पुण्यवर्धक है नववर्ष में ब्रह्मयज्ञ | Sudhanshu Ji Maharaj

पुण्यवर्धक है नववर्ष में ब्रह्मयज्ञ

पुण्यवर्धक है नववर्ष में ब्रह्मयज्ञ

यज्ञका अर्थ आग में घी डालकर मंत्र पढ़ना नहीं होता। यज्ञ का अर्थ है- शुभ कर्म। श्रेष्ठ कर्म। सतकर्म। वेदसम्मत कर्म। सकारात्मक भाव से ईश्वर-प्रकृति तत्वों से किए गए आह्‍वान से जीवन की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है। मांगो, विश्वास करो और फिर पा लो। यही है यज्ञ का रहस्य। यजुर्वेद मुख्यतः यज्ञ करने की सही प्रक्रिया व उसके महत्व के बारे में बताता है। इसी कारण इसे कर्मकांड प्रधान ग्रंथ भी कहते हैं। अश्वमेध, राजसूय, वाजपेय, अग्निहोत्र आदि अनेक यज्ञ करने, करवाने का विस्तारपरक वर्णन इसी में है। आज कोरोना संकट काल के जिस दौर में पूरा ब्रह्माण्ड विक्षुब्ध है, इस ब्रह्मयज्ञ की महिमा और बढ़ जाती है। यह यज्ञ कृमिनाशक एवं वातावरण, पर्यावरणशोधक भी तो है।

यज्ञ प्रयोजन में प्रयुक्त होने वाली औषधियों की प्रार्थना महिमागान करते हुए यजुर्वेद में कहा गया है।-

             शयिता नो वनस्पतिःसहस्व मे अरातीः सहस्व पृतनायतः। सहस्व सर्व पाप्नात ¦ सहमानास्योषधेः।।

अर्थात् हे यज्ञदेव वनस्पतियां हमें शांति-प्रदान करें। रोगों को दूर करें। पूज्य गुरुदेव कहते हैं ‘‘दिव्य संकल्पों के साथ यज्ञाहुतियों से वातावरण का परिष्कार एवं संवर्धन  होता है, साथ ही मंत्र प्रयोग से देवशक्तियों के सूक्ष्म प्रभाव से जुड़ी शक्तिधाराओं का साधक के जीवन में स्थापना होती है। यजुर्वेदीय यज्ञ में यह क्षमता और भी बढ़कर देखने को मिल सकती है।’’ क्योंकि रोगों, कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए यज्ञ धूम्र की शक्ति को प्राचीनकाल में भली प्रकार परखा जा चुका है। इसके उल्लेख स्थान-स्थान पर उपलब्ध हैं। यजुर्वेद परम्परा का यह मंत्र यही तो संदेश एवं प्रयोग की प्रेरणा देता है।

दिवि विष्णु व्यक्तिस्त जागनेत छंदसा। तते निर्भयाक्ता योस्यमान द्वेष्टि यंच वचं द्विषमः।

अन्तरिक्षे विष्णुव्यक्रंस्त त्रेप्टुते छन्दसा। सतो नर्भक्तो।

पृथिव्यां विष्णुर्व्यक्रस्तंगायणे छन्दसा। अस्यादन्नात्। अस्ये प्रतिष्ठान्ये। अगन्य स्वः संज्योतिषाभूम। 

             इस विशिष्ट ब्रह्मयज्ञ द्वारा यज्ञ के इसी ज्ञान एवं विज्ञान का प्रयोग ही तो आनन्दधाम आश्रम में पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में सम्पन्न होने जा रहा है। इसके लिए गुरुधाम में यज्ञीय प्रयोगशाला निर्माण सहित सभी तैयारियां पूरी हो चुकी है। हवन सामग्री मंत्रें का चयन इस स्तर का हो रहा है कि याजकों के सातों ऊर्जा चक्रों में जागरण सम्भव हो सके वातावरण के सूक्ष्म विकार मिटे। इससे साधक दीर्घ जीवन, सुख, सौभाग्य, शांति, आरोग्यता और सम्पन्नता प्राप्त करे। दिव्य शक्तियोंका सान्निध्य प्राप्त करें, यही गुरुवर की अपेक्ष है। इसी कारण आश्रम में विगत 20 वर्षों से सम्पन्न हो रहे महायज्ञों में नववर्ष का यह यज्ञ अति विशेष है।

Is there a Solution to Pollution? | Sudhanshu ji Maharaj

Is there a Solution to Pollution

 

Our beloved country, India is the country of Himalaya, Maa Ganga, and Dev Sanskriti. Here, religion is of utmost importance because our religious scriptures have answers to all pertinent questions. 

In the Bhagavad Gita, Lord Krishna says, “The visible forms of my nature are: Earth, Water, Fire, Air, Ether; the Mind, Reason, and the sense of ‘I’.” 

That means nature is God.

Therefore, this should always be our duty and supreme goal in life to keep nature clean. We must believe in the dictum-

‘Cleanliness is next to Godliness.’ 

‘स्वच्छता देवत्व के निकट है।

Now inscribe these five points in your heart and follow them passionately.

  • I will not degrade the quality of air, soil, or water by unsuitable disposal of waste
  • I will actively support programs that promote planting and nurturing trees
  • I will leave no stone unturned to keep my surroundings clean
  • I will strive with all my heart to make sustainable use of nature  
  • I will respect the natural environment on which I depend

Today, on 2nd Dec, as the whole country is observing National Pollution Control Day, take a pledge to follow these points religiously.

