Annapurna Yojana

।। अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राणवल्लभे,ज्ञान वैराग्य सिध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ।।

(हे अन्नपूर्णे! आप सदा पूर्ण हैं, भगवान शंकर की प्राणबल्लभा है।
हे माँ पार्वती (अन्नपूर्णा) आप मुझे भिक्षा दें,जिससे हमारे ज्ञान-वैराग्य की शुद्धि हो जाए- आद्य शंकराचार्य)   

अन्नदान एवं सहभोज की परम्परा

महान वैज्ञानिक हमारे ऋषियों ने मानव जीवन को जन्म के पूर्व से लेकर मरणोत्तर तक के संस्कारों को विज्ञान-सम्मत प्रक्रिया से इस तरह से जोड़ा है कि जीवन यात्रा निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर रहे और किसी का भी अनिष्ट न हो। हमारे पूर्वज ऋषियों ने ऐसी आध्यात्मिक व्यवस्था बनायी कि मनुष्य की आत्मसत्ता का परिष्कार निरन्तर होता चले और वह अन्ततः मोक्ष को प्राप्त हो। किसी अन्य सभ्यता या संस्कृति में आध्यात्मिकता का इतना गूढ़ दार्शनिक समावेश नहीं मिलता, जिससे कि व्यक्ति के गुण-सूत्र और जीन्स तक प्रभावित होते हों। संस्कारों से भरा ऋषि जीवन हमारी संस्कृति का सुदृढ़ स्तम्भ रहा है। सफल मानवीय जीवन की इस प्रक्रिया में यज्ञ, संस्कार व सहभोज का स्थान सर्वाेपरि है। त्रिदेव की शक्ति की भाँति ये तीनों एक दूसरे से गुंथे हुए हैं।

अन्नपूर्णा योजना

परम पूज्य सदगुरुदेव की कृपा और आशीर्वाद से विश्व जाग्रति मिशन ने इस योजना के अंतर्गत सभी धर्मपारायण व्यक्तियों को जोड़ने का प्रयास किया है। ऋषि प्रणीत इस आध्यात्मिक परंपरा का लाभ न केवल गुरुवर के अधिकाधिक भक्त, साधक अपितु आम जन भी उठा सके, इसके लिए यह अभिनव योजना आरम्भ की गयी है। सदगुरुदेव ने इसे “अन्नपूर्णा योजना” का नाम दिया है। इस योजना के अंतर्गत स्वजनों के जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ या दिवंगत परिजनों की पावन स्मृति में विधा अध्ययन कर रहे गुरुकुल के ऋषि कुमारों, उपदेशकों एवं वृद्ध आश्रम के वृद्धजनों और वानप्रस्थियों को एक समय का भोजन कराने का सुअवसर प्राप्त हो सके, ऐसी सुंदर व्यवस्था बनाई गयी है। प्रातः काल गुरुकुल के ऋषि कुमारों द्वारा यजमान भक्त की दीर्घायु, सुखी, स्वस्थ और सम्पन्न जीवन के लिए यज्ञ और प्रार्थना का आयोजन भी किया जाएगा।

राशि सहयोग

प्रस्तुत अन्नपूर्णा योजना के प्रति मिशन परिवार के बहुत से भाई बहिनों ने बड़ी उत्सुकता दिखायी है और उन्होंने सहभोज कराने की अपनी तिथियाँ भी आरक्षित कराना शुरू कर दिया है। किसी भी शुभ अवसर पर गुरुकुल के विद्यार्थियों, उपदेषको एवं वृ़द्धाश्रम में रहने वाले वृद्धजनों के लिए एक समय के सहभोज हेतु 11,000 रुपये की सहयोग राशि निर्धारित की गयी है। यदि किसी भाई-बहिन को केवल गुरुकुल के ऋषिकुमारों एवं उपदेषकों को भोजन कराना हो तो उसके लिए सहयोग राशि 6,100 रुपये तय की गयी है और सिर्फ वृद्धाश्रम के वृद्धजनों को भोजन कराना चाहते हैं तो उसके लिए सहयोग राशि 5,100 रुपये निश्चित की गयी है। आप अपनी श्रद्धा-सामर्थ्य के अनुसार इस योजना में भाग ले सकते हैं।

आमंत्रण

अच्छा यह होगा कि आपकी ओर से प्रयास हो कि निर्धारित तिथि पर आप सपरिवार आनन्दधाम पधारें, स्वयं यज्ञाहुतियाँ समर्पित करें तथा श्रद्धासिक्त भाव से अपने हाथों से सबको भोजन भी करायें। आपकी अनुपस्थिति में ये आहुतियाँ गुरुकुल के ऋषिकुमारों द्वारा आपके संकल्प के साथ यज्ञ भगवान को विधि-विधान से प्रदान की जायेंगी।

अन्नपूर्णा योजना

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