How to Improve Mental Health during COVID-19

How to Improve Mental Health during COVID-19

How to Improve Mental Health during COVID-19

Sound mental health is indispensable for living life happily. A healthy mind makes you able to possess well-adjusted qualities. If you are mentally strong, you take responsibility for your actions; you have stress & anxiety tolerance; you accept fear & uncertainty” you have the courage to take risks and wisdom to take part in social services” you accept diversity and have a harmonious relationship with self & society.

Further, sound mental health boosts your Spirituality-quotient. You respect nature and build a connection with the ‘Higher Power’ through faith and stay happy forever and a day. Unfortunately, right now a large number of people are dealing with mental health issues. The reason is- tough times due to the COVID-19 pandemic.

Many are facing deep inner unrest. Other than financial stress, norms like social distancing have made many feel isolated and lonely leading to stress and anxiety, thereby making people deal with insecurity, sadness, and frustration. The situation is risky because it may cause loss of appetite, a critical change in sleep pattern, lack of energy, and ultimately loss of interest in the lighter moments of life. They all result in weak immune system.

So, urgent steps must be taken to improve mental health. Here’s how you can achieve that amid these testing times.

Be Informed, Rightly

Nowadays, diverse sources of information are available. There are news channels, social networks, and words of mouth. These sources are releasing fresh updates daily. However, they can also be major contributors to misinformation giving unnecessary tension. Stay away from inauthentic sources as they are the sources of constant negativity that may disturb your mind.

Watch news only on reliable sources and try to read or watch positive stories as well to lift your mood stay positive.

Spend Your Days, Consciously

The ongoing situation has led to an imbalance between personal and professional life. But you need to stay aware of your physical as well as mental needs more than ever. It is important to adhere to a healthy routine that includes ample relaxation. Many people are sitting for long hours working. It slows down metabolism leading to a feeling of low energy in the body. So, stand for a few minutes, take a light walk, or stretch even in a sitting position.

Moreover, it is important to get sound sleep as it improves mood, keeps the heart healthy and ensures good immunity. And do not forget to keep your body energetic and well hydrated with the help of a healthy diet rich in protein, vitamins and minerals and drinking plenty of water.

Stay Active, Socially

Social distancing is a new norm now but do not forget to maintain emotional proximity with your near and dear ones. Regularly talk to your friends and family and stay away from unnecessary conflicts with family members. These are times to stay connected as it is the biggest strength. Keep sharing inspiring ideas and thoughts with family and friends for boosting emotional strength.

Face Challenges, Meditatively

Individuals, including healthcare workers, who are facing covid-19 related challenges, may find it difficult to find mental peace. They should cope with stress by practicing Meditation and Yoga.

The practice can shift attention away from worrying about the future. You may boost your spiritual quotient by creating a protective shield around yourself through easy meditation techniques. Now it is essential to enhance the Pranic energy to deal with COVID-related anxiety. Learn meditation techniques and experience how deep meditation and breathing practices help in the prevention of Covid-19.

The Surprising Power of Meditation

Meditation is one of the best ways to feel the inner power and energy that is already present in you. And there is no need to make things complicated for that. Find a serene place, close your eyes, and sense the multitude of thoughts running in your mind. Accept them, relax and maintain your inner peace.

With the power of meditation, you may ask each of these useless thoughts to go away. Once your mind is empty, you can start feeling that inner power and energy that God has provided to you. Your inner energy will light up incredible hope in you that will empower you to deal with unprecedented challenges in life.

Therefore, accept that you have no control over the COVID-19 situation but do not let the situation control your mind. Perform your duty, meditate, and improve your mental health and do keep in mind- even the darkest night ends and the bright morning appears again. Nothing can stop the sun God to rise again.

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रोग-महामारी नाशक संजीवनी औषधि है – महामृत्युंजय मंत्र

रोग-महामारी नाशक संजीवनी औषधि है - महामृत्युंजय मंत्र

जीवन की डोर के उलझे हुए धागों को सुलझाने के लिए, जीवन की पगडण्डियों पर सबल होकर चलने के लिए, आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक दुःख और संतापों से बचने के लिए, अपने जीवन को गरिमा प्रदान करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को देवाधिदेव महादेव, आशुतोष भगवान शिव के मंगलमय महामृत्युंजय मन्त्र के द्वारा उनका ध्यान, प्रार्थना, आराधना, जाप आदि श्रद्धा और भक्ति पूर्वक करना चाहिए।

जीवन की यात्र में जब भी मनुष्य के सामने काल का भयंकर प्रवाह विकराल रूप लेकर आता है, तो उस विपरीत और कस्टदायक घड़ी में काल के भी महाकाल कैलाशपति भगवान शिव शम्भू का ध्यान और उसकी प्रार्थना से मनुष्य को दुःखों से राहत और उनको सहने की शक्ति तथा शान्ति प्राप्त होती है। ऐसे विपरीत समय में महामृत्युंजय भगवान शिव निश्चित रूप से करुणा करते हैं। वे करुणा के सागर हैं और उनका महामृत्युंजय मन्त्र संजीवन बूटी की तरह कार्य करता है।

मनुष्य की चाहे आर्थिक स्थिति बिगड़े, या मानसिक संतुलन, परिवार में विघटन आए अथवा समाज में अपमान का घूंट पीना पड़े, शरीर व्याधियों से ग्रस्त हो और दवाई भी असरदार सिद्ध न हो रही हो। कुछ सूझे न, कुछ समझे न, इससे भी आगे रोग-महामारी, बुढ़ापा अथवा दुःखद मृत्यु से भी बचने के लिए शाश्वत सुखप्रदाता महामृत्युंजय भगवान शिव का महामन्त्र एक अचूक औषधि सिद्ध होता है।

मानव जीवन में उतार-चढ़ाव का आना अवश्यम्भावी है। चाहे राजा हो या रंक, अमीर हो या गरीब, निर्बल हो या बलवान, कोई कितना भी बुद्धिमान हो अथवा कम दिमाग वाला हो, सबके जीवन में कभी न कभी ऐसे क्षण जरूर आते हैं, जब उसे किसी सबल सहारे की जरूरत पड़ती है और वह सहारा भगवान शिव का महामृत्युंजय मन्त्र है।

