इस दिवाली गणेश-लक्ष्मी पूजन-यजन से खोलें समृद्धि के द्वारा

गणेश-लक्ष्मी पूजन-यजन से खोलें समृद्धि के द्वारा

इस दिवाली गणेश-लक्ष्मी पूजन-यजन से खोलें समृद्धि के द्वारा

 

गणेश जी को धार्मिक कार्यों में सबसे पहले पूजे जाने का वरदान प्राप्त है। इसके अलावा ये बुद्धि के देवता और विघ्न विनाशक है। यदि किसी व्यक्ति को लक्ष्मी जी की पूजा से धन तो प्राप्त हो जाये पर उसमें बुद्धि न रहे तो यह धन उसके लिये किसी काम का नहीं है। अतः धन के साथ भी बुद्धि जरूरी है जो लक्ष्मी और गणेश पूजन से ही सम्भव है। इसलिये दीपावली पर श्रीगणेश और लक्ष्मी की पूजा एक साथ की जाती है।
भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात नारायणी हैं। भगवान श्री गणेश सिद्धि-बुद्धि एवं शुभ-लाभ के स्वमाी तथा सभी अमंगल एवं विघ्नों के नाशक एवं सद्बुद्धि प्रदान करने वाले हैं। अतः इन दोनों के पूजन से सभी का कल्याण और आनंद की प्राप्ति होती है।
दीपावली में कुछ चीजों को ध्यान देकर आप अपने जीवन, घर-परिवार व व्यापार में स्थिर लक्ष्मी का वास करवा सकते हैं।
1- घर, दुकान व व्यापारिक प्रतिष्ठान में स्वच्छता व पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
2- मकड़ी के जाले कहीं भी न लगे हों।
3- घर में गाय के घी की जोत जलायें।
4- कमलगट्टे की माला से ‘¬ श्रीं श्रियै नमः’ का जाप करें।
5- स्त्रियों का सम्मान करें।
6- गरीब, अनाथ, जरूरतमंद लोगों को भोजन, वस्त्र आदि का दान करें।
7- मां लक्ष्मी को गुलाब के पुष्प चढ़ायें और खीर का भोग लगायें।
उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम चारों दिशाओं में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम मानवमात्र के लिये श्रद्धा और आस्था के केन्द्र हमेशा से रहे हैं। भगवान राम के जीवन से हमें प्रेरणा प्राप्त होती है कि चाहे जीवन में कैसी भी स्थिति क्यों न हो, कितनी भी आपदाएं, मुसीबतें, हानियां, दुखों का अंधेरा बन कर सामने आ जाए, किन्तु अपने श्रद्धा के दीप को कभी कमजोर न पड़ने दना, अपनी आस्था के फूलों को कुम्हलाने न देना, एक न एक दिन बहार जरूर खिलेगी।

भगवान श्रीराम ने वनवास के समय बहुत सी विपत्तियों का सामना किया, दुष्ट राक्षसों की अनैतिक छल-कपट वाली दुखदाई समस्याएं भी सामने आईं, माता जानकी का भी वियोग उन्हाेंने सहन किया, वन में रहकर वन्य प्राणियों की सेना बनाई, विशाल समुद्ध पर सेतु बनाया, अहंकार और हिंसा के पुजारी राक्षसराज रावण पर विजय प्राप्त की, लेकिन अपने गुरुजनों के प्रति, अपनी जन्मभूमि के प्रति, अपनी प्यारी माताओं के प्रति उन्होंने श्रद्ध के महाभाव के कमी नहीं आने दी।

चौदह वर्षों की वनयात्र के उपरांत जब वे अयोध्या में पधारे तब उनका कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही दीप मालाओं से अयोध्या वासियों ने स्वागत किया। तब से लेकर आज तक समूचा हिन्दू समाज धूम-धाम से प्रत्येक वर्ष उसी तिथि को दीपावली मनाता है। परंतु यहां यह कहना प्रासंगिक होगा त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम, माता सीता और अपने अनुज लक्ष्मण सहित अयोध्या आए थे, उस समय जो दीपावली मनाई गई थी, दीए जलाए गए थे, उन दीपों में जो तेल था वह श्रद्धा का ही द्रवित रूप और जो बाती थी, वह आस्था के ही फूलों की कपास से निर्मित थी। और आज भी धरा पर जो प्रकाश कि किरणें जगमगा रही हैं, आज भी जो पूरे देश में दीपावली मनाई जा रही है, वह भी श्रद्धा और आस्था का ही सुपरिणाम है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ-सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नजर आते हैं।

अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उलास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीपावली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढियों से यह त्योहार चल आ रहा है। लोगों में दीपावली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ करते हैं, नये कपड़े पहनते है। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बांटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है। दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है।

आओ! दीपावली पर सब मिलजुलकर श्रद्धा के दीप जलाएं, परस्पर प्रेम का भाव बढ़ाएं और अपने जीवन को विश्वास की सुवास से सजाएं।

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