महापुरुषों की समय साधनाः
समय हमारी जीवनी शक्ति है, पर हम इसे कहां खर्च करते हैं, हमें खुद भी पता नहीं। कोई धन कमाने में इसे लगा देता है, तो कोई वैभव-विलास में, कोई इसी समय के सहारे अपने अहम की तुष्टि करते-करते जीवन खतम कर देता है। अनैतिक जीवनशैली से लेकर ठाटबाट बनाने में समय की ही पूंजी व्यय होती है। पर बहुत कम व्यक्ति ऐसे हैं जो समय का मूल्य समझते हैं और उसका उचित उपयोग करते हैं। पर जो व्यक्ति समय का उपयोग कर लेता है, वह महापुरुष, महामानव, पथप्रदर्शक, गुरु, संत, वैज्ञानिक, विचारक, चिंतक, आविष्कारक आदि सब कुछ बनकर समाज में प्रतिष्ठित होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो समाज के जो भी अग्रगण्य हैं, जिनका हम अनुगमन करते हैं, वे वही हैं जिन्होंने समय को पहचाना और जीवन का समयानुसार सदुपयोग किया है। हम दूसरे शब्दों में कहें तो जिसने समय को मुकाम तक पहुंचाया, उसे समय ने भी मुकाम तक पहुंचाने में भूमिका निभाई।
समय सबकुछ सिखाता हैः
जिसने समय को दिव्यता के साथ साध लिया वही गुरुत्व से भरता है, क्योंकि उसने परमात्मा रूपी इस दिव्य धरोहर को आत्मसात किया है। समय को परमात्मा का ही एक आयाम माना गया है। हम छोटे बच्चे का उदाहरण लें, उसे भगवान ने कहां समय के अतिरिक्त अन्य कुछ वैभव आदि साथ देकर भेजा है, बस मात्र एक पूंजी दी वह है समय। पर वह भाषा से लेकर, व्यवहार तक सब कुछ उसी समय के सहारे ही तो सीखता है। जब प्रारम्भ में बच्चा बोलना सीखता है, तब उसके लिए शिक्षण की तो कोई औपचारिक प्रक्रिया भी नहीं अपनाई जाती। बस वह समय पर अपना ख्याल बनाये रखकर जो-जो बातें सुनता है, वे सभी उसके मस्तिष्क में जमा होते जाते हैं। उसी को समय बद्ध करके वह एक दिन बोलने वाला बन जाता है। इससे सिद्ध होता है कि व्यक्ति यदि मस्तिष्क में स्थित ‘समय’ के नियम का प्रतिदिन उपयोग करे, तो वह बहुत बड़ा काम कर सकता है। विशेषज्ञों का आकलन है कि यदि एक व्यक्ति रोजाना एक घन्टा पढ़ने का नियम बना ले, और उस एक घन्टे में मात्र 30 पृष्ठ ही पढ़े, तो एक वर्ष में वह दस हजार नौ सौ पचास पृष्ठ पढ़ सकता है। यदि यह अध्ययन का क्रम चलता रहा, तो वह एक दिन किसी विषय में विशेषज्ञता प्राप्त कर सकता है। इसी प्रकार कोई व्यक्ति एक घन्टा रोजाना व्यायाम करे, तो अपनी आयु के न्यूनतम पन्द्रह वर्ष बढ़ा सकता है। वास्तव में समय ही गुरु है, समय के चक्र से ही दिन-रात होते हैं। सूर्य, चन्द्रमा, तारे एवं नक्षत्र अपना कार्य ठीक समय पर न कर पायें, तो इस ब्रह्माण्ड में कुछ बचेगा नहीं। इसीलिए जो लोग समय की कदर करते हैं, वे ही अपनी जिन्दगी में ऊँचा मुकाम हासिल करते हैं।’’
समय-शांति-संतुलन का मूलः
जैसे समय अनुशासन का प्रतीक है, वैसे ही गुरु व महापुरुष भी। यही कारण है गुरुत्व प्राप्त व्यक्तित्वों के पास समय नहीं होता। कभी-कभी हम उन्हें खाली बैठे देखकर कह सकते हैं कि वे हमें समय नहीं दे रहे, जबकि वे खाली बैठे दिख रहे हैं, पर वास्तव में गुरुत्व को प्राप्त हर व्यक्ति और आम जन दोनों के समय उपयोग की कला में जमीन आसमान का अंतर है। गुरुत्व प्राप्त सत्तायें खाली समय में भी समय के मूल रहस्यों को सुलझाने में लगी रहती हैं, जबकि आम साधारण व्यक्ति सम्भव है क्रियाशील रहते हुए भी समयानुरूप न हों। कहते हैं जिनका समय पर अधिकार होता है, उनके पास बैठने मात्र से शांति मिलती है, वास्तव में हमारा समय ही तो है, जो हमें अशांत किये रहता है, हमें समय को साधने की शक्ति मिलती है, तब हम शांत-संतुलित स्वतः हो जाते हैं।