Our country observes National Pollution Control Day in memory of the people who lost their precious lives in the tragic Bhopal Gas Tragedy of 1984. The key objectives of National Pollution Control Day are raising awareness about the increasing air pollution and educating people about how to control and manage industrial disasters. 

Concrete steps must be taken to fulfill these objectives.

1. Say No to Plastic

You can always refuse to use products like plastic bags, plastic cups, plastic utensils, and other stuff.  Let’s find a reusable option for all single-use plastic items, and it will make a big difference in our environment. Look around in your house and you will find various sustainable alternatives; use jute bags, cotton bags, and other home-made reusable containers.

Make a habit of carrying one such bag while going to the market for shopping. If every household develops this habit, it will bring a positive change in the environment.

 2. Promote Local Products and Be Vocal About it

While shopping, focus on buying locally grown products as local is the new global. And when you are promoting and buying local products, you are lowering the burden of transportation, handling, and packaging. This ultimately leads to a clean and sustainable environment.

Furthermore, for an economically independent India, we need to offer our total support to local businesses. Purchase products that are made in India, made for India and also for the world. These homegrown products shouldn’t just be bought but, also heavily promoted so that our country can become self-dependent.

3.Plant Trees

Ample greenery is necessary for the survival of human beings but unfortunately, industrialization has taken away our green spaces that help in keeping the environment clean. Start planting trees from today so that you can make green space a reality for the coming generations. Try your hand at gardening. Plant vegetables and herbs in your kitchen garden and use them. If you don’t have your own space, you can donate a tree in your area, to schools, colleges, and other organizations.

4. Develop Sustainable Transportation Habits

Take all steps to reduce your carbon footprint ominously. In cities, several protocols are introduced regularly to reduce pollution. We can follow them easily and it will solve the problem.  Travel by electric vehicles if possible. Also, since we are fighting the covid-19 pandemic, stay at home and avoid all non-essential travel.

5. Respect Mother Nature by Heart

Mother Nature is the key to a healthier, happier, and better tomorrow. Our top priority should be the protection of natural resources and that will be the ultimate veneration of mother earth.
Become mindful of issues related to the protection of the environment and be compassionate in your attitude while making choices in your day to day life.

Anyone can start their spiritual journey by understanding that, no matter what happens to human beings, no matter what happens to the world, Mother Nature will survive. She is the embodiment of eternity and strength beyond any human idea and philosophy. So, respect Mother Nature from the core of your heart and take this pledge to keep her clean and pollution-free always.
Blessings!

गुरु कृपा से तय करें अपने कर्म की दिशा | Guru Kripa

गुरु कृपा से तय करें अपने कर्म की दिशा

गुरु कृपा से तय करें अपने कर्म की दिशा

मौसम बदलता है, बाहरी दृष्टि से सर्दी पड़ती है, पर व्यक्ति सर्दी तो हटा नहीं सकता, सर्दी से बचाव करता है। तेज धूप पड़ रही है, तो सूरज को मना नहीं कर सकते कि धूप इतनी क्यों दे रहे हो, खुद का ही बचाव करना पड़ता है। वैसे ही सूक्ष्म कर्मों से प्राप्त होने वाले फल के लिए भी विधान हैं।
मनुष्य के संचित कर्म पकने की स्थिति में आ गये, तो वह सुख बनकर या दुःख बनकर आपके सामने आएगा ही। इस प्रकार सौभाग्य आ गया तो अनुकूल स्थितियां बनेंगी। तब कर्म की अनुकूल स्थितियां ऐसी बनेंगी कि खुद थोड़ा कर्म करोगे और दूसरों से बड़ा सहारा मिलेगा। कोई मित्र मिलेगा, कोई अच्छा भरोसेमंद व्यक्ति मिल जाएगा, कोई साथी मिल जाएगा, बहुत सारे सम्बन्धी बनेंगे और व्यापार, काम-धंधा बढ़ चलेगा। कारोबार में, आपके पद-प्रतिष्ठा में तरक्की होगी। यही नहीं सौभाग्य के दिनों में जब आप कोई भी बात जाने-अनजाने में गलत भी बोल दें, तो भी दूसरा बुरा नहीं मानेगा।
अगर समय बुरा आ गया, दुर्भाग्य आ गया तो फिर सब उल्टा होगा। यदि दुर्भाग्य आया और आप अच्छी बात कहेंगे, तो भी लोग बात का बुरा मान जायेंगे। योजना आपने सही बनाई उसके बाद भी घाटा हो जाएगा या फिर फायदा नहीं होगा। एकदम उल्टा हो जाएगा। इसी के साथ यह भी सत्य है कि कर्म से कर्म को काटा जा सकता है। पर तब जब कर्म ज्ञानपूर्वक किया जाए, होश पूर्वक किया जाए। यह हमारे गुरुओं, संतों, शास्त्रें का मत है। इसलिए जीवन में सुखद-अनुकूलता के जहां लिए तीन चीजें महत्वपूर्ण है-ज्ञान, कर्म और उपासना। बढ़ी ईश्वर व गुरुकृपा भी जरूरी है। कर्म हमें सुख सौभाग्य से जोड़ते हैं, गुरु इसमेें सहारा बनता है। यही हमारे दुःख की घड़ी से बचाव का अस्त्र है।
मनुष्य को अपनी प्रकृति का अवलोकन भी करते रहना पड़ता है। अपने दुख एवं कष्टों पर भी दृष्टि बनाये रखनी पड़ती है कि यह दुख हमारे कर्मों की जटिलताओं से उपजा है या मौसम या किसी अन्य स्थिति से व स्वाभाविक है। इस प्रकार आंकलन से भी राहत मिलती है। वैसे मानव मन की एक विशेष प्रकृति है अगर मनुष्य गरमी में है, तो वह छाया की तरफ भागेगा। ठंडक की तरफ बहुत चला गया, तो गरमी की तरफ वह दौड़ना ही चाहेगा। इस स्वभावजन्य पड़ाव से भी वह सहज अपने दुःख से निपट सकता है। गुरु पर विश्वास करके चलने वाले हर स्थिति में सही आंकलन करने में सफल होते हैं और निश्चिंत रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि समस्या को तो सदैव मिटा नहीं सकतें, वह कर्म विधान से जुड़ी हो या सहजवस, पर एक रास्ता है अपनी सामर्थ्य शक्ति को बढ़ाना और गुरु-भगवान की कृपा प्राप्त करना। इसप्रकार गुरु के मार्गदर्शन एवं कृपा का सहारा लेकर अपनी कठिनाइयों से पार पायें, जीवन को सौभाग्यशाली बनायें।

