगणेश लक्ष्मी एवं यजुर्वेद महायज्ञ

Shree Ganesh Lakshmi and Yajurveda Mahayagya.

रोग-व्याधि नाशक और सुख-समृद्धिवर्धक है श्रीगणेश लक्ष्मी एवं यजुर्वेद महायज्ञ

प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों द्वारा आरोग्यता प्राप्ति एवं रोग-महामारी निवारण के लिए ‘भैषज’ यज्ञ किये जाते थे और लोग उनसे लाभ प्राप्त करते थे। ये यज्ञ ऋतुओं के संधिकाल में होते थे, क्योंकि इसी समय पर रोग-व्याधियों का ज्यादा प्रकोप होता था। इन यज्ञों की विशेषता होती थी कि इनमें आहुति दी गई हवन सामग्री वातावरण में फैलकर न केवल शारीरिक व्याधियां दूर करती थी अपितु इनके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक बीमारियों से भी छुटकारा पा लेता था। यज्ञीय वातावरण से व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व विकास में अपूर्व सहायता मिलती थी।
लेकिन इसे विडम्बना ही कहना चाहिए कि वर्तमान समय की समस्त चिकित्सा पद्धतियां सिर्फ शारीरिक रोगों तक ही अपने आपको सीमित किए हुए हैं, जबकि मानसिक उपचार की आवश्यकता शारीरिक उपचार से भी कहीं अधिक है। वर्तमान में मानसिक रोगों की भरमार शारीरिक व्याधियों से कहीं अधिक है। यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण न होगा कि वर्तमान में 90 प्रतिशत व्यक्तियों को तनाव, अवसाद, अनिद्रा, चिंता, अविश, क्रोध, उत्तेजना, मिर्गी, उन्माद, सनक, निराशा, उदासीनता, आशंका, अविश्वास, भय आदि में से किसी न किसी मनोव्याधि से ग्रसित देखा जाता है।
यज्ञ अग्नि में हवन की हुई औषधीय सामग्री को सुवासित ऊर्जा शारीरिक रोगों के साथ विकृत मस्तिष्क अैर उत्तेजित मन को ठीक कर सकती है। इसका प्रमुख कारण है कि यज्ञ में होमी गयी सुगंधित औषधियों से जो ऊर्जा निकलती है, वह हल्की होने के कारण ऊपर उठती है और जब यह नासिका द्वारा अंदर खींची जाती है तो सर्वप्रथम मस्तिष्क, तदुपरांत फेफड़ों में, फिर सारे शरीर में फैलती है। उसके साथ औषधियों के जो अत्यन्त उपयेागी सुगंधित सूक्ष्म अंश होते हैं, वे मस्तिष्क के उन क्षेत्रों तक आ पहुंचते हैं, जहां अन्य उपायों से उस संस्थान का स्पर्श तक नहीं किया जा सकता। अर्थात् अचेतन मन की बाहरी परतों तक यज्ञीय ऊर्जा की पहुंच होती है और वहां जड़ जमाए हुए मनोविकारों को निकालने में यज्ञ से सफलता मिलती है।
सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज द्वारा संचालित आनन्दधाम आश्रम में नित्य यज्ञ होता है और ट्टतुओं के संधिकाल अर्थात् अब गर्मी जा रही होती है और सर्दी का शुभागमन हो रहा होता है। मतलब नवरात्रि के बाद और दीपावली से पहले आनन्दधाम आश्रम में पिछले 20 वर्षों से 108 कुण्डीय श्री गणेश लक्ष्मी महायज्ञ का विराट आयोजन होता है। इस वर्ष 11 दिवसीय श्रीगणेश लक्ष्मी एवं यजुर्वेद महायज्ञ का पावन आयोजन 26 अक्टूबर से चल रहा है। जिसकी पूर्णाहुति 5 नवम्बर में होगी।
यह महायज्ञ महापुण्य फल देने वाला है। रोग महामारी को दूर कर यजमान भक्तों को धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि से भरने वाला है। यज्ञ में सम्मिलित होने की हर व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए। चाहे एक ही दिन यज्ञ का सुअवसर मिले पर महायज्ञ में आहुति जरूर प्रदान करें। वैसे तो यज्ञ के हर एक दिन का अपना महत्व है, लेकिन 31 अक्टूबर को आने वाली शरदपूर्णिमा के पावन पर्व के सम्बन्ध में कहना ही क्या। अमृतवर्षा की पूर्णिका है शरद पूनम। बड़े भाग्यशाली लोगों को ऐसे अवसर पर महायज्ञ में यहमान बनकर सद्गुरु के श्रीमुख से यज्ञामृत का प्रसाद मिलता है। तो फिर देरी न करें महायज्ञ में यजमान बनें हैं तो अच्छी बात है अन्यथा जल्द से जल्द ऑनलाइन पंजीकरण करवाकर यज्ञ में सहभागी बनने का सौभाग्य प्राप्त करें।

