आनन्दधाम यज्ञ परिसर भी, श्रीयंत्र पीठ भी

आनन्दधाम यज्ञ परिसर भी, श्रीयंत्र पीठ भी
आनन्दधाम यज्ञ परिसर भी, श्रीयंत्र पीठ भी
हमारे धर्मशास्त्रें में गुरु ज्ञानियों के माध्यम से सिद्धियां प्राप्त करने की अनेकानेक विधियां बताई गई हैं। ज्ञान, योग, भक्ति, वैराग्य अनेक साधन परलोक को सुधारने और मुक्ति प्राप्त करने वाले बतलाए गए हैं, इसी प्रकार सांसारिक कार्यों में कृतार्थ होने के लिए अनेक प्रकार के यज्ञ, जप-तप, यंत्र-मंत्र आदि का विधान है, पर सबसे महत्वपूर्ण है श्रीयंत्र की साधना। मंत्र विज्ञान के साथ श्रीयंत्र साधना की अद्भुत प्रणाली साधक शिष्यों को पूज्य सद्गुरु महाराज जी ने सहजता से सबके लिए आननदधाम में सुलभ करवाया है।
सुख-समृद्धि से जुड़ी अमृत संजीवनी को दिलाने वाली इस साधना से जुड़कर साधक धन्य हो, उनका लोक-परलोक सुधरे, उनकी साधना मुक्ति और भुक्ति दोनों प्रदान करे यही तो गुरुवर का लक्ष्य है। पूज्यवर यह भी चाहते हैं कि साधकों में वर्ष भर के लिए अक्षय वैभव भण्डार भरे, इसके लिए लक्ष्मी-गणेश यज्ञ द्वारा श्रीयंत्र साधना की व्यवस्था प्रतिवर्ष करते हैं।
यज्ञीय-मंत्रों के साथ श्रीयंत्र को सिद्ध कर लोगों के कष्ट-क्लेशों को सुख-शांति में बदलने वाली यह आध्यात्मिक शक्ति आज से हजारों वर्ष पहले तपस्वी ऋषि-मुनि, संतों-महात्माओं, महापुरुषों को प्राप्त थी, वही शक्ति हमारे पूज्य गुरुवर समय-समय पर ‘मंत्र, पूजा, ध्यान आदि साधना शिविरों’ द्वारा साधक शिष्यों को प्रदान करते आ रहे हैं। शिष्य स्वकल्याण के साथ पारमार्थिक जीवन जीते हुए यह यज्ञ-मंत्र-यंत्र विधि प्रतिवर्ष हजारों साधक गुरुवर से प्राप्त कर अपने को धन्य अनुभव करते हैं।
असंख्यों का जीवन इन समृद्धियों से दिव्यता के पार सुख समृद्धि तक पहुंचा है। त्याग-वैराग्य के सहारे दुनिया को ऐश्वर्य से पार ले जाने की आध्यात्मिक कला है हमारे यहां की ‘श्रीयंत्र साधना’।
आनन्दधाम में श्रीयंत्रः
श्रीयंत्र कोई आड़ी-तिरछी रेखा भर नहीं है, अपितु यह श्रीयंत्र ब्रह्माण्ड के मूल में छिपे सुख, शांति, समृद्धि के मूल रहस्य की कुंजी है। श्रीयंत्र की वही अपार महिमा आज भी व्याप्त है। पर इसकी साधना द्वारा शुभ उपलब्धि दिलाने की शक्ति देश के विरले संतों में ही है। पूज्य सदगुरु सुधांशु जी महाराज उन्हीं संतों में एक हैं। यहां के आनन्दधाम आश्रम परिसर में स्थित श्रीयंत्र अपने शिष्यों के सुख-समृद्धि व शांति के भण्डार को भरने के लिए ही स्थापित है। कहते हैं लक्ष्मी, विष्णु की शक्ति से युक्त यह यंत्र घर में स्थापित हो, तो जीवन में भौतिक, आध्यात्मिक सुखों का अभाव हो ही नहीं सकता।
श्रीयंत्र को घर में स्थापित करने एवं उसके संपूर्ण लाभ के लिए ऐसे संत को माध्यम बनाना चाहिए, जिसने इसकी साधना को सिद्धि में बदला है। पूज्यवर उसी स्तर के हैं। कहते हैं कि जिस तीर्थ व आश्रम
परिसर में श्रीयंत्र विधि पूर्वक स्थापित होता है, वहां के दर्शन मात्र से दुर्भाग्य दूर होते हैं। यदि उस परिसर