Timeless Teachings of Guru Nanak Dev Ji | Gurpurab

Timeless Teachings of Guru Nanak Dev Ji

Timeless Teachings of Guru Nanak Dev Ji

“I bow at His Feet constantly, and pray to Him, the Guru, the True Guru, has shown me the Way.” Guru Nanak Dev Ji. Kartik is the most sacred and magnificent of all months. The month is dedicated to Lord Shiva, Lord Vishnu, and Goddess Lakshmi. The highly auspicious festival of Kartik Purnima (Dev Diwali, Tripuri Poornima, or Tripurari Purnima) falls in this month during which devotees pray for success, affluence, and happiness in life. The full moon day of this Kartik month is also celebrated as Gurpurab, Guru Nanak Jayanti.
Gurpurab, marks the birth of the first Sikh Guru, Guru Nanak Dev, and is also known as Prakash Utsav It is a day of reverence and reminder for the devotees to follow the teachings of Guru Nanak Dev and his selfless service to people. Guru Nanak Dev is the founder of Sikhism and the first of the ten Sikh Gurus.
On this auspicious day, Sikhs around the world gather at Gurudwaras to celebrate their Guru and His teachings. Gurudwaras are decorated gracefully and people chant hymns from the scriptures. The sacred day is also marked with Gatka (traditional martial arts), grand processions of the Guru Granth Sahib, and the glorious Sikh flag, the Nishan Sahib.
Guru Nanak Dev Ji’s social and spiritual teachings are timeless. They guide all men to promote equality, love, fraternity, and virtue. These teachings are marked with a universal appeal, they are deep, and the source of these teachings is the Holy Scripture, The Guru Granth Sahib.

The Essence of Guru Nanak Dev’s Teachings

1.  One God: There is only one God who is the Supreme Truth and ultimate reality. He reveals Himself to human beings through His own grace.
2. Shun the five evils: The evils of Ego, Anger, Greed, Attachment, and Lust gravitate you towards Maya and hinder your spiritual progress. Thus, become Egoless and purify yourself with daily devotions.
3. Practice the Three Principles of Spiritual Life: Vand Chhakkna – Share with others; Kirat Karna: Earn with honestly; Naam Japna – remember God limitlessly
4. Equality: Shun away all discrimination against people based on race, status, and caste. Guru Nanak Ji started Langar or community kitchens based on this philosophy.
5. Service for all mankind: Sewa and Simran go hand in hand. See God in the poor, serve them, and get closer to God.
6. Submission to the will of God: Waheguru, O’God, you are Supreme. Love God and trust God. Trust Him for He has a plan for you and a perfect one.
7. The Guru leads you to God: Without the guidance and Grace of a Guru, none can cross the ocean of life. Guru’s grace shall eliminate delusion and light up your path to the divine. Only an awakened Guru has the truthful knowledge and can lead the seekers to salvation.
More timeless teachings of Guru Nanak Dev Ji can be found in the Guru Granth Sahib. May this auspicious day bring peace and happiness in your life and may every seeker be successful in the quest of his Guru, his Divine Master who can lead him on the path of inner awakening.

जिनको आप अपने जीवन में अपनाएंगे तो निश्चित ही परमात्मा की कृपा पाएंगे!

आत्मचिंतन के सूत्र

 

जिनको आप अपने जीवन में अपनाएंगे तो निश्चित ही परमात्मा की कृपा पाएंगे!

