पितरों को सम्मान देने का पक्ष है पितृपक्ष

पितरों को सम्मान देने का पक्ष है पितृपक्ष

पितरों को सम्मान देने का पक्ष है पितृपक्ष

हिन्दू धर्म के शास्त्रें में तीन प्राकर के ऋणाों के बारे में बताया गया है। देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण और इनमें से पितृ ऋण से निवारण हेतु ही पितृ यज्ञ अर्थात् श्राद्ध कर्म का वर्णन किया गया है। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहते हैं। श्राद्ध पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में जाना जाता है। महालया अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि की सही दिन-तारीख नहीं पता हो, वे लोग इस दिन उन्हें श्रद्धांजलि और भोजन समर्पित करके याद करते हैं। पितरों की तृप्ति के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड दान अर्थात् पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन, जल आदि को ही श्राद्ध कहते हैं। मान्यता अनुसार सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर अपने पुत्रें-पौत्रें के साथ रहने आते हैं, अतः इसे कनागत भी कहा जाता है। तीन पूर्वज में पिता को वसु के समान, रुद्र देवता को दादा माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। हिन्दू शास्त्रें के अनुसार पितृपक्ष में तर्पण व श्राद्ध करने से व्यक्ति को पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिससे घर में सुख-शांति एवं समृद्धि बनी रहती है। शास्त्रें के अनुसार पितर ही अपने कुल की रक्षा करते हैं।

श्राद्ध के सम्बन्ध में हमारे धर्म-ग्रन्थों में उल्लेख है

(a). गरुड़ पुराण के अनुसार ‘पितृ पूजन (श्राद्ध कर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुऽ, धन और धान्य देते हैं।’
(b) मार्कण्डेय पुराण के अनुसार ‘श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुऽ, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।’
(c). ब्रह्मपुराण में वर्णन है कि ‘श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। जिस कुल में जो बाल्यावस्था में ही मर गए हों, वे सम्मार्जन के जल से तृप्त हो जाते हैं।’
(c). ब्रह्मपुराण के अनुसार जो व्यत्तिफ़ शाक के द्वारा भी श्रद्धा-भत्तिफ़ से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःऽी नहीं होता।
(d). विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धायुत्तफ़ होकर श्राद्ध कर्म करने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होते हैं।
(e). यमस्मृति के अनुसार ‘जो लोग देवता, ब्राह्मण, अग्नि और पितृगण की पूजा करते हैं, वे सबकी अंतरात्मा में रहने वाले विष्णु की ही पूजा करते हैं।’
इसलिए हर व्यक्ति को चाहिये कि भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ कर आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक सोलह दिन पितरों का तर्पण और उनकी मृत्युतिथि को श्राद्ध अवश्य करें। ऐसा करके आप अपने परम आराध्य पितरों के श्राद्धकर्म द्वारा आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक उन्नति को प्राप्त कर सकते हैं।

श्राद्ध में इसलिये दी जाती हैं ये जीवों को सेवाएं

1- गोमाता में तैंतीस कोटि देवों का निवास है।
2- कुत्ता केतु का प्रतीक है उसका रोना तथा असमय में भौंकना अशुभ है।
3- कौआ न्यायकारी शनि का वाहन है तथा पूर्वजों का परिचायक है।
4- चीटियां कर्मठता तथा भगवान विष्णु का प्रतीक हैं।
5- देवता तथा अन्य शक्तियां हमारी इच्छाओं एवं संकल्पों की पूर्ति करती हैं।
अतः पंचबलि करने से देवों की प्रसन्नता, अशुभ का निवारण, न्याय एवं पितरों का प्यार, भगवान विष्णु की तरह उदारता व गंभीरता तथा अनेक प्रकार की समस्याओं का समाधान प्राप्त होता है। पंचबलि से हमारे अन्न की शुद्धता होती है जिससे हमारी बुद्धि एवं मस्तिष्क की शुद्धि होती है।

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