जब भी इंसान दुःखद स्थितियों से गुजरता है, तो उसके जीवन में अंधेरा उभरने लगता है और जैसे शाम होते-होते धीरे-धीरे सूर्य अस्त होता जाता है तथा लोग अपने-अपने घर के दरवाजे बन्द करने लगते हैं, ठीक ऐसे ही जब भी जीवन में ऐसी स्थितियां आएं कि भाग्य विपरीत हो जाए और दुर्भाग्य का अंधेरा बढ़ रहा हो, उस समय दिमाग ऐसा सोचता है कि क्या करें? क्या न करें? ऐसी स्थिति में जब सारी दुनिया के दरवाजे बन्द होने लगते हैं, उस भयंकर स्थिति में भगवान शिवशंकर की प्रार्थना ही सहारा बनती है और उनका महामृत्युंजय मन्त्र ही भवसागर में नौका बनकर हमें डूबने से बचाता है।

किन्तु इस महामंत्र की महिमा और व्याख्या करने से पूर्व मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि हमारे समाज में प्रार्थना, उपासना, आराधना, जाप और तपस्या में भी एक्सिपेरिमेण्ट किए जाते हैं, जो कि उचित नहीं है। कुछ भक्त ऐसा भी करते हैं कि कभी भगवान राम से मन्नत मांगते हैं, कभी भगवान श्रीकृष्ण से, कभी हनुमानजी को प्रसन्न करना चाहते हैं, कभी दुर्गा मां को, कभी भगवान शिव की आराधना में मन लगाते हैं और कभी मां काली के चरणों में सिर झुकाते हैं आदि-आदि.।

जबकि उनकी श्रद्धा, उनकी भक्ति, उनकी प्रार्थना, याचना, कामना में न तो निःस्वार्थ भाव होता है और न ही समर्पण का समावेश। जब उनकी अनुचित इच्छा पूर्ण नहीं होती तो वे स्वयं को न बदलकर भगवान को ही बदल देते हैं अथवा कई भक्त तो ऐसा भी बोल देते हैं कि अब तो मेरा विश्वास ही उठ गया है।

मनुष्य अपूर्ण है और सतत् पूर्णता की खोज में सदैव संलग्न रहता है। अपनी रिक्तता की पूर्णता के लिए व्यक्ति जीवन भर विविध आयास-प्रयास करता है। कभी धन की शक्ति को आजमाता है और कभी पद के बल के प्रभाव को निहारता है। अपूर्णता पूर्ण सत्य है, लेकिन सच्ची अपूर्णता के लिए पूर्णता के सत्य उपाय ही सफल होते हैं।

अतः आइए! हम सब मिलकर महामृत्युंजय महामंत्र का श्रद्धा और भक्ति से जाप करते हुए त्रिकालदर्शी महादेव की प्रार्थना करें। जो मृत को अमृत में, अपूर्ण को परिपूर्णता में परिवर्तित कर देता है। जो दुःखों के अन्धेरों में सुखों का सवेरा प्रदान करता है, जिनकी कृपा से अशुभ, अनुचित एवं अमंगल दुर्भावनाएं दग्ध हो जाती हैं, नष्ट हो जाती हैं और जिनकी दया से मंगल कामनाएं, शुभ भावनाएं सम्पूर्ण होती हैं। ऐसे पाप-ताप के निवारण करने हारे भगवान शिव शंकर का ध्यान करते हुए पूर्ण मनोयोग से जाप करें।

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।
(यजु. 3/60)

मंत्र का सामान्य भावार्थ है-हे त्र्यम्बक! तीनों लोकों के नाथ, त्रिलोकी महादेव! हम तेरा यजन करते हैं। तेरे सुगन्धित रूप एवं पोषण करने वाले रस की उपासना करते हैं। जैसे रस एवं सुगन्धि से परिपूर्ण खरबूजा डाल से बिना प्रयास किए ही मुक्त हो जाता है, वैसे ही मृत्यु रूपी बन्धन से, अर्थात् समस्त दुःखों से मुझे मुक्त कर दो।

हे आशुतोष भगवान! मैं जब तक धरा पर रहूं तब तक तेरे अमृत, शिवमय आंचल की छांव में रहूं। जिस समय संसार से विदाई हो तो मधुरता और सुगंधमय वातावरण बना रहे। मनुष्य की चेतना चलते-चलते जहां अन्त में ठहरती है, उसी आधार से उसकी गति होती है। इसलिए शिवभक्त भगवान शंकर से प्रार्थना करता है कि हे भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता महाशिव! जब तक मैं संसार में रहूं, समर्थ होकर रहूं, किसी की सेवा, सहायता और सहयोग की मुझे जरूरत न पड़े। मेरा शरीर, मेरा मन, मेरी बुद्धि, मेरी आत्मा और मेरी शक्ति मेरा साथ निभाती रहे। कर्मठता मेरे जीवन का अंग रहे, निराशा, हताशा और उदासी का संयोग कभी मेरे साथ न हो।

हे प्रभु! हमें मृत्यु से छुड़ाना, हमारे दुःखों का तिरोभाव हो जाए, लेकिन अमृत से हमें न छुड़ाना। अर्थात् हम कच्ची अवस्था से दुनिया से न जाएं, पूरा जीवन जीकर इस दुनिया से विदा हों। किसी को कच्ची अवस्था में अगर जाना पड़े तो शास्त्रेक्त मतानुसार उस जीवन को अच्छा नहीं माना जाता। कच्चा खरबूजा डाल से तोड़ने पर भी नहीं टूटता, बल्कि बेल उखड़कर हाथ में आ जाती है। लेकिन जब खरबूजा पक जाता है तो तोड़ने की भी जरूरत नहीं पड़ती। खरबूजा स्वयं बेल को छोड़ देता है।

हे शिवस्वरूप परमशक्ति! हम इस दुनिया को स्वयं छोड़ने वाले बनें। कष्टों से, दुःखों से, यातनाओं से, परेशानियों से, विपत्तियों से भयभीत होकर कष्ट सहकर संसार को छोड़ने की स्थिति हमारे सामने न आए, ऐसी कृपा करना।

प्रस्तुत मन्त्र में कीर्ति से युक्त सुगन्ध की कामना की गई है। वास्तव में संसार में वही फलता-फूलता है, जो शिवमय हो जाता है। शिवमय होने के लिए सुबह-शाम बैठकर नाम जप लेना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात तो यह है कि हम अपने जीवन के हर क्षण में चलते-फिरते, उठते-बैठते उसके महामृत्युंजय मन्त्र को हृदय से याद करते रहें। जीवन में जब भी खुशी आए, तो उसे भगवान शिव का आशीर्वाद मानें और दुःख आए तो अपनी गल्तियों को निहारें और प्रार्थना करें-