• हर दिन को धन्यवाद् करते हुए शुरू करो.
• संत पुरुषों के दर्शन से आपका भाग्य संवरता है
• अपने जीवन में अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए, जप तप सत्कर्म यज्ञ याग सत्संग वंदन – इन्हें जारी रखना चाहिए!
• कथा करो तो दूसरों के ऐब की नहीं लेकिन हरी की! हरी कथा तो दूर करती है दुखों को, पापों को!
• सत्कर्म करते रहोगे तो परिस्थिति कैसी भी हो, परमात्मा का रक्षा कवच जरूर तुम्हारे साथ रहेगा! इस लिए सत्कर्म करने से कभी पीछे नहीं हटना!
• निष्काम भक्ति करो! भगवान् से माँगना भी हो तो भगवान् से भगवान् को ही मांगो!
• भगवान् की भक्ति कुछ मांगने के लिए नहीं, धन्यवाद करने के लिए करो!
• उसको हम क्या दिया दिखाएंगे जिसको देखकर सूरज और चाँद भी चमकते हैं!
• परमात्मा के दर पर प्रेम लेकर जाओ, प्रसन्नता से धन्यवाद् कीजिये !
• जब कभी दर्द की स्थिति हो तो आप अपने भगवान् से कहें की फूल तो नहीं हैं लेकिन यह आंसूं के फूल हैं जो चढ़ाने आया हूँ.!
• अपने दिल की किताब को अपने भगवान् के सामने ही खोलना क्योंकि दुनिया तो आपका मज़ाक उड़ाने के लिए हर पल तईयार रहती है!
• श्रद्धा और भक्ति से की हुई प्रार्थना जरूर स्वीकार होती है लेकिन हर दिन मंगते बनकर भगवान् के सामने नहीं जाना!
• सच्चे दिल से भावपूर्ण प्रार्थना करनेवाले बनो! परमात्मा तक आपकी भाव तरंगें पहुँचती हैं और वह निश्चित ही सुनता है!
• हमें सबको खुद में स्थित होना चाहिए, अपने वास्तविक रूप में आना चाहिए! प्रसन्नता ही आपका वास्तविक रूप है!
• जब आपकी जिह्वा पर नाम बस जाये और सेवा करने में रूचि जाग जाये तो समझ लेना गुरुकृपा आपके ऊपर आ गयी है!
• जब घर में बरकत पड़ने लग जाये तो समझ लेना गुरु का आशीर्वाद आपके ऊपर बन रहा है !

Vishwa Jagriti Mission Conducts Free Health Camp for Needy

Vishwa Jagriti Mission Conducts Free Health Camp for Needy

These times when the whole world is going through a critical health scare, keeping good health is mandatory. For the past many years, Vishwa Jagriti Mission (VJM) is conducting free health check-up camps for the benefit of mankind under the guidance of HH Sudhanshuji Maharaj and Dr Archika Didi.
Nowadays, activities related to healthcare have been expedited so that more and more needy people can get the advantage of free health check-up facilities.

 

In the line with that, on 22nd Nov 2020, Vishwa Jagriti Mission, Sirhind Mandal has organized free piles and eye surgery camp. A lot of patients, who can’t afford better healthcare facilities due to lack of funds, took the advantage of VJM, free health check-up camp.
In the camp, approximately 535 patients (425 eye patients & 110 piles patients) were examined under the supervision of experienced doctors and paramedic staff.
Out of the total patients examined, 180 patients were selected for eye surgery & 95 for piles surgery. Moreover, about 50 samples were collected for covid-19 testing as well.
The hugely successful camp was inaugurated by Dr Sanjeev Kumar, PCS, SDM Fatehgarh Sahib and Shri Gurjinder Singh, Tehsildar Fatehgarh Sahib was the Guest of Honor. In the camp, many key personalities were present, including Shri Subhash Sood, Director PRTC.
Vishwa Jagriti Mission is looking forward to conducting more such free health check-up camps at other places in the near future.

योगी कभी अभावग्रस्त-दरिद्र नहीं हो सकता

A yogi can never be scarred and scarred

 

अन्दर की प्रसन्नता और सम्पन्नता हमें बनाती है योगी। महाभारत में एक कथानक है कि घटोत्कच्छ के मरने के बाद सारा पाण्डव दल दुःख से रो रहा था, लेकिन भगवान कृष्ण के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। यह देखकर भीम को गुस्सा आया, तो उन्होंने पूछा-हे मधुसूदन! मैं अपने दुःख में दुःखी हूं, आपके चेहरे पर मुस्कुराहट किसलिए? भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-भीमसेन युद्ध भूमि में जब कोई अपने कर्त्तव्य के लिए अपने प्राणों की बलि देता है, उसके लिए हम आंसू बहाकर उसकी वीरता को अपमानित करते हैं।

अतः सम्मान से उसे याद करो और उस भविष्य के लिए सोचो, जिस भविष्य के लिए उसने बलिदान दिया है और मैं उस भविष्य की तरफ देख रहा हूं।
भूत और भविष्य के बीच वर्तमान बनकर खड़े महायोगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण पाण्डवों को समझाते हुए आगे कहते हैं कि-हे भीमसेन! आने वाला समय इस पाण्डव दल के लिए अच्छा है। धर्मयुद्ध में हम जीत रहे हैं। घटोत्कच्छ की बलि निष्फल नहीं होगी। उसके बलिदान ने आने वाले भविष्य में एक महान सफलता सामने लाकर खड़ी कर दी है। उसको देखकर मैं मुस्करा रहा हूं और तुम अपने स्वार्थ को लेकर दुःखी हो रहे हो। भीमसेन श्रीकृष्ण के इस महत्वपूर्ण दूरदर्शी तथ्य को सुनने के बाद सन्तुष्ट हुए और कहे कि क्षमा करना जिस तरह से आप देखते हो, हम नहीं देख सकते। वास्तव में यही योगावस्था है। अगर कष्ट वाली स्थिति में भी मुस्कुराना सीख जाएं, तो योग जीवन में आ ही जाएगा और आप योगी कहलाओगे। वास्तव में जीवन का भी सार यही है।

