स्ंसार में यज्ञ से आत्मा की शुद्धि, मनः की शुद्धि, स्वर्ग-सुख, बन्धनों से मुक्ति, पाप का प्रायश्चित होने के साथ-साथ अनेक ऋषि सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। यज्ञ से हमें आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। यज्ञ से हमारे मन में कुविचार या अनेक प्रकार की मानसिक परेशानियाँ होती हैं, वे दूर हो जाती हैं। यज्ञ करने से देवता प्रसन्न होते हैं और वे हमें धन, सौभाग्य, वैभव तथा सुख साधन प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा से यज्ञ करता है, उसको अभाव कभी छू भी नहीं सकते। यज्ञ करने वाले नर-नारी की सन्तान बुद्धिमान, सुन्दर, बलवान और दीर्धजीवी होती हैं।
यज्ञ को सभी की मनोकामना पूरी करने वाली ‘कामधेनु’ कहा जाता है। इसे स्वर्ग की सीढ़ी भी कहा जाता है। जहाँ पर यज्ञ लगातार किए जाते हैं वहाँ पर अमृतमयी वर्षा होती है। फलस्वरूप वनस्पति, अन्न, दूध, खाद्य सामग्रियों एवं खनिज पदार्थों की प्रचुर मात्रा में उत्पत्ति होती हैं, जिससे संसार के सभी प्राणियों का पालन होता है। यज्ञ करने से वातावरण सद्भावना पूर्ण बनता है। यज्ञ से आकाश में फैले हुए क्लेश, शोक, चिन्ता, कलह, ईष्र्या, अन्याय, लोभ, द्वेष व अत्याचार के भाव नष्ट होते हैं। यज्ञ करने से वायु में शुद्धता बढ़ती है। यज्ञ से शत्रु का दिल भी कोमल हो जाता है और वे मित्र बन जाते हैं। संसार के पापों का विनाश होता है, आत्मा रूपी मन्दिर में फैला मैल दूर होता है। संसार में फैले सभी दुष्कर्माें का नाश होता है। यज्ञ करने से मन, वाणी एवं बुद्धि की उन्नति होती है। यज्ञ से हमें पवित्र आचरण करने की शक्ति प्राप्त होती है। यज्ञ करने वाले नर-नारी को माया कभी नहीं सताती एवं उसकी आयु में वृद्धि होती है।
आजकल यज्ञ के अभाव में काफी कुछ गलत हो रहा है। एटम बम और हाइट्रोजन बमों से पृथ्वी को नष्ट करने की तैयारियाँ चल रही हैं। सूक्ष्म जगत में राक्षसी शक्तियों की तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। इन राक्षसी शक्तियों को नष्ट- भ्रष्ट करने के लिए देवशक्तियों को बलवान बनाने की अति आवश्यकता है। देवशक्तियों को बल देने का साधन है यज्ञ ही है। संसार में हम यदि शान्तिमय वातावरण की उत्पत्ति करना चाहते हैं तो हमें दैनिक यज्ञ करने चाहिए तथा आमजन को यज्ञीय भावों से जोड़े रखने के लिए बड़े-बड़े यज्ञ करने चाहिए।
सम्पूर्ण संसार आज काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, स्वार्थ, छल, कपट, ईष्र्या, द्वेष, राग, बैर, तृष्णा, असहनशीलता आदि के विचारों से गूँज रहा है। विज्ञान के अनुसार हम जो कुछ विचार रखते है या बोलते हैं, वे कभी नष्ट नहीं होते। वह सूक्ष्म होने के कारण मस्तिष्क से निकल कर आकाश के आभा मण्डल में ईश्वर तत्व में प्रवेश करके सारे विश्व में फैल जाते हैं। हमारे मुख से निकले दूषित विचार वातावरण को दूषित करते हें। इसलिए हमें अपने मस्तिष्क में बुरे विचार नहीं लाना चाहिए। आधुनिक समाज में फैले हुए दुर्गुणों, दुर्विचारों और दुःस्वाभावों को दूर करने के लिए आकाश व्यापी दूषित विचारों को नष्ट करने की आवश्यकता है, जिसका आसान और अमोघ साधन यज्ञ है। यज्ञ से हम कह सकते हैं कि हजारों और लाखों सतोगुण के प्रतीक सूक्ष्म सैनिक आकाश में फैलकर तमोगुण प्रतीक शत्रुओं का नाश करना आरम्भ कर देते हैं।
संसार में यज्ञ का हम जितना प्रचार करेंगे और जितने बड़े-बड़े यज्ञ करेंगे उतनी ही मात्रा मंे हमारे शत्रुओं का विनाश होता चला जाएगा। संसार मे यज्ञ से असुरी शक्तियों का विनाश करके सुख और शान्ति की स्थापना की जा सकती हैं। यज्ञ से उत्पन्न हुये शुद्ध और पवित्र सूक्ष्म वातावरण का प्रभाव हमारे सूक्ष्म विचारों पर पड़ता है और वह शुद्ध तथा पवित्र हो जाते हैं। यज्ञ में दूषित विचारधारा को बदलने की अपूर्व शक्ति होती है।
शरद पूर्णिमा का बड़ा महत्व है, इस दिन यज्ञ अवष्य करें:
शरद पूर्णिमा का अपना एक विशेष महत्व होता है। आश्विन माह की पूर्णिमा को ही शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। आश्विन माह की पूर्णिमा को श्रेष्ठ माना जाता है। इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसी दिन से शरद ऋतु का प्रारम्भ होता है। इस पूर्णिमा का सबसे बड़ा महत्व है इसलिए है कि इस दिन माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए सुख, सौभाग्य, आयु, आरोग्य और धन-सम्पदा की प्राप्ति के लिए इस पूर्णिमा पर माँ लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है।
देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम दिन है शरद पूर्णिमा। शरद पूर्णिमा पर चन्द्रमा भी अपनी पूर्ण सोलह कलाओं से भरपूर रहता है और यह कहा जाता है कि वह पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है। इसलिए भारत के अधिकतर राज्यों में इस दिन चन्द्रमा की चाँदनी में खीर बनाकर रखी जाती है और उसका सेवन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इससे कई प्रकार के रोग समाप्त होते हैं।
किसी-किसी इलाके में इस पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसी कहावत है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ महारास रचाया था। भगवान श्रीकृष्ण से प्रेरणा लेकर कई जगह इस दिन गरबा रास का आयोजन भी होता है।
शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी का व्रत भी किया जाता है। इस माता लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएँ। सबसे पहले इस खीर का प्रसाद घर के बुजुर्ग या बच्चों को दें फिर स्वयं ग्रहण करें। यदि इस अवसर पर आपकी सामथ्र्य है तो रात्रि जागरण करें। यह बड़ा पुण्यकारी है।
पूर्णिमा व्रत की एक बड़ी रोचक कथा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार किसी समय एक नगर में एक साहुकार रहता था। उसकी दो पुत्रियाँ थी। वे दोनों पूर्णिमा का उपवास रखती थी, लेकिन छोटी पुत्री हमेशा उस उपवास को अधूरा रखती और दूसरी पूरी श्रद्धा के साथ व्रत का पालन करती। कुछ समय बाद दोनों का विवाह हुआ। विवाह के बाद बड़ी पुत्री ने अत्यंत सुन्दर, स्वस्थ्य सन्तान को जन्म दिया, जबकि छोटी पुत्री को कोई सन्तान नहीं हो रही थी। वह काफी परेशान रहने लगी। उसके साथ-साथ उसके पति और परिजन भी परेशान रहते। उसी दौरान नगर में एक विद्धान ज्योतिषी आए। पति-पत्नी ने सोचा कि एक बार ज्योतिषी महाराज को कंुडली दिखाई जाए। यह विचार कर वे ज्योतिषी के पास पहुँचे। उन्होंने स्त्री की कुंडली देखकर बताया कि इसने पूर्णिमा के अधूरे व्रत किए हैं, इसलिए इसको पूर्ण सन्तान सुख नहीं मिल पा रहा है। तब ब्राहमणों ने उसे पूर्णिमा व्रत की विधि बताई व उपवास रखने का सुझाव दिया।
इस बार स्त्री ने विधिपूर्वक व्रत रखा। इस बार पुत्री के सन्तान ने जन्म लिया परन्तु वह सन्तान कुछ दिनों तक ही जीवित रही। उसने मृत शिशु को पीढ़े पर लिटाकर उस पर कपड़ा रख दिया और अपनी बहन को बैठने के लिए बुला लाई। उसने वही पीढ़ा उसे बैठने के लिए दे दिया। बड़ी बहन पीढ़े पर बैठने ही वाली थी कि उसके कपड़े को छूते ही बच्चे के रोने की आवाज आने लगी। उसकी बड़ी बहन को बहुत आश्चर्य हुआ और कहा कि तू अपनी ही सन्तान को मारने का दोष मुझ पर लगाना चाहती थी, अगर इसे कुछ हो जाता तो। तब छोटी ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था। आपके प्रताप से ही यह जीवित हुआ है। बस फिर क्या था, पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया। नगर में विधि-विधान से हर कोई यह उपवास रखे, इसकी राजकीय घोषणा करवाई गई। वह स्त्री भी अब पूर्ण श्रद्धा से यह व्रत रखने लगी और उसे बाद में अनेक स्वस्थ और सुन्दर सन्तानों की प्राप्ति हुई।
विश्व जागृति मिशन मुख्यालय आनन्दधाम मंे परम पूज्य गुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज की प्रेरणा एवं उनके दिव्य सानिध्य में चल रहे श्री गणेश-लक्ष्मी महायज्ञ का समापन इस बार ‘शरद पूर्णिमा’ को हो रहा है। यह बड़ा पुण्यकारी है। देशवासी इस सुअवसर का लाभ उठाएँ और श्री गणेश-लक्ष्मी महायज्ञ में भाग लेने के लिए आनन्दधाम पहुँचें।
हरि ॐ
अत्यंत ज्ञानवर्धक यह लेख है और यही युवाओं को आध्यात्म की तरफ ले आने का मार्ग भी प्रशस्त करता है
बहुत बहुत धन्यवाद