हे सम्पूर्ण जगत पर शासन करने वाले जगदीश्वर! तेरा एक नाम रुद्र भी है, मुझे शिकायत नहीं है, पर तेरी कृपा अवश्य चाहता हूं। मेरे दुःख, कष्ट, कल्मष तू दूर कर दे, ऐसा मेरा मनोरथ नहीं है, पर इनको मैं सहर्ष स्वीकार कर सकूं, ऐसी शक्ति मुझे प्रदान कर दे, मेरी कामना जीवन की डोर के उलझे हुए धागों को सुलझाने की नहीं है। मैं तो यह चाहता हूं कि वह मेधा, प्रज्ञा, ट्टतम्भरा, सद्बुद्धि मुझे मिल जाए, जिससे मैं उन उलझनों को सुलझाता हुआ, हंसता-मुस्कराता हुआ, गाता-गुनगुनाता हुआ, खुशियों के फूल खिलाता हुआ, तेरी कृपा की पूरी खुशियों से तेरे उपवन को महकाता हुआ न कभी जीवन में तुझे भूलूं और न अपने कर्त्तव्यों को बिसारूं।

मन्त्र के उत्तरार्ध में प्रार्थना की गई है- “उर्वारुकमिव’’ उर्वारुकमिव, शब्द संस्कृत में खरबूजे के लिए प्रयोग होता है जिसका अर्थ है उरुम् अर्चति महन्तम् उपासते इति। जो महादेव की उपासना में सदैव संलग्न रहते हैं, वे संसार में रहते हुए भी संसार से ऊपर उठकर जीवन व्यतीत करते हैं। उनके जीवन में खरबूजे जैसी मिठास एवं सुगन्ध होती है। खरबूजे की उपमा देने का कारण क्या है? मुक्ति। अर्थात् जैसे खरबूजा मधुरता से, सुगन्धि से, परिपूर्ण होता है तो बेल की डाल से स्वयं छूट जाता है। सबकुछ अनायास ही घट जाता है। डाली का केवल कार्य इतना है कि खरबूजे को रस एवं सुगन्धि से परिपूर्ण होते ही वह डाल को स्वयं छोड़ देता है, फिर साथ बन्धे रहने का कोई अर्थ शेष नहीं रहता, अनायास मुक्ति हो जाती है।

मन्त्र का अन्तिम चरण है “मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्’’ मुक्ति की स्थिति में व्यक्ति इच्छाओं से भी आजाद हो जाता है। अमृत की भी इच्छा नहीं रहती। यही शिवमय स्थिति है, यही आनन्द का झरोखा है, यही वह अनोखी स्थिति है जो महामृत्युंजय मन्त्ररूपी संजीवनी से प्राप्त होती है। इस हालत में पहुंचकर शिव भक्त सूक्ष्मरूप धारण कर लेता है, छोटा बच्चा बन जाता है और त्र्यम्बक महाशक्ति की कल्याणमयी आनन्ददायिनी गोद में प्रफुल्लित होकर प्रार्थना करता है…

हे सम्पूर्ण जगत् को उत्पन्न करने वाले! सबका पूर्णरूप से पालन-पोषण करने वाले! और अन्त में अपने आगोस में, अपने अन्दर सबकुछ समेट लेने वाले आशुतोष महादेव! आप ही इस अखण्ड ब्रह्माण्ड के नायक हो, हम तेरी कृपा से काम, क्रोध, लोभ, मोह, राग, द्वेष, ईर्ष्या, अहंकाररूपी सांसारिक बन्धनों से मुक्त हो जाएं किन्तु तेरे आंचल का मोह तेरे प्रेम और करुणा का वरदान मैं सदा सर्वदा के लिए चाहता हूं।

सांसारिक बेल से छूटकर तेरी अमृतमय गोद में आकर मैं यही याचना करता हूं कि अपनी अमृतमयी गोद से मुझे कभी जुदा न करना। हे शिवशंकर! मुझे मृत्युरूपी दुःख से छुड़ाओ पर अपने अमृतकुण्ड से कभी विलग न करना। मैं आपका हूं, तो सबका हूं, अगर आपका न रहा तो संसार की इस भीड़ में कोई मेरा न रहेगा। मेरी तो कामना है कि मैं-मैं न रहूं, तू-तू न रहे, तू मैं हो जा, मैं तू हो जा, तेरा नाम मुझमें समा जाए, तेरा मन्त्र मेरे अन्दर समाहित हो जाए और मैं तेरा गीत बन जाऊं, संगीत बन जाऊं।

परमपूज्य सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज के पावन सान्निध्य में
कोरोना महामारी प्रकोप से रक्षार्थ सामूहिक महामृत्युंजय जाप एवं यज्ञ – 24 अप्रैल से 14 मई, 2021

घर बैठे ऑनलाइन विशेष आयोजन कराने हेतु सम्पर्क करे।
☎️ +91 8826891955, 9589938938, 96859 38938, 7291986653

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कोरोना महामारी प्रकोप से रक्षार्थ सामूहिक महामृत्युंजय जाप एवं महायज्ञ

This Ram Navami, VJM Turns 30 | Vishwa Jagriti Mission

Vishwa Jagriti Mission

This Ram Navami, VJM Turns 30

Today, we are celebrating Ram Navami. A highly sacred day, the festivities commemorate the birth of Lord Ram on the ninth day of Chaitra Navratri. And in 1991, on one such pious day of Ram Navami, His Holiness Sudhanshu Ji Maharaj established Vishwa Jagriti Mission (VJM) in India’s capital city, Delhi with the pious aim of true service to mankind.

Ram Navami

Therefore, Ram Navami, the appearance day of Lord Ram, has a special place in the hearts of all vishwa jagriti mission members across country and abroad. Lord Ram is the embodiment of Dharma and on Ram Navami, our Maharajshri established VJM to keep the flag of humanity high which is the ultimate Dharma.

Right now VJM has over 80 Mandals and Sewa Samitis all over the country and abroad that work for the upliftment of the less privileged providing various services to the poor and down-trodden.

The number of Mandals and Sewa Samitis are steadily growing under the guidance of Maharajshri, who always says,

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

VJM has transformed millions of lives over the years. Moreover, Maharajshri has over six million devotees all over the world who acknowledge him as their intimate friend, philosopher and guide always motivating them to move on the path of humanity and spirituality.

Today, VJM has grown into a massive organization having its strong foundation on the firm ideals followed by Maharajshri. Its diverse branches are running with the support of innumerable devotees. VJM’s main office is located at the picturesque Anand Dham Ashram in New Delhi near Bakkarwala crossing.