जीवन के बहाव में उतार चढ़ा तो आते ही रहेंगे, अतः इस दौर में चीजें आएं या जाएं लेकिन आप अन्दर से प्रसन्न रहो। प्रसन्नता में ही सम्पन्नता है। यही भाव योगावस्था है। सम्पन्नता का आशय धन-सम्पत्ति से नहीं है, अपितु इस बात में कि आप चैन की नींद सो सकें, हर परिस्थिति में शांति-संतोष अनुभव कर सकें, तो मानकर चलें कि आप सम्पन्न हैं। इसी प्रकार परिवार के अन्दर  लमेल है, प्रेम है, सौहार्द्र है तो आप सम्पन्न हैं। आपका शरीर स्वस्थ है तो माना जाना चाहिए कि आप अन्दर की अमीरी से भरे हैं। यह अंदर की अमीरी ही है, जो व्यक्ति को भगवान के निकट तक लेकर जाती है। उसे योगी बनाती है, अन्यथा करोड़ों व्यक्ति हैं जो सब कुछ होकर भी दरिद्रता का जीवन जीते हैं और दरिद्र व्यक्ति कभी परमात्मा को नहीं पा सकता। वैसे भी योगी कभी अभावग्रस्थ व दरिद्र नहीं हो सकता।

इस योग का आधार भक्ति है, पर गीता के सातवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-यह भक्ति करने वाले हजारों मनुष्यों में कोई-कोई व्यक्ति ही सिद्धि तक पहुंचते हैं। अर्थात् किसी-किसी व्यक्ति की ही सिद्धि वाली स्थिति बन पाती है। हजारों लोग यदि प्रयत्न करे, तो सिद्ध होने की स्थिति बहुत कम की होगी। अपितु भगवान कहते हैं ‘‘कश्चित्’’ अर्थात् हजारों में से कोई एक ही सिद्धि के लिए प्रयत्न करेगा। इसीप्रकार ‘‘यततामपि सिद्धानां’’ अर्थात् यत्न करने वाले लोगों में भी ‘‘वेत्ति तत्वतः’’-तत्त्व से, सम्पूर्णता से तात्त्विक रूप से, कोई-कोई ही मुझे जानने वाला होता है। मनुष्याणां सहस्त्रेषु कश््ियद्यतति सिद्धये। यततामपि सिद्धानां  कश््ियन्मां वेत्ति तत्त्वतः।। पर पहुंचता वही है जो पूर्ण भक्त योगी होता है। जो पहुंचता है वह शांति, आनन्द, उल्लास, श्रीसमृद्धि का सहज हकदार होता है। पूज्यवर श्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं कि उन्नति का सबसे बड़ा शिखर अगर कोई है तो परमात्मा है। शान्ति का परमधाम भी परमात्मा है। आनन्द, उल्लास और सम्पूर्ण उत्सव का समग्र रूप भी परमात्मा है। समृद्धि का सम्पूर्ण स्वरूप वही प्रभु परमपिता है, यदि वह मिल गया तो फिर कुछ और पाना बाकी नहीं रहता। वही  मानव मात्र की एकमात्र मंजिल है, वही एकमात्र लक्ष्य है। पर उसकी राह पर चलने के लिए, उसका प्यारा बनने के लिए, उसे अपना बनाने के लिए अभाव से परे, दरिद्रता की जकड़न से मुक्त योगमय होना, अंदर से सम्पन्न होना, अंतःकरण की प्रसन्नता से भरा होना आवश्यक है।’’ भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं जीवन में इस शिखर की प्राप्ति हेतु संतुलित होकर चलने की अवस्था योग है। आइये! जीवन में संतुलन साधें और योगमय होकर चलें, अंदर की सम्पन्नता बढ़े, अभाव से दूर हो, कृष्ण को पायें ताकि परमात्मामय हो सकें। आनंद, उल्लास और सम्पूर्ण उत्सव का समग्र रूप भी परमात्मा है। समृद्धि का सम्पूर्ण स्वरूप वही प्रभु परमपिता है, यदि वह मिल गया तो फिर कुछ और पाना बाकी नहीं रहता। वही मानव मात्र की एकमात्र मंजिल है, वही एकमात्र लक्ष्य है। पर उसकी राह पर चलने के लिए, उसका प्यारा बनने के लिए, उसे अपना बनाने के लिए अभाव से परे, दरिद्रता की जकड़न से मुक्त योगमय होना, अंदर से सम्पन्न होना, अंतःकरण की प्रसन्नता से भरा होना आवश्यक है।

तनाव क्यो आता है और इसका निदान क्या है?

Why does stress come and what is its diagnosis?

 

तनाव आज के युग की सर्वाधिक समस्या

आज की भागा दौड़ी के युग मे हर व्यक्ति तनावग्रस्त नज़र आता है । तनाव इतना अधिक बढ़ गया है कि व्यक्ति की सारी जीवन व्यवस्था ही चरमरा गई – तनाव क्यो आता है और इसका निदान क्या है?

पुराने समय मे लोग एक संतोष की जिंदगी जीते थे और चैन अमन से अपना जीवन बिताते थे, न किसी को अपने को बड़ा साबित करने का जुनून था न ही दिखावा- सीधा सरल जीवन और शांत जीवन!
पर आज के युग मे हर व्यक्ति अशांत है, भौतिकता ने जीवन को खोखला कर दिया, बाहर से भले ही कोई अमीर दिखता हो या अमीर होने का नाटक करता हो पर अंदर से सबसे गरीब वही है!
मानसिक तनाव से इतना व्यक्ति टूट चुका है कि शारीरिक रूप से ज्यादा मानसिक बीमारियों का उपचार करवाता नज़र आता है। शरीर की बीमारी का इलाज फिर भी आसान है परंतु यदि मानसिक बीमार हो गया तो उसको संभालना बहुत कठिन हो जाता हूं!

