सद्गुरु साधक हैं युक्ति, भुक्ति और मुक्ति के | vishwa Jagriti Mission

सद्गुरु साधक हैं युक्ति, भुक्ति और मुक्ति केसद्गुरु साधक हैं युक्ति, भुक्ति और मुक्ति के। शब्द तीन हैं युक्ति, भुक्ति और मुक्ति, किन्तु इनमें मानव जीवन का उद्देश्य, संसार में जीवन और मोक्ष के रहस्य छिपे हुए हैं अर्थात् ये तीनों ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। यहां साधक से अभिप्राय साधना करने वाला नहीं है, अपितु इसका अर्थ है कि केवल सद्गुरु ही हैं ऐसे साधन जो हमें लोक में सुख से जीने और परलोक प्राप्त करने के तरीके बताते हैं। शिष्य का समूचा जीवन सिमट जाता है इन तीनों में। पहला ही शब्द हमारे इस जीवन के सभी पक्षों को अपने अन्दर समेटे हुए है, तीसरे शब्द मुक्ति के रहस्यों को भी गुरुदेव बतलाते ही हैं। मैं यहां जीवन के केवल संकट पक्ष की चर्चा करूंगा।
जीवन के संकट पक्ष से मेरा अभिप्राय है जब स्थितियां मनुष्य की समय और पकड़ से बाहर हो जायें, बुद्धि काम न करे, हर समय मस्तिष्क सोच में उलझन में कोई काम करे, तो जो सोचा, परिणाम उसके विपरीत, तब सब साथ छोड़ जाते हैं, घर वाले भी, जिन के लिये आप जीवन भर सब कुछ करते रहे, वे भी ताने देते हैं, सकपकाते हैं और व्यक्ति सब ओर से हारकर निराशा में, अवसाद में, डिप्रेशन में चला जाता है। ऐसी स्थिति को संकट की स्थिति कहते हैं और तब सद्गुरु सम्भालते हैं, जीवन दान देते हैं।, विश्वास जगाते हैं, हौंसला देते हैं और अपने आशीष का हाथ शिष्य के सिर पर रखकर उसे मृत्यु अर्थात् आत्म हत्या के द्वार से वापिस ले आते हैं। इससे बड़ा उपकार क्या होगा? दो उदाहरण इसे स्पष्ट करते हैं।
उदाहरण देने से पूर्व, वर्तमान समय में गुरुदेव जी ने दो कृपाएं की हैं, कर रहे हैं  कोरोना काल में। कृपाएं तो उनकी सब पर अनेक हैं, किन्तु मार्च 2020 के मध्य से आनन्दधाम की पावन माटी से, गुरुधाम रुपी तीर्थ से, सात्विक ज्ञान की भगीरथी प्रवाहित कर दी गुरुदेव जी ने। सम्पूर्ण विश्व में शिष्यों का जीवन जैसे धन्य हो गया, ज्ञान का ज्ञान और लाईव गुरु दर्शन। आतंक, भय और निराशा काल में वैदिक ज्ञान, गीता ज्ञान, गुरुगीता ज्ञान, ध्यान साधना, मन्त्र सिद्धि साधना, मृत संजीवनी साधना से शिष्यों के जीवन को धन्य कर दिया।

गुरुदर्शन हो गये, गुरुपूजन हो गया, गुरुज्ञान मिल गया और सिद्ध सफल हो गई गुरुपूर्णिमा चांद भी मिल गया, चान्दनी भी मिल गई स्नाान भी हो गया, ज्ञान गंगा में और गुरुदर्शन का पुण्य भी अर्जित कर लिया। यह है आनन्द कृपा से गुरुकृपा की प्राप्ति।
पहला उदाहरण एक तमिल विद्यार्थी का है। स्कूली शिक्षा में श्रेष्ठतम, विज्ञान में शत-प्रतिशत अंक हर कक्षा में, आई- आई- टी मद्रास से इंजीनियरिंग में प्रथम, कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से एमबीए किया, अमेरिका में अच्छी सर्विस मिल गई, एक सुन्दर शिक्षित तमिल कन्या से विवाह हो गया, पांच कक्षों वाला विशाल मकान खरीद लिया, दो बच्चे हो गये, सुखद, हंसता-खेलता मुस्कुराता चहचहाता जीवन, दो महीने पूर्व परिवार सहित आत्महत्या कर ली।  कैलीफोर्निया इन्टीट्यूट ऑफ किनीकल साईकालोनी से इस पर शोध किया और निष्कर्ष निकाला कि वह संकट की स्थितियों से घबरा गया, कोरोना में उसकी नौकरी छूट गई, मकान की किश्त नहीं दे पाया, घर चलाना मुश्किल हो गया और घबराहट में पूरा परिवार समाप्त कर लिया।

इस दुर्घटना की तरह मुम्बई के सफल कलाकार सुशान्त राजपूत की सच्ची तात्कालिक घटना है, उसने भी विपरीत परिस्थितियों में विषाद में आत्महत्या कर ली। अत्यन्त योग्य सफल विद्यार्थी, मुस्कराते स्वभाव वाला सफल एक्टर, कई कारणों से फिल्म उद्योग में स्थितियां उसके विपरीत कर दी गईं या हो गईं, कारणों की छानबीन हो रही है।
गुरुदेव सर्वदा सुरक्षा कवच बनकर साथ खड़े रहे। सब शिष्यों के साथ संग-संग रहते हैं गुरुदेव। इसी कारण गुरुदेव अपने प्रवचनों में भावनात्मक और संकट स्थिति वाले कोशेन्ट की चर्चा करते हैं शिष्यों की भलाई के लिये। कोरोना काल में शिष्यों को कितना बल दिया, साहस दिया, बहुत कुछ दिया, जिस का उल्लेख किया गया। शब्दकोश में कोशेन्ट का अर्थ भज फल या उपलब्धि दिया गया है।
कोशेन्ट चार प्रकार का होता है-
1- इन्टैलीजैंस कोशेन्ट – बुद्धिमता कोशेन्ट
2- इमोशनल कोशेन्ट – भावनात्मक कोशेन्ट
3- सोशल कोशेन्ट – सामाजिक कोशेन्ट
4- एडवरसटी कोशेन्ट – संकट या विपरीत काल कोशेन्ट
पहले का आपकी शैक्षणिक योग्यता से सम्बन्ध है, दूसरे का भावनाओं से जुड़ी बातों या घटनाओं से सम्बन्ध है, सोशल में आप सामाजिक जीवन में कैसे सम्बन्ध बनाते हैं और चौथे का सम्बन्ध उन स्थितियों से होता है, जो आपके जीवन में धीरे-धीरे अचानक आ गई हैं। चौथी स्थिति में बहुत सावधान, सतर्क, शान्त, धैर्यवान और सन्तुलन रखने की महती आवश्यकता होती है। विश्व में हर स्तर पर सैकड़ों हजारों उदाहरण हैं, जब बड़े-बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति भी इसके शिकार हो गये। उन उदाहरणों में जाना उचित नहीं है।

मुख्य उद्देश्य यह है कि परमपूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज ने विश्व में सम्पूर्ण मानव जाति पर, विशेष कर अपने शिष्यों पर असंख्य उपकार किये हैं, चाहे वे लौकिक सफलताओं या विफलताओं से सम्बन्धित हों, ईश्वरीय ज्ञान से सम्बन्धित हों, शिष्यों के लोक और परलोक दोनों को सुधारा हो। गुरुवर ने इसीलिए तो प्रारम्भ में भारत देश की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को बारीकी से देखने के लिये भ्रमण किया, फिर जो स्वयं ज्ञान, ध्यान, जप, साधना, अंतर्बोध से प्राप्त किया, उसे इन चालीस बयालीस वर्षों में जनसाधारण के दुखों को कम करने और सुख देने के लिये उन्हें बांट दिया। गुरुदेव ईश्वर के अवतार हैं, ज्ञान-विज्ञान के असीमित सागर हैं, कोमल-करुण हृदय वाले महामानव हैं। ईश्वर गुरुदेव जी को स्वस्थ, सुखी, दीर्घ आयु देने की कृपा करना।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।।

गुरुकृपा एवं गौ आशीर्वाद का दोहरा लाभ पायें | sudhanshu Ji Maharaj

Get double benefit of Gurukrupa and cow blessings

 

गुरुकृपा एवं गौ आशीर्वाद का दोहरा लाभ पायें

गाश्च शुश्रूषते यश्च समन्वेति च सर्वशः।
तस्मै तुष्टाः प्रयच्छन्ति वरानपि सुदुर्लभान्।।
अर्थात् जो व्यक्ति गायों की हर विधि से सेवा करता और उस पर सर्वस्व समर्पित करता है, उससे संतुष्ट होकर गौएं उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती हैं।
घस मुष्टिं परगवे दद्यात् संतत्सरं तु यः।
अकृत्वा स्वयमाहारं व्रतं तत् सार्वकामिकम्।।
जो व्यक्ति एक वर्ष तक प्रतिदिन स्वयं भोजन करने से पहले गाय को एक मुट्ठी घास खिलाता है, उसका यह सेवा संकल्प जीवन की सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करता है।
वास्तव में गाय आशीर्वाद ही नहीं देती, अपितु गौ सेवा से हमारे जीवन में एक रक्षाकवच भी बनता है, जो हर परिस्थिति में व्यक्ति के साथ रहता है। वह कष्ट-कठिनाइयों में गौसेवक का संरक्षण करता है। गौ सेवा घर-परिवार की समृद्धि को भी जगाता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि यदि जिस गाय की सेवा की जा रही है वह गाय गुरु आश्रम की हो, तो उसके तीर्थ परिसर व गुरुसत्ता से जुड़ी होने के कारण गौ सेवक पर कृपा अनन्तगुना बढ़ जाती है। गुरुकुलों, गुरु आश्रमों, गुरुतीर्थों में इसीलिये अनन्त काल से गौ सेवा, गौशाला स्थापना का विधान चला आ रहा है।
भारतीय संस्कृति में गुरु, गाय, गुरुआश्रम एवं गुरु आराधना का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। युगों-युगों से साधक गुरु भक्त व शिष्य वहां आकर गौसेवा कर अपने दुख-कष्ट से छुटकारा पाते आ रहे हैं। पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज ने इस संकल्प से ही अपने आनन्दधाम आश्रम में गौसेवा परम्परा का शुभारम्भ किया है। आश्रम में गुरुदेव स्वयं नित्य गौसवा करके भक्तों को प्रेरणा देते हैं कि देश में गौ सेवा की संस्कृति को बढ़ावा मिले। इस हेतु विश्व जागृति मिशन के अन्य आश्रमों में भी गौशाला का अभियान जोड़ रखा है।
आनन्दधाम तपोमय तीर्थ में वर्षों से देश-विदेश के हजारों साधक गौसेवा के लिए पधारते हैं तथा गुरु आशीर्वाद के साथ-साथ गौसेवा द्वारा जीवन में अपने पुण्य-परमार्थ जगाते हैं। सद्गुरुदेव ने तपोमय क्षेत्र आनन्दधाम की इस गौशाला को कामधेनु नाम दिया है, यह है भी उसी तरह, क्योंकि यहां गौसेवा करने वाला खालीहाथ कभी नहीं जाता। कोरोना महासंकट मिटने के बाद जब कभी आप आनन्दधाम आश्रम पधारें, तो यहां गौसेवा से जुड़ें, अपने हाथों गायों को चारा खिलायें तथा गुरु कृपा, गौ आशीर्वाद से अपने परिवार का सुख-शांति, समृद्धि, आनन्द, सौभाग्य जगायें।

