विजामि प्रमुख ने स्वास्थ्य कक्षा में जिज्ञासुओं का किया सशक्त मार्गदर्शन
पूर्णता मनुष्य स्वभाव की स्वाभाविक अवस्था है, परमेश्वर से मिलन होने पर ही मानव परिपूर्ण बनता है
लखनऊ, २२ सितम्बर (पूर्वाह्न)। लक्ष्मणनगरी लखनऊ के रेल मैदान में २० सितम्बर से चल रहे अमृत ज्ञान वर्षा महोत्सव की स्वास्थ्य कक्षा में हजारों की संख्या में उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुए प्रख्यात अध्यात्मवेत्ता आचार्य सुधांशु जी महाराज ने *ध्यान* की ताकत समझाई। कहा कि ध्यान मनुष्य को पूर्णता की ओर पहुंचाता है। पूर्णता मानव स्वभाव की स्वाभाविक अवस्था है और यह पूर्णता परम पिता परमात्मा से आत्मिक मिलन होने पर ही प्राप्त होती है।
विश्व जागृति मिशन के लखनऊ मंडल द्वारा यहां बंगला बाजार मार्ग पर आशियाना क्षेत्र में कथा ग्राउंड में अमृत ज्ञान वर्षा महोत्सव के तीसरे दिवस के पूर्वाह्नकालीन सत्र में बोलते हुए श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि जिस तरह नदियां अपने पूर्णता के केन्द्र समुद्र की ओर स्वभावत: बढ़ती हैं, उसी तरह मनुष्य स्वभाव के अनुरूप व्यक्ति अपने पूर्णता – केन्द्र परमेश्वर की ओर सहज ही बढ़ने की इच्छा रखता है और उसी में उसे वास्तविक सुख की अनुभूति होती है। मनुष्य के विपरीत संस्कार उसके मार्ग में अवरोधक बनते है, ध्यान योग का पथिक उन बाधाओं को हटाता हुआ आगे बढ़ता है और अपने लक्ष्य तक जा पहुंचता है।
श्री सुधांशु जी महाराज ने कहा कि मनुष्य गलतियों का पुतला है। जिस तरह एक मां अपनी सन्तान की गलतियों को सहज माफ कर देती है उसी तरह परमात्मा अपने भक्त की गलतियों को क्षमा करता है। हां, वह अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से मानव को अनेक बार सचेत करता है और सत्पथ पर चलने का वातावरण देता है। व्यक्ति को उन ईश्वरीय संकेतों को सजग होकर समझना चाहिए और निज की गलतियों में सुधार लाते हुए अपने मुख्य केंद्र की ओर बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार एक नदी सागर में मिलकर पुनः बादल बनकर धरती तथा इस पर निवास कर रहे प्राणिमात्र को तृप्त करती है, उसी प्रकार एक ध्यान – साधक अपने जीवन के बाद भी अपनी मातृभूमि को सदैव तृप्ति प्रदान करता रहता है। उन्होंने सभी से इस पथ पर सधे हुए कदमों से आगे बढ़ने का आह्वान किया।
कार्यक्रम में कानपुर के बैकुंठपुर -बिठूर स्थित महर्षि वेदव्यास अन्तरराष्ट्रीय गुरुकुल विद्यापीठ के ऋषिकुमार बड़ी संख्या में पहुंचे। कुछ छात्रों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की।
Excellent discourses. Pranam to Shraddheya Guruvar!