इसलिए समझिए कि मानव जीवन बहुत कीमती है, एक एक दिन जीवन का आगे सरकता जाता है और जीवन समाप्ति की ओर – इसलिए अपने समय का उपयोग सही तरीके से कीजिये। शांत मन, स्थिर बुद्धि और तृप्त आत्मा — सब कुछ प्राप्त कर सकता है।बहुत आपा धापी में न जाकर संतोष का मार्ग साधे!

सबसे अधिक महत्वपूर्ण है – आध्यत्म की राह पकड़ना ओर उससे भी अधिक ध्यान में डुबकी लगाना: जो शांति और स्थिरता इस मार्ग पर चलने से मिलती है वह किसी डॉक्टर के इलाज से नही मिल सकती! अनुशासित , मर्यादित ओर प्रभु के मार्ग पर चलता हुआ व्यक्ति कभी ना निराश हो सकता है ना ही तनावग्रस्त। तनाव तो उसको भी आएगा पर मन का विश्वास कि प्रभु मेरे चारो ओर हैं, मेरी रक्षा कर रहे हैं – वह कोई न कोई मार्ग निकालेंगे ओर मैं इस कष्ट से बाहर निकल जाऊंगा – यही दृढ़ विश्वास व्यक्ति को पूरी तरह संतुलित कर देता है!

इसलिए अपने को भक्ति से जोड़ें, नियम से जोड़ें ओर अपने सदगुरु के शरणागत होकर चलें: आपका जीवन आह्लादित होगा, आनंदित होगा और अपने जीवन को सफल बना सकोगे!

The Science Behind Chhath Puja

The Science Behind Chhath Puja

Observe it deeply and you will find that the Chhath Puja, a highly significant festival for the North Indian states, is loaded with a lot of scientific nuances.
Celebrated in the Holy Kartik month, the Chhath Puja festivities span across four days. The festival is observed to worship the Sun God and seek his blessings for the overall happiness of the family.
Devotees offer prayers to the Sun God, observe fast, take dips into the water of rivers and follow rituals related to eating that encourage prudence and self-restraint among Chatth Vratees.
This year, however, devotees have been advised to perform the rituals at home only due to the covid-19 situation. So, stick to the Coronavirus protocols (Sanitisation, Social Distancing, and Mask) and perform the Chhath Puja rituals at home.
The rituals blot out various scientific elements into them.

The Science Behind Chhath Puja

• Chhath Puja rituals help in flushing out harmful bacteria and viruses from the body that prepares
devotees for the onset of the winter season.
• In this month, many people start showing symptoms of allergy, cough, and cold. The Chhath Puja rituals
help the human body get rid of toxicity that declines the impact of these symptoms.
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• During the Puja, devotees take dips in water bodies and expose themselves to the Sun God. This increases the flow of solar energy boosting the overall function of the human body.
• The devotees stand in water. It rejuvenates their nervous system, giving them good health and a calm mind.
• Nowadays, Vitamin D deficiency is running like an epidemic in the country and Sun worship in Kartik month helps in the absorption of vitamin D. These Vitamins come from UVB rays that are predominant at the sunset and sunrise-the periods during which Puja is offered.
• Vitamin D is used for absorbing calcium from the food and all the food items and fruits used in this Puja are high in calcium like jaggery, pumpkin, orange, guava, and sugarcane, to name just a few.
• Vitamin D deficiency is linked to infertility and Kartik is known as the high fertility month. Perhaps that’s why it is believed that those seeking a child shall observe the Chhath Puja.
These points show how scientific our age-old customs and traditions are and the most amazing thing is that (according to legends) these rituals have roots in the Ramayan and Mahabharat period.
Legends Linked to Chhath Puja
Two legends are associated with the beautiful festival Chhath.
1. Legend Linked to Ramayana
It is believed that Lord Ram is behind the origin of Chhath Puja. On returning to Ayodhya after 14 years, Lord Ram and Mata Sita observed a fast in the honour of the Sun God and ended it at the break of dawn the next day.
The ritual subsequently evolved into the Chhath Puja that we see today.
2. Legend Linked to Mahabharata
It is believed that Daanveer Karna religiously offered his prayers while standing in the water and distributed Prasad among the needy.
It is also believed that Draupadi and the Pandavas performed a Puja similar to Chhath puja to win their lost kingdom back.
Perhaps that is why age-old rituals and the Chhath Puja are inseparable.
Chhath Puja Rituals

Day 1: Nahaye Khaye

Devotees do not eat food before taking a bath. They prepare Kaddu ki Sabji, pudding, Chane ki Daal among others, and eat that like prasad.

Day 2: Kharna

Devotees observe fast till the Kharna puja ends. After that, a blend of jaggery-laden pudding and puris are offered as Bhog to the Gods and distributed among the Vratees.

Day 3: Pehla Arghya

Devotees observe a complete fast. The auspicious day is marked with sweet folk songs and taking dips in the holy waters that go on till the sunsets.