सद्गुरु के अंतःकरण में समाये गुरु तत्व का विस्तार हमारा मिशन

सद्गुरु के अंतःकरण में समाये गुरु तत्व का विस्तार हमारा मिशन

परमात्मा का संकल्प है कि वह धरती को कभी मिटने नहीं देगा। यही कारण है कि जब भी धरती पीड़ा, दुख, कष्ट से भर जाती है, तो परमात्मा अनेक मुक्त आत्माओं में से ही किसी को अपनी शक्तियां देकर अपना प्रतिनिधि बनाकर सद्गुरु के रूप में धरती पर भेजता है। परमात्मा की सम्पूर्ण शक्तियों के साथ वह करुणामय गुरु लोगों के कल्याण के लिए कार्य करता है। मानव मात्र का दुख, कष्ट, पीड़ा मिटाने और सुख, शांति, संतोष, आनन्द के लिए जीवन खपा देता है।
गुरु में परमात्मा की सारी शक्तियां बीज रूप में समाई होती हैं। गुरु ये शक्तियां लोगों में धारण कराने के लिए समाज में सत्संग, सेवा, साधना जैसे प्रयोगों से हुंकार भरता है, ऐसे पात्रों को खोजता है, जिन्हें वह उन शक्तियों द्वारा परमात्मा से जोड़ सके।
जो व्यक्ति गुरु के साथ पिछले कई जन्मों से जुड़कर कार्य करते आये हैं, वे सब सामने आते हैं। और उन्हें गुरु के सौभाग्यशाली शिष्य बनने का सुवसर मिलता है। गुरु समर्पित शिष्य की यही पहचान होती है कि उसे अपने गुरु को पहली बार देखने मात्र से लगता है कि इनसे तो जैसे हम पहले से परिचित हैं।
इस प्रकार एक गुरु द्वारा समाज के लाखों लोगों के पीड़ा-पतन निवारण के साथ उसकी आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। देखते ही देखते परमात्मा का कार्य होने लगता है और सेवा-साधना के अनेक प्रकल्पों के साथ एक विराट मिशन खड़ा होता है।
करोड़ों लोगों के दुख-दर्द मिटते हैं। उनके सुख-शांति-आनन्द-सौभाग्य के द्वार खुलते हैं। यह विश्व जागृति मिशन ऐसे ही दिव्य गुरु और शिष्यों की सम्मिलित यात्रा है यह विराट आध्यात्मिक संगठन है। निश्चित ही हम सबकी यह गुरु-शिष्य की यात्रा आज की नहीं, अनेक जन्मों से चली आ रही है।
एक ओर परमात्मा ने हमारे करुणास्वरूप गुरु पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज को अपनी शक्तियां देकर अपने प्रतिनिधि रूप में धरती के कष्ट हरने के लिए भेजा, तो दूसरी ओर हमें उनके शिष्य बनाकर परमात्मा के कार्य में सहयोग के लिए इकट्ठा कर दिया। ऐसे दैवीय मिशन एवं दैवीय कृपा पात्र शिष्य अपने परमात्मा द्वारा अपने प्रतिनिधि रूप में भेजे सद्गुरु के दैवीय अभियान को पूरा करने में जुटे तो यह मिशन सहज ढंग से खड़ा होता गया।
करुणाकर हमारे गुरुदेव:
हमारे सद्गुरुदेव पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज ने उस परमपिता का प्रतिनिधित्व स्वीकार करते हुए अपने करुणाभाव को लेकर समाज के बीच उतरे तो लोगों की गरीबी, दुख को निकट से देखा और उसे दूर करने के लिए संकल्पित हुए। इस प्रकार इस विराट विश्व जागृति मिशन को पूज्य सद्गुरु जी की करुणामयी पीड़ा की उपज कह सकते हैं।
आज इस वट वृक्ष की छाया में लाखों-करोड़ों भक्त-शिष्य सेवा, सत्संग, स्वाध्याय, समर्पण, शांति एवं संतोष का संदेश ग्रहण कर रहे हैं। जन-जन में नये संकल्प, नई सोच और समाज को नये प्रकाश का सौभाग्य मिल रहा है। गुरुवर के मिशन से जुड़कर लाखों लोग भारत के खोये सांस्कृतिक आध्यात्मिक सौभाग्य को वापस लाने में जुटे हैं।
रामनवमी 1991 को स्थापित सद्गुरु पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज के मार्गदर्शन में यह मिशन धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, गौसेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, आयुर्वेद, संस्कार, बृद्धजन सेवा, वानप्रस्थ परम्परा, साधना परम्परा, व्यक्तित्व निर्माण सहित अनेक सेवा प्रकल्पों से जन-जन के गौरव को बढ़ाने में लगातार प्रयास कर रहा है। अनाथों को सहारा देने के लिए पूज्यवर के मार्गदर्शन में मिशन ने अनेक सेवाप्रकल्प प्रारम्भ किये। साथ ही व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व को शांति, सौहार्द से जोड़ने, मानव को मानवता की ऊंचाईयों से स्पर्श कराने, परिवार को भारतीय संस्कारों से जोड़ने घर-घर संस्कारवान पीढ़ी खड़ी करने हेतु सेवा कार्य प्रारम्भ किये।
इसके अतिरिक्त गुरुवर द्वारा धर्म, संस्कृति, मानव को स्वस्थ, सशक्त, आत्मनिर्भर व समृद्धशाली बनाने का अभियान प्रारम्भ हुआ। शिक्षा में आधुनिकता एवं प्राचीन ज्ञान मूल्याें का व्यावहारिक समन्वय करते हुए गुरुकुलों की स्थापनायें प्रारम्भ हुईं। वृद्धों की पीड़ा को श्रद्धापर्व द्वारा दूर करने, उन्हें आत्म गौरव से जोड़ने के लिए वृद्धाश्रम प्रारम्भ किया।
अनाथों के दर्द को अनुभव करके बालाश्रमों का निर्माण प्रारम्भ हुआ और उन्हें संरक्षण, पोषण, संस्कारपूर्ण शिक्षा देकर आत्मनिर्भर बनाने का इस मिशन ने बीड़ा उठाया।
शिक्षा सेवा आंदोलन:
गुरुदेव ने अपने शिष्यों के माघ्यम से जरूरत मंद, गरीब, अनाथ, बेसहारा, झुग्गी-झोपड़ी में बसने वालों के लिए शिक्षासेवा आन्दोलन चलाया। गुरुकुल शिक्षा के साथ-साथ उन नौनिहालों-किशारों को भी अपनी शिक्षासेवा से जोड़ा, जो धरती पर जन्म तो ले चुके थे, पर उनका न कोई पालन-पोषण करने वाला था, न ही उनमें जीवन के प्रति आशा जगाने वाला कोई सहारा था।
जो बच्चे अपने-माता-पिता से दैवीय व अन्य कारणों से वंचित थे। चौराहों, गलियों के बीच उनका जीवन भूखे-प्यासे बीत रहा था, उन्हें अपना प्यार देकर जीवन जीने की आश जगाई।
इसी क्रम में ज्ञानदीप विद्यालय, फरीदाबाद की शुरुवात हुई। फरीदाबाद मण्डल में छोटी-छोटी गरीब बच्चियों को प्रातःकाल कूड़ा बीनते, भीख माँगते देखकर उनकी किस्मत सवांरने को लेकर जून 2001 में ज्ञानदीप विद्यालय की नीव पड़ी। गुरुपीड़ा ही है कि 5 छोटी-छोटी कन्याओं के साथ फरीदाबाद आश्रम में प्रारम्भ नर्सरी कक्षा आज ज्ञानदीप विद्यालय बनकर खड़ा है। यहा से 700 कन्याएं और 300 बालकों की निःशुल्क शिक्षा सेवा हो रही है।
इसी क्रम में मिशन द्वारा झारखंड में रांची के आदिवासी क्षेत्रें में वर्ष 2000 में रुक्का तथा वर्ष 2004 में खूंटी (झारखंड) में आदिवासी पब्लिक स्कूल की स्थापनायें की गईं।
मिशन आज उस आदिवासी क्षेत्र के 700 से अधिक बच्चों को पुस्तकें, यूनिफॉर्म एवं अल्पाहार के साथ निःशुल्क शिक्षा दे रहा है।
शिक्षा के अन्य प्रकल्पों में विश्व जागृति मिशन द्वारा सूरत व कानपुर बालाश्रम में महर्षि वेदव्यास अन्तर्राष्ट्रीय गुरुकुल विद्यापीठ की स्थापना कर शिक्षा सेवा अभियान चल ही रहा है। आज महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ एवं उपदेशक महाविद्यालय आदि शिक्षण संस्थान जहां भारत की सनातन संस्कृति का रक्षण कर रहे हैं। वहीं राष्ट्र समाज के लिए सुयोग्य पीढ़ी भी गढ़ रहे हैं।
वृद्धाश्रम सेवाः
जो लोग घर-गृहस्थी के जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद सेवा, साधना, सत्संग से अपने जीवन को जोड़ना चाहते हैं। उन वृद्ध महिलाओं-पुरुषों के लिए गुरुदेव ने आनन्दधाम आश्रम में वानप्रस्थ आश्रम स्थापित किया। वहीं ऐसे माता-पिता एवं वृद्धजन जो अपने ही स्वजनों द्वारा अपने ही घरों में उपेक्षित हैं, उन वृद्धजनों के लिए आनन्दधाम आश्रम में वृद्धाश्रम की स्थापना की गई। मिशन के अन्य मण्डलों में भी गुरु संरक्षण में यह सेवा लगातार चल रही है।
गौ सेवा का कार्यः
गौसेवा बड़े पुण्य का कार्य है। इस भाव से आनन्दधाम आश्रम में कामधेनु गौशाला की स्थापना भी की गई। जहां वर्तमान में सवा-सौ से अधिक देशी गौएं सेवा पा रही हैं। इसी तरह के 6 से अधिक बड़ी गौशालाएं देश के प्रमुख शहरों के मिशन आश्रमों में स्थापित हैं।
चिकित्सा सेवाः
गुरुदेव ने अनुभव किया कि रोगी होना भी किसी परिवार के लिए बड़ी पीड़ा है। अतः संकल्प लिया कि देश में एक भी व्यक्ति रोगी नहीं रहना चाहिए। क्योंकि रोग व्यक्ति के शरीर, मन के साथ उसके परिवार को आर्थिक दृष्टि से तोड़ता है। साथ ही देखा जाता है कि जिनके पास पैसा है, वे तो स्वास्थ्य सुविधा पा लेते हैं, पर जिनके पास पैसा नहीं है, उनके लिए सहारा कौन बने। इसी संवेदना से गुरुवर ने स्वास्थ्य सेवा अभियान चलाने के लिए परिसर में ही अस्पताल बनवाया।
पीड़ा निवारण एवं स्वास्थ्य सेवा के लिए एक डिस्पेसरी से प्रारम्भ होकर सेवा प्रकल्प आज करुणा सिंधु अस्पताल स्वतः चिकित्सा सेवा का पर्याय बन चुका है।
अन्नपूर्णा योजनाः
‘अन्नपूर्णा योजना’ द्वारा भी असंख्य भक्तगण अपने जन्मदिन, विवाह वर्षगांठ व किसी अन्य मांगलिक कार्य या अपने दिवंगत पूर्वजों की पुण्य स्मृति में अन्नदान-भंडारा करा कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
दिव्य तरंगित ऊर्जा क्षेत्र तपोभूमि आनन्दधाम तीर्थ:
जहां गुरुदेव के चरण पड़ते हैं, वह भूमि तीर्थ ही बन जाती है। तीर्थ के तीर्थत्व को जगाने में धर्म-आस्था के अनेक दिव्य पूजनीय स्थलों, मंदिरों से सुशोभित है तपोभूमि आनन्दधाम परिसर। यहां आने वालों पर यहां के अनेक आस्था केन्द्र मंदिर आदि अपनी कृपा बरसाते ही रहते हैं।
इसके अतिरिक्त सिद्धिविनायक भगवान गणपति मंदिर, गुरु चरणपादुका कुटी, ओंकार ध्यान कुटी, कल्पवृक्ष वाटिका तथा सिद्धशिखर कैलाश पर विराजमान भगवान शिव, माता पार्वती, नंदी, नारद मुनि गंगा मैÕया एवं भगीरथी जी सदैव आध्यात्मिक आशीर्वाद से साधक को सराबोर करते रहते हैं। साधक सुख, शांति, आनन्द से जुड़ता है।
मानसरोवर झील, सद्गुरु कुटी, ध्यान एवं सत्संग हॉल, नवग्रह-शनि मंदिर, पशुपतिनाथ शिवालय, यज्ञशाला, नवग्रह वाटिका, कामधेनु गौशाला आदि ऐसे आस्था के क्षेत्र हैं, जहां से सतत दिव्य तरंगित ऊर्जा आनन्दधाम परिसर में आने वाले हर साधक का कायाकल्प व कल्याण करती रहती है। यहां आने वाले की मनोकामना भी पूरी होती है और भाव-विचार-प्राण परिष्कृत होते हैं तथा उसके पुण्य बढ़ते हैं।
साधना विधान:
गुरुदेव के आशीर्वाद तो फलते ही हैं, भक्तगण द्वारा अपने व अपनों के कष्टों के निवारण के लिए गुरुदेव से की गयी प्रार्थनाओं पर गुरुवर कष्ट दूर करने के लिए उनके निमित्त अनुष्ठान-साधनायें भी यहां कराते हैं। साथ ही गुरुनिर्देशन में आनन्दधाम में सेवारत महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ एवं उपदेशक महाविद्यालय के ऋषिकुमारों व धर्मोंपदेशक प्रशिक्षुओं, विद्वान आचार्यों द्वारा मंत्र जप, अनुष्ठान तथा यज्ञ आहुतियों के माध्यम से दुःख-दारिद्र-रोगमुक्ति की भी कामना की जाती है। यहां समय-समय पर यज्ञ-अनुष्ठान चलते ही रहते हैं। साथ ही इन दिनों पूज्य सद्गुरुदेव का गीता, गुरुगीता पर दिव्य संदेश धारावाहिक सम्पूर्ण परिसर को दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा से भर ही रहा है। जिसके कारण इस परिसर में प्रवेश करते ही साधक सुखी, शांत, आनन्दित व संतोष से भर उठता है।