Amid these tough times of covid-19, VJM is working harder to provide various services to needy people- like free food camps, free health camps, peace & wellness camps, to name just a few. The unprecedented situation has motivated VJM into perhaps the most significant social experiment and it is doing it gracefully.

Karuna Sindhu Charitable Hospital, under the auspice of VJM, is doing everything it can in order to provide free and low-cost treatment to the poor and needy patients who cannot afford costly treatment.

Here are some programs running under the guidance of HH Sudhanshu JI Maharaj and Dr. Archika Didi, renowned Yoga & Meditation Guru and social worker, via Vishwa Jagriti Mission.

Vishwa Jagriti Mission Programmes

  • Mahārishi Ved Vyās Gurukul Vidyapeeth
  • Karunā Sindhū Charitable Hospital
  • Yugrishi Arogyadham
  • The White Lotus
  • Old Age Homes for Senior Citizens
  • Orphanage Centres
  • Yuvā Manch
  • Bal Vikas Yojna
  • Disaster Management Programmes
  • Blood Donation Camps
  • Kāmdhenu Gau Sanrakshan
  • Tribal Development Programmes
  • Satsang, Yogā & Meditation Programmes

Some of these programs are running every day in a few parts of the country and VJM is consistently growing in its approach and reach with the blessings of Lord Ram.

Warm Wishes on Ram Navami!!!

 

माँ जो संस्कार, आरोग्य, सुख-शांति से बांधती है | Sudhanshu Ji Maharaj

माँ जो संस्कार, आरोग्य, सुख-शांति से बांधती है

नारी हमें अपने संस्कारों के बल पर अपने हाथ से कहीं न कहीं कुछ दान करने, अंदर की सहन शक्ति को बढ़ाने, घरों में लोगों को एक दूसरे को मिलाने, जोड़ने की आदत डलवाती है। एक राजा ने अपने मंत्री से पूछा 20 लोगों का एक परिवार है, वे सब लोग एक साथ इकट्ठे बैठ जाते हैं और खुश रहते हैं, उनके खुश रहने का कारण क्या है? मंत्री बोले, राजन् आप हमारी दादी जी से मिलिये। राजा उनकी दादी जी से मिलने गया, तो देखा वह 80 लोगों के परिवार में सुख-शांतिपूर्ण रह रही हैं। यह देखकर वह आश्चर्यभाव से सबके खुश रहने का कारण पूछा। दादी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि इसका कारण ‘माँ’ है। हमारा मातृत्व भाव है। हाँ माँ। माँ अर्थात् नारी में समाहित करुणा, प्रेम, दया एवं धैर्य भाव। नारी के प्रति श्रद्धा-सम्मान भाव। जीवन में नारीत्व के गुण करुणा, ममता, वात्सल्य, संवेदना, सहनशीलता, परस्पर प्रेम, शालीनता के ये गुण जहां होंगे, समाज-संस्कृति का उत्थान सुनिश्चित सम्भव है।

माँ के सान्निध्य से व्यक्ति की आंतरिक शक्ति बढ़ती है। परमात्मा से जुड़ जाना सम्भव होता है। जब उससे जुड़ेगा तो अपना भी उद्धार और दुनिया का भी उद्धार कर लेगा। फिर वह प्रगति करेगा लेकिन अहम रहित। माँ का एक रूप है भक्ति मैं देखता हूं, जैसे-जैसे व्यक्ति ऊपर बढ़ता, उसे सम्मान मिलना शुरू होता है, तब ही वह प्रगति रोक बैठता है, भक्ति रोक बैठता है, अहंकार में आ जाता है और उसके अंदर की यात्र, दर्शन की यात्र रुक जाती है। दर्शन की यात्र प्रदर्शन की यात्र बन जाती है। वह वासना की यात्र में उतर जाता है। इस प्रकार व्यक्ति की जिंदगी से प्रकाश चला जाता है। फिर भक्ति उपासना जाती है और चिन्ता, व्यथा आती है। भक्ति भी ‘माँ’ ही तो है।

भक्ति की ओर रुचि लगे, रस आने लगे, हम भक्ति के आसन पर बैठने लगें। यह भाव माँ के आशीर्वाद व माँ के संस्कार से ही सम्भव है। माँ ही ईश्वर से जोड़ती है, गुरु से मिलाती है। इसीलिए नारी को भारतीय संस्कृति में देवी स्वरूप स्थान प्राप्त है। उसमें धैर्य है, करुणा है। अपनाने का साहस है। त्यागने का जज्बा है। देखा होगा अपने घर में कि सभी लोगों को खिलाने के बाद ही माँ खाती है। व्यंजन कितना भी स्वादिष्ट क्यों न हो, पर उसे खाने से पहले खिलाने में संतुष्टि मिलती है। तभी तो कहा गया है कि ‘‘यस्य नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।’’ उसके इस त्याग-धैर्य के कारण ही सभी देवताओं के नाम के पहले उसकी श्री शक्ति अर्थात नारी चेतना प्रतिष्ठित की जाती है। जैसे सीता राम, राधे कृष्ण, भवानी शंकर आदि। तभी तो कहा गया कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं-

‘‘जननी जन्म भूमिस्च स्वर्गादपि गरीयशीः।’’

             प्यारा शब्द है माँ, जिसे पुकारते ही याद आती है वह गोद जिस में विश्राम, आराम, शांति-प्रेम-करुणा सभी मिलते है। माँ जीवित हो या अपनी जीवन यात्र पूरी करके परलोक सिधार चुकी हो, माँ का भोला चेहरा, उनके साथ बिताये बचपन के दिन जीवन जीने की प्रेरणा शक्ति देते हैं। याद आता है कि बचपन में जब कभी हम गिरे, तो माँ अपना सारा काम छोड़ कर दौड़ती और अपनी बाहों में थाम लेती। बदले में माँ न कभी हमारे मुंह से धन्यवाद शब्द सुनना चाहती और न ही कभी वह अहसान जताती कि मैंने तुम्हारे लिए बहुत किया। एक सांसारिक माँ में हमें विश्वमाता की ही अनुभूति तो होती है। विश्व माँ तो पूरे विश्व की है। वह ब्रह्मा की कलम माँ सरस्वती, विष्णु की समृद्धि माँ लक्ष्मी, शिव की शक्ति माँ पार्वती रूप में विश्व भर में फैले अपने बच्चों को सम्हालती है।

             माताओं ने ही तो बचपन से संस्कार देकर महानता के आदर्श स्थापित किए हैं। माँ सुमित्र, मदालसा, माँ सुनीति आदि इसी नारी चेतना का आदर्श रूप है, जो प्रतिक्षण धन्य मानी गयी है।

