उपयोगी, कामयाब, स्वस्थ, प्रेमपूर्ण व सफल जीवन का निरन्तर करें चिन्तन, मिलेंगे अद्भुत परिणाम
देश के कई प्रान्तों से आए साधक
महाशिवरात्रि पर्व का दूसरा दिन
आनन्दधाम-नई दिल्ली, 03 मार्च। आप उपयोगी, कामयाब, स्वस्थ, प्रेमपूर्ण और सफल जीवन का हर दिन, हर पल चिन्तन करिए, आपको निःसंदेह इस भाव चिन्तन के अद्भुत परिणाम मिलेंगे। ”देहि सौभाग्यं आरोग्यम् देहि मे परमं सुखम्, रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि” यह भाव-मन्त्र, यह ईश याचना-मन्त्र शान्त मस्तिष्क से सुविचार-चिन्तन करने वाले व्यक्ति को वह सब कुछ प्रदान कर देता है, जिसके लिये मानव इस धरती पर आता है।
यह बात आज विश्व जागृति मिशन के संस्थापक-संरक्षक आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने यहाँ महाशिवरात्रि पर्व पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिवस उपस्थित सैकड़ों शिव-साधकों से कही। बढ़ती उम्र के लोगों से अपने शेष जीवन का उपयोग श्रेष्ठतम लक्ष्यों को समर्पित करने का आह्वान करते हुए उन्होंने आज के वर्तमान यानी युवा शक्ति से कहा कि तेजी से बदल रहे इस समय में अपनी मानसिक शक्तियों को एक अभिनव धार दें और नित जीवन बनते हुए आत्मोत्कर्ष पर सर्वाधिक ध्यान दें।
जीवन को एक परीक्षा बताते हुए श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि जब भी व्यक्ति आगे बढ़ता है तब उसकी परीक्षा अवश्य होती है। आज तक बिना परीक्षा के कोई भी इन्सान आगे नहीं बढ़ा, ऊँचा नहीं उठा। परमात्मा की ओर आगे बढ़ने वाले साधक की भी अनेक स्तरों पर माया द्वारा परीक्षा ली जाती है। उदाहरणार्थ श्रीगणेश विवेक की परीक्षा लेते हैं और श्रीहनुमान धैर्य, अभयता और सेवा भावना की परीक्षा लेते हैं। ऋषि-राष्ट्र भारतवर्ष द्वारा ली जा रही अनूठी अंगड़ाई के इस दौर में देशवासियों से उन्होंने हर तरह की परीक्षा के लिए तैयार रहने को कहा।
सदाशिव भगवान शिव के कल्याणकारी स्वरूप का विवेचन करते हुए उन्होंने शिव साधकों से कहा कि अपने विविध रूपों से वैराग्यपूर्ण जीवन का शिक्षण देने वाले शिवशंकर से हमें अनेकों शिक्षाएँ मिलती हैं। वे वंचितों के दुःखहर्ता बनने की प्रेरणा देते हैं, वे समृद्धि देने वाले हैं, वे करुणावतार यानी करुणारूप हैं, सबको लेकर चलने वाले हैं, वह अभयता प्रदान करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि करुणा के लिए प्रेम जरूरी है, वह प्रेम जब करुणा में बदल जाता है तब उसे धारण करने वाला मनुष्य भगवान शिव का अतिप्रिय बन जाता है। उन्होंने धन, बल, विद्या, वस्तु, अन्न आदि के दान की भी प्रेरणाएँ सभी को दीं। श्रद्धेय महाराजश्री ने सभी को विविध आध्यात्मिक साधनायें सिखाईं।
प्रातःकालीन सत्र में ध्यानगुरु डॉ. अर्चिका दीदी ने साधकों को ध्यान-योग के अनेक गुर सिखाए। उस समय आनन्दधाम सभागार का वातावरण दिव्य-रस से सराबोर हो उठा। उस मौके पर उन्होंने कहा कि ध्यान हमारे भीतर सोई हुई शक्तियों को झकझोर कर जगाता है और उसे उर्ध्वगामी दिशा में प्रेरित एवं प्रवृत्त करता है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति साधारण से असाधारण बन जाता है, उसके अन्दर ढेरों मानवीय गुणों की वृद्धि होने लगती है, वह औरों के हित में अपना हित देखने लग जाता है, उसे सभी अपने लगते हैं, वह आत्मवत् सर्वभूतेषु को निज जीवन में जीने लगता है। डॉ. दीदी ने सभी को योगिक लिविंग के अनेक सूत्र प्रदान किए।
इसके पूर्व अमेरिका की इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के कुलपति प्रो. रवि जयी, एम.डी. सहित कई गण्यमान व्यक्तियों ने श्री सुधांशु जी महाराज का सभामंच पर अभिनन्दन किया। उधर 108 कुण्डीय यज्ञशाला में साधकों ने सवा लाख पार्थिव शिवलिंगों का आज दूसरे दिन भी वैदिक रीति-नीति एवं विधि विधान से पूजन किया। विद्वान आचार्यत्रय श्री सतीश चन्द द्विवेदी, आचार्य राकेश द्विवेदी, एवं आचार्य डॉ. सप्तर्षि मिश्र के नेतृत्व में सम्पन्न इस अनूठे अनुष्ठान में देश के विभिन्न आश्रमों, मन्दिरों एवं गुरुकुलों से आये विद्वत आचार्यगण भी सम्मिलित रहे। आनन्दधाम की दिव्य आरती में अनूठे भाव दर्शन सभी को हो रहे थे।