शरदपूर्णिमा पर यज्ञ से होती है धन-समृद्धि और आरोग्यता की अमृत वर्षा
शरद ऋतु में आकाश के बादल वर्षा काल के बढ़े हुए जीव, पृथ्वी के कीचड़ और जल के मटमैलेपन को नष्ट कर देती है। जैसे ईश्वर की भक्ति ब्रह्मचारी गृहस्थ वानप्रस्थ और संन्यासियों के सब प्रकार के कष्टों और अशुभता को नष्ट कर देती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी जी शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र से उत्पन्न हुई थी। लक्ष्मी के आराधकजन पूर्णिमा की रात को रात भर जागकर चन्द्र देव का दर्शन करते हैं और लक्ष्मी माता की उपासना करते हैं। इस कारण शरदपूर्णिमा को कोजागरी के नाम से भी जाना जाता है।
इस रात चंद्रमा से अमृत वर्षा होती है। पूर्णिमा को व्रत रखकर कई देवी-देवताओं के पूजन का विधान है। शरद पूर्णिमा के दिन और रात का विशेष महत्व है। पूर्णिमा का दिवस जहां ईश्वर का आशीर्वाद प्रदान करता है तो वहीं पूर्णिमा की रात निरोगी काया का उपहार देती है।
ऐसी मान्यता है कि इस रात चन्द्रमा अपनी पूरी 16 कलाओं का प्रदर्शन करते हुए दिखाई देता है। मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को माता लक्ष्मी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर आती हैं और जो भी साधक उपासक उनकी पूजा, उपासना, यज्ञ-अनुष्ठान कर रहा होता है उसे धन-समृद्धि, प्रेम-प्रसन्नता आरोग्यता का वरदान देती है।
अतः इस पावन अवसर पर हर किसी को शुभ कर्म अवश्य करना चाहिए। सद्गुरु श्री
सुधांशु जी महाराज भक्तों के कल्याणर्थ प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा के अवसर पर आनंदधाम आश्रम में 108 कुण्डीय यज्ञ का आयोजन करवाते हैं। इस वर्ष 26 अक्टूबर से 5 नवम्बर तक 11 दिवसीय श्री गणेश लक्ष्मी और यजुर्वेद महायज्ञ किया जा रहा है। 31 अक्टूबर शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर मां महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए विशेष अनुष्ठानिक प्रयोग किए जा रहे हैं।
ऐसे शुभ अवसर पर हर किसी को इस यज्ञ में सहभागी बनना चाहिए। शरदपूर्णिमा के अवसर पर महायज्ञ में ऑनलाइन यजमान बनने के