             प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी,

             माता विद्यते यस्य स मातृमान।।

             अर्थात् माँ धन्य है क्योंकि वह गर्भ से लेकर जब तक बालक की विद्या पूरी न हो, तब तक अपनी सुशीलता-शालीनता व धर्मशीलता का आशीर्वाद देती है। माता मदालसा ने अपने बच्चों को इसी भाव से संस्कार देकर अपना लोक कर्तव्य पूरा किया, परिणामतः दो पुत्र योग समाधि की तरफ चल पड़े, दूसरा एक पुत्र राजा बन गया। माँ सुमित्र ने अपनी ‘मैं’ को कभी आगे नहीं रखने का बालकों को संस्कार दिये। तो जिस समय भगवान श्रीराम वन जाने लगे, लक्ष्मण रामजी के पीछे-पीछे चल पड़े। माँ सुमित्र ने अपने पुत्रें को सेवक के रूप में ऐसा संस्कार दिया कि आज भी राम-सीता के नाम के साथ लक्ष्मण का नाम सहज ही निकलता है। यह है भारतीय नारी चेतना।

             माँ सदा अपने पुत्र के लिए हित कामना ही करती है। हाँ संसार की कामना करने वाली माँ पुत्र के लिए संसार के पदार्थों की कामना करेगी। चाहेगी कि पुत्र को वह सब मिल जाए, जिससे उसे दुःखी होना न पड़ेगा। जबकि ब्रह्म मार्ग वाली माँ कहेगी पुत्र आकांक्षा न रख, मोह न रख, आसक्ति न रख, कर्तव्यपरायण बन। वह प्रार्थना करेगी कि मेरा पुत्र अनासक्त भाव से अपना कर्तव्य पूरा करे, उसे किसी भी प्रकार का कष्ट न हो। जैसे माता सुनीति ने अपने पुत्र ध्रुव को तप व भक्ति द्वारा उस विश्वपिता की गोद में बैठाया। माँ के मार्गदर्शन से ही ध्रुव के जीवन को नया रूप मिला। ऐसी ही एक माँ थी जीजाबाई, जिसने हिन्दुस्तान को महा पुरुष दिया शिवा के रूप में। असफाक, वीर अब्दुल हमीद, सरदार भगत सिंह, आजाद, गांधी, सुभाष आदि अनन्त वीर देश भक्त हुए इस भूमि पर जिन्हें माँ के आशीर्वाद व संस्कार ने गढ़ा। यही नारी चेतना का कमाल।

             माँ दिव्य गुणों- संस्कारों द्वारा सन्तान का भविष्य संवारती है। अपनी संतान के लिए ढेरों दुआयें देती है। प्रमाणित मान्यता है कि माँ द्वारा हृदय की गहराइयों से दी जाने वाली दुआओं में इतनी शक्ति भरी होती है कि वह अकाल मृत्यु को भी टाल सकती है। प्रत्येक माँ बचपन से ही बच्चों को लाड़-प्यार के साथ-साथ महान पुरुषों के जीवन से जोड़ती, संस्कार देती है। अपने बच्चों की अच्छाई-बुराई वह समझती, बड़ा होने पर उसके बच्चों की गणना उन्नति के शिखरों को छूने वाले महानपुरुषों की श्रेणी में हो, ऐसी चाहत रखती है। माँ द्वारा दिए अच्छे संस्कारों के कारण जब बच्चा प्रतिदिन सुबह शाम संत-महापुरुषों के चरणों में झुक कर श्रद्धा से प्रणाम करता और सन्मार्ग पर चलकर महानता का शिखर छूता है, तो माँ गद्गद हो अधिक आशीर्वाद से उसे भर देती है, इससे स्पष्ट है कि नारी चेतना का सान्निध्य न हो, तो जीवन नीरस ही रहेगा।

वासंतिक नवरात्र शक्ति आराधना (रोग-शोक से मुक्ति) – 13 से 21 अप्रैल, 2021

भक्तों की सुविधा के लिये परमपूज्य सद्गुरु श्रीसुधांशुजी महाराज की परम कृपा से आनन्दधाम आश्रम दिल्ली में युगऋषि पूजा एवं अनुष्ठान केन्द्र द्वारा नवरात्रि के शुभ अवसर पर 13 अप्रैल से 21 अप्रैल, 2021 तक माँ नवदुर्गा के नौ रूपों की शास्त्रीय विधि से पूजा-अर्चना सम्पन्न करायी जायेगी। इच्छुक भक्त ऑनलाइन यजमान बनकर दुर्गा भगवती की पूजा-आराधना से मनोकामना सिद्धि का वरदान प्राप्त करें।
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Every Girl Deserves a Good Education

Every girl deserves a good education

 

Education is undeniably one of the most important human rights,  Although every child deserves a good education, this is especially true for girl children. Because it impacts families and also society. But unfortunately, according to Jan 2020, Times of India report- (https://timesofindia.indiatimes.com/india/40-of-girls-aged-15-18-not-attending-school-report/articleshow/73598999.cms)

Ten years after the Right to Education (RTE) Act came into being, nearly 40% of adolescent girls in the age group of 15-18 years are not attending school while 30% of girls from the poorest families have never set foot in a classroom. Let’s do something to change this situation.

A Girl’s Education Can Change Everything

Education can empower a girl in a true sense. She can take important decisions of her life and gives importance to educating her own children. Perhaps that’s why, we say-, “if you educate a man, you educate an individual. But if you educate a woman, you educate a family and a nation.” This statement is 100 percent true. If a girl is educated, she understands the significance of education and she is well intended to educate everyone in her family.

Therefore, we should do whatever it takes to ensure that every girl child has a chance to grow up educated and empowered. This will enable her to create a bright future for herself.  With the help of social service organizations, schools, and religious organizations, steps can be taken to educate girls who may not otherwise have the chance to study. Small support from everyone can change the course of girls’ lives, their children’s lives, and the future of their families.

A good education for girls ensures-

1. Employment for Women

If a girl completes her education and reaches the higher education level, it will naturally boost her job prospects and open up a range of opportunities.

2. Healthy Children

A 58-country study by UNESCO showed that universal primary education for girls would reduce child mortality by 15 percent. 

Going to school means the girls have better awareness regarding the benefits of keeping good health. Moreover, the effect of girls’ education is better than the effect of any health intervention as it leads to healthier and better-educated children.

3. No Child Marriage

Child marriage not only restrains girls’ education but also puts girls at a higher risk of health-related complications. Education for girls could be a credible strategy to prevent child marriages.