धन-समृद्धि एवं सुबुद्धि के लिए यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ

धन-समृद्धि एवं सुबुद्धि के लिए यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ

धन-समृद्धि एवं सुबुद्धि के लिए यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ

मनुष्य के शरीर में जो महत्व उसकी रीढ़ की हड्डी का है यही महत्व हमारी संस्कृति में यज्ञ का है। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखा रही है। कोविड-19 जैसी जानलेवा महामारी से पूरे विश्व में त्रहि-त्रहि मची है। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का शत्रु बनने को आतुर है। मानव मन एवं बुद्धि भ्रमित है। अशांति, व्याकुलता, मुसीबतें और परेशानियां मुंह फैलाकर मानवीय सुखों को ग्रसने के लिए मौका तलाश रही हैं, ऐसी विषम परिस्थिति में यज्ञ करना बहुत जरूरी है। यज्ञ से जहां वातावरण शुद्ध होने से रोग महामारियां दूर होती हैं वहीं यज्ञ हवियों से प्रसन्न होकर देवगण यज्ञकर्ता यजमान को धन, समृद्धि, सुख-ऐश्वर्य से समृद्ध बनाते हैं।
यजुर्वेद में यज्ञ अग्नि की परमेश्वर के रूप में प्रार्थना की गई है। वेद में अग्निदेव से प्रार्थना करते हुए कहा गया है कि हे अग्निदेव! आप हमें कल्याण के मार्ग पर ले चलो, हमेशा जागरूक होकर हमारी रक्षा करो।
अग्नि का पूजन कर यज्ञ करने वाले स्वर्ग के प्रतिनिधि होते हैं, वे स्वयं सुख-शांति, समृद्धि से युक्त जीवन जीते हैं तथा दूसरों के लिए भी सुखमय वातावण का निर्माण करते हैं। जब कोई इंसान अपनी कमाई को पुण्यकार्यों में लगाता है यज्ञकर्ता यजमान बनता है, उसका धन यज्ञीय कार्यों में लगता है तो उसका जीवन हमेशा कल्याण के पथ पर बढ़ता चला जाता है।
यज्ञ में जहां धन-समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी का पूजन आवाहन करना चाहिए वहीं लक्ष्मी माता के साथ बुद्धि बल प्रदाता भगवान गणपति जी का श्रद्धापूर्वक अर्चन करना चाहिए। ऐसा करने से धन-समृद्धि के साथ सुबुद्धि भी आती है। क्योंकि केवल धन मिल जाये और बुद्धि न मिले तो व्यक्ति का धन का दुरुपयोग करता है। जब धन के साथ बुद्धि भी आ जाती है तो वह धन धन्य हो जाता है।
अतः शुभ-लाभ अर्जन के लिये, सुख समृद्धि की वृद्धि के लिए अपने परिवार के स्वस्थ्य सुखमय जीवन के लिये, बच्चों की उत्तम शिक्षा व उज्जवल भविष्य के लिए यज्ञ में यजमान जरूर बनें।
कोरोना के इस विषम काल में पूज्य सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज घर बैठे महायज्ञ में ऑनलाइन यजमान बनकर यज्ञ का पुण्यफल प्राप्त करने का सुअवसर दे रहे हैं। आप आनन्दधाम आश्रम दिल्ली में 26 अक्टूबर से 5 नवम्बर, 2020 तक आयोजित 108 कुण्डीय यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ में ऑनलाइन यजमान बनकर पुण्य प्राप्त करें।

