भक्ति में प्रीत हो और मन में श्रद्धा व विश्वास हो तो मनुष्य चढ़ जाता है जीवन की अद्भुत ऊँचाइयाँ

भिलाई विराट भक्ति सत्संग महोत्सव में श्री सुधांशु जी महाराज ने दिए तीनों शरीरों को स्वस्थ रखने के मन्त्र

”कोई हंस-हंस के जीता है, कोई मरता है रो-रोकर”

If you have love in devotion and trust and faith in your mind, then a person rises to amazing heights of lifeभिलाई-दुर्ग, 15 दिसम्बर। भक्ति में प्रीत हो, मन में सच्ची श्रद्धा और विश्वास हो तो व्यक्ति की सफलता में कोई सन्देह नहीं रह जाता। ऐसा व्यक्ति जीवन में सफलता की अनुपम ऊँचाइयाँ चढ़ता चला जाता है। न केवल वह जिंदगी की लौकिक जगत की यानी भौतिक उपलब्धियाँ हस्तगत कर लेता है बल्कि अलौकिक क्षेत्र में, आत्मिक जगत में निरन्तर ऊँचा उठता चला जाता है। ऐसे व्यक्ति इस सृष्टि के नियन्ता के, परमपिता परमात्मा के अतिप्रिय होते हैं, उनके सन्निकट होते हैं।

यह बात आज यहाँ आनन्दधाम नयी दिल्ली से भिलाई आये राष्ट्र के जाने-माने मनीषी एवं विश्व जागृति मिशन के संस्थापक-संरक्षक आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने कही। वह मिशन के भिलाई-दुर्ग मण्डल द्वारा आयोजित तीन दिनी विराट भक्ति सत्संग महोत्सव के तीसरे दिन के पूर्वाह्नकालीन सत्र में उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित कर रहे थे। इस्पातनगरी भिलाई के आईटीआई ग्राउण्ड में हजारों की संख्या में मौजूद स्वास्थ्य जिज्ञासुओं को उन्होंने स्वस्थ-वृत्त के भी अनेक फार्मूले दिए। उन्होंने उन्हें ध्यान की गहराइयों में उतारा तथा ध्यान के माध्यम से अपने भीतर प्रसुप्त पड़ी क्षमताओं को जागृत करने की विविध विधि प्रेरणाएँ दीं। इसके पूर्व आचार्य अनिल झा द्वारा सभी ध्यान साधकों को योगासनों की सूक्ष्म क्रियाएँ भी करायी गयीं। इस बीच औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान के पावर ग्राउण्ड में अद्भुत प्राण ऊर्जा के प्रवाहमान होने की अनुभूति सभी स्त्री-पुरुषों को हो रही थी।

If you have love in devotion and trust and faith in your mind, then a person rises to amazing heights of lifeश्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि धरती का प्रत्येक व्यक्ति सुखी रहना चाहता है, उसका जीवन लक्ष्य होता है-आनन्द पाना, आनन्दित रहना। इस आनन्द की प्राप्ति के लिए वह हर उपाय करता है, हर उद्यम करता है। आनन्द किस चीज में है, यह तय करने के लिए एक समझ की आवश्यकता पड़ती है, विवेक की जरूरत होती है। यह विवेक, यह समझ देता है अध्यात्म। जब व्यक्ति आध्यात्मिक बनता है, तब वह अपने शरीर की स्वस्थता पर पूरा ध्यान देता है, अपने को खुश रखने के सही उपाय करता है, वह स्थूल, सूक्ष्म व कारण इन तीनों शरीरों को स्वस्थ रखने के हर सम्भव प्रयास करता है और उसके ये सभी प्रयत्न निश्चित ही सफल होते हैं।

श्रद्धेय महाराजश्री ने कहा कि यह सफलता तब मिलती है, जब व्यक्ति हर आदत को जीवन में पक्का करने के लिए न्यूनतम 21 दिन या अधिकतम 40 दिन का अभ्यास करता है। यह अभ्यास करने से वे आदतें सुदृढ़ आकार लेती जाती है। यही आदतें एक दिन ‘संस्कार’ बन जाती है। ये संस्कार व्यक्ति की पीढ़ी-दर-पीढ़ी में हस्तातंरित होते हैं। अतः हर किसी को इस ‘संस्कार-यात्रा-पथ’ पर अवश्य चलना चाहिए। ऐसा बन जाना ही वास्तव में आध्यात्मिक बन जाना है, अच्छा बन जाना है। उन्होंने सभी से अपने जीवन को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बनाने का आह्वान किया।

आज मध्याहनकाल में सभा स्थल पर ‘दीक्षा संस्कार’ का आयोजन किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुषों ने गुरु-दीक्षा ग्रहण की। विश्व जागृति मिशन के भिलाई-दुर्ग मण्डल के प्रधान श्री चमन लाल बंसल ने बताया कि भिलाई ज्ञान यज्ञ महोत्सव आज सायंकाल छः बजे सम्पन्न हो जाएगा।

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