4. Empowered Women

It is a well-known fact that educated girls and women are better able to make decisions and have choices. They’re able to make critical decisions about running their homes and choosing a career.

5. Aware Women

An educated girl is well aware of her duties and rights. If needs arise, such women raise their voice without any fear. They may educate other women also on gender equality, various laws and policies.

In fact, the significance of educating girl children is manifold and it cannot be explained in a few words.

Vishwa Jagriti Mission’s Contribution in Girl Child Education

Gyandeep School, Faridabad

Running under the aegis of Vishwa Jagriti Mission (VJM), Gyandeep School, Faridabad, is a humble effort to lay a path to education & vocational training for girl children. Here, students from slum areas are getting a quality education and also the opportunity to develop their skills. The school-

  •         Supports students from families below the poverty line, especially children from slum areas 
  •         Empowers girl children through value education
  •         Gives free vocational training to students under various skill development programs.

Devdoot Bal Ashram

In Surat (Gujarat) and Kanpur (Uttar Pradesh), VJM is successfully running ‘Devdoot Bal Ashram’ that ensures care and comfort for vulnerable children of the society. Here, they get free housing, food, and education. Children from this Ashram are excelling in the fields of education and sports.

Schools in Jharkhand’s violence-prone Region

Vishwa Jagriti Mission has established two schools in the Naxalite areas of Ranchi (Jharkhand) and Chhattisgarh namely Rukka and Khunti. Presently, the school in the Rukka area of Jharkhand has 600 students in it and the school in the Khunti district of Jharkhand has 200 students enrolled in it. The students are getting free education and food in these schools along with other support.

More such schools should be established in every part of the country. And society must back any institution that is working towards offering a good education to girl children. 

  Adopt a child education now

 

How about Gurukul System of Education ? | Sudhanshu ji Maharaj | Vishwa Jagriti Mission

The Gurukul System of Education

The ‘Gurukul’ system of education is the essence of Indian way of imparting education. Basically, a Gurukul is a school where students learn and live along with their Gurus and receive formal education, ethical values and life skills. Gurukul has significant mythological connotations as well. Lord Ram, the Pandavas, Luv-Kush, and Lord Krishna received their formal education in a Gurukul under the guidance of a Guru and even today, the Gurukul system holds a great significance. 

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Vedic Age & Gurukul System

The Gurukul System was more widespread during the Vedic age where students were taught diverse subjects. The education was largely based on Vedas, grammar, the study of nature, logic, reasoning, science and other skills that are necessary for an occupation. Gurukul was the home of the Guru and the centre of learning where disciples stayed till the end of their schooling. All pupils were considered equal at the Gurukul.  Adopt a caring of a senior Citizen

Gurus as well as Shishyas resided in the same dwelling. The relationship between Guru and Shishya was considered sacred. No fee was taken from the students. Though, the disciples had to offer a Gurudakshina. It was a symbol of deep respect paid to the Guru.Adopt a caring of a senior Citizen

The Key Objectives of the Gurukul System

The key objectives of the Gurukul system of education are-

  • Imparting Education with Moral Values
  • Social Awareness
  • Perseverance & Self-Control
  • Character Building
  • Personality Development
  • Spiritual Development
  • Preservation of Indian Culture 

Gurukuls in the Present Time

The Gurukul system of education is still prevalent in India. They focus on imparting education to the needy students in a natural surroundings where they can live with other students while inculcating the values of humanity, discipline and brotherhood. They study language, Science, Mathematics through Swadhyay and group discussions. They also acquire knowledge in fields like sports, arts, crafts, dancing and singing. 

At the Gurukul, the focus is on developing intelligence and ability of critical thinking in the learners. They take part in activities such as meditation, Pranayam and Mantra chanting. One such Gurukul is, Maharishi Vedvyas Gurukul Vidyapeeth which is a unique centre of teaching located at Anand Dham Ashram, Delhi. HH Sudhanshuji Maharaj laid the foundation of this Gurukul on 2nd October, 1999. Adopt a caring of a senior Citizen

Here, students pursue their studies as per the curriculum of the Sanskrit university of Varanasi. They study all formal subjects along with the Vedas, Purans, Ramayana, Gita, Meditation, Music, Computer, and also get involved in co-curricular activities.  The beautiful centre of learning is situated in a pollution-free, clean and natural environment. All necessary educational facilities are available here where students from the underprivileged and poor sections of Indian society are given free education. They get free facilities of residence, food, clothing and healthcare. Adopt a caring of a senior Citizen

The Way Forward

Modern Gurukuls should be based on applied knowledge to prepare the students in all areas of education. It could be done by creating a perfect environment of academics and extracurricular activities for students. The application of the Gurukul system works on a value-based system and so the focus should be on the individuality of the student. They must excel in their area of interest. It will build a good character in them so that they can become what they want by understanding the whole concept of a balanced life. Such an education system will cultivate well-adapted and resourceful human beings who can face any challenge in life with bravery. Adopt a caring of a senior Citizen

धर्मादा – एक आवश्यक कर्त्तव्य धर्मशीलता के लिए | Dharmada Seva | Sudhanshu Ji Maharaj

Dharmada Seva

धर्मादा – एक आवश्यक कर्त्तव्य धर्मशीलता के लिए –धर्मोरक्षति रक्षित

अर्थात् जो व्यक्ति धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है, धर्म उसे ऊंचा उठाता है। ऋषियों-संतों-गुरुओं ने  धर्म की रक्षा के लिए अनेक विधायें दी हैं। जिससे  धर्म का जीवन व समाज में संरक्षण हो सके और धर्म जीवन व समाज का रक्षण कर सके। ऐसी पद्धितियां व प्रयोग जिससे जीवन भी धर्मशील बने तथा समाज में धर्मशीलता झलके। समाज को धर्म प्रिय समाज की प्रतिष्ठा मिले।

 ‘धर्मादा सेवा’ -जीवन व समाज दोनों को धर्मशील बनाने के प्रयोग

जीवन व समाज दोनों को धर्मशील बनाने के प्रयोग हैं। धर्मादा अर्थात् धर्म+अदा। अर्थात् अपने जीवन में धर्म की अदायगी करना। धर्म की अदायगी का आशय है, ऐसे कार्य जिनके द्वारा समाज व जीवन में धर्म झलके। दया, करुणा, संवेदनशीलता, पवित्रता, ईमानदारी, समझदारी भरी जिम्मेदारी की झलक मिले। दूसरे शब्दों में कहें तो धर्म मूल्यों को जीवन में स्थान देने तथा समाज में धर्मशील कार्यों की प्रतिष्ठा करने से जीवन एवं समाज दोनों में धर्म प्रकट होता है।