सम्पर्क करें:- +91 8826891955, 7291986653, 9599695505, 9312284390, 9560792792
Online Booking:- https://www.vishwajagritimission.org/shri-ganesh-lakshmi…/

पुरुषोत्तम मास में पूजा, यज्ञ, दानपुण्य का अनन्त फल |

पुरुषोत्तम मास में पूजा, यज्ञ, दानपुण्य का अनन्त फल

पुरुषोत्तम मास में पूजा, यज्ञ, दानपुण्य का अनन्त फल

धर्मशास्त्रें के अनुसार मलमास में सूर्य संक्रांति न पड़ने और इस मास न कोई विशिष्ट नाम और स्वामी होने से यह अधिकमास देव, पितर पूजा, मंगल कृत्यों के लिए अनुपयोगी कहा जाने लगा तब मलमास दुखित होकर श्री विष्णु लोक बैकुंठधाम में गया। वहां मणि जड़ित सिंहासन पर विराजमान श्री विष्णु जी को दण्डवत प्रणाम कर अपना दुःख निवेदित करने लगा।
मलमास को दुखित देखकर भगवान करुणानिधान द्रवित हो गए। भगवान ने कहा मेरे इस लोक में तो काई दुखित नहीं है, परंतु तुम परेशान क्यों हो? मलमास ने कहा प्रभो! न तो मेरा कोई नाम है, न कोई मेरा स्वामी, न कोई आश्रय, निराश्रय हूं मैं, अनाथ हूं मैं। इसलिए भगवन सब मेरा तिरस्कार करते हैं।
ऐसा सुनकर दीनबन्धु कृपानिधान श्री विष्णु भगवान बोलेµवत्सागच्छमया सार्धंगोलोकं योगि दुर्लभम्। यत्रस्ते भगवान् कृष्णः पुरुषोत्तम ईश्वरः।। मलमास तुम मेरे साथ गोलोक धाम चलो वहां भगवान श्री कृष्ण रहते हैं। उस दिव्य लोक में बुढ़ापा, मृत्यु, शोक, भय, रोग, महामारी किंचित किसी को भी नहीं है।
भगवान श्री विष्णु ने मलमास को गोलोक धाम में ले जाकर प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक कराया। भगवान श्रीकृष्ण बोले हे श्री विष्णु जी! आप इसे साथ लेकर आए हैं, अब मैं इसे अपने समान करता हूंµअहमेते यथा लोके प्रथितः पुरुषोत्तमः। तथायमपि लोकेषु प्रथितः पुरुषोत्तमः।। अर्थात् जितने गुण मुझमें हैं, जिनसे मैं विश्व में पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूं। उसी प्रकार मलमास भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध होगा। मैं स्वयं इस मास का स्वामी हो गया हूं। इस मास में किए जाने वाले व्रत, उपवास, पूजा, यज्ञ, दानपुण्य सभी पुण्य कर्म इसमें अनन्त फल देने वाले होंगे।
विश्व जागृति मिशन द्वारा आनन्दधाम आश्रम, नई दिल्ली में पुरुषोत्तम मास में आयोजित पूजा, यज्ञ, जप, भागवत कथा, आरती में ऑनलाइन यजमान बनकर आप पुरुषोत्तम मास का अनन्त पुण्य फल प्राप्त करें। साथ ही जैसे निराश्रय अनाथ मलमास को अपनाकर भगवान श्रीकृष्ण ने उसे सर्वश्रेष्ठ बना दिया। वैसे ही मिशन द्वारा संचालित देवदूत बालकल्याण योजना में दान-सहयोग कर गरीब, अनाथ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, पालन-पोषण में सहभागी बनें। भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण आपकी हर शुभ मनोकामना पूरी करेंगे।

