पुरुषोत्तम मास (मलमास) में पूजा-पाठ, यज्ञ-अनुष्ठान से पाएं अनंत पुण्य-फल

पुरुषोत्तम मास (मलमास) में पूजा-पाठ, यज्ञ-अनुष्ठान से पाएं अनंत पुण्य-फल

पुरुषोत्तम मास (मलमास) में पूजा-पाठ, यज्ञ-अनुष्ठान से पाएं अनंत पुण्य-फल

हिंदू धर्म में जहां अधिकमास का विशेष महत्व है, वहीं ज्योतिष शास्त्र के लिहाज से भी इसे काफी विशेष माना जाता है। इस वर्ष जो अधिकमास आने वाला है, उसे काफी शुभ माना जा रहा है। ज्योतिष विद्वानों का मानना है कि ऐसा शुभ संयोग पुरुषोत्तम मास 160 वर्ष बाद बन रहा है और इसके बाद ऐसा शुभ मलमास 2039 में आएगा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब धरती के घूमने के कारण दो वर्षों के बीच करीब 11 दिनों का फासला हो जाता है तो तीन साल में करीब एक महीना के बराबर का अंतर आ जाता है। इसी अंतर के कारण हर तीन साल में एक चंद्र मास आता है। हर तीन साल में बढ़ने वाले इस माह को ही अधिकमास या मलमास कहा जाता है। भारतीय हिंदू कैलेंडर मे सूर्य और चंद्र की गणनाओं के आधार पर चलता है। अधिकमास दरअसल चंद्र वर्ष का एक अतिरित्तफ़ भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घंटे के अंतर से आता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार हर सूर्य वर्ष 365 दिन और 6 घंटे का माना जाता है। वहीं चंद्र वर्ष 365 दिनों का माना जाता है। यानी दोनों में करीब 11 दिनों का अंतर होता है, जो तीन वर्ष में एक माह के लगभग हो जाता है। इसी कारण इसे अधिकमास कहा जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु हैं और पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है, इसलिये अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। जब अधिकमास को कोई नहीं अपना रहा था तो भगवान विष्णु की कृपा पर भगवान श्रीकृष्ण ने अधिकमास को अपनाकर उसे पुरुषोत्तम मास का नाम देकर इस महीने को सर्वपूज्य बना दिया। कहा जाता है पुरुषोत्तम मास की पूजा साक्षात् नारायण भगवान श्रीकृष्ण की पूजा है। इस महीने में गीता-रामायण, भागवत, विष्णु-पुराण, विष्णु सहड्डनाम के पाठ जाप-यज्ञ-अनुष्ठान से अनन्त पुण्य फल मिलता है।
आनन्दधाम के ‘‘युगऋषि पूजा एवं अनुष्ठान केन्द्र’’ में पुरुषोत्तम मास में की जाने वाली सभी प्रकार की पूजा-पाठ यज्ञ-अनुष्ठान की व्यवस्था उपलब्ध है। भक्तजन ऑनलाइन यजमान बनकर इस पवित्र और पुण्यमय पुरुषोत्तम मास का पुण्य लाभ लें।

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