में निर्धारित शुभ तिथि पर विशेष श्री प्रार्थना-पूजन के साथ श्रीयंत्र को ‘सद्गुरु’ के हाथ से प्राप्त करके
घर में स्थापित करते हैं, तो जीवन सुख-शांति-समृद्धि एवं धनवैभव से भरा रहता है।
श्रीयंत्र विज्ञानः
श्री यंत्र के संदर्भ में शंकराचार्य जी कहते हैं-श्रीयंत्र भगवती त्रिपुरा सुंदरी का यंत्र है। श्रीयंत्र देवी लक्ष्मी का निवास स्थल, संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति तथा विकास का प्रतीक व मानव के ऊर्जा शरीर का भी द्योतक है। इसलिए इसे सर्वव्याधिनिवारक, सर्वकष्टनाशक, सर्वसिद्धिप्रद, सर्वार्थ साधक, सर्वसौभाग्यदायक माना जाता है। गुरुदेव कहते हैं श्रीयंत्र भारतीय ऋषियों द्वारा अनुसंधित विशेष ऊर्जापूरक उपलब्धि है।
यह यंत्र ब्रह्मांडीय दिव्य ऊर्जा को आकर्षित कर साधक के चारों तरफ फैलाता रहता है। इसीलिए जो श्रीयंत्र के आभामंडल में आता है, उसको इसके दिव्य प्रभाव से शांति, स्वास्थ्य, सफलता एवं सम्पन्नता मिलती है। सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इससे वास्तु, भूमि और गृहदोष दूर होते हैं। इसीलिए श्रीयंत्र को पौराणिक शास्त्रों में ‘यंत्र शिरोमणि’ (यंत्रराज) कहा गया है। विशिष्ट यज्ञ एवं मंत्रों से गुरुधाम में गुरु द्वारा आवाहित इस ‘श्रीयंत्र’ से मनुष्य के सातों ऊर्जा चक्रों में जागरण तक सम्भव है। इससे व्यक्ति स्वास्थ्य, लम्बा जीवन, सुख, सौभाग्य तथा सम्पन्नता प्राप्त करता है।
गणेश-लक्ष्मी यज्ञः
प्रत्येक वर्ष आनन्दधाम आश्रम में विश्वशांति, मानवकल्याण एवं यजमान भक्तों की सुख-समृद्धि के लिए श्रीगणेश-महालक्ष्मी के भव्य अर्चन के साथ पूज्य सद्गुरु महाराजश्री के कुशल निर्देशन और सान्निध्य, संरक्षण में कर्मकाण्डी विद्वानों द्वारा विधि पूर्वक साधकों के लिए प्रदत्त श्रीयंत्रें में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। 108 कुण्डीय श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ में श्री गणेश-लक्ष्मी जी के चित्र के साथ श्रीयंत्र की विधिवत पूजा-अर्चना द्वारा पूज्यमहाराजश्री अपने समस्त गुरुभक्तों के लिए सुख-समृद्धि और आरोग्यता की मंगलकामना करते हैं। ताकि आनन्दधाम परिसर के इस विशिष्ट प्रयोग द्वारा साधक-शिष्य, गुरुभक्त इस सौभाग्य से जुड़ें और अपने जीवन को सुख-शांति, समृद्धि से भर लें। हमारे भारतीय ऋषियों ने यज्ञ एवं मंत्रों पर इसीलिए विशेष जोर भी दिया है। सम्पूर्ण वेद से लेकर उपनिषद, दर्शन तक में मंत्रों और यज्ञों का ही महत्व है।
मंत्र सिद्धि साधना भीः