गौ-सेवा से आती है सुख, शांति और समृद्धि | Sudhanshu ji maharaj | vishwa jagriti Mission

Happiness, peace and prosperity comes from cow-service

भारत में गौ सेवा, गौदान, गौ संवर्धन के लिए दान एवं गुरुकार्यों को बढ़ाने के लिए दान की अनन्त कालीन परम्परायें चली आ रही हैं। साथ ही सावधान भी किया गया है कि दान सद्पात्र को ही देना चाहिए। सद्पात्र का आशय जहां गुरु का संरक्षण हो, गौशाला में गायों की सेवा होती हो, गुरुकुल एवं वृद्धाश्रम चले रहे हों तथा स्वास्थ्य सेवा का अभियान चलता हो वह स्थान तीर्थ बन जाता है। ऐसे स्थान पर दिया गया दान अनन्त गुना होकर फलित होता है। साथ ही सत्पात्र को दिया गया दान दान देने वाले को दिन-दिन समृद्ध करता है।
इस संदर्भ में कथानक आता है कि प्राचीनकाल में ब्रह्मचारी सत्यकाम जाबाल के उपनयन-संस्कार पर उनके गुरु ने सैकड़ो दुबली-पतली गौएं सत्यकाम को सौंपते हुए बोलेµबेटा! तू इन गौओं को चराकर हृष्ट-पुष्ट करके ले आओ। कुशाग्र बुद्धि सत्यकाम गुरु के भाव को समझ गये। गुरु की आज्ञा मानकर वह जंगल में गौओं के ही बीच में रहते, उनकी सेवा-शुश्रूषा करते, वन के सभी क्लेशों को सहते। उस बालक ने अपने जीवन को गौओं के जीवन में लगा दिया। सत्यकाम गो सेवा में ऐसा तल्लीन हो गये कि पता ही न चला कि गौएं कितनी हो गयी हैं। साथ ही गौओं की इस निष्काम सेवा-शुश्रूषा से सत्यकाम परम तेजस्वी ब्रह्मज्ञानी भी होते गये।
कुछ समय बाद उसने पहले से अनेक गुनी गौओं को ले जाकर गुरु के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। गुरु ने उसके मुख को देखा तो देदीप्यमान। यह देखकर अत्यन्त प्रसन्नता से बोले ‘बेटा सत्यकाम! तुम्हारे मुखमण्डल को देखकर तो मुझे ऐसा लगता है, तुझे ब्रह्मज्ञान हो गया है। पर तुझे यह ब्रह्मज्ञान का उपदेश किसने किया?’
सत्यकाम ने अत्यन्त विनीत भाव से कहा ‘गुरुदेव! आपकी कृपा और इन गायों की सेवा से क्या नहीं हो सकता है। पर जब आप मुझे अपना उपदेश करेंगे, तभी मैं अपने को पूर्ण समझूंगा।’ वास्तव में गुरु और गौ सेवा का शिष्यों के आत्म उत्थान में सदियों से महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसीलिए गुरुकुल में गुरु सान्निध्य में जीवन निर्वहन एवं गौदान, गो सेवा को हमारी संस्कृति में जीवन का सौभाग्य माना गया है। गायों की सेवा व दान आदि की प्राचीन काल से इसीलिए महिमा चली आ रही है। अग्नि पुराण के अनुसार गायें परम पवित्र और मांगलिक मानी गयी हैं। गाय का गोबर और गौ मूत्र जीवन की दरिद्रता दूर करता है। उन्हें सहलाना, नहलाना, पानी पिलाना, चारा खिलाना अत्यन्त पुण्यफलदायक बताया गया है। यह उपनिषद कहता है कि गोरक्षा के लिए लगा हुआ, गौ ग्रास देने वाला व्यक्ति सद्गति प्राप्त करता है। गौ दान करने से समस्त कुल का उद्धार होता है। गौ के श्वांस से भूमि पवित्र होती है। गाय के स्पर्श से पाप नष्ट होते हैं। इसी तरह स्कन्दपुराण कहता है कि ‘ब्रह्माजी ने गौओं को दिव्य गुणों से युत्तफ़ अत्यन्त
मंगलकारिणी बनाया है। अतः सदैव उनकी परिक्रमा और वन्दना करनी चाहिए। गौओं के गौ मूत्र, गोबर, दूध, दही, घीµये पांचों वस्तुएं पवित्र मानी गई हैं और ये सम्पूर्ण जगत को पवित्र करने वाली हैं।’
मारर्कन्डेयपुराण तो गाय को साक्षात् वेद ही कहता है। इसके अनुसार विश्व का कल्याण गाय पर आधारित है। गाय की पीठ-ट्टग्वेद, धड़µयर्जुवेद, मुखµसामवेद, ग्रीवाµइष्टापूर्ति सत्कर्म, रोमµसाधु सूत्तफ़ है। उसके मल मूत्र में शांति और पुष्टि समाई है। इसलिए जहां गाय रहती हैं, वहां के लोगों के पुण्य कभी क्षीण नहीं होते। गौ भक्त को गाय पुण्यमय जीवन को धारण कराती है। गौ उत्थान को इसीलिए सभी संतों-ट्टषियों ने प्रोत्साहित किया है।
कहते हैं गौसेवा, गौसंवर्धन के विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दान अवश्य देना चाहिये। गोदान हो अथवा अन्न आदि का दान सद्पात्र के हाथ दिया जाता है, तो वह दाता को सुख, शांति, समृद्धि, आनंद, ईश्वर कृपा से भर देता है।
जिस प्रकार से अपने हाथ से भूमि में निवेश किया गया धन, मनुष्य की आवश्यकतानुसार जब चाहे काम में आ सकता है, उसी प्रकार अपने हाथ से किया गया गौसेवा के लिए दान भी प्रत्यक्ष फलदायी है। इसीलिए हमारेदेश की संस्कृति परम्पराओं में गौदान की परम्परा भी महत्व रखती है। सच कहें तो गौ की सेवा और उनके अमृततुल्य दूध और उनके अन्य सभी उत्पाद से हमें लौकिक और पारलौकिक सुख की प्राप्ति होती है। अतः हम-आप भी गुरुधाम की गौशाला में गौ सेवा के लिए अपना धन लगायें, जीवन में गुरुकृपा, सुख-सौभाग्य पायें।

