धन दान में लगायें, शनि की कृपा पायें
शनि हिन्दू धर्म में नौ मुख्य ग्रहों में से एक है। शनि अन्य ग्रहों की तुलना में धीमे चलते हैं। इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है। अर्थात् जो शनैः-शनैः चले। ज्योतिष में शनि का प्रभावकारी वर्णन मिलता है। शनि वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं, पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान कर विशिष्ट फल प्राप्ति का विधान है।
पौराणिक कथा के अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं, सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ। कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाई। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर वहां से चली गई, कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शास्त्रें में इन्हीं शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है।
शनि वास्तव में न्यायकारी हैं। आत्म परिष्कृत, पवित्र एवं श्रेष्ठ आचरणों वाले व्यक्ति के लिए शनि संरक्षक की भूमिका निभाते हैं। बताते हैं शनि जयंती के दिन किया गया दान-पुण्य एवं पूजा-पाठ सभी कष्टों को दूर करने में सहायक होता है। शनिदेव के निमित्त पूजा हेतु शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित कर उसे सरसों या तिल के तेल से स्नान कराने तथा षोड्शोपचार पूजन व शनि मंत्र ¬ शनिश्चराय नमः के साथ पूजा करने का विधान है। पूजन के बाद पूजा सामग्री सहित शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का भी दान किया जाता है। इस दिन निराहार रहकर मंत्र जप करने से भी शनि कृपा की प्राप्ति होती है। वैसे इस दिन तिल, उड़द, कालीमिर्च, मूंगफली का तेल, आचार, लौंग, तेजपत्ता तथा काले नमक को आहार में उपयोग करने व दान करने का विधान है। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए लोग हनुमान जी की पूजा कते हैं। शनि के लिए दान में दी जाने वाली वस्तुओं में काले कपड़े, जामुन, काली उड़द, काले जूते, तिल, लोहा, तेल आदि वस्तुओं को शनि के निमित्त दान देने से सुख शांति मिलती है। दान का सुपात्र ऐसे आश्रमों को माना गया, जिसमें परमात्मा के न्याय को स्थापित करने का अभियान संचालित हो।
शनि देव काले वस्त्रें में सुशोभित, न्याय के देवता हैं जो योगी तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने में रुचि रखते हैं। सभी जीवों को उसके कर्मों का अवश्य फल प्रदान करते हैं। इसलिए इन्हें ‘कर्मफल प्रदाता भी कहते हैं।’ आइये हम सब जीवन में न्याय, गुरु निष्ठा को स्थान देकर सुकर्म द्वारा भाग्य जगायें, दान देकर सेवा में अपना धन लगायें, शनिदेव की कृपा पायें।