मंत्र का आशय है जिस सूत्र को मनन करते हुए मन से तृप्त हुआ जा सकता है, जिसके सहारे मन, बुद्धि की सामान्य अवस्था से पार पहुंचा जा सकता है। दूसरे शब्दों में मंत्र वह आवाज, ध्वनि, विचार है, जो साधक के मन-बुद्धि के उस पार से ध्वनित होती है, उसे संवेदित करती हैं मन्त्र कहलाते हैं। ‘‘मन्त्र वह परावाक् है, जो सद्चेतना की अतिसूक्ष्म क्षमता से ओतप्रोत है, जिसके उच्चारण का प्रभाव साधक के प्राण, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, अन्तःकरण स्नायुतंत्र के साथ-साथ मानव के सम्पूर्ण षड्चक्रों पर पड़ता है। मानव के स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण तीनों शरीर झंकृत हो उठते हैं, व्यक्तित्व के अतल गहराई में समाये सद्गुणों के जखीरे अपना रहस्य खोलने लगते हैं।’’ पूज्यवर ‘‘मंत्र सिद्धि साधना’’ द्वारा अपने शिष्यों में यही वैभव तो उतारना चाहते हैं।
वास्तव में सद्विचारों से ही मनुष्य का निर्माण होता है, विचारों से ही वह ऊंचा उठता है। क्योंकि मंत्र स्वयं में ऊर्जा स्त्रोत्र है, जो सकारात्मक चिंतन के सहारे प्रगति, उत्थान मार्ग से जोड़ता है। पर विचारों के नकारात्मक होने से मनुष्य का पतन भी होता है। इसलिए मंत्र जप के साथ-साथ साधक का सद्विचारों को चिंतन के लिए सत्संग, स्वाध्याय, संत, गुरु जैसे महापुरुषों की संगत जरूरी होती है। तभी मंत्र साधक अन्तरात्मा में मंत्र ऊर्जा के साथ प्राण ऊर्जा को धारण कर पाता है और भगवान से अपना सम्बन्ध जोड़ पाता है।
आनन्दधाम का महायज्ञ महोत्सवः
सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं कि आज भी यज्ञ से वर्षा कराने, यज्ञ से शारीरिक, मानसिक व आत्मिक शक्तियों की पुष्टि कर प्राणशक्ति की अभिवृद्धि कराना, उत्तम संतान प्राप्ति, अक्षय कीर्ति का विस्तार, धन-लक्ष्मी व ऐश्वर्य की प्राप्ति आदि का शास्त्रों में वर्णन है। उसकी पूर्ति सम्भव है। गुरुवर चाहते हैं कि मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन ही यज्ञमय बने। परन्तु ऐसा सम्भव न बन सके, तो गुरु अनुशासन के विविध यज्ञों में सहभागीदार बनकर शिष्य व साधकों का अपने जीवन का सहज कायाकल्प सम्भव बनाया जा सकता है।
इस दृष्टि से आनन्दधाम आश्रम परिसर में सम्पन्न होने वाले श्री गणेश-लक्ष्मी यज्ञ के महत्व को विशेष
अद्भुत कहें तो आश्चर्य नहीं। यह ‘श्री गणेश-लक्ष्मी’ महायज्ञ जीवन, घर-परिवार में विवेक, श्री शक्ति,
ऐश्वर्य, सुख-स्वास्थ्य के आवाहन का विशिष्ट प्रयोग है।
इस महायज्ञ में गुरु सान्निध्य में साधक विवेक के प्रतीक, जीवन से विघ्नों को दूर करने वाले प्रथम पूज्य गणेश एवं साधनों व धन-वैभव की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने के साथ विशेष मंत्रों द्वारा आहुतियां दी जाती हैं। गुरु संरक्षण में कराये गये ऐसे अन्य विशिष्ट यज्ञों से साधकों पर वर्ष भर देव शक्तिधाराओं की कृपा बनी रहती है।
अतः आप सभी जब भी गुरु निर्देश मिले आनन्दधाम पधारिये और गुरु संकल्पित गणेश-लक्ष्मी यज्ञों, श्रीयंत्र स्थापन साधना, मंत्र सिद्धि साधना सहित विविध धर्म अनुष्ठानों में भागीदार बनें और जीवन में सुख-शांति- समृद्धि पाने का सुअवसर प्राप्त करें।

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