धर्मशील व्यक्ति को हर आहुति परमात्मा के लिए इस संसार को परमात्मा की बगिया मानकर देनी पड़ती है। इस प्रकार सामान्य भाषा में कहें तो प्रभु के कार्यों में हाथ बटाना धर्मादा सेवा है। भारत में हमारी गुरु परम्परायें इसी धर्मादा सेवा को तो बढ़ावा देती आयी हैं। किसी अनाथ बच्चे को संरक्षण देना, वृद्ध, गौ, विद्यार्थी, देवालय, गरीब की सेवा, प्राकृतिक दैवी आपदा, विधवा की बेटी का विवाह, यज्ञ आदि देव कार्य अर्थात् सेवा के अनेक कार्य हैं, उनमें अपने धन-संसाधन का एक अंश लगाना धर्मादा सेवा है।

गुरुधामों-गुरु आश्रमों द्वारा धर्मादा सेवाओं के माध्यम से शिष्यों की कमाई सेवा में लगाकर उनके जीवन, कर्म को पवित्र-परिष्कृत करने का आध्यात्मिक प्रयोग अनन्तकाल से चलता आया है। गुरु निर्देशन में धर्मादा के लिए लगा यह एक-एक अंश जीवन में पुण्य रूप में फलित होता है।

कहते हैं जैसे आकाश में कहीं पानी भरा दिखता नहीं, पर धरती पर मानव की आवश्यकता अनुरूप पानी व बर्फ अचानक गिरने लगती है। ठीक वैसे ही धर्मादा के लिए निकाला हर अंश परमात्मा कई गुना बढ़ाकर हमें हमारी जरूरत पर वापस कर देता है। इसीलिए संत व गुरु मानवसेवा के लिए धर्मादा सेवाओं का संचालन करना प्रमुख धर्म मानते हैं। पूज्य गुरुदेव देशभर में 20 भव्य देव मंदिरों की स्थापना के साथ-साथ निर्धन रोगियों की निःशुल्क चिकित्सा, शिक्षा से लेकर अनेक तरह की धर्मादा सेवाएं विश्व जागृति मिशन मुख्यालय आनन्दधाम द्वारा संचालित की जा रही हैं।

नेत्र

ऑपरेशन हेतु दिल्ली में करुणासिन्धु अस्पताल का संचालन, भारतीय ऋषि संस्कृति एवं ज्ञान-विज्ञान की रक्षा एवं प्रचार-प्रसार हेतु महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ का संचालन, वृद्धों की जीवन संध्या को स्वर्णिम बनाने हेतु वृद्धाश्रम एवं वानप्रस्थाश्रमों की स्थापना, गौसेवा एवं गौरक्षण हेतु देशभर में सात गौशालाओं का संचालन। अनाथ एवं आदिवासी बच्चों के लिए झारखण्ड राज्य के रुक्का एवं खूंटी आदिवासी क्षेत्रें में उच्च गुणवत्ता वाली अत्याधुनिक शिक्षा के साथ दो आदिवासी पब्लिक स्कूलों का संचालन, अनाथ बच्चों के संरक्षण एवं सुनिर्माण हेतु सूरत (गुजरात) एवं कानपुर (उ-प्र-) में दो बड़े बालाश्रमों (अनाथालयों) का संचालन, फरीदाबाद में झुग्गी-झोपड़ी व कूड़ा बीनने वाले बच्चों के लिए ज्ञानदीप विद्यालय आदि सेवा प्रकल्पों के साथ-साथ बुजुर्गों के लिए वानप्र्रस्थ व वृद्धाश्रम स्थापना आदि माध्यम से यह मिशन धर्मादा सेवायें चला रहा है।

इसी प्रकार विचार एवं साधना-सेवा के तहत मनाली (हिमाचल प्रदेश) स्थित साधना धाम आश्रम को अन्तर्राष्ट्रीय ध्यान साधना केन्द्र, आंतरिक शक्तियों के जागरण एवं आत्म विकास हेतु देश भर में अन्य ध्यान-साधना शिविरों का आयोजन करना, राष्ट्रीय संकट के समय प्रधानमंत्री राहत कोष में सहायता, कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, भ्रामक मान्यताओं तथा भ्रष्ट परम्पराओं के उन्मूलन हेतु सत्संग आदि राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक-सामाजिक अभियान चलाना, देश की रक्षा करते हुए शहीद जवानों के बच्चों की समुचित शिक्षा आदि के लिए आर्थिक सहयोग देना, भूकम्प, बाढ़ तथा सुनामी आदि दैवी आपदाओं से पीड़ित जनों की विविध प्रकार से सेवा-सहायता करना, उत्कृष्ट, सरल-सरस, प्रेरणाप्रद प्रवचनों, उद्बोधनों द्वारा मानवीय मूल्यों का जागरण आदि कार्य संचालित हैं। इसी प्रकार सम्पूर्ण देश भर में स्थापित मिशन के अनेक आश्रम व मण्डल राष्ट्रनिर्माण सेवा में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दे रहे हैं।

             पूज्य गुरुदेव द्वारा संरक्षित-संचालित इन धर्मादा कार्यों में शिष्यों-गुरुभक्तों द्वारा लगाया गया कमाई का दो प्रतिशत धन-साधन उनके जीवन व परिवारीजनों के लिए पुण्य कवच बनकर काम करेगा तथा आयुष्य, आरोग्य, धन-वैभव से भरेगा। गुरुदेव कहते हैं कि धर्मादा सेवा से सुखदाता की कृपा मिलती है और घर-परिवार में खुशहाली आती है। वास्तव में अष्टसिद्धि और नवनिधि का दाता भी है धर्मादा। प्राचीन काल से ही सौभाग्यशाली कुलीन परिवार ऐसी धर्मादा सेवा प्रतिमाह जीवनपर्यन्त करते आ रहे है। आप भी इसमें अपना योगदान देकर जीवन व समाज के बीच धर्म संरक्षित करें तथा धर्मशील समाज का निर्माण कर जीवन सौभाग्य जगायें। 

 

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Fate or Destiny is the Consequences of Deeds | Sudhanshu Ji Maharaj

Fate or Destiny

Destiny, fate, or whatever you may say, is the consequence of your deeds. Whatever deed you had performed in the previous life, their outcomes are available in the present life. However, some of the results and rewards you get after some time and some you get instantaneously. It is well known that some plants get their fruition after three years and some deliver the fruits in the very first year. There are some misfortunes that continue in the family for a few generations while some pious deeds of ancestors also remain in the family for several years. So, kindle the fire of resolve within yourself and try to eliminate misfortunes from your life through good actions and conduct.