माता-पिता, बुजुर्गों के प्रति सम्मान सांस्कृतिक तप | Sudhanshu ji Maharaj

Respect for parents, elders, cultural tenacity

भारतीय ट्टषि प्रणीत इस संस्कृति पर पिछली कुछ शताब्दियों में अनेक आघात हुए। आक्रमण केवल राजनीतिक एवं सैन्य ही नहीं थे, अपितु इन हमलों ने देश की संस्कृति, जीवन मूल्य, संस्कार, जीवन शैली सबको छिन्न-भिन्न कर दिया है। परिणामतः अन्य सामाजिक मूल्यों के साथ-साथ, समाज के अपने वृद्धजनों, माता-पिता व अग्रजों के प्रति दृष्टिकोण में भारी अंतर आया। रही-सही कसर 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उपजी उपभोगवादी विचारधारा ने पूरी कर दी। इसने तो संयुक्त परिवारों के विघटन को जन्म दिया और भारत के बड़े-बूढ़ों के सामने समस्याएं उत्पन्न हुईर्ं। वे उपेक्षा, अकेलेपन व असुरक्षा के शिकार हुए। उन बुजुर्गों की संताने, अर्थात् नई पीढ़ी भी परिस्थिति बस यह सब होते देखती भर रह गयी। क्योंकि उसके सामने जीवन की आर्थिकी का भयावह प्रश्न जो खड़ा था। इससे परिवार टूटे, वे संस्कार टूटे जिनके सहारे नई पीढ़ी को मातृदेवो-पितृदेवो भव का संदेश मिलता था। दुःखद पहलू यह कि घर छूटा और एक तरफ नई पीढ़ी अपने आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए भटकने लगी। दूसरी ओर अनुभव समेटे वृद्धगण बेसहारा और लाचार जीवन जीने लगे। दोनों पीढ़ियां आज एक दूसरे के आमने-सामने जो प्रतिद्वन्द्वी बनकर खड़ी हैं, उसमें सांस्कृतिक क्षरण एवं आर्थिक अतिमहत्वाकांक्षा प्रमुख कारण है।
सम्बन्धों का महत्व समझेंः
यही नहीं वृद्धगणों को प्राकृतिक एवं स्वाभाविक रूप से अनेक शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं के शिकार होते देख भी अपनी महात्वाकांक्षावस युवा-पीढ़ी उनसे कतराने लगी। युवावर्ग उपयोगिता की दृष्टि से माता-पिता के प्रति देखने लगा, तो बुजुर्ग पीढ़ी युवावर्ग पर स्वार्थी, संस्कार हीन होने का आरोप लगाने लगी। हमें दोनों पीढ़ियों को एक धुरी पर लाकर भारत भूमि को इस दंश से उबारना होगा। इसके लिए प्राचीन ट्टषि परम्परा को पुनः आत्मसात करना होगा।
भारत की संस्कृति एवं चिन्तन शैली में मातृ देवो भव, पितृ देवो भव अर्थात् माता-पिता देव स्वरूप माने गये हैं, मानवीय सम्बन्धों के इस पक्ष का हमारे पवित्र ग्रन्थों में विस्तृत उल्लेख है। शास्त्रें में माता-पिता, गुरु व बढ़े भाई को कर्म या वाणी द्वारा अपमानित न करने का स्पष्ट संदेश दिया गया है।
आचार्येश्च पिता चैव, माता भ्रात च पूर्वजः। नर्तिनाप्यवमन्तव्या, ब्राह्मणेन न विशेषतः।।
कहते हैं ‘‘आचार्य, माता-पिता, सहोदर बड़े भाई का अपमान दुःखित होकर भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि आचार्य परमात्मा की, पिता प्रजापति की, माता पृथ्वी की और बड़ा भाई अपनी स्वमूर्त्ति होता है।’’ हमें परस्पर सम्बन्धों के महत्व बताने होंगे।
सलाह लें, सम्मान देंः
यही नहीं भारत में अनन्तकाल से कोई भी निर्णय करने से पूर्व वृद्धों-बुजुर्गों से परामर्श लेने की परम्परा चली आ रही है। पर बुजुर्गों के चरण छूना, उनसे बातें करना, उनके सुख-दुःख की जानकारी रखना, कठिनाईयों के निराकरण में उनसे परामर्श लेना, उनकी शारीरिक-भावनात्मक व मन अनुकूल आवश्यकताओं का ध्यान रखना, उनकी छोटी-सी भी आज्ञा का जहां तक संभव हो पालन करना, उनसे आशीर्वाद लेने के अवसर खोजना आदि हमारी संस्कृति के मूल्य रहे हैं। यह कटु सच है कि ‘‘संतान उत्पन्न होने, गर्भधारण, प्रसव वेदना, पालन, संस्कार देने, अध्ययन-शिक्षण आदि के समय माता-पिता घोर कष्ट सहते हैं, अपने को निचोड़ देते हैं। जिसका सैकड़ों व अनेक जन्मों में भी बदला नहीं चुकाया जा सकता है। यह बात नई पीढ़ी को गहराई से सोचना होगा।
अवमानना से बचेंः
सच में मानवीय व्यवहार, शिष्टाचार तक से अपनी ही संतान द्वारा अपने माता-पिता व परिवारिक बंधु-बांधवों को उपेक्षित होना पड़े तो अस“य पीड़ा होना स्वाभाविक है। अतः अपने मूल्यवान शिष्टाचार निर्वहन की हर युवा से पुनः अपेक्षा है। यदि जिनके सान्निध्य में हम रहे हैं, उनकी ही अवमानना होगी तो न तो नई पीढ़ी को सुख मिलेगा, न शांति। ऐसे में समाज व राष्ट्र निर्माण की कामना भी व्यर्थ साबित होगी। कहा भी गया है कि सैद्धान्तिक रूप से मतभेद के बावजूद नई पीढ़ी द्वारा बड़ों को सम्मान देने का उच्च आदर्श निर्वहन करना ही चाहिए। क्योंकि इससे युवाओं का हित है, साथ नई पीढ़ी जो आने वाली है उसे भी सही दिशा मिलेगी। हमारे यहां माता-पिता और गुरु तीनों की शुश्रुषा को श्रेष्ठ तप कहा गया है। माता-पिता और गुरु भूः, भुवः, स्वः तीन लोक व ट्टग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद कहे गये हैं। इनके सम्मान करने से तेज बढ़ता है। महर्षियों, संतों ने जगह-जगह माता-पिता और गुरु की सेवा के श्रेष्ठ फल का बखान करते हुए कहा कि ‘‘जो व्यक्ति व गृहस्थ एवं बुजुर्ग तीनों का आदर, सम्मान व सेवा करके उन्हें प्रसन्न करता है, वह तीनों लोकों का विजेता बनता है और सूर्यादि देवताओं के समान तेजस्वी, कीर्तिवान बनता है। शास्त्र कहते हैं व्यक्ति अपनी माता की भक्ति व सेवा से मृत्युलोक को, पिता की भक्ति से अन्तरिक्ष लोक और गुरु की सेवा से ब्रह्मलोक को जीतता है।
आचार-शिष्टाचार अपनायेंः
भारतीय संस्कृति में बुजुर्गों का सम्मान इतना कूट-कूट कर भरा था कि उसी प्रेरणा से मृत माता, पिता या पितरों के लिए भी श्राद्ध किये जाते हैं। ऐसे में जीवित माता पितादि पालक वृद्धजनों की प्रसन्नता के लिए प्रतिदिन उन्हें आवश्यक अन्न, जल, दूध, दवा अथवा अन्य जीवनोपयोगी व्यवस्थाओं से उन्हें क्यों मरहूम किया जाना, समझ से परे है।
पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं माता-पिता को देवतुल्य मान कर उनकी सेवा व सुश्रुषा करना संतान का कर्तव्य है। यदि प्राचीन संस्कृति को पुनर्जागृत करना चाहते हैं, तो हमें इन जीवन आचार व शिष्टाचार के मूल्यों को अपने परिवार के बीच स्थापित करना ही होगा। वैसे भी सन्तान का किसी विशेष परिवार में जन्म लेना किसी प्रयास का परिणाम नहीं है, अपितु मनुष्य के सुकर्म का प्रभाव है। पूर्व निर्धारित है, इसलिए भी उनके प्रति उचित शिष्टाचार निर्वहन हर नई पीढ़ी के लिए जरूरी है।’’ वैसे भारतीय संस्कृति अनन्तकाल से परोपकार, त्याग, आज्ञाकारिता, एक दूसरे पर निर्भरता पर आधारित है। इन्हीं संस्कारों में परिवारों के वृद्धजनों की जीवनपर्यन्त देखभाल करने की परम्परा भी है। परिवारीजनों का सहज सहयोगी व्यवहार वृद्धावस्था में वृद्धजनों को अपनत्व की ताकत देता है। इस भावनात्मक आदान-प्रदान के कारण उन्हें एकाकीपन की पीड़ा नहीं सहनी पड़ती। सम्बन्धों की दृष्टि से दादा-दादी, नाना-नानी के रूप में जो विशेष भूमिकायें बनाई गयी हैं, उसके पीछे भी सेवा, सहायता, सम्मान का जीवनभर रिश्ता कायम रखना ही उद्देश्य है। इससे व्यक्तिगत जीवन व परिवार दोनों सुखमय बनते हैं। आज पुनः जरूरत है कि भारतीय संस्कृति को पुनर्जागृत करके हम सब देश में परिवारों को सुखमय व आनंदपूर्ण बनायें। इस अभियान से संस्कृति की शक्ति बढ़ेगी। परिवारों में परस्पर देवत्व जागृत होगा। यही नई पी़ी का सांस्कृतिक तप है।

आइये! जवानी में ही बुढ़ापे को रोकने की करें तैयारी | Sudhanshu Ji Maharaj | VJM

Come! Prepare to stop old age in youth

आइये! जवानी में ही बुढ़ापे को रोकने की करें तैयारी मनुष्य की चिंतनशैली असंतुलित-अशांत रहने पर उसके प्राणों की गति भी असंतुलित होती है, जिसका दण्ड सम्पूर्ण शरीर को रोग के रूप में भुगतना पड़ता है। पर इसका प्रभाव सबसे पहले उसके पाचन तंत्र पर पड़ता है। क्योंकि व्यक्ति द्वारा खाया हुआ अन्न अच्छी तरह पचता नहीं अथवा कभी-कभी पाचक तंत्र अधिक तीब्र हो जाता है और जठराग्नि बन जाती है। परिणामतः प्राणों के सूक्ष्मतम प्रवाह के साथ बिना पचे अन्न के परमाणु स्तर के कण भी घुलकर प्राणों तक जा पहुंचते हैं और वहां जमा होकर सड़ने लगते हैं, जो अंत में मानसिक रोग-‘आधि’ उत्पन्न करते हैं। इन्हीं आधियों से शारीरिक रोग-‘व्याधि’ उत्पन्न होते हैं। जानकारी के अभाव में व्यक्ति इन्हें ठीक करने के लिए बाहरी औषधियों का सहारा लेता है, जो कारगर साबित नहीं होते क्योंकि रोग तो उसकी मनोदशा में उपजे बिकारों का परिणाम होते हैं। इसके चलते व्यक्ति में बुढ़ापा जल्दी आ धमकता है। मनोविकार हमें बुजुर्ग न बनायें इसलिए कम उम्र में होने वाले रोगों के पीछे के कारणों को ध्यान देने की बात शरीर विज्ञानियों द्वारा कही जाती है।

विशेष शोधाः
उन दिनों के प्रसिद्ध मनोविश्लेषक डॉ- कैनन ने अमेरिका के पेट रोगियों में पाया कि ‘‘पेट रोग के अधिकांश व्यक्ति दूषित विचारों एवं मनः स्थिति वाले पाये गये। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यदि व्यक्ति मानसिक चिन्ताओं, दूषित विचारों एवं आवेगों से पीड़ित होगा, तो उसके पेट की क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ना सुनिश्चित है और बूढ़ा व्यक्ति तो सदैव पेट का रोगी बना रह सकता है।’’ ऐसे में सामान्य स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए मनुष्य को सत्संग, गुरुदर्शन, नामस्मरण, जप द्वारा सकारात्मक एवं पवित्र विचारों का बना रहना अत्यावश्यक है। बुजुर्गावस्था में मन की थोड़ी विकृत अवस्था से परिणाम का नकारात्मक आना सुनिश्चित है। बुजुर्गों में तो सामान्य रूप से लगातार थकावट अनुभव होती रहती है। सामान्यतः लोगों का मानना है कि थकान का कारण अत्यधिक शारीरिक श्रम करना है। लेकिन शरीर विशेषज्ञों के अनुसंधान बताता है कि ‘‘थकावट का कारण शारीरिक परिश्रम नहीं, अपितु कार्य के दौरान विषम मनःस्थिति का होना प्रमुख कारण है।’’ इसी के साथ ‘‘उतावलापन, घबराहट, चिन्ता, हताशा-निराशा, अतिभावुकता, वैचारिक उलझनें आदि जीवन में थकान उत्पन्न करते हैं।’’ ऐसी स्थिति में व्यत्तिफ़ द्वारा दो कदम चलना भी भारी हो जाता है।

