रोग-व्याधि नाशक और सुख-समृद्धिवर्धक है श्रीगणेश लक्ष्मी एवं यजुर्वेद महायज्ञ

Shree Ganesh Lakshmi and Yajurveda Mahayagya.

रोग-व्याधि नाशक और सुख-समृद्धिवर्धक है श्रीगणेश लक्ष्मी एवं यजुर्वेद महायज्ञ

प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों द्वारा आरोग्यता प्राप्ति एवं रोग-महामारी निवारण के लिए ‘भैषज’ यज्ञ किये जाते थे और लोग उनसे लाभ प्राप्त करते थे। ये यज्ञ ऋतुओं के संधिकाल में होते थे, क्योंकि इसी समय पर रोग-व्याधियों का ज्यादा प्रकोप होता था। इन यज्ञों की विशेषता होती थी कि इनमें आहुति दी गई हवन सामग्री वातावरण में फैलकर न केवल शारीरिक व्याधियां दूर करती थी अपितु इनके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक बीमारियों से भी छुटकारा पा लेता था। यज्ञीय वातावरण से व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व विकास में अपूर्व सहायता मिलती थी।
लेकिन इसे विडम्बना ही कहना चाहिए कि वर्तमान समय की समस्त चिकित्सा पद्धतियां सिर्फ शारीरिक रोगों तक ही अपने आपको सीमित किए हुए हैं, जबकि मानसिक उपचार की आवश्यकता शारीरिक उपचार से भी कहीं अधिक है। वर्तमान में मानसिक रोगों की भरमार शारीरिक व्याधियों से कहीं अधिक है। यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण न होगा कि वर्तमान में 90 प्रतिशत व्यक्तियों को तनाव, अवसाद, अनिद्रा, चिंता, अविश, क्रोध, उत्तेजना, मिर्गी, उन्माद, सनक, निराशा, उदासीनता, आशंका, अविश्वास, भय आदि में से किसी न किसी मनोव्याधि से ग्रसित देखा जाता है।
यज्ञ अग्नि में हवन की हुई औषधीय सामग्री को सुवासित ऊर्जा शारीरिक रोगों के साथ विकृत मस्तिष्क अैर उत्तेजित मन को ठीक कर सकती है। इसका प्रमुख कारण है कि यज्ञ में होमी गयी सुगंधित औषधियों से जो ऊर्जा निकलती है, वह हल्की होने के कारण ऊपर उठती है और जब यह नासिका द्वारा अंदर खींची जाती है तो सर्वप्रथम मस्तिष्क, तदुपरांत फेफड़ों में, फिर सारे शरीर में फैलती है। उसके साथ औषधियों के जो अत्यन्त उपयेागी सुगंधित सूक्ष्म अंश होते हैं, वे मस्तिष्क के उन क्षेत्रों तक आ पहुंचते हैं, जहां अन्य उपायों से उस संस्थान का स्पर्श तक नहीं किया जा सकता। अर्थात् अचेतन मन की बाहरी परतों तक यज्ञीय ऊर्जा की पहुंच होती है और वहां जड़ जमाए हुए मनोविकारों को निकालने में यज्ञ से सफलता मिलती है।
सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज द्वारा संचालित आनन्दधाम आश्रम में नित्य यज्ञ होता है और ट्टतुओं के संधिकाल अर्थात् अब गर्मी जा रही होती है और सर्दी का शुभागमन हो रहा होता है। मतलब नवरात्रि के बाद और दीपावली से पहले आनन्दधाम आश्रम में पिछले 20 वर्षों से 108 कुण्डीय श्री गणेश लक्ष्मी महायज्ञ का विराट आयोजन होता है। इस वर्ष 11 दिवसीय श्रीगणेश लक्ष्मी एवं यजुर्वेद महायज्ञ का पावन आयोजन 26 अक्टूबर से चल रहा है। जिसकी पूर्णाहुति 5 नवम्बर में होगी।
यह महायज्ञ महापुण्य फल देने वाला है। रोग महामारी को दूर कर यजमान भक्तों को धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि से भरने वाला है। यज्ञ में सम्मिलित होने की हर व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए। चाहे एक ही दिन यज्ञ का सुअवसर मिले पर महायज्ञ में आहुति जरूर प्रदान करें। वैसे तो यज्ञ के हर एक दिन का अपना महत्व है, लेकिन 31 अक्टूबर को आने वाली शरदपूर्णिमा के पावन पर्व के सम्बन्ध में कहना ही क्या। अमृतवर्षा की पूर्णिका है शरद पूनम। बड़े भाग्यशाली लोगों को ऐसे अवसर पर महायज्ञ में यहमान बनकर सद्गुरु के श्रीमुख से यज्ञामृत का प्रसाद मिलता है। तो फिर देरी न करें महायज्ञ में यजमान बनें हैं तो अच्छी बात है अन्यथा जल्द से जल्द ऑनलाइन पंजीकरण करवाकर यज्ञ में सहभागी बनने का सौभाग्य प्राप्त करें।

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