धर्मादा – एक आवश्यक कर्त्तव्य धर्मशीलता के लिए –धर्मोरक्षति रक्षित
अर्थात् जो व्यक्ति धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है, धर्म उसे ऊंचा उठाता है। ऋषियों-संतों-गुरुओं ने धर्म की रक्षा के लिए अनेक विधायें दी हैं। जिससे धर्म का जीवन व समाज में संरक्षण हो सके और धर्म जीवन व समाज का रक्षण कर सके। ऐसी पद्धितियां व प्रयोग जिससे जीवन भी धर्मशील बने तथा समाज में धर्मशीलता झलके। समाज को धर्म प्रिय समाज की प्रतिष्ठा मिले।
‘धर्मादा सेवा’ -जीवन व समाज दोनों को धर्मशील बनाने के प्रयोग
जीवन व समाज दोनों को धर्मशील बनाने के प्रयोग हैं। धर्मादा अर्थात् धर्म+अदा। अर्थात् अपने जीवन में धर्म की अदायगी करना। धर्म की अदायगी का आशय है, ऐसे कार्य जिनके द्वारा समाज व जीवन में धर्म झलके। दया, करुणा, संवेदनशीलता, पवित्रता, ईमानदारी, समझदारी भरी जिम्मेदारी की झलक मिले। दूसरे शब्दों में कहें तो धर्म मूल्यों को जीवन में स्थान देने तथा समाज में धर्मशील कार्यों की प्रतिष्ठा करने से जीवन एवं समाज दोनों में धर्म प्रकट होता है।
धर्मशील व्यक्ति को हर आहुति परमात्मा के लिए इस संसार को परमात्मा की बगिया मानकर देनी पड़ती है। इस प्रकार सामान्य भाषा में कहें तो प्रभु के कार्यों में हाथ बटाना धर्मादा सेवा है। भारत में हमारी गुरु परम्परायें इसी धर्मादा सेवा को तो बढ़ावा देती आयी हैं। किसी अनाथ बच्चे को संरक्षण देना, वृद्ध, गौ, विद्यार्थी, देवालय, गरीब की सेवा, प्राकृतिक दैवी आपदा, विधवा की बेटी का विवाह, यज्ञ आदि देव कार्य अर्थात् सेवा के अनेक कार्य हैं, उनमें अपने धन-संसाधन का एक अंश लगाना धर्मादा सेवा है।
गुरुधामों-गुरु आश्रमों द्वारा धर्मादा सेवाओं के माध्यम से शिष्यों की कमाई सेवा में लगाकर उनके जीवन, कर्म को पवित्र-परिष्कृत करने का आध्यात्मिक प्रयोग अनन्तकाल से चलता आया है। गुरु निर्देशन में धर्मादा के लिए लगा यह एक-एक अंश जीवन में पुण्य रूप में फलित होता है।
कहते हैं जैसे आकाश में कहीं पानी भरा दिखता नहीं, पर धरती पर मानव की आवश्यकता अनुरूप पानी व बर्फ अचानक गिरने लगती है। ठीक वैसे ही धर्मादा के लिए निकाला हर अंश परमात्मा कई गुना बढ़ाकर हमें हमारी जरूरत पर वापस कर देता है। इसीलिए संत व गुरु मानवसेवा के लिए धर्मादा सेवाओं का संचालन करना प्रमुख धर्म मानते हैं। पूज्य गुरुदेव देशभर में 20 भव्य देव मंदिरों की स्थापना के साथ-साथ निर्धन रोगियों की निःशुल्क चिकित्सा, शिक्षा से लेकर अनेक तरह की धर्मादा सेवाएं विश्व जागृति मिशन मुख्यालय आनन्दधाम द्वारा संचालित की जा रही हैं।
नेत्र
ऑपरेशन हेतु दिल्ली में करुणासिन्धु अस्पताल का संचालन, भारतीय ऋषि संस्कृति एवं ज्ञान-विज्ञान की रक्षा एवं प्रचार-प्रसार हेतु महर्षि वेदव्यास गुरुकुल विद्यापीठ का संचालन, वृद्धों की जीवन संध्या को स्वर्णिम बनाने हेतु वृद्धाश्रम एवं वानप्रस्थाश्रमों की स्थापना, गौसेवा एवं गौरक्षण हेतु देशभर में सात गौशालाओं का संचालन। अनाथ एवं आदिवासी बच्चों के लिए झारखण्ड राज्य के रुक्का एवं खूंटी आदिवासी क्षेत्रें में उच्च गुणवत्ता वाली अत्याधुनिक शिक्षा के साथ दो आदिवासी पब्लिक स्कूलों का संचालन, अनाथ बच्चों के संरक्षण एवं सुनिर्माण हेतु सूरत (गुजरात) एवं कानपुर (उ-प्र-) में दो बड़े बालाश्रमों (अनाथालयों) का संचालन, फरीदाबाद में झुग्गी-झोपड़ी व कूड़ा बीनने वाले बच्चों के लिए ज्ञानदीप विद्यालय आदि सेवा प्रकल्पों के साथ-साथ बुजुर्गों के लिए वानप्र्रस्थ व वृद्धाश्रम स्थापना आदि माध्यम से यह मिशन धर्मादा सेवायें चला रहा है।
इसी प्रकार विचार एवं साधना-सेवा के तहत मनाली (हिमाचल प्रदेश) स्थित साधना धाम आश्रम को अन्तर्राष्ट्रीय ध्यान साधना केन्द्र, आंतरिक शक्तियों के जागरण एवं आत्म विकास हेतु देश भर में अन्य ध्यान-साधना शिविरों का आयोजन करना, राष्ट्रीय संकट के समय प्रधानमंत्री राहत कोष में सहायता, कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, भ्रामक मान्यताओं तथा भ्रष्ट परम्पराओं के उन्मूलन हेतु सत्संग आदि राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक-सामाजिक अभियान चलाना, देश की रक्षा करते हुए शहीद जवानों के बच्चों की समुचित शिक्षा आदि के लिए आर्थिक सहयोग देना, भूकम्प, बाढ़ तथा सुनामी आदि दैवी आपदाओं से पीड़ित जनों की विविध प्रकार से सेवा-सहायता करना, उत्कृष्ट, सरल-सरस, प्रेरणाप्रद प्रवचनों, उद्बोधनों द्वारा मानवीय मूल्यों का जागरण आदि कार्य संचालित हैं। इसी प्रकार सम्पूर्ण देश भर में स्थापित मिशन के अनेक आश्रम व मण्डल राष्ट्रनिर्माण सेवा में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दे रहे हैं।
पूज्य गुरुदेव द्वारा संरक्षित-संचालित इन धर्मादा कार्यों में शिष्यों-गुरुभक्तों द्वारा लगाया गया कमाई का दो प्रतिशत धन-साधन उनके जीवन व परिवारीजनों के लिए पुण्य कवच बनकर काम करेगा तथा आयुष्य, आरोग्य, धन-वैभव से भरेगा। गुरुदेव कहते हैं कि धर्मादा सेवा से सुखदाता की कृपा मिलती है और घर-परिवार में खुशहाली आती है। वास्तव में अष्टसिद्धि और नवनिधि का दाता भी है धर्मादा। प्राचीन काल से ही सौभाग्यशाली कुलीन परिवार ऐसी धर्मादा सेवा प्रतिमाह जीवनपर्यन्त करते आ रहे है। आप भी इसमें अपना योगदान देकर जीवन व समाज के बीच धर्म संरक्षित करें तथा धर्मशील समाज का निर्माण कर जीवन सौभाग्य जगायें।
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