ऐसा भी होता हैः
कभी-कभी भावनात्मक एवं मानसिक टूटन के कारण हुए अपच से सिर दर्द, चक्कर, मूत्रशय में सूजन जैसी बीमारियां, गले के दर्द, गर्दन दर्द, पेट एवं वायु विकार सम्बन्धी रोग से बुजुर्ग पीड़ित होने लगते हैं। डॉ- केन्स डेलमार जैसे अनेक विशेषज्ञों द्वारा शरीर और मन के सम्बन्धों को लेकर किये शोध कार्य का निष्कर्ष रहा कि ‘‘शरीर में कोई रोग उत्पन्न नहीं हो सकता, जब तक कि मनुष्य का मन स्वस्थ है।’’ उन्होंने मनःस्थिति और रोगों के बीच सम्बन्धों को स्पष्ट करते हुए बताया था कि जैसे ‘‘गठिया’’ का मूल कारण ईर्ष्या है। इसीप्रकार जो व्यक्ति निराश-हताशा में जीते हैं तथा सदैव दूसरों का छिद्रान्वेषण करते हैं, दोषारोपण के आदी होते हैं, वे कैंसर जैसे घातक रोग के शिकार होते हैं। इसी प्रकार कुछ लोग सदैव कांपते, ठंड से सिकुड़ते देखे जाते हैं उनके प्रति डॉ- केन्स डेलमार की मान्यता थी कि अनावश्यक ठंडी लगती ही उन लोगों को है, जो दूसरो को सदैव परेशान करने में अधिक रुचि लेते हैं।

रोग के अन्य कारणः
उन्होंने ‘‘स्नायुशूल’’ पर निष्कर्ष दिया कि इसके रोगी व्यावहारिक जीवन में आवश्यकता से अधिक स्वार्थी, खुदगर्ज तथा हिंसक होते हैं। इसी क्रम में हिस्टीरिया और गुल्म जैसे रोगों के शिकार भी किसी न किसी दुष्प्रवृत्ति के शिकार होते हैं। उन्होंने आगे बताया चोर, ठग-दुष्ट प्रकृति के व्यक्ति को हताशा-निराशा घेरती है, अजीर्ण, झगड़ालू लोगों को होता है। तात्पर्य यह कि हर बीमारी मनुष्य की मानसिक विकृति का परिणाम है। आज संसार में रोग-शोक की बाढ़ है, उसका कारण विकृति और बुरे विचारों का व्यक्ति के मन के अंदर गहरी पैठ होना है। यदि मनुष्य अपनी मनःस्थिति को ऊर्ध्वगामी बना सके, तो अक्षय आरोग्यता का वह स्वामी बन सकता है। जीवन को मनचाही दिशा में नियोजित कर सकना, हंसी-खुशी का लाभ उठाना उसकी सहज जीवनरीति बन सकती है। सद्गुरु पूज्य श्री सुधांशुजी महाराज का अपने शिष्यों पर सोने-जागने, आहार ग्रहण करने के तरीके सहित विविध अवसरों पर सदैव सकारात्मक सोच एवं सद्विचारों को अपनाये रखने के निर्देश के पीछे ये तथ्य ही प्रमुख कारण हैं। अतः जरूरत है हम सब गुरु चिंतन, गुरु प्रेरणा को जीवन का अंग बनाकर शरीर, मन एवं भावना को रोग-शोक से मुक्त रखें और बुढ़ापे को आने से पहले ही रोक लें।

गुरु संकल्पों का व्यावहारिक विस्तार है विश्व जागृति मिशन | Sudhanshu Ji Maharaj

गुरु संकल्पों का व्यावहारिक विस्तार है विश्व जागृति मिशन

अध्यात्म एवं राष्ट्र निर्माण की गंगा को जिस मिशन ने आधार बनाकर जन-जन का उद्धार किया। सेवा, सिमरन, स्वाध्याय, सत्संग, संतोष, समर्पण के सूत्र देकर लाखों लोगों को धर्म की ओर मोड़ा। वृद्धों की पीड़ा, संवेदना को सृजनात्मक जनभाव में बदलने के लिए श्रद्धापर्व चलाया, सुख-शांति की नई दृष्टि व दिशा दी। जिनके संकल्प अभियान से करोड़ों श्रद्धालुओं का जीवन परिवर्तित हुआ, करोड़ो घरों में प्रेम, सद्भाव एवं सद्संकल्प के दीप जले तथा भत्तिफ़ पथ प्रशस्त हुआ। लाखों जनों के दुर्भाग्य-सौभाग्य में बदले। जिनके सतत प्रयास से कॉलेजों में रैगिंग रोकने के लिए कानून बना। जिस अभियान से जुड़कर सैकड़ों युवक धर्मोपदेशक एवं धर्माचार्य बनकर भारत की सनातन संस्कृति का रक्षण करने निकलेे। जिन्होंने अनाथों के दर्द को समझकर बालाश्रम देवदूत अभियान के माध्यम से लाखों छात्रें को संरक्षण, पोषण, शिक्षा एवं स्वावलम्बन दिया। जिनके अभियान में आदिवासी निराश्रित बच्चे निःशुल्क शिक्षा व पोषण-संरक्षण प्राप्त कर रहे हैं। उन सद्गुरु का केन्द्रीय धाम है नई दिल्ली स्थित आनंदधाम आश्रम। उनके विराट अभियान का नाम है ‘विश्व जागृति मिशन’। 1991 की चैत रामनवमी को ओंकारेश्वर मंदिर से प्रवाहित हुई इस मिशन रूपी गंगोत्री की धारा में असंख्य सेवा, साधना, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वाध्याय, सत्संग रूपी सेवा सरिताओं का प्रवाह जुड़कर विराट आकार पा रहा है।

पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज की इस मिशन रूपी विराट यात्र में उपेक्षित वृद्धों, अनाथों, निर्धन बालकों सहित करोड़ों भावनाशील नर-नारी को आध्यात्मिक, धार्मिक पोषण मिल रहा है तथा समाज में फैली अनेक भ्रामकताओं के अन्धकूप में पड़े जन-सामान्य को पीड़ा से मुक्ति का अवसर मिल रहा है। जन-जन में आत्मिक शक्तियों का विकास कर उन्हें मानवसेवा एवं जन-जागृति से जोड़कर श्रेष्ठ समाज के सुनिर्माण हेतु सरअंजाम जुटा रहा यह मिशन अपने में अनुपम है।

करुणा व सेवा का समन्वयः

जहां पुरुषोत्तम भगवान राम की मर्यादा, कृष्ण का कर्मयोग, बुद्ध की करुणा, महावीर की अहिंसा, नानक, कबीर, रैदास एवं अन्य सभी संत महापुरुषों के दिव्य भावों को आपस में समेट इस मिशन ने मानव चेतना को नई दिशा दी, वहीं भारतीय संस्कृति में निहित जीवन मूल्यों, मानवीय सम्बन्धों, आदर्शों, मर्यादाओं एवं परम्पराओं को पुनर्स्थापित करने का भी यह महा-अभियान बनकर उभर रहा है। समाज के समक्ष ‘धर्म एवं विज्ञान’ को एक-दूसरे का पूरक मानकर जीवन को गरिमा पूर्ण ढंग से स्थापित करना इस मिशन का लक्ष्य है। इस प्रकार विश्व जागृति मिशन का धर्म, आस्था एवं मानवसेवा तथा मानव उत्थान का यह अभियान देश भर में पूज्यश्री के सान्निध्य में चल रहा है। आज विश्व के करोड़ों नर-नारी आह्लादित भाव से पूज्यवर एवं उनके अभियान को अपना प्रेरक मानकर सद्पुरुषार्थ रत हैं।

VJM Social initiatives

त्रिस्तरीय विस्तारः

विश्व जागृति मिशन गुरुवर के विराट संकल्प को तीन व्यापक आधारों पर कार्यान्वित कर रहा है। पहला हैµदेश-विदेश में विराट भक्ति सत्संग एवं ध्यान-शिविरों के आयोजन से गुरुदेव द्वारा अपने सरल, सरस, दिव्य उद्बोधनों, प्रवचनों, व्याख्यानों एवं प्रेरणाप्रद सम्बोधनों से मनुष्य की आत्मा को पोषित तथा मानव की प्रसुप्त चेतना शक्ति को जागृत कर उसे देवत्व के तल पर स्थापित करना। दूसरा अपने तप-पुण्य से जन-जन को क्षुद्रताओं के घेरे से बाहर निकालकर निराशा, विषाद, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, क्रोध एवं वैमनस्य से रहित सुख-शांति एवं समृद्धि से परिपूर्ण जीवन जीने की सेवा शक्ति जगाना। तीसरा है भारतीय ट्टषि परम्परा, भारतीय सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत, आर्षकालीन गौरव से भारत को गौरवान्वित करना।

ताकि खुशियों के कमल मुस्करा उठेंः

पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि ‘‘जैसे इस शरीर को पोषित करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, वैसे ही शरीर के अन्दर विद्यमान आत्मा के पोषण हेतु सद्ज्ञान की आवश्यकता रहती है।’’ इस दृष्टि से व्यक्ति की आत्मा को सबल बनाने और उसे उदात्त मानवीय भावों से ओत-प्रोत करने हेतु पूज्यश्री वेदादि शास्त्रें से लेकर आधुनिक युग तक के सभी ट्टषि-मुनि, सिद्ध-सन्त, ज्ञानी, विचारक, चिन्तक, दार्शनिक मनोवैज्ञानिक आदि के गूढ़ जीवन रहस्य के संजीवनी सदृश विचारों को एक साथ अपनी सरल, सरस तथा अलौकिक माधुर्ययुक्त वाणी से जन-जन तक पहुंचाने का स्तुत्य कार्य कर रहे हैं।

जिससे सम्पूर्ण समाज में ऐसा स्वर्गिक वातावरण निर्मित हो, हर व्यक्ति के आंगन में खुशियों के कमल मुस्करायें। घर-परिवार और समाज में वरिष्ठजनों, वृद्धजनों और गुरुजनों का सतत सम्मान-सहकार होने लगे। सन्तानें माता-पिता को सुख, सम्मान और आदर दें, युवा अपने कर्त्तव्य एवं दायित्व को समझें और अपनी ऊर्जा का प्रयोग धर्म, संस्कृति एवं जीवनमूल्यों की रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रनिर्माण में करे। समाज का हर वर्ग नारी को सम्मान दे और हर बच्चा मां की ममता और पिता के प्यार की छांव में आत्मविकास का पथ पाये। इस धरा पर कोई अनाथ न रहे। सम्पूर्ण विश्व शांति, सौहार्द, भ्रातृभाव, सहयोग और अहिंसा की उत्कृष्ट मानवी भावधारा से ओतप्रोत हो, मानवता देवत्व की ऊंचाईयों को स्पर्श करे। इसी को पोषित कर रहा है यह मिशन।