समय की गति सकारात्मकः
व्यक्ति के दुःख का कारण भी समय का सदुपयोग न कर पाना ही है। एक रहस्य की बात है कि समय सदैव सकारात्मक दिशा में ही चलता है, यदि उसका सदुपयोग नहीं किया गया, तो भटकाव सुनिश्चित है। प्रायः यह देखा गया है कि जिन व्यक्तियों के पास धन-दौलत नहीं है, वे धन-दौलत के लिए रोते हैं और दुःखी होते हैं। जो नहीं पढ़ सके वे दुःखी होते है कि उन्होंने पढ़ाई-लिखाई क्यों नहीं की। पर इन सभी संदर्भों में असली कारण है मिले हुए समय का सदुपयोग न कर पाना। वास्तव में समय निःशुल्क उपलब्ध है और वह ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, हिन्दू-मुस्लिम आदि में कोई अन्तर नहीं करता। इसीलिए समय को अनुपम प्राकृतिक धरोहर कहते हैं और समय रूपी देवता से जो जैसा मांगता है, समय उसे वैसे ही लौटाता है।
सप्त लक्ष्य केन्द्रित साधनाः
आज जरूरत है कि हम समय को श्रेष्ठतम श्रम के साथ साझेदारी करके अपनी दैनिक समयसारणी बनायें और उसी के अनुरूप चलें, ताकि समय के एक-एक मिनट को उपयोगी बना सके। उदाहरणार्थ कितना समय व्यायाम में लगे, ऑफिस में कितना समय लगे, वापस आने में कितना समय लगे, दूसरे के साथ वार्तालाप में कितना, उपासना में कितना, ध्यान, सुमिरन, स्वाध्याय में कितना समय लगे, इन सबके लिए हमें ध्यानपूर्वक सोचना होगा। इस निर्धारण से ही जीवन सन्तोषजनक रूप से व्यतीत होगा और शांति, संतोष, सुख, समृद्धि जीवन में उतरेगी। इसके लिए वर्तमान में जीने की कला विकसित करनी होगी। यदि हम वर्तमान का सही ढंग से उपयोग कर सकें, तो जीवन का उद्देश्य पाने में सफल होंगे ही।
विद्वानों का कहना है कि समय को केन्द्र में लेकर अपने कार्यों का वर्गीकरण हम इसप्रकार से करें जैसे-पहला स्वास्थ्य केन्द्रित समय साधना। कहते हैं शरीर माध्यम खलुधर्म साधनम् अर्थात् यदि हमारा स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा, तो हम कोई भी कार्य उचित प्रकार से नहीं कर सकते। दूसरा धन केन्द्रित साधना। इसी प्रकार विद्या केन्द्रित, संगठन केन्द्रित, अध्यात्म केन्द्रित, यश-प्रतिष्ठा केन्द्रित, सेवा-सत्य-न्याय से सप्त केन्द्रित समय की समुचित साधना जरूरी है। साथ ही महत्वपूर्ण है कि हमने जो कुछ संसाधन जुटा लिए हैं, उनका सही उपयोग करते हुए तृप्ति-संतुष्टि प्राप्त कर सकें। इसके लिए भी समय साधना जरूरी है। यह पक्ष गुरु की कृपा, परमात्मा का ध्यान, जप, भजन, कीर्तन, अनुशासन पूरा करता है। अतः प्रातःकाल प्रतिदिन सूर्योदय से कम से कम एक घंटा पहले उठें तथा शौच-स्नान आदि से निवृत्त होकर आधा घण्टा खुले में टहलें, व्यायाम करें, तन एवं मन में स्फूर्ति और ताजगी भरें। तत्पश्चात् जप, ध्यान, गुरु, ईश्वर कृपा के लिए सिमरन- उपासना करें। इस प्रकार समय का उचित उपयोग करके स्वयं के साथ परिवार, समाज और देश को भी खुशहाल कर सकेंगे। यह अनुशासन हर किसी के लिए जीवन में सुख-शांति-समृद्धि, उत्थान का राजमार्ग खोलता है।