कैसे पाएं नारायण की विशेष कृपा और लक्ष्मी का स्थिर वास

How to get Narayana's special grace and Lakshmi's abode

पुरुषोत्तम मास की पूजा से भक्तों के जीवन में नारायण की विशेष कृपा और लक्ष्मी का स्थिर वास

श्रीमद्भागवत पुराण हमारे अठारह पुराणों में से एक सर्वश्रेष्ठ पुराण है। यह ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का महान ग्रन्थ है। यह पावन पुराण हजारों वर्षों से हमारे समाज की धार्मिक, सामाजिक और लौकिक मर्यादाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस पुराण में वेद, उपनिषद् तथा दर्शन शास्त्र के गूढ़ एवं रहस्यमय तवषयों को अत्यन्त सरलता के साथ बताया गया है।
भागवत पुराण में पुरुषों में उत्तम अवतार अर्थात् पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की लीला-कथा का वर्णन है। भागवत भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात् वाणी स्वरूप ग्रंथ है। भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि जहां भगावन की पावन भागवत कथा होती है और जहां भागवत पुराण स्थापित होता है मैं स्वयं वास करता हूँ। भागवत कथा के साथ मैं इस तरह से रहता हूँ, अपने नवजात बच्चे को चाहने वाली गाय अपने बछड़े से पल भर के लिए भी दूर नहीं रहना चाहती। इसलिए कहना चाहिए जहाँ-जहाँ भागवत कथा वहाँ-वहाँ भगवान श्रीकृष्ण।
भागवत कथा पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन-समृद्धि चाहने वाले को धन-समृद्धि, स्वास्थ्य सुख की कामना करने वाले को उत्तम स्वास्थ्य, भक्ति-मुक्ति की कामना करने वाले को ईश्वर के चरणों में अनुराग और मोक्ष प्रदाता है। सबसे बड़ी बात कि भागवत श्रवण अशांत मन को शांति प्रदान करती है।
जैसे भगवान श्रीकृष्ण का वाणी का स्वरूप है ‘भागवत पुराण’ उसी तरह से ‘पुरुषोत्तम मास’ भगवान का दूसरा रूप है। पुरुषोत्तम मास की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने इसे अपना रूप और नाम दिया और उन्होंने कहा इस अधिक मास का स्वामी मैं स्वयं हूँ। पुरुषोत्तम मास अब मेरी ही तरह जगत् में पूजनीय होगा और इस मास में पूजा-पाठ-यज्ञ-अनुष्ठान, कथा श्रवण से भक्तों के दुःख-दारिद्र्य का नाश होगा। इस मास में किए जाने वाले हर पुण्य कार्य अनंत गुना फल देने वाले होंगे।
इस अधिक मास के व्रत, पूजन, दान से एक ओर जहां भगवान नारायण प्रसन्न होते हैं वहीं नारायण की प्रिय लक्ष्मी अपने प्रिय प्रभु के पूजन से प्रसन्न होकर भक्त के जीवन में स्थायी रूप से वास करती हैं। इस पावन महीने में भगवान लक्ष्मी नारायण, श्री राधाकृष्ण के मंदिरों में उनके श्रीविग्रह का दर्शन-पूजन अतयंत फलदायी है। लेकिन कोरोना के इस विषम काल में मंदिरों में जाकर भगवान जी का दर्शन पूजन कर पाना हर किसी भक्त के लिए सम्भव नहीं हो पायेगा।
कोरोना की विषम परिस्थिति का ध्यान रखते हुए परम दयालु गुरुदेव पूज्य श्री सुधांशु जी
महाराज ने भक्तों के लिए घर बैठे पुरुषोत्तम मास की पूजा-पाठ, देव-दर्शन, यज्ञ-अनुष्ठान करवाने एवं पवित्र भागवत कथा आदि सुनने की ऑनलाइन व्यवस्था करवाई है। आप अपने घर से ही गुरुतीर्थ आनन्दधाम में विराजमान देवी-देवताओं के दर्शन और पूजन का पुण्य लाभ ले सकते हैं।
आप ऑनलाइन यजमान बनकर विष्णु सहड्डनाम पाठ, पुरुषोत्तम यज्ञ, रामचरित मानस पाठ, सुंदरकाण्ड पाठ, श्रीसूक्त पाठ, गजेन्द्र मोक्ष पाठ, रामरक्षा स्तोत्र पाठ, नारायण अथर्वशीर्ष पाठ, नारायण कवच, पुरुषोत्तम मास कथा, भागवत कथा, पुरुषसूक्त पाठ, मंत्र जप, यज्ञ आदि करवा सकते हैं।
पावन पुरुषोत्तम (अधिक मास) मास में पूजा-पाठ, जप, यज्ञ-अनुष्ठान करवाकर भगवान नारायण और मां महालक्ष्मी की अनंत-अनंत कृपा व पुण्य फल प्राप्ति के लिए विश्व जागृति मिशन के युगट्टषि पूजा एवं अनुष्ठान केन्द्र में सम्पर्क करें।
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आध्यात्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी अति लाभकारी है यज्ञ