Day 4: Doosra Arghya/Paaran

Devotees break their fast after offering prayers to the rising Sun and ask for blessings.
What beautiful rituals!
These look like simple rites, but they are not. A complete science is working behind them that keeps the devotees hale and hearty despite a rigorous fast.
This shows the sheer greatness of our culture and tradition.
Jai Chathi Maiyaa!

सप्त लक्ष्य अवलम्बित समय साधना है जीवन आधार, समय से न करें दुव्र्यवहार

समय को परमात्म तत्व का ही एक आयाम माना गया है। समय हमारी जीवनी शक्ति है, पर हम इसे कहां खर्च करते हैं यह हमारी सूझ-बूझ पर निर्भर करता है। यह तत्व सबके लिए समान रूप से ईश्वर की ओर से निःशुल्क उपलब्ध् है, इसीलिए समय को अनुपम प्राकृतिक ध्रोहर भी कहते हैं और समय रूपी देवता से जो जैसा मांगता है, समय उसे वैसा ही लौटाता है।

परमात्मा ने हर मनुष्य को केवल एक ही वस्तु दी है वह समय। यही नहीं हर किसी को यह ध्रोहर समान रूप से दी गयी है। समय का ही उपयोग या दुरुपयोग करके सब अपने लक्ष्य तक पहुंचे हैं। समय का महत्व इतना अध्कि है कि कि व्यक्ति खोई हुई दौलत, खोया हुआ स्वास्थ्य दोबारा पा सकता है, विद्या भी याद की जा सकती है, परन्तु यदि समय निकल गया, तो वह किसी भी कीमत पर वापस नहीं लौट सकता। इसीलिए जीवन को अनुशासनों में बाँध्ने का विधन है। महापुरुष, संत व गुरु अनुशासन के सहारे परमात्मा द्वारा प्रदत्त उसी समय रूपी डोर से अपने को बांधे रखकर एक साधरण मानव को महामानव तक उफंचा उठाते हैं। वास्तव में समय में  प्राण’’ गुरु कृपा से ही भर पाता है।

महापुरुषों की समय साधनाः

समय हमारी जीवनी शक्ति है, पर हम इसे कहां खर्च करते हैं, हमें खुद भी पता नहीं। कोई धन कमाने में इसे लगा देता है, तो कोई वैभव-विलास में, कोई इसी समय के सहारे अपने अहम की तुष्टि करते-करते जीवन खतम कर देता है। अनैतिक जीवनशैली से लेकर ठाटबाट बनाने में समय की ही पूंजी व्यय होती है। पर बहुत कम व्यक्ति ऐसे हैं जो समय का मूल्य समझते हैं और उसका उचित उपयोग करते हैं। पर जो व्यक्ति समय का उपयोग कर लेता है, वह महापुरुष, महामानव, पथप्रदर्शक, गुरु, संत, वैज्ञानिक, विचारक, चिंतक, आविष्कारक आदि सब कुछ बनकर समाज में प्रतिष्ठित होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो समाज के जो भी अग्रगण्य हैं, जिनका हम अनुगमन करते हैं, वे वही हैं जिन्होंने समय को पहचाना और जीवन का समयानुसार सदुपयोग किया है। हम दूसरे शब्दों में कहें तो जिसने समय को मुकाम तक पहुंचाया, उसे समय ने भी मुकाम तक पहुंचाने में भूमिका निभाई।

समय सबकुछ सिखाता हैः

जिसने समय को दिव्यता के साथ साध लिया वही गुरुत्व से भरता है, क्योंकि उसने परमात्मा रूपी इस दिव्य धरोहर को आत्मसात किया है। समय को परमात्मा का ही एक आयाम माना गया है। हम छोटे बच्चे का उदाहरण लें, उसे भगवान ने कहां समय के अतिरिक्त अन्य कुछ वैभव आदि साथ देकर भेजा है, बस मात्र एक पूंजी दी वह है समय। पर वह भाषा से लेकर, व्यवहार तक सब कुछ उसी समय के सहारे ही तो सीखता है। जब प्रारम्भ में बच्चा बोलना सीखता है, तब उसके लिए शिक्षण की तो कोई औपचारिक प्रक्रिया भी नहीं अपनाई जाती। बस वह समय पर अपना ख्याल बनाये रखकर जो-जो बातें सुनता है, वे सभी उसके मस्तिष्क में जमा होते जाते हैं। उसी को समय बद्ध करके वह एक दिन बोलने वाला बन जाता है। इससे सिद्ध होता है कि व्यक्ति यदि मस्तिष्क में स्थित ‘समय’ के नियम का प्रतिदिन उपयोग करे, तो वह बहुत बड़ा काम कर सकता है। विशेषज्ञों का आकलन है कि यदि एक व्यक्ति रोजाना एक घन्टा पढ़ने का नियम बना ले, और उस एक घन्टे में मात्र 30 पृष्ठ ही पढ़े, तो एक वर्ष में वह दस हजार नौ सौ पचास पृष्ठ पढ़ सकता है। यदि यह अध्ययन का क्रम चलता रहा, तो वह एक दिन किसी विषय में विशेषज्ञता प्राप्त कर सकता है। इसी प्रकार कोई व्यक्ति एक घन्टा रोजाना व्यायाम करे, तो अपनी आयु के न्यूनतम पन्द्रह वर्ष बढ़ा सकता है। वास्तव में समय ही गुरु है, समय के चक्र से ही दिन-रात होते हैं। सूर्य, चन्द्रमा, तारे एवं नक्षत्र अपना कार्य ठीक समय पर न कर पायें, तो इस ब्रह्माण्ड में कुछ बचेगा नहीं। इसीलिए जो लोग समय की कदर करते हैं, वे ही अपनी जिन्दगी में ऊँचा मुकाम हासिल करते हैं।’’