God tells us to get rid of bad habits and enjoy His blessings for a hundred years. In other words, God wants you to become the designer of your own destiny. Create your own heaven. Become worthy. Accept His blessings and create good fortunes for yourself. So, decorate your life with heavenly blessings by choosing the right path in life.

Choose the Right Path and Receive God’s Blessings

The one who would perform the right Karma always, that man will never fail in life. This is the biggest assurance by God. The man of virtue remains victorious in all cases. If you have tried, but your effort became unsuccessful, stay contented as your thought process was on the right path. At times, you may think, I am carrying out good deeds, but I don’t know whether I will receive God’s blessings or not.

Do not waste your precious time in overthinking rather carry out your deeds honestly and forget them in the course of time. God never forgets your deeds. He always remembers all your Karma- both good and bad. Results are automatic and therefore stay away from getting attached to the fruits. Perform your Karma with a vision and God will bestow you with the appropriate result.

Always remember, virtuous deeds bring on the results eventually- if not in this birth, in the next birth. Remember one fact also- your virtuous deeds and Dharma always protect you. When you protect your Dharma by moving on the right path, you also get protected by it.

Stay Away from Negative Thoughts

Furthermore, it’s not enough to refrain from bad deeds only. You should stay away from negative thoughts as well. A man easily gets inclined towards negative thoughts. For example- right now the entire world is fighting many diseases and many people are scared of getting ill. Such fear makes them suffer mentally. But if you are reading Gita, offering prayers, and participating in Satsang, these negativities vanish automatically and you feel protected by God.

Therefore, carry out virtuous deeds always, move on the path of righteousness and God will shower His divine blessings upon you.

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How to Reinvent Yourself! | Benefits a Good Health | Sudhanshu Ji Maharaj

How to Reinvent Yourself!

How to Reinvent Yourself!

Going through a major shift in your life and want to reinvent yourself? Understand the Importance of good health and find your new version through adopting a healthy lifestyle. At any stage of life, you can reinvent yourself by staying fit, maintaining an ideal weight and eating a healthy nutritionally balanced diet.  There are endless benefits of a healthy lifestyle. Some of them are-

1. Fit Mind 

Staying active enhances your mental health and improves cognitive function. It potentially reduces the risk of developing mental impairment in elderly men and women. When you exercise, positive changes happen in the brain since working out allows the body to circulate blood to the brain more efficiently. This improves memory and overall mood as well.

2. Strong Bones 

Fitness is also important for bone health. Regular exercise can be one of the most important things you should do to prevent unhealthy bone conditions like osteoporosis. You should go for jogging, stair climbing, aerobics, dancing and other activities and make every joint of your body work well.

3. Resilient Muscles

Regular exercise should be an integral part of your lifestyle. It helps you maintain your muscle mass and build the muscle endurance. Engaging your muscles in a variety of activities keeps your metabolism high and gives you the needed strength to complete the tasks of everyday life.

4. Better Digestion 

Exercise helps your digestive system break down foods and helps your body to absorb the nutrients more efficiently. Exercise regularly for a robust digestion since your overall health depends largely on your capacity to digest food.

5. No Stress

Regular fitness boosts your mood. When you exercise, certain hormones, that reduce anxiety and depression, are released. They act as natural painkillers as well and help improve your sleep which is essential for good health. If you are experiencing anxiety doing something as simple as taking a brisk walk outside can help you relax. Moreover, control your stress with exercise by keeping your mind off unhealthy addictions.

6. No Disease

The risk of developing chronic diseases can be greatly reduced if you exercise regularly. Regular exercise lowers your risk of getting sick in more than one way. It helps you maintain a healthy weight and keeps your body systems working efficiently. Through exercise you can regulate your hormone levels and enhance your natural immunity

7. Glowing Skin

Exercise enhances the blood flow throughout your body and to your skin. This nourishes skin cells and keeps them healthy. Blood carries various nutrients to skin cells and gives it a natural glow. Good blood circulation improves the flow of nutrients and removal of toxins. Regular exercise promotes sweating that unclogs pores and regulates body temperature too.

8. Self-Confidence

You gain a new level of confidence when you maintain the habit of exercise. Stretching, cardiac exercise, walking, running, swimming and even dancing boosts your confidence. If you feel confident, you start believing in yourself and take on more challenges for achieving growth in life. So, if you are feeling jammed and want to reinvent yourself, start taking good care of your health. Find ways of maintaining a healthy lifestyle, exercise and lead an active life. This will keep you happy and confident forever.

कर्ज से मुक्ति एवं धन प्राप्ति के लिये करें इन शक्तिशाली मंत्रें का जाप

mantra to remove financial problems

कर्ज से मुक्ति एवं धन प्राप्ति के लिये करें इन शक्तिशाली मंत्रें का जाप

यदि आप कर्ज लेकर कर्ज उतार नहीं पा रहे हैं और दिनों दिन आप कर्ज के बोझ में दबते जा रहे हैं तो सुबह स्नान कर किसी मंदिर या घर के मंदिर में ज्योति जलाकर श्रद्धापूर्वक अपने इष्टदेव  गुरुदेव का ध्यान करते हुये कम से कम 108 बार अर्थात् पूरी एक माला इन मंत्रो  का जाप करते हुए अपने इष्ट देव से कर्ज मुक्ति की प्रार्थना करें।

 मंत्र जाप में श्रद्धा विश्वास और आपके अपने कर्म  पुरुषार्थ के प्रति समर्पण भाव से शीघ्र ही कर्ज से मुक्ति मिलेगी।

 1-       भूर्भुवः स्वतत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् 

2-      तत्पुरुषाय नमः।

3-      सद्योजाताय नमः।

4-      श्रीं श्रियै नमः।

5-      मघ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

          स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मविरोधकः।।

6-      अघ्गारक महाभाग भगवन्भत्तफ़वत्सल।

          त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।

7-      सर्वमघõलमघõल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

          शरण्ये =यम्बके गौरि नारायणि नमो{स्तुते।।

8-      दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः

          स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।

          दारिद्रड्ढदुःखभयहारिणि का त्वदन्या

          सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता

9-      ऋणरोगादिदारिद्रड्ढपापक्षुदपमृत्यवः।

          भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।

10-    धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।

          धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना।।