मन को शान्त करते हुए प्रभु की कृपा को हृदय में आमंत्रित कीजिए! | Prayer | Sudhanshu Ji Maharaj

मन को शान्त करते हुए प्रभु की कृपा को हृदय में आमंत्रित कीजिए!

मन को शान्त करते हुए प्रभु की कृपा को हृदय में आमंत्रित कीजिए!

हाथ जोड़ लीजिए और आँखें बंद कर लें, माथे को शान्त कीजिए, आंखों पर कोई भी दबाव नई पड़ने दें, जैसे बच्चे की आंखें बहुत प्रेम और कोमलता से बंद होती हैं,  कोमलता से पलकों को बन्द करें, माथा ढीला छोड़ें, शान्त होकर हृदय में परमेश्वर को आमंत्रित कीजिए, प्रभु की कृपा को हृदय में आमंत्रित कीजिए, मन को शान्त करते हुए अपने मानसिक रूप से प्रभु को मन ही मन प्रणाम करें, प्रभु की कृपाओं को ध्यान में रखकर उसको धन्यवाद दीजिए कि आपके आशीर्वाद से जीवन के संघर्षों के बीच में सफल होता जाता हूं, मुसीबतों से निकलता जाता हूं, बीमारियों को जीतता जाता हूं, अपने घर को संभालता रहता हूं, ये आपकी कृपा है प्रभु।

मन ही मन गुरु को प्रणाम करते हुए कृपाओं के लिए धन्यवाद दीजिए

गुरुदेव का मन में ध्यान कीजिए कि जिनके आशीर्वाद से अब तक एक रक्षाकवच आप पर बना हुआ है, आपके घर पर बना हुआ है, गुरुदेव का रक्षाकवच आपकी आमदनी पर, आर्थिक संपन्नता पर बना हुआ है कि जैसे कैसे भी करके आपके काम पूरे हो जाते हैं, गुरुदेव की कृपा को स्मरण कीजिए, समस्याओं से, उलझनों से, चिंताओं से, दु:ख से निकलने के लिए (ओ या वो देख लीजिएगा) कृपा आपको बचाती रहती है, गिरने से, धोखा खाने से, चोट खाने से, मन ही मन गुरु को प्रणाम करते हुए कृपाओं के लिए धन्यवाद दीजिए, अपने पितरों को स्मरण कीजिए, जिनके आशीर्वाद आपको निरन्तर मिलते रहे हैं,

नाम जपें, ब्रह्मवेला का, अमृतवेला का लाभ लें

जिनके कारण आपकी वंश परम्परा है, जिन पितरों ने त्याग, तपस्या, बलिदान,  करते हुए आपकी वंशवेल को सुरक्षित रखा, अनेक उतार-चढ़ाव देखे, उनका मन ही मन प्रणाम कीजिए, आशीर्वाद बना रहे आप पर, उनसे आशीष मांगिए, दयानिधान, कृपानिधान परमात्मा को प्रणाम करते हुए आशीर्वाद मांगिए नाम जपने का, सेवा करने का, नाम सेवा करें, नाम जपें, ब्रह्मवेला का, अमृतवेला का लाभ ले सकें, बुद्धि सुबुद्धि रह सके, मन पवित्र रह सके, हाथ पवित्र हों,

परमात्मा का दिया हुआ परमात्मा के नाम पर सर्वप्रथम लगाएं, परमात्मा का दिया हुआ समय परमात्मा की राह में लगाने में संकोच न करें, बहाने न बनाएं, आशीर्वाद मांगिए, भगवान से प्रार्थना कीजिए कि मेरा हृदय ईर्ष्या, द्वेष, वैर, विरोध से जले नहीं, इसमें प्रभु आपका प्रेम बसे, मैं प्रभु आपका वफादार बनकर, नियम का भी वफादार बन जाऊं, नियम तोड़ने वाला न बनूं, गुरु का वफादार बनूं, गुरु के प्रति बेवफाई न करूं!

