जन्म-जन्मान्तर की साधना एवं तपस्या के बाद किसी पुण्यात्मा को मुत्तफ़ात्माओं के गगन में स्थान प्राप्त होता है। संसार के अन्य समस्त प्राणियों की उत्पत्ति उनके कर्मफल भोग के लिए होती है लेकिन किसी मुत्तफ़ात्मा का धरा पर अवतरण कर्मफल से प्रेरित होकर नहीं प्रत्युत ईश्वरीय प्रेरणा से होता है। ऐसी ही महामहनीय दिव्य सत्ता के साक्षात् स्वरूप हैं – गुरुदेव पूज्य सुधांशु जी महाराज। पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज गुरुकुलीय परम्परा में पठन-पाठन कर वैदिक सनातन धर्मग्रंथों से ज्ञान प्राप्त कर विद्यालयों और विश्वविद्यालयों से शिक्षित होकर धर्म क्षेत्र में उतरे। उत्तरकाशी में पूज्य सद्गुरु सदानंद महाराज के सानिध्य में ध्यान साधना कर वैदिक सनातन संस्कृति में महान संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए कृतसंकल्पित हुए।
मानव समाज में उभरती दुर्वृत्तियों तथा तेजी से पनपते आडम्बर, अन्धविश्वास तथा रुढि़वादी कुपरम्पराओं को देखते हुए धर्म के सही मायने क्या हों इस बात पर विशेष बल देते हुए पूज्य महाराजश्री ने मानव जीवन में विशुद्ध धर्म कैसे उतरे, धर्म जागृति लोगों में कैसे आये, सांस्कृतिक जागरण कैसे हो और लोग धर्म के पथ पर चलकर अपना धार्मिक उत्थान कैसे करें?
जिससे उनकी आध्यात्मिक उन्नति के साथ भौतिक उन्नति भी हो और लोगों का यह उत्थान मानव समाज की सेवा करुणा के रूप में प्रवाहित हो, इस उद्देश्य से आपने सरल-सहज मनोहारी शैली में वेद उपनिषद्, भगवद्गीता, रामायण, दर्शनशास्त्र, पुराणों की दार्शनिक विवेचन को पहुंचाने के लिए भारत के ग्राम, नगर, प्रदेश, देश-विदेशों की यात्र की। करोड़ों लोगों तक आपने ऋषियों-मुनियों, सिद्धों, संतों, साधकों, अवतारों की पवित्र वाणी को पहुंचाकर जनमानस को प्रेरित किया। अब तक आपके मुखारविंद से निःसृत 8000 से भी अधिक प्रवचनों के माध्यम से करोड़ों लोगों के जीवन में सकारात्मक रुपांतरण हुआ।
ईश्वर की अनुभूति करने के लिए तप-साधना, योग विज्ञान, यज्ञ-याग, आत्मशुद्धि-भावशुद्धि हेतु आपने साधना केन्द्र बनवाए। देवार्चन हेतु भगवान के 24 मंदिरों का निर्माण कराया, यज्ञशालाएं बनवाईं। चान्द्रायण तप से लेकर अन्य प्राचीन तप प्रणाली हेतु हिमालय की तपोभूमि में साधना स्थली को निर्मित कराया। भक्तिपथ पर अग्रसर करने हेतु तीर्थस्थलों में हजारों भक्तों के ध्यान शिविर आयोजित करवाए, जो अनवरत संचालित हैं।
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सत्य सनातन धर्म की पावनी गंगा के विशुद्ध स्वरूप को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से, भारत के प्राचीन ऋषियों के ज्ञान की धरोहर को धरती पुत्रें को प्रदान करने के लिए, धर्म में विज्ञान सम्मत दृष्टिकोण के साथ आदर्श एवं व्यवहारिक पक्ष को जोड़कर सामान्य जन तक प्रभु सन्देश को पहुंचाने के उद्देश्य को लेकर रामनवमी के पावन दिन 24 मार्च, 1991 में परम पूज्य श्री सुधांशुजी महाराज ने विश्व जागृति मिशन की स्थापना की।
सम्पूर्ण समाज में एक ऐसा स्वर्गिक वातावरण निर्मित हो जिससे हर व्यक्ति के आंगन में खुशियों के कमल मुस्कुरायें, घर-परिवार और समाज में वरिष्ठजनों, वृद्धजनों और गुरुजनों का सदैव सम्मान हो। सन्तानें माता-पिता को सुख, सम्मान और आदर दें, युवा अपने कर्त्तव्य एवं दायित्व को समझें और अपनी ऊर्जा का प्रयोग धर्म, संस्कृति एवं जीवनमूल्यों की रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रनिर्माण करें। समाज का हर वर्ग नारी को सम्मान दे और हर बच्चा मां की ममता और पिता के प्यार की छांव में आत्मविकास का पथ पाये। भगवान रघुनाथ की इस धरा पर कोई अनाथ न कहलाए। सम्पूर्ण विश्व में शान्ति, सौहार्द्र, भ्रातृभाव, सहयोग और अहिंसा की उत्कृष्ट मानवीय भाव धारा में मानवता देवत्व की ऊंचाईयों को स्पर्श करे।
अखिल विश्व में शान्ति हेतु’’ समूची मानव जाति की, समग्र आध्यात्मिक जागृति ही मिशन का मूल उद्देश्य है। सेवा, सिमरन, संतोष, सद्भावना, सहयोग, साधना, सत्संग, सद्विचार, सहानुभूति, सहनशीलता, सहृदयता, सत्यता, सौम्यता, सरलता, सहजता और सरसता विश्व जागृति मिशन के मौलिक सिद्धान्त हैं। इन सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप देने के लिए मिशन अनेक गतिविधियों का संचालन करता है।
