आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज ने राष्ट्रीय एकता व अखण्डता का किया देशवासियों से आह्वान
‘’जिनकी चढ़ती हुई जवानी, खोज रही अपनी क़ुर्बानी’’
पुलवामा की घटना से क्षुभित था सत्संग समारोह में आया हर-जन
जयपुर का विराट भक्ति सत्संग महोत्सव
जयपुर, 15 फ़रवरी (प्रातः)। राजस्थान प्रान्त की राजधानी जयपुर के सूरज मैदान में विश्व जागृति मिशन द्वारा आयोजित चार दिवसीय विराट भक्ति सत्संग महोत्सव के दूसरे दिन की पूर्वाहनक़ालीन कक्षा में राष्ट्र भक्ति की अनूठी गंगधारा बही। कल गुरुवार की पुलवामा-कश्मीर की कायराना घटना से क्षुभित जनसमुदाय ने इस घटना की घोर निन्दा की और देश के एक साथ खड़े होने का संकल्प व्यक्त किया। मिशन प्रमुख श्री सुधांशु जी महाराज ने राष्ट्रीय एकता व अखण्डता तथा राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा के लिए अब सम्पूर्ण भारतवर्ष को सभी भेदभाव भुलाकर एक साथ खड़े हो जाने का आह्वान किया।
इस मौके पर श्री सुधांशु जी महाराज ने ॐकार की विशद व्याख्या की और कहा कि ॐकार में सृजन, पालन और संहार की तीनों शक्तियां सन्निहित हैं। उन्होंने ॐकार के ज्ञान-विज्ञान पर विस्तृत चर्चा की और बताया कि ॐ परमात्मा का ही दूसरा नाम है। उन्होंने कहा कि ॐकार हमें हमारे जीवन लक्ष्य तक पहुंचाने में सहयोगी बनता है। कश्मीर की कल की घटना में शहीद हुए सीआरपीएफ़ के ४३ सैनिकों को श्रद्धापूर्वक याद किया और दो मिनट का मौन सभी से कराकर भारतीय सेना के समर्पण और बहादुरी को नमन किया।
भारतवर्ष के अतीत की सदाशयतापूर्ण परम्परा का उल्लेख करते हुए मिशन प्रमुख ने कहा कि ऐसे महान देश में खैबर-दर्रा पार करके आक्रांताओं के आने के बाद निरन्तर अशान्ति की स्थितियाँ उत्पन्न होती रही हैं। हमारा अतीत राज्य विस्तार और सीमा विस्तार का कभी नहीं रहा। दुनिया की सबसे बहादुर भारतीय कौम के अग्रगण्यों ने आक्रांताओं को समय-समय पर भीषण दण्ड दिए और उनका समूल नाश किया, लेकिन उनके शासन को समाप्त करने के बाद स्वयं वहाँ राज्य नहीं किया, बल्कि उन्हीं के प्रतिनिधि को कठोर चेतावनी के साथ उस देश व क्षेत्र का राज्य भार सौंप दिया। श्रीराम द्वारा विभीषण को, श्रीकृष्ण द्वारा अग्रसेन को और 86 राजाओं को कैद करके रखने वाले जरासंध का संहार करने के बाद उसी के पुत्र को राज्य सौंपने की इतिहास घटनाएँ उन्होंने सुनायीं। उन्होंने भारत की सदाशयता को उसकी कमजोरी नहीं मानने की सलाह कुछ भ्रमित लोगों और देशों को दी।
श्री सुधांशु जी महाराज ने देश के लिए मरने वालों को सबसे ज्यादा महान बताया और सैनिकों की ‘वीरगति’ का दर्जा धर्मवीरों, दानवीरों, कर्मवीरों से भी ऊँचा बताया। वीरगति को महानतम स्थिति बताते हुए उन्होंने कहा कि सबसे महान कही जाने वाली सन्तों-सन्यासियों की ‘ब्रह्मगति’ से भी ऊँचा स्थान सैनिक की वीरगति को दिया गया है। मिशन प्रमुख ने सीमाओं की रक्षा कर रहे सैनिकों की माताओं, पत्नियों एवं बच्चों को नमन किया और कहा कि एक सैनिक की माता/पत्नी अपने बेटे/पति का मुँह तो देखना चाहती है लेकिन कायर बनकर लौटने वाले पुत्र/पति का मुँह नहीं देखना चाहती। उन्होंने प्राचीन काल का एक प्रसंग सुनाया और कहा कि वीरांगना स्त्री ‘अडारानी’ द्वारा युद्ध की चरम अवस्था के समय उसके पति द्वारा उससे बार-बार अपनी कोई निशानी भेजने का पत्र भेजने पर उसने अपना सिर काटकर भेज दिया था और लिखा था कि अब मेरी याद करके युद्ध से विमुख मत होना। उन्होंने ऐसे सभी महावीरों को आदरपूर्वक नमन किया।
श्री सुधांशु जी महाराज ने हिंदुस्तान में होने वाले धर्मयुद्धों की भी चर्चा की और भारतीय राजाओं एवं सेनापतियों द्वारा कठिन से कठिन परिस्थितियों में युद्ध की मर्यादाओं का पालन करने के वृतान्त सुनाए। उन्होंने कहा कि आज ज़रूरत है कि संस्कृतिनिष्ठ हमारे देश द्वारा मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की युद्ध मर्यादाओं का ध्यान रखने के साथ-साथ गीतानायक श्रीकृष्ण की ‘सठे साठ्यं समाचरेत’ की युद्ध-नीति को अपनाया जाय। श्रद्धेय महाराजश्री ने पुलबामा में कर्नल व मेजर के पद पर तैनात जयपुर के दो युवा सैन्य अफ़सरों की माता श्रीमती धर्मा देवी चौहान का सम्मान भी सत्संग मंच पर किया।
विश्व जागृति मिशन मुख्यालय आनन्दधाम नयी दिल्ली से आए निदेशक श्री राम महेश मिश्र के समन्वयन व संचालन में चले कार्यक्रम में मिशन के जयपुर मण्डल के महामन्त्री श्री आर.सी.सेन ने बताया कि मिशन मुख्यालय आनन्दधाम नयी दिल्ली से आए ३२ सदस्यीय दल द्वारा कार्यक्रम स्थल पर एक दर्जन से अधिक स्टॉल लगाए गए हैं। इन स्टालों के माध्यम से युगऋषि आयुर्वेद सेवा, गौ सेवा, वृद्धजन सेवा, धर्मादा सेवा, देवदूत (अनाथ) बच्चों की शिक्षा सेवा, स्वास्थ्य सेवा आदि कार्यक्रमों की जानकारी जनसामान्य को दी जा रही है। उन्होंने मिशन के स्थानीय आश्रम सोमेश्वर महादेव मन्दिर, 634, बीस-दुकान, आदर्श नगर में चलायी जा रही आध्यात्मिक एवं सेवा गतिविधियों की भी जानकारी दी।