सेवा का बहुआयामी बीजारोपणः

विश्व जागृति मिशन के अनेक सेवा प्रकल्प व्यावहारिक रूप में समाज की आवश्यकता अनुरूप क्रियाशील हैं। वास्तव में मिशन कोई व्यावसायिक प्रतिष्ठान नहीं, अपितु मानव सेवा के क्षेत्र में इस युग का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभियान है। यह मिशन की सेवा मानवता के आंगन को वानप्रस्थ परम्परा, गौ उत्थान, अनाथ बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा आदि रूप में सिंचित कर रही है। आनन्दधाम स्थित शिवशक्ति धाम वानप्रस्थाश्रम को पूज्यश्री ने वानप्रस्थ के आदर्श के रूप में संचालित किया है। वे चाहते हैं कि बुढ़ापा जो जीवन की मिठास, अनुभवों का कोष लिए है, उसके भक्ति द्वारा आत्मिक शक्ति जागरण का महान अवसर मिले, इसलिए वृद्धाश्रम को एक प्रकल्प रूप में स्थापित किया गया है। जो आत्मकल्याण एवं समाजकल्याण हेतु उपयोगी सिद्ध हो रहा है।

आदिकाल से ही गाय को विविध रूपों में मानवकल्याण के लिए उपयोगी माना गया है। हमारी सत्य-सनातन धर्म-धारा में प्रत्येक धार्मिक एवं शुभकार्य में गौ माता की आवश्यकता को महत्व दिया गया है। यह मिशन अपनी कामधेनु गौशाला द्वारा लोगों को गौ सेवा की प्रेरणा देता आ रहा है। आनन्दधाम आश्रम परिसर में स्थापित विशाल कामधेनु गौशाला तथा सम्पूर्ण देश में स्थित पूज्य महाराजश्री के अनेक आश्रमों में गौशालाओं द्वारा भक्तजनों को गौ सेवा द्वारा देवकृपा से जोड़ा जाता है। पूज्यश्री का संकल्प है कि ‘‘देशी नस्ल की गायें, भारतीय जनमानस के लिए दैवीय वरदान रही हैं। देश के प्रत्येक साधक को भी इसे अपने घरों में प्रतिष्ठित करने का यह मिशन संदेश देता है।’’ इसी के साथ परिसर में स्थित करुणासिन्धु अस्पताल स्वास्थ्य सेवा के महान प्रकल्प रूप में लम्बे काल से विशिष्ट नेत्र चिकित्सा के साथ अन्य सभी रोगों की चिकित्सा कर जन सेवा के कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। मिशन के ऐसे ही अनेक प्रकल्प देश-विदेश में संचालित हो रहे हैं, जिनसे जन-जन की सेवा द्वारा पीड़ा निवारण होती है।

जनजागरण केन्द्रों का विस्तारः

अपनी व अपने भक्तों, साधकों की जीवन व कार्यशैली को गुरुवर ने छः भागों में बांट रखा है, सत्संग, सिमरन, स्वाध्याय, सेवा, सहानुभूति एवं सहयोग। मिशन के देश-विदेश के 85 केन्द्रों से इन सबके लिए कार्य चल रहे हैं। मिशन मुख्यालय में देवोपासना के लिए 28 भव्य मंदिरों की स्थापना है, जिसमें ओंकारेश्वर महादेव मंदिर, राधामाधव मंदिर, आनन्दधाम मंदिर दिल्ली, सनातन धर्म मंदिर फरीदाबाद, सोमेश्वर महादेव मंदिर पानीपत, मंगल मूति सिद्ध गणपति मंदिर मुम्बई, सिद्धेश्वर महादेव मंदिर पुणे, अमृतेश्वर महादेवालय हैदराबाद आदि। इन मंदिरों में देवोपासना के साथ ध्यान-साधना के केन्द्र भी संचालित किए जाते हैं। साथ ही सामूहिक प्रार्थना पर बल दिया जाता है। पूज्यवर श्री सुधांशु जी महाराज के गुरुकुल विद्यापीठ एवं उपदेशक महाविद्यालय शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए लोकार्पित हैं। इस प्रकार सहयोग एवं सहानुभूति पर आधारित यह विश्व जागृति मिशन समाज के सम्पूर्ण वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हुए सभी के हित के लिए कार्य करता है। बाल युवा, युवती, वृद्ध, वृद्धा, जवान, किसान, श्रमिक, व्यवसायी, इंजीनियर, डॉक्टर समाज के समस्त के जागरण के लिए यह अभियान है, ताकि कोई भी दुःखी, दीन, शोषित वंचित, पद-दलित न रहे। आप भी इस महाअभियान से जुड़ें, जीवन में सौभाग्य जगायें।

धन दान में लगायें, शनि की कृपा पायें | Sudhanshu Ji Maharaj

Donate money, get the blessings of Shani

धन दान में लगायें, शनि की कृपा पायें

शनि हिन्दू धर्म में नौ मुख्य ग्रहों में से एक है। शनि अन्य ग्रहों की तुलना में धीमे चलते हैं। इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है। अर्थात् जो शनैः-शनैः चले। ज्योतिष में शनि का प्रभावकारी वर्णन मिलता है। शनि वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं, पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान कर विशिष्ट फल प्राप्ति का विधान है।

पौराणिक कथा के अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं, सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ। कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाई। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर वहां से चली गई, कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शास्त्रें में इन्हीं शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है।

शनि वास्तव में न्यायकारी हैं। आत्म परिष्कृत, पवित्र एवं श्रेष्ठ आचरणों वाले व्यक्ति के लिए शनि संरक्षक की भूमिका निभाते हैं। बताते हैं शनि जयंती के दिन किया गया दान-पुण्य एवं पूजा-पाठ सभी कष्टों को दूर करने में सहायक होता है। शनिदेव के निमित्त पूजा हेतु शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित कर उसे सरसों या तिल के तेल से स्नान कराने तथा षोड्शोपचार पूजन व शनि मंत्र ¬ शनिश्चराय नमः के साथ पूजा करने का विधान है। पूजन के बाद पूजा सामग्री सहित शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का भी दान किया जाता है। इस दिन निराहार रहकर मंत्र जप करने से भी शनि कृपा की प्राप्ति होती है। वैसे इस दिन तिल, उड़द, कालीमिर्च, मूंगफली का तेल, आचार, लौंग, तेजपत्ता तथा काले नमक को आहार में उपयोग करने व दान करने का विधान है। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए लोग हनुमान जी की पूजा कते हैं। शनि के लिए दान में दी जाने वाली वस्तुओं में काले कपड़े, जामुन, काली उड़द, काले जूते, तिल, लोहा, तेल आदि वस्तुओं को शनि के निमित्त दान देने से सुख शांति मिलती है। दान का सुपात्र ऐसे आश्रमों को माना गया, जिसमें परमात्मा के न्याय को स्थापित करने का अभियान संचालित हो।

शनि देव काले वस्त्रें में सुशोभित, न्याय के देवता हैं जो योगी तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने में रुचि रखते हैं। सभी जीवों को उसके कर्मों का अवश्य फल प्रदान करते हैं। इसलिए इन्हें ‘कर्मफल प्रदाता भी कहते हैं।’ आइये हम सब जीवन में न्याय, गुरु निष्ठा को स्थान देकर सुकर्म द्वारा भाग्य जगायें, दान देकर सेवा में अपना धन लगायें, शनिदेव की कृपा पायें।

हर वायरस के प्रभाव से मुक्त रहें हमारे बुजुर्ग | Sudhanshu Ji Maharaj

Our elderly should be free from the effects of every virus

परिस्थितियां कैसी भी हो, मौसम बदले, प्राकृतिक आपदा आये अथवा महामारी का प्रकोप बढ़े, अंततः प्रभावित सबसे ज्यादा होते हैं हमारे बुजुर्ग व बच्चे। देश में चल रहे कोरोना वायरस (कोविड-19) के कहर से बुजुर्गों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए इस लेख श्रृंखला में इसी सामयिक पक्ष पर विचार करना आवश्यक है। यद्यपि वायरस अटैक अब तक बहुत सारे हुए पर कोरोना जैसा अड़ियल व खतरनाक वायरस अभी निकट में नहीं दिखा। कष्टकर बात यह है कि अभी तक इसे लेकर न कोई टीका बना, न कोई समुचित उपचार ही है। ऐसे में हमारे बुजुर्गों के लिए सतर्कता और बचाव ही कोरोना (कोविड-19) जैसे वायरस से सुरक्षित रहने के लिए सर्वोत्तम उपाय हैं |
चार दिन की देखभालः

विशेषज्ञों का मानना है कि साबुन व सेनेटाइजर से इसे समाप्त किया जा सकता है। इससे समय-समय पर अच्छी तरह से हाथ धोना, हाथों को सैनिटाइज करना व अपने घर में रहना ही एक मात्र आवश्यक उपाय है। यद्यपि कोरोना से पहले फ्रलू आया, पर फ्रलू जैसा ही वायरस होने के बावजूद इसकी प्रकृति अलग है। अन्य फ्रलू आदि वायरसों की अपेक्षा यह वायरस लोगों में तेजी से फैल रहा है। कोरोना प्रभावितों में सामान्य रूप से बुखार, सिरदर्द, खांसी एवं कफ-बलगम जैसी ही परेशानी होती है, पर किसी को सर्दी-खांसी होने का मतलब यह नहीं कि उसे कोरोना ही हुआ है। फिर भी यदि किसी में इस रोग के लक्षण हैं, तो घर में चार दिन खुद को निगरानी में रखकर कोरोना होने या न होने की पुष्टि की जा सकती है। उक्त लक्षण सामान्य रोग के होंगे तो चार-छः दिन में ठीक हो जायेगा। पर समस्या बढ़ने पर डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
वैसे भी हमारे जिन बुजुर्गों का इम्यून पावर बढ़ा है, तो उन्हें यह घात नहीं करेगा। पर यदि स्वास्थ्य उतना उत्तम नहीं है, तो उम्र के साथ शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण हर बुजुर्ग को अपने शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही लोगों को घबराने की बजाय सतर्कता बरतने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। इस संक्रमण से बचने के लिए (ॅण्भ्ण्व्ण्) विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं सरकार ने भी आवश्यक निर्देश जारी किये हैं।
छूने से पनपता है रोगः
एकबात स्पष्ट करते चलें कि यह वायरस हवा में नहीं तैरता, अपितु हाथ से वायरस प्रभावित वस्तु छूकर उसे मुंह, आंख, नाक, कान में लगाने से यह वायरस व्यक्ति को अपने गिरफ्रत में ले लेता है। यह वायरस मुंह, आंख, नाक, कान द्वारा अंदर जाकर फेफड़े में अपना स्थान बनाता है और धीरे-धीरे व्यक्ति के इम्यून पावर को कमजोर करने लगता है। यदि व्यक्ति का शरीर किसी रोग से पहले से प्रभावित है, तो वायरस उसे तीव्रता से उभार देता है। अंततः रोगी सम्हल न पाया तो उसकी मृत्यु हो जाती है।
सुझाव व भ्रांतियांः
समाज में इस वायरस को लेकर प्रचलित भ्रांतियों के प्रति सावधानी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (ॅण्भ्ण्व्ण्) ने बताया कि गर्म पानी से नहारे से नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) की रोकधाम सम्भव नहीं है। बल्कि कोरोना से बचने के लिए अपने हाथों को साबुन व पानी से लगातार साफ करते रहना आवश्यक है, जिससे रोगी अपने हाथों पर लगने वाले संक्रमण को खत्म कर सकें।
1. कोरोना वायरस श्वसन संबंधी वायरस है, जो मुख्यरूप से संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने से फैलता है। वायरस प्रभावित व्यक्ति की एक अकेली छींक से हजारों कोरोना परमाणु बाहर गिरते हैं और सामने वाला व्यक्ति सतर्क न रहा तो इस वायरस की गिरफ्रत में आते देर नहीं लगती।