विश्व जागृति मिशन की स्थापना के समय पूज्य महाराजश्री ने मिशन के कार्यकर्ताओं को सेवा, साधना, सत्संग, सिमरन, स्वाध्याय, समर्पण और संतोष के सप्त सूत्र दिये। सप्त सूत्रें को लेकर मिशन की यात्र 86 सेवा केन्द्रों के माध्यम से दिल्ली की सीमाओं तथा भारत के प्रदेशों को लांघते हुए विदेशों तक जा पहुँची।
मिशन के गोमुख से गंगासागर तक की इस 33 वर्ष की सेवा यात्र में समाज के दीन-हीन, गरीब, उपेक्षित वृद्धजनों, अशिक्षित अनाथों की पीड़ा हरण के लिये पूज्य महाराजश्री के सान्निध्य में विश्व जागृति मिशन द्वारा धर्म एवं सेवा के क्षेत्र में आश्रम, मन्दिर, सत्संग भवन, धर्मार्थ अस्पताल, वृद्धाश्रम, वानप्रस्थाश्रम, अनाथालय, गुरुकुल, उपदेशक महाविद्यालय, निःशुल्क विद्यालय, आदिवासी क्षेत्रें में पब्लिक स्कूल, कौशल विकास केन्द्र, शालाएं, गरीब कन्याओं के विवाह में सहयोग, दैवीय आपदाओं के समय सहयोग, अन्नक्षेत्र, यज्ञ, सत्संग, साधना शिविर इत्यादि अनेकानेक सेवा प्रकल्प संचालित हैं।
विगत 33 वर्षों से सेवा, सत्संग, यज्ञ-योग, पूजा-उपासना, शिक्षा-संस्कार, ध्यान-साधना के माध्यम से मानव उत्थान कार्यों में अहर्निश तत्पर इस संस्था के भारत में 86 से अधिक सेवाकेन्द्र (मण्डल) एवं अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, सिंगापुर, दुबई, नाइजीरिया, जर्काता, थाईलैण्ड, फिलीपीन्स आदि देशों में भी सेवा केन्द्र संचालित हैं। वर्तमान में महाराजश्री के चरणों में श्रद्धा रखने वाले देश-विदेश में लाखों शिष्य और करोड़ों अनुयायी हैं। पूज्य महाराजश्री के संदेश-उपदेश, सत्संग शिक्षाएं बहुत ही हृदयग्राही हैं। जिसने भी आपके साहित्य को पढ़ा या टी-वी- अथवा अन्य प्रसारण माध्यम से आपको एक बार भी सुना वह हमेशा के लिए आपका हो गया। आपने अब तक 8000 से भी अधिक प्रवचन दिये हैं।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भावना से पूज्य महाराजश्री व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं और उनकी संस्था विश्व जागृति मिशन मानव सेवाकार्यों में अहर्निश समर्पित है।
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पूज्य महाराजश्री ने धर्म के क्षेत्र में सत्संग-साधना व प्रार्थनाओं को अधिक महत्व दिया, जिसके लिए देशभर में अनेकाें सत्संग स्थल और प्रार्थना स्थल बनवाए व अनेकों देव मन्दिरों का निर्माण कराया। आपके जितने भी सेवा प्रकल्प चल रहे हैं उनमें अधिक महत्व इस बात को दिया गया कि लोग एक तरफ भक्ति करें, ज्ञान एवं ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के लिए सत्संग में आएं और सेवा के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति की ओर बढ़ें आपके आश्रम जीवन निर्माण, चरित्र निर्माण व जीवन जीने की कला सीखने की प्रयोगशालाएं हैं। आपने साधना को बहुत महत्व दिया। वर्षभर आपके सत्संग एवं ध्यान साधना शिविर चलते हैं जिसके लिये आप भक्तों को तीर्थों में लेकर जाते हैं। गहन ध्यान-साधना के लिए आप साधकों को ऋषिकेश, बद्रीनाथ, अयोध्या, नासिक, प्रयाग कुम्भ व पहाड़ों में कुल्लू-मनाली लेकर जाते हैं। मनाली स्थित साधना धाम आश्रम में अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केन्द्र की स्थापना की गई है। जहां देश-विदेश से लोग शांति-सुकून प्राप्त करने के उद्देश्य इस केन्द्र में ध्यान साधना सीखने के लिए आते हैं, इसी साधना धाम आश्रम में ऋषिभूमि वेलनेस एण्ड नैचरोपैथी सेंटर भी संचालित किया गया है। जहां आयूष विभाग से संबंधित प्राकृतिक चिकित्सा, वन्यऔषधियों एवं पंचकर्मा आदि से रोगियों का उपचार कर उन्हें स्वास्थ्य लाभ दिया जाता है।
महाराजश्री के साथ देश के महान संतों का मिलन- सम्मेलन भी हुआ जिनमें पूज्यपाद शंकराचार्य जी, मुरारी बापू जी, श्री श्री रविशंकर जी, बाबा रामदेव, स्वामी चिदानंद जी महाराज, श्री अवधेशानंद गिरि जी महाराज, श्री गोविंद देव गिरि जी महाराज, गुरु शरणानंद जी एवं रमेश भाई ओझा मुख्य हैं।
महाराजश्री को हमारे देश के महानविभूतियों के द्वारा कई पुरुस्कारो से भी नवाजा गया। जिनमें सूर्यदत्ता नेशनल अवॉर्ड, लाइफ टाइम अचिवमेंट तथा तीर्थकर महावीर यूनिवर्सिटी द्वारा डी लिट की मानक उपाधि से भी महाराज जी को सम्मानित किया गया। साथ ही हाल ही में महाराज श्री को कनाडा के सांसद द्वारा भी सम्मानित किया गया।
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