आध्यात्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी अति लाभकारी है यज्ञ
आइए! ऑनलाइन यजमान बनें आनन्दधाम के यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ में विश्व कल्याण की भावना से ओतप्रोत वैदिक संस्कृति के मूल आधार हैं ‘वेद’ और वेद ‘यज्ञमय’ हैं। जिस कर्म विशेष में देवता हवनीय द्रव्य, वेदमंत्र, ट्टत्विक और दक्षिणा इन पांचों का संयोग हो उसे यज्ञ कहते हैं।
हमारे देश की धार्मिकता और यज्ञ परम्परा समपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। हमारे देश की धार्मिकता और यज्ञीय परम्परा से संतुष्ट होकर देवगण सर्वदा यहीं निवास कते हैं। इसलिए हमारे देव भारतवर्ष को ‘देवभूमि’ कहा गया है।
जिस प्रकार श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितर तृप्त और संतुष्ट होते हैं, उसी प्रकार यज्ञ की अग्नि में हवनीय द्रव्य हवन करने से देवत तृप्त और संतुष्ट होते हैं। ‘देवतोद्देशेन अग्नौ हविर्द्रव्यत्यागो यागः’ के अनुसार देवी-देवताओं की प्रसन्नता के उद्देश्य से अग्नि में हविर्द्रव्य का जो त्याग किया जाता है, उसे यज्ञ कहते हैं।
गीता के अठारहवें अध्याय के पांचवे श्लोक में लिखा है कि यज्ञ, दान और तप ये तीनों मनुष्यों को पावन करते हैं, इसलिए हर एक व्यक्ति को अपने जीवन में इन चीजों को अवश्य अपनाना चाहिए।
यज्ञ से अनंत आध्यात्मिक और दैवीय लाभ तो हैं ही, यज्ञ के वैज्ञानिक सिद्धांतों पर भी अनेकानेक लाभ हैं। यज्ञ पर हुए कई वैज्ञानिक शोधों और अनुसंधानों से पता चला है कि यज्ञ से उठने वाले धुएं से वायु में मौजूद 94» हानिकारक जीवाणु-विषाणु नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इसके धुएं से वातावरण शुद्ध होता है और बीमारियों के फैलने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है।
शोध से पता चलता है कि यज्ञ का धुंआ वातावरण में 30 दिन तक बना रहता है और उस समय तक जहरीले कीटाणु नहीं पनप पाते। यज्ञ धूम्र से न केवल मनुष्य के स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ता है अपितु यह खेती में भी काफी लाभकारी सिद्ध हुआ है। खेतों में मौजूद फसल के लिए हानिकारक कीटाणु भी यज्ञ धूम्र से नष्ट हो जाते हैं। शोध यह भी कहता है कि मनुष्य को दी जाने वाली दवाओं की तुलना में यज्ञ का औषधियुक्त धुआं काफी लाभदायक है। यज्ञ के धुएं से शरीर में पनप रहे रोग खत्म हो जाते हैं, जबकि दवाएं रोग-बीमारियों को दबा तो जरूर देती हैं लेकिन इनके कुछ-न-कुछ दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) भी जरूर रह जाते हैं।