प्रभु हमारे घर में सज्जन लोगों का वास हो

आशीर्वाद मांगिए कि हमारा घर सज्जन लोगों का वास घर में हों, दुर्जन न आएं, दुर्जन घर में आ जाए तो घर के सारे सुख-शान्ति को नष्ट कर देता है, घरों को तोड़ देता है, कमाई पवित्र बनी रहे, आचरण पवित्र बना रहे, संगति पवित्र बनी रहे प्रभु, हमें आशीर्वाद दीजिए, अपने मन को, अपनी बुद्धि को, अपनी आत्मा को, हृदय को पवित्र करने का जो अवसर सत्संग में मिला है, प्रभु आपकी कृपा है जो हमें यह अवसर मिला, हम पर प्रभु की कृपा बनी रहे, सत्संग सुनने वाले बन जाएं, ज्ञान को धारण करने वाले बन जाएं , जीवन धन्य हो जाए, मेरे प्रभु हमारा प्रणाम स्वीकार करो, सिर झुकाकर प्रणाम कीजिए।

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॐ

प्रभु का धन्यवाद कीजिए, उनकी समस्त कृपाओं के प्रति आभार व्यक्त कीजिए।| Prayer | Sudhanshu Ji Maharaj

प्रभु का धन्यवाद कीजिए, उनकी समस्त कृपाओं के प्रति आभार व्यक्त कीजिए

हाथ जोड़ लीजिए! प्रेमपूर्वक आंखें बंद कर लें! और अपने हृदय में, अपने प्रभु का स्वरूप ध्यान में लेकर आइए! प्रभु का धन्यवाद कीजिए! मन-मन में उनका नाम स्मरण करें! और कहें कि भगवान सदा साथ निभाना। दुनिया के रिश्तों के मेले की भीतर हर कोई व्यक्ति अकेला ही है! सुख में भीड़ है और दुःख में हर कोई अकेला ही, बच्चा हो, उसे भी अपना दुःख का सामना खुद करना होता है! बूढ़ा हो! उसे भी अपने दुःख का सामना खुद करना, बीमार हो या कमज़ोर हो, निर्धन हो या बेसहारा, जब भी व्यक्ति को ज्यादा सहारे की जरूरत पड़ती है, तभी संसार के लोगों का सहारा नहीं मिलता।

दुःख में कोई साथ नहीं होता

निर्धनता में कोई धन नहीं देता! बेचारगी में कोई चारा नहीं बनता और दुःख में कोई साथ नहीं होता! और जब अपमान मिल रहा हो तो मान देने वाला कोई नहीं होता! जब कोई हमें नहीं समझ पा रहा हो तो केवल भगवान आप ही समझते हैं! आप ही सबका मान बनते हैं, आप ही सबकी शक्ति बनते हैं। आप ही वह आशा की किरण बनते हैं जो फिर से कहती है उठो!

आकाश में भी बादल आते हैं! और सूरज को भी ग्रहण लगता है, लेकिन ग्रहण सदा नहीं रहता, सूरत फिर चमकता है। फिर से व्यक्ति पहले से भी ज्यादा ऊंचे स्थान पर पहुंच जाता है। ये विश्वास, ये शक्ति आपसे मिलती है। फिर आप साधन बनाते हो, देने का ढंग आपका अद्भुत है, देते हो पर आपके हाथ नहीं दिखाई देते, दिया हुआ जरूर हमें मिलता है। किस बहाने से देते हो, किस तरह से देते हो। आकाश में कहीं पर भी आपका सागर या तालाब या दरिया नहीं है, पर बारिश तो आकाश से ही होती है।

चिड़िया का दाना सब जगह बिखेर कर रखा है

आपके भंडारे कहां हैं! भंडार गृह कहीं पर नहीं दिखाई देता! पर दुनिया में कोई भी नहीं ऐसा जिसको दाना, पानी, भोजन, जीवन न मिल रहा हो, देने वाले आप ही हो। चिड़िया का दाना सब जगह बिखेर कर रखा है, पर आप किसी के मुख पर जाकर नहीं डालते और किसी को कहते हैं कि जाओ उड़ो और अपना भोजन ढूंढो। छिपा के मैंने रख दिया है, थोड़ा पुरुषार्थ करो, थोड़ी बुद्धि लगाओ और फिर तुम खोज लो और प्राप्त करके खुश हो। हम भूल जाते हैं, देने वाले दाता के प्रति धन्यवाद करना।