2. यदि सामने खड़े व्यक्ति पर रोगी के खासने-छीकने की एक भी बूंद पड़ गयी, तो रोग से प्रभावित होने के लिए इतना ही काफी है। इसलिए प्रभावित व्यक्ति मुंह पर बांह लगाकर छीकें। सामान्य रूप से बुजुर्गों को तो मुंह पर हर समय रुमाल, अंगौछा आदि लगाकर रखना चाहिए।

3. बचाव के लिए हमेशा अपने हाथों को अल्कोहल युक्त हैंडवॉश या साबुन पानी से ही धोते रहें। बचने का सबसे कारगर तरीका यही है। हाथ धोने के बाद टिश्यू पेपर या हैंड ड्रायर्स से हाथ साफ कर सकते है।
4. पहले से अस्थमा, डायबिटीज, हार्ट सम्बन्धी रोग से ग्रस्त लोगों के लिए यह वायरस अधिक खतरे वाला है।

खान-पान जिसका बुजुर्ग ध्यान रखें:

राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) द्वारा बिना किसी खास औषधि बिना वेंटिलेटर के मात्र पोषण युक्त आहार, गर्म पानी एवं सकारात्मक मोटीवेशन से अनेक वायरस प्रभावित रोगियों को ठीक करने की रिपोर्ट आई है। इस प्रक्रिया को बुजुर्गों के साथ अन्य सभी को अपनानी चाहिए, जिससे वे स्वस्थ बने रहें। इस संदर्भ में जिम्स के डॉयरेक्टर ब्रिगेडियर डॉ- राकेश गुप्ता के अनुसार 20 चिकित्सकों की टीम ने वायरस प्रभावित व्यक्ति पर 24 घंटे नजर रखी। शरीर के घटते-बढ़ते तापमान की समीक्षा की तथा स्टैण्डर्ड प्रोटोकाल को ध्यान में रखकर रोगियों को हेल्दी डाइट, मोटीवेशन, गर्म पानी एवं प्रसन्नता भरे मन से जोड़े रखा। परिणामतः वे सभी रोगी क्रमशः पूर्णता वायरस मुक्त हुए।
1. बुजुर्ग हर समय केवल गर्म पानी ही लें।
2. उच्च रक्तचाप, गले के दर्द, जुकाम व बुखार सम्बंधी लक्षण न उत्पन्न हों, इसके लिए हर समय उचित खान-पान का ध्यान रखें।
3. दाल का पानी एवं सूप नास्ते में लें।
4. चावल, ठंडा पानी, दही व अन्य ठंडी चीजें खाने से पूर्णतः बचें।
6. पपीता, सेव का सेवन इच्छा अनुसार करें।
7. हरी सब्जी लौकी, तोरी अपने डिनर में अवश्य सामिल करें।
8. प्रातः 7 से 8 बजे तक नास्ता अवश्य कर लें।
9. दोपहर का भोजन 12 बजे तक आवश्य लें।
10. रात्रि में 7 से 8 बजे तक भोजन अनिवार्य रूप से कर लें।
11. भरपूर नींद लें जिससे शरीर ताजा रहे।
12. योग, प्राणायाम एवं हल्की फुल्की एक्सरसाइज करें।
13. मनोबल बढ़े ऐसे साहित्य व गुरु सत्संग का श्रवण करें।
14. यज्ञ, ध्यान आदि से जुड़े रहे।
इस प्रकार की दिनचर्या से हर बुजुर्ग कोरोना सहित किसी प्रकार के वायरस से प्रभावित होने से बचा रहेगा।

मुश्किल की इस घड़ी में इन बच्चों के भविष्य निर्माण में सहायक बनें। Vishwa Jagriti Mission

नई पीढ़ी का सुन्दर निर्माण

गुरुवर ने अनुभव किया कि समाज, राष्ट्र एवं विश्व में जागृति का कोई भी प्रयत्न क्यों न हो, व्यक्ति के निजी चिन्तन, चरित्र, आचरण एवं व्यवहार में उत्कृष्टता लाए बिना वह पूरा नहीं होगा। इसके लिए निरन्तर गम्भीर आध्यात्मिक पुरुषार्थ करने होंगे, साथ ही नई पीढ़ी को भारतीय ट्टषिप्रणीत गौरव से ओतप्रोत शिक्षा और संस्कारों से जोड़ना होगा। इस प्रकार व्यक्ति की आत्मा को सबल बनाने और उसे उदात्त मानवीय भावों से ओत-प्रोत करने हेतु पूज्यश्री ने शिक्षा क्षेत्र में तपः पूर्ण प्रयोग प्रारम्भ किये। गुरुकुल शिक्षा के साथ-साथ उन नौनिहालों-किशारों को भी अपने तपःपूर्ण शिक्षा से जोड़ा, जो धरती पर जन्म तो ले चुके थे, पर उनका न कोई पालन-पोषण करने वाला था, न ही उनमें जीवन के प्रति आशा जगाने वाला कोई सहारा था। जो बच्चे अपने-माता-पिता से दैवीय व अन्य कारणों से वंचित थे। चौराहों, गलियों के बीच उनका जीवन भूखे-प्यासे बीत रहा था। ऐसे बच्चों के पालक एवं तारण हार बनकर साक्षात नारायण के रूप में सामने आये पूज्य सद्गुरु सुधांशुजी महाराज और उनके शैशव से किशोरकाल तक शिक्षण, पोषण एवं संरक्षण पर शिक्षा संस्थानों की देशभर में स्थापनायें प्रारम्भ की। आज भी देश के करोड़ाें बचपनों को बेहद दुःखी और व्यथित देखकर पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि देश के अनाथ बच्चों के प्रति संवेदनशील होना हर सभ्य समाज का अत्यन्त महत्वपूर्ण दायित्व है। फुटपाथों, गलियों और जंगलों में भटकता इस बचपन को सम्हाला व संवारा न गया, तो ये अपनी ही भारत मां के सीने में घाव कर सकते हैं।’’

इसी संवेदनाओं से विश्व जागृति मिशन द्वारा आनंदधाम परिसर में सर्वप्रथम महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ स्थापित हुआ। तत्पश्चात् सूरत (गुजरात) में बालाश्रम, कानपुर (उ-प्र-) में देवदूत बालाश्रम, ज्ञानदीप विद्यालय फरीदाबाद (हरियाणा), झारखण्ड के रुक्का एवं खूंटी में बाल सेवा सदन सहित अनेक बाल सेवा के संरक्षण केन्द्रों की स्थापनायें हुईं, जिसमें पूज्यवर के स्नेह भरे संरक्षण मार्गदर्शन में हजारों बच्चे निःशुल्क पोषित-शिक्षित एवं
संस्कारित हो रहे हैं।
शिक्षा में गुणवत्ता एवं गरिमा का समुच्चय केन्द्र बालाश्रम, सूरत (गुजरात):
लगभग दो दशक पूर्व जनवरी के गुजरात भूकम्प त्रसदी में अनाथ बच्चों को संरक्षण देने की भावधारा में इस अनाथालय का निर्माण हुआ। उन दिनों मिशन में अल्प साधन के बावजूद इस बालाश्रम का गुरुवर ने निर्माण कराया। माननीय जार्ज फर्नाण्डीज एवं अनेक गणमान्य प्रतिष्ठित जनों की गरिमामयी उपस्थिति में पूज्यवर के सान्निध्य में उद्घाटन किया गया। तब से लेकर आज तक अनवरत चल रहे इस बालाश्रम में सैकड़ों अनाथ बच्चों के स्वर्णिम भविष्य का निर्माण हो रहा है। सैकड़ों विद्यार्थी विश्व जागृति मिशन के प्रयास से भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में उच्च गुणवत्ता वाली अत्याधुनिक स्कूली शिक्षा प्राप्त कर स्वयं को समाज की मुख्य धारा के अनुकूल बना रहे हैं। इसी
में से अनेक बच्चे प्रान्त स्तर पर विविध प्रतिस्पर्धाओं में स्वर्ण पदक भी प्राप्त कर चुके हैं।

संस्कार एवं विज्ञानयुक्त शिक्षा केन्द्र देवदूत बालाश्रम, कानपुर (उ-प्र-):
विश्व जागृति मिशन कानपुर मण्डल के बिठूर स्थित सिद्धिधाम आश्रम में प्रारम्भ हुए इस बालाश्रम में आज सैकड़ों अनाथ बच्चों का जिस रूप में जीवन निर्माण हो रहा है, वह सम्पूर्ण मानव समाज के लिए मानव सेवा का महान आदर्श है। प्राचीन ज्ञान एवं आधुनिक विज्ञान से युक्त यहां की अत्याधुनिक शिक्षा मिशन के कार्यकर्त्ताओं, योग्य शिक्षकों द्वारा प्रदान की जाती है। वेदादि शास्त्रें से लेकर योग, नैतिक मूल्य, सुसंस्कार आदि के साथ कम्प्यूटर, योग, खेल आदि तकनीकों से भी इन बच्चों को जोड़ा जा रहा है। आश्रम के ये बच्चे अपने को मिशन
परिवार का अंग मानकर गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। यहां इनके शिक्षण, आवास, भरणपोषण की उच्चस्तरीय व्यवस्था है। बालाश्रम की उत्कृष्टता मानव निर्माण की महाक्रान्ति को देखने देश-विदेश से अनेक गणमान्य आकर यहां से प्रेरित होते हैं। भविष्य में देश के विभिन्न नगरों में ऐसे गुणवत्ता वाले अनाथालय खोलने की मिशन की योजना है। पूज्यवर द्वारा मिशन के इन अनाथ बच्चों की शिक्षा विश्वविद्यालय स्तर तक कराने एवं उन्हें आत्मनिर्भर बनाने तक जारी रखने का संकल्प है।

सफलताओं का सुनिश्चेतर महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ, आनन्दधाम:
पूज्य महाराजश्री ने वर्षों पूर्व आनन्दधाम आश्रम, नई दिल्ली में इस गुरुकुल की स्थापना की। लक्ष्य रखा संवेदनशील इस आयु वर्ग के बच्चों में वैदिक एवं आधुनिक शिक्षा का समावेश करना। बच्चों को आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक से भी परिचित कराने हेतु कम्प्यूटर, इंटरनेट की शिक्षा से जोड़ने हेतु मिशन ने प्रतिबद्धता दिखाई। विद्यार्थियों की शिक्षा, भोजन, आवास, वस्त्र तथा अन्य सभी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति विश्व जागृति मिशन इन्हें निःशुल्क करता है। छात्रें के लिए यहां का सुंदर विशाल परिसर अपने में उदाहरण है। यही नहीं विद्यार्थियों के लिए बने शिक्षण कक्ष, सभागार से लेकर, खेल का मैदान, प्रतियोगिताशाला, दिव्यतापूर्ण यज्ञशाला, उपासना कक्ष, भोजनालय देखकर किसी का भी मन अपने बालकों को इस गुरुकुल से जोड़ने हेतु मचल उठता है। प्रातः जलपान से लेकर भोजन तक की उत्तम सुरुचिपूर्ण व्यवस्था बच्चों के स्वास्थ्य संवर्धन एवं मानसिक विकास का अपना अलग श्रेष्ठ संदेश देता है। इस गुरुकुल में शिक्षण के लिए उच्च स्तर के शिक्षक तो हैं ही साथ-साथ पूज्य महाराज श्री स्वयं इन बच्चों के लालन में प्रत्यक्ष भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि यहां के बच्चे अनेक आधुनिक प्रतियोगिताओं में उच्च सफलता पाते आ रहे हैं। योग, खेल, ध्यान, गायन, वादन, गीता व वैदिक ज्ञान कण्ठस्थ बच्चों की यहां सहज बहुलता
मिल जाएगी। अपने उत्कृष्ट शिक्षण के चलते दिल्ली संस्कृत अकादमी से लेकर विविध विश्वविद्यालय के कुलपति व आचार्यों की ओर से यह गुरुकुल अपने प्रारम्भ काल से ही प्रशंसा प्राप्त करता आ रहा है। विगत दिनों इस गुरुकुल से निकले अनेक ब्रह्मचारी सम्पूर्ण भारत को धर्म, मानवता, सद्भाव एवं एकता का संदेश देकर धरा को स्वर्ग बनाने का प्रयास करने में लगे हैं।ऐसे गुरुकुल में अपने बच्चों का विद्याध्ययन कराना हर किसी के लिए गौरव का विषय है।