वैज्ञानिक शोध से यह भी सिद्ध हुआ है कि यज्ञ में हवनीय पदार्थ के मिश्रण से एक विशेष तरह का गुण तैयार होता है, जो हवन होने पर वायुमंडल में एक विशिष्ट प्रभाव पैदा करता है। वेद मंत्रें के उच्चारण की शक्ति से उस प्रभाव में और अधिक वृद्धि होती है।
वैज्ञानिक अभी तक कृत्रिम वर्षा कराने में सफल नहीं हो पाये लेकिन यह देख गया है कि यज्ञ द्वारा वर्षा हुई है। कई लोग वर्षा कराने के लिए यज्ञ का सहारा लेते हैं और जहां यज्ञ होता है वहां के आसपास के खेतों में अच्छी फसल भी होती है। प्रचुर अन्न उपजता है।
यज्ञीय प्रभाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है आनन्दधाम आश्रम के आसपास के खेतों की हरियाली जहां आज से 20 वर्ष पूर्व बहुत कम फसलें होती थी। वहां आज हरी-भरी नर्सरियां हैं, खेतों में बहुतायत में अन्न उपजता है। आसपास के गावों के लोग बताते हैं कि पहले यहां कुछ भी नहीं बोया जाता था। जंगल जैसा स्थान था लेकिन जब से गुरुवर सुधांशु जी महाराज ने यहां आश्रम बनाकर यज्ञ करवाना शुरू किया तब से यहां के क्षेत्र में हरियाली ही हरियाली है। बीते काफी समय से आश्रम में सेवारत सेवादारों और कर्मचारियों ने भी यह प्रत्यक्ष तौर पर देखा है।
आनन्दधाम आश्रम में विगत 20 वर्षों  से होता आ रहा यज्ञ इस वर्ष अति विशेष है। हर वर्ष जहां श्रीगणेश लक्ष्मी यज्ञ का पंचदिवसीय आयोजन किया जाता था वहीं इस वर्ष यजुर्वेद यज्ञ के साथ श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ का 11 दिवसीय आयोजन किया जा रहा है। यह 108 कुण्डीय महायज्ञ 26 अक्टूबर से 5 नवम्बर तक आयोजित किया जायेगा।
महायज्ञ में 26 से 30 अक्टूबर पांच दिन तक यजुर्वेद के मंत्रें से विशेष आहुतियां दी जाएंगी और प्रतिदिन श्रीगणेश लक्ष्मी के दिव्य अर्चन एवं कुछ आहुतियां भी दी जाएंगी। 31 अक्टूबर से 5 नवम्बर, 2020 मे छः दिन श्रीगणेश-लक्ष्मी के महामंत्रें से विशेष आहुतियां दी जाएंगी और प्रतिदिन कुछ आहुतियां यजुर्वेद के मंत्रें से भी दी जाएंगी।
महाराज श्री के सान्निध्य में वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला यह यजुर्वेद एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ भक्तों के लिए स्वास्थ्य-सुख, धन-समृद्धि, नौकरी-व्यापार में उन्नति-प्रगति के साथ हर शुभ मनोकामना पूर्ण करने वाला है। इसलिए हर व्यक्ति को इस यज्ञ में यजमान बनकर यज्ञ का लाभ लेना चाहिए। भक्तजन घर बैठे ऑनलाइन यजमान बनकर यज्ञ का पुण्यफल प्राप्त करें।
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