प्रभु का धन्यवाद

प्रभु! का धन्यवाद कीजिए, उनकी समस्त कृपाओं के प्रति आभार व्यक्त कीजिए! साथ निभाने के लिए, रक्षा करने के लिए और सबसे बड़ा रिश्ता निभाने के लिए, अपने प्रभु को बारंबार धन्यवाद कीजिए और सभी रिश्तों में सबसे प्यारा और पवित्र रिश्ता, सुख-दुःख में साथ निभाने वाला रिश्ता, उलझनों को सुलझाने के लिए शक्ति और आशीर्वाद देने वाला रिश्ता। इस धरती पर परमात्मा का प्रतिनिधि बनकर जो सामने विराजमान होता है, वह “सद्गुरु” का रिश्ता है।

प्रार्थना को स्वीकार कीजिए

उनके प्रति हमारी श्रद्धा, निष्ठा, वफादारी सदा बनी रहे! और हम सब तरह से समर्पित होकर अपने सद्गुरु के प्रति अपने फर्ज निभा सकें! यह आशीर्वाद मांगिए भगवान से। परमात्मा आप सभी अपने बच्चों पर दया करना, आपके दरबार से जुड़े बैठे जितने भी लोग हैं, जो आश लगाकर आए हैं! उन पर कृपा करना। हे जगदंबा, जगजननी मां परमेश्वरी, करुणामयी सब पर कृपा करो, आशीष दो, सभी का कल्याण हो, प्रार्थना को स्वीकार कीजिए।

ॐ शान्ति शान्ति शान्ति ॐ

हे सर्वव्यापी परमेश्वरआपकी लीला अद्भुत है। | Prayer | Sudhanshu Ji Maharaj | Prarthana

हे सर्वव्यापी परमेश्वरआपकी लीला अद्भुत है।

दोनों हाथ जोड़ लीजिये! सभी और प्रेमपूर्वक अपनीआंखें बंद कर लें दयानिधान कृपानिधान, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त स्वभाव, हे अंतर्यामी , हे अजर, अमर! अब अनेक अनेक नामों से मनुष्य आपको पुकारता है।

हे सर्वव्यापी सत्ता! सब रूप आपके हैं, सब रिश्ते आपसे हैं! सब के भीतर बाहर आप ही हो। जड़ चेतन जगत को चलाने वाले आप हो, को चलाने वाले आप हो! प्रबंधन को व्यवस्थित करने वाले आप ही हो।

आप ही की दिव्य योजना से पूरा संसार चलता है! आपका ये कर्म विधान इस दुनिया में प्रत्येक जीव को बांधे हुए है! आपके लाने से ही दुनिया में लोग आते हैं, आपके बसाने से ही बसते हैं! और आपके  वापिस भेजने से जाना भी पड़ता है। सब छोड़ के जाना पड़ता है, सब रास रंग त्यागने पड़ते हैं।

परमेश्वरआपकी लीला अद्भुत है

महलों में सोने वाले को जाकर, मरघट में सोना पड़ता है! परमेश्वरआपकी लीला अद्भुत है! जितने श्वास लेकर, जितना जीवन लेकर। इस पृथ्वी ग्रह पर हम लोग जीवन जीने के लिए आए हैं और अपनी परीक्षा और अपना कर्म क्षेत्र में कर्म करने के लिए आए हैं।

हमारे अंग संग रहना, हमारी बुद्धि को शुद्ध रखना और प्रभु हमारे जीवन के रथ को हांकने वाले बन जाना, भटक न जाएं और कहीं अटक न जाएं, भीड़ में खो न जाएं, अपनी पहचान बना सकें और इस धरती के लिए कुछ कर सकें, अपने लिए कर सकें, अपनों के लिए कर सकें  और परमात्मा अपनों के भी अपने आप हो।

आप से मिले बिना इस दुनिया से न बिछड़े। हमें आशीष दीजिए, हमारा कल्याण हो। एक–एक स्वांस का मूल्य समझ कर, हम अपना कल्याण करें, यही विनती है। प्रभु स्वीकार करना।

ॐ शान्तिः शान्ति शान्तिः ॐ