समय-शांति-संतुलन का मूलः

जैसे समय अनुशासन का प्रतीक है, वैसे ही गुरु व महापुरुष भी। यही कारण है गुरुत्व प्राप्त व्यक्तित्वों के पास समय नहीं होता। कभी-कभी हम उन्हें खाली बैठे देखकर कह सकते हैं कि वे हमें समय नहीं दे रहे, जबकि वे खाली बैठे दिख रहे हैं, पर वास्तव में गुरुत्व को प्राप्त हर व्यक्ति और आम जन दोनों के समय उपयोग की कला में जमीन आसमान का अंतर है। गुरुत्व प्राप्त सत्तायें खाली समय में भी समय के मूल रहस्यों को सुलझाने में लगी रहती हैं, जबकि आम साधारण व्यक्ति सम्भव है क्रियाशील रहते हुए भी समयानुरूप न हों। कहते हैं जिनका समय पर अधिकार होता है, उनके पास बैठने मात्र से शांति मिलती है, वास्तव में हमारा समय ही तो है, जो हमें अशांत किये रहता है, हमें समय को साधने की शक्ति मिलती है, तब हम शांत-संतुलित स्वतः हो जाते हैं।

समय की गति सकारात्मकः

व्यक्ति के दुःख का कारण भी समय का सदुपयोग न कर पाना ही है। एक रहस्य की बात है कि समय सदैव सकारात्मक दिशा में ही चलता है, यदि उसका सदुपयोग नहीं किया गया, तो भटकाव सुनिश्चित है। प्रायः यह देखा गया है कि जिन व्यक्तियों के पास धन-दौलत नहीं है, वे धन-दौलत के लिए रोते हैं और दुःखी होते हैं। जो नहीं पढ़ सके वे दुःखी होते है कि उन्होंने पढ़ाई-लिखाई क्यों नहीं की। पर इन सभी संदर्भों में असली कारण है मिले हुए समय का सदुपयोग न कर पाना। वास्तव में समय निःशुल्क उपलब्ध है और वह ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, हिन्दू-मुस्लिम आदि में कोई अन्तर नहीं करता। इसीलिए समय को अनुपम प्राकृतिक धरोहर कहते हैं और समय रूपी देवता से जो जैसा मांगता है, समय उसे वैसे ही लौटाता है।

सप्त लक्ष्य केन्द्रित साधनाः

आज जरूरत है कि हम समय को श्रेष्ठतम श्रम के साथ साझेदारी करके अपनी दैनिक समयसारणी बनायें और उसी के अनुरूप चलें, ताकि समय के एक-एक मिनट को उपयोगी बना सके। उदाहरणार्थ कितना समय व्यायाम में लगे, ऑफिस में कितना समय लगे, वापस आने में कितना समय लगे, दूसरे के साथ वार्तालाप में कितना, उपासना में कितना, ध्यान, सुमिरन, स्वाध्याय में कितना समय लगे, इन सबके लिए हमें ध्यानपूर्वक सोचना होगा। इस निर्धारण से ही जीवन सन्तोषजनक रूप से व्यतीत होगा और शांति, संतोष, सुख, समृद्धि जीवन में उतरेगी। इसके लिए वर्तमान में जीने की कला विकसित करनी होगी। यदि हम वर्तमान का सही ढंग से उपयोग कर सकें, तो जीवन का उद्देश्य पाने में सफल होंगे ही।
विद्वानों का कहना है कि समय को केन्द्र में लेकर अपने कार्यों का वर्गीकरण हम इसप्रकार से करें जैसे-पहला स्वास्थ्य केन्द्रित समय साधना। कहते हैं शरीर माध्यम खलुधर्म साधनम् अर्थात् यदि हमारा स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा, तो हम कोई भी कार्य उचित प्रकार से नहीं कर सकते। दूसरा धन केन्द्रित साधना। इसी प्रकार विद्या केन्द्रित, संगठन केन्द्रित, अध्यात्म केन्द्रित, यश-प्रतिष्ठा केन्द्रित, सेवा-सत्य-न्याय से सप्त केन्द्रित समय की समुचित साधना जरूरी है। साथ ही महत्वपूर्ण है कि हमने जो कुछ संसाधन जुटा लिए हैं, उनका सही उपयोग करते हुए तृप्ति-संतुष्टि प्राप्त कर सकें। इसके लिए भी समय साधना जरूरी है। यह पक्ष गुरु की कृपा, परमात्मा का ध्यान, जप, भजन, कीर्तन, अनुशासन पूरा करता है। अतः प्रातःकाल प्रतिदिन सूर्योदय से कम से कम एक घंटा पहले उठें तथा शौच-स्नान आदि से निवृत्त होकर आधा घण्टा खुले में टहलें, व्यायाम करें, तन एवं मन में स्फूर्ति और ताजगी भरें। तत्पश्चात् जप, ध्यान, गुरु, ईश्वर कृपा के लिए सिमरन- उपासना करें। इस प्रकार समय का उचित उपयोग करके स्वयं के साथ परिवार, समाज और देश को भी खुशहाल कर सकेंगे। यह अनुशासन हर किसी के लिए जीवन में सुख-शांति-समृद्धि, उत्थान का राजमार्ग खोलता है।