शिक्षा एवं संस्कृति का केन्द्र महर्षि वेदव्यास उपदेशक महाविद्यालय:

देश में धर्मोपदेशकों की आवश्यकता को महसूस करते हुए पूज्यवर ने धर्माचार्य प्रशिक्षार्थियों के निर्माण हेतु उपदेशक महाविद्यालय की स्थापना की। लोक पीड़ा को सेवा में परिवर्तित करने वाले युवाओं को गढ़ना गुरुसंकल्प की यह विशेष कड़ी है। इस विद्यालय में  शिक्षार्थियों को योग, ध्यान, यज्ञ, सत्संग, जप-उपवास के साथ रामायण, मानस, भागवत् आदि विषयों में पारंगत करने हेतु महाविद्यालय में इस स्तर पर सरंजाम जुटाये गये हैं कि शिक्षण बाद यहां से निकलने वाले उपदेशक मात्र कथावाचक बनकर न रहें, अपितु लोक पीड़ा का अहसास करते हुए राष्ट्र सेवा में हाथ बंटा सकें। आज देश को वानप्रस्थियों, उपदेशकों की की जरूरत है, जो देश व विश्व के जनमानस को झकझोर कर उन्हें भ्रांति, भय व लोभ से बाहर निकाल सकें। विश्व जागृति मिशन का यह महर्षि वेदव्यास उपदेशक महाविद्यालय इसी संकल्प से स्थापित है। पूज्य गुरुदेव के संरक्षण में प्रशिक्षित हो रहे ये छात्र भविष्य में संवेदना, सेवा, साधना आंदोलन के कर्णधार बनकर उभरे तो आश्चर्य नहीं।
प्रशिक्षण के दौरान संस्कृत, संस्कृति, कर्मकाण्ड, धर्म विज्ञान, योग विज्ञान, संगीत, आयुर्वेद इत्यादि में विद्वानों द्वारा इन्हें निष्णात् कराया जाता है। इन प्रशिक्षणार्थियों को निःशुल्क शिक्षा, भोजन, आवास के साथ-साथ मिशन की ओर से प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी इसलिए दी जाती है, जिससे वे अपने को परावलम्बी अनुभव न करें। प्रशिक्षणोपरान्त देश में विश्व जागृति मिशन के विभिन्न सेवा केन्द्रों में इन उपदेशकों को लोक सेवक की भूमिका में मिशन स्थापित करेगा, जिससे ये अनुभवशील हो सकें।

सद्गुरुदेव जी के स्वप्नों का साकार आदर्श प्रतिमान ज्ञानदीप विद्यालय फरीदाबाद :

ज्ञानदीप विद्यालय फरीदाबाद से दसवीं की कक्षा पास करने के उपरान्त अन्य योग्यताएं प्राप्त कर कविता, सिमरन और खुशबू ने कभी स्वप्न में भी नहीं सोच होगा कि वह एक दिन क्रमशः हरियाणा पुलिस में भरती होकर कांस्टेबल बन जायेंगी या कम्प्यूटर टीचर अथवा सामान्य टीचर बन जायेंगी, किन्तु पूज्य सद्गुरुदेव जी की अनन्य कृपा से समय ने यह सत्य सिद्ध कर दिया। आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व इस मण्डल के तत्कालीन प्रधान गुरुदेव जी के प्रिय शिष्य श्री सतीश सतीजा ने छोटी-छोटी गरीब बच्चियों को प्रातःकाल कूड़ा बीनते, भीख मांगते देखा तो उनके मन में एक भाव जागृत हुआ कि कि क्यों न वह इन बच्चियों के लिये शिक्षा की व्यवस्था करके इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़कर इनके जीवन को संवारा जाये और सत्य में इन बच्चियों का भविष्य संवरने लगा और संवर भी गया। सतीजा जी ने गुरुदेव जी से स्वीकृति लेकर जून 2001 में 5 छोटी-छोटी कन्याओं से लेकर आश्रम में नर्सरी कक्षा प्रारम्भ की। वर्ष 2002 में 28 कन्याएं दाखिल हुईं, जिनमें अब हरियाणा में लेडीज विंग में सिपाही बनी कविता भी शामिल है। जिसको अप्रैल 2002 में प्रवेश दिया गया। इन बच्चियों के मां बाप को प्रारम्भ में समझाने में बहुत कठिनाइयां आईं कि अपनी बच्चियों को पढ़ने के लिए भेजो क्योंकि वे तो उनकी रोटी का साधन थीं। सतीजा जी और उनके साथ उनकी पत्नी और साथी उनके साथ मंदिर के पास झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनियों, राहुल कॉलोनी, चार नम्बर
आदर्श कॉलोनी और संजय कॉलोनी में जाते थे और माँ-बाप बड़ी मुश्किल से कन्याओं को भेजने के लिए तैयार होते थे। कविता राहुल कॉलोनी से आई थी। अब ज्ञानदीप विद्यालय में 700 कन्याएं और 300 बालक हैं। बालिकाएं प्रातः और बालक शा की शिफ्रट में आते है। बालकों का प्रवेश भी 2005 में प्रारम्भ हो गया था। कन्याओं की संख्या जानबूझकर ज्यादा रखी गई है, क्योंकि गुरुदेव मानते हैं परिवार में शिक्षित एक नारी भी पूरे परिवार का रूप बदल देती है। इस विद्यालय में नर्सरी से लेकर दसवीं तक शिक्षा दी जाती है। आठवीं कक्षा तक
इसे हरियाणा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। सभी विद्यार्थियों को एक समय का खाना, पुस्तकें, वेशभूषा, जूते, स्वेटर निःशुल्क दिये जाते हैं। इन्हें पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षा देने के साथ-साथ संगीत, सिलाई, कम्प्यूटर का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। खो-खो, बैडमिन्टन जैसे खेल भी करवाए जाते हैं। यहां विद्यालय में सभी पर्व, त्यौहार, मिशन के पर्व, राष्ट्रीय पर्व बड़े उत्साह से मनाये जाते हैं। सूरजकुण्ड मेले में इन बालिकाओं के विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। यहां की कन्याएं आनन्दधाम आश्रम में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में नाटक, कव्वाली, भजन, नृत्य जैसे कार्यक्रम भी प्रस्तुत करती हैं। विद्यालय की प्रधान अध्यापिका सीमा अरोड़ाा एवं 20 अध्यापिकाएं विद्यालय के
विकास के लिए पूर्णतया समर्पित हैं। विद्यालय की बालिकाओं ने वर्ष 2016 में भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जी से भी भेंट कर उनसे आशीर्वाद लिया।
2012 में श्री राजकुमार अरोड़ाा इस मण्डल के प्रधान बने और उन्होंने विद्यालय के लिए एक नये सुन्दर भवन का निर्माण करवाया गया। वह गुरुदेव जी के साथ काफी व्यस्त रहते हैं, किन्तु उनकी टीम में अनेक समर्पित भक्तजन हैं। सर्वश्री वी-के- सिंह, पी-डी- आहूजा, सतीश विरमानी, कंचन सुनेजा, रविन्द्र शर्मा एवं एच-बी- भाटिया व अन्य, जिन्होंने अरोड़ा जी के आत्मीय मधुर स्वभाव से प्रेरित होकर इस विद्यालय के लिए बहुत परिश्रम किया है। इस क्षेत्र की विधायिका श्रीमती सीमा त्रिखा जी का भी विद्यालय को काफी आशीर्वाद प्राप्त है। प्रत्येक मास विद्यार्थियों को माता-पिता के साथ पी-टी-एम होती है। अब इस विद्यालय में बच्चों को प्रवेश दिलवाने के लिए निवासियों में होड़ लगी रहती है। ज्ञानदीप विद्यालय का नाम अब फरीदाबाद में काफी प्रसिद्ध है। विश्व जागृति मिशन के देश भर में 85 से अधिक मण्डलों में फरीदाबाद मण्डल का नाम हर दृष्टि से शिखर वाले मण्डलों में है। फरीदाबाद आश्रम में विशाल भव्य मंदिर है, शिवालय है, सत्संग हॉल है, परामर्श कक्ष है और आरोग्यधाम अस्पताल है। अस्पताल में ई-सी-जी-, एक्सरे सहित सभी सुविधाएं और विभाग हैं। अब तक इस
अस्पताल में 10 लाख से अधिक मरीजों का उपचार हो चुका है।

प्रत्येक मास सत्संग का आयोजन किया जाता है जिसमें सैंकड़ों भक्तजन उपस्थित होते हैं। प्रत्येक वर्ष नगर में गुरुदेव जी के सान्निध्य में भव्य विराट भक्ति सत्संग का आयोजन किया जाता है, जिसकी व्यवस्था और प्रबन्ध देखने योग्य होता है। प्रत्येक वर्ष सत्संग के सुगम आयोजन में श्री एच-सी- सुनेजा विशेष परिश्रम करते हैं। शारीरिक मजबूरी के बावजूद घर-घर जाकर लोगों को सहयोग देने और सत्संग में आने की प्रार्थना करते हैं। इस मण्डल को सेवाकेन्द्र कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। सेवकों और कार्यकर्त्ताओं की भरमार है, जो हर सेवा के लिए निरन्तर तत्पर रहते है। निःस्वार्थ अधिकारियों के सेवाभाव व समर्पण से ही मण्डल सेवा केन्द्र बन जाते हैं।

यथार्थ में फरीदाबाद में ज्ञानदीप विद्यालय सद्गुरुदेव जी महाराज की सात्विक और परोपकारी सोच, समाज कल्याण के चिन्तन का साक्षात स्वरूप है। गरीब बच्चों को अमीर परिवारों के बच्चों जैसा वातावरण और सुविधाएं देकर उनके जीवन को सुधारने, सजाने और संवारने का काम कई वर्षों से चल रहा है। खुदा की रहमत से एक दरवेश ने मासूम बच्चियों की किस्मत संवार दी, जो भटकती थीं गलियों में दर-बदर, उनकी हालत सुधार दी, अब उन्हें भी जीने में फखर है। हजारों दुआएं देती हैं, वे उस महामानव को, जिसने उनका समाज में मान बढ़ाया है, जिसने उनको जिन्दगी में जीना सिखाया है।