पाप-संताप से मुक्ति और भगवत्कृपा की प्राप्ति कराता है फाल्गुन पूर्णिमा का पूजन
पाप-संताप से मुक्ति और भगवत्कृपा की प्राप्ति कराता है फाल्गुन पूर्णिमा का पूजन
विक्रमी संवत् अर्थात् हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा वर्ष की आखिरी पूर्णिमा होती है। इस पूर्णिमा के 15 दिन बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ हो जाता है। इस पुण्यमय तिथि के व्रत, पूजन, जप का विशेष महत्व है। धर्मशास्त्रें के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के व्रत से मनुष्य के सभी दुखों का नाश हो जाता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। फाल्गुन पूर्णिमा को होली पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन सूर्यास्त के बाद रात्रि में होलिका दहन किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार राक्षसराज हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था। उसने अहंकारवश स्वयं को ईश्वर कहना शुरू कर दिया और राज्य में घोषणा करवा दी कि अब केवल उसी की ईश्वर रूप में पूजा की जायेगी। उसने अपने राज्य में पूजा-पाठ, यज्ञ-अनुष्ठान बंद करवा दिए और भगवद्भक्तों को सताना शुरू कर दिया। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात उसके पिता को अच्छी नहीं लगती थी। उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान की भक्ति न करने देने की लाख कोशिशें की लेकिन प्रह्लाद भगवद्भक्ति में अटल रहे। तब अंत में हिरणयकश्यप ने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई लेकिन दैव योग से होलिका जल गई और प्रभु कृपा से प्रह्लाद बच गए। फाल्गुन पूर्णिमा को होली जलाकर होलिका नामक दुर्भावना का अंत और भगवान द्वारा भक्त की रक्षा का उत्सव मनाया जाता है।
07 मार्च, 2023 मंगलवार को फाल्गुन पूर्णिमा के पावन पर्व पर परमपूज्य श्रीसुधांशुजी महाराज की कृपा से ‘‘युगऋषि पूजा एवं अनुष्ठान केन्द्र’’ द्वारा आनन्दधाम आश्रम दिल्ली में अनेक प्रकार के पूजा-पाठ-मन्त्रजप-यज्ञ आदि के आयोजन आप सभी श्रद्धालुजनों के हित में सम्पन्न होंगे। जिनमें आप ऑन लाइन यजमान बनकर बनकर पुण्य लाभ ले सकते हैं।
मन्त्र, पाठ एवं अनुष्ठान विवरण