नववर्ष में स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिये करें – नवप्रभात यज्ञ

नवप्रभात यज्ञ

 

यज्ञ अत्यंत पवित्र और श्रेष्ठ कर्म है सनातन धर्म का प्रत्येक शुभ कार्य, प्रत्येक पर्व-त्यौहार और संस्कार का शुभारम्भ यज्ञ से ही किया जाता है। पूज्य सद्गुरु श्रीसुधांशुजी महाराज वेदों की अमृत वाणी का यशोगान करते हुए कहते हैं कि ‘स्वर्ग कामो यजेत्’ अर्थात् मनुष्य को स्वर्ग के समान सुखों की कामना हो, नारकीय दुखों से छुटकारा पाने की इच्छा हो और जीवन को स्वस्थ, सुखी और समृद्ध बनाने की अभिलाषा हो तो उसे यज्ञ करना चाहिये। सनातन परंपरा में समस्त पूजा पद्धतियों में यज्ञ को अत्यंत महत्व दिया गया है। जब कोई पूजा काम नहीं आती तो कहा जाता है कि व्यक्ति को यज्ञ करना चाहिये। यज्ञ कामधेनु की तरह व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला परम साधन है।

महाराजश्री आगे कहते हैं कि अगर इस धरती पर भगवान श्रीराम का आगमन हुआ तो यज्ञीय प्रार्थना से हुआ। पुराणों में उल्लेख है कि जब राजा दशरथ ने अपने सद्गुरु ऋषि वशिष्ठ के सामने आंसू बहाकर कहा कि गुरुवर मेरे घर में संतान नहीं है मैं संतान चाहता हूं और मेरी कामना है कि भगवान ही मेरे घर में संतान का रूप धारण करके आ जायें। तब वशिष्ठ ऋषि ने कहा था कि पुत्रेष्टि यज्ञ करो और पुत्रेष्टि यज्ञ के लिये मन्त्र पाठ करने वाले ऋषि ऐसे हों जिनकी मन्त्र ध्वनि की तरंग पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाये। उस मन्त्र ध्वनि से नारायण प्रभु प्रभावित हों और यज्ञ धूम्र से धरती से लेकर द्यौलोक तक सुगंध छा जाये।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जिनकी मन्त्र ध्वनि का अद्भुत प्रभाव था और जिनकी यज्ञीय विधि से तीनों लोक के देवी देवता प्रसन्न हो जायें वह ऋषि थे श्रृंगी। जब श्रृंगी ऋषि के बारे में ज्ञात हुआ तो श्रृंगी ऋषि के पास जाकर के निवेदन किया गया कि आप आइये और राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ को सम्पन्न कराने की कृपा कीजिये। श्रृंगी ऋषि ने राजा दशरथ के यहां यज्ञ सम्पन्न करवाया और यज्ञ के कृपा-प्रसाद के रूप में भगवान श्रीराम स्वयं राजा दशरथ के घर में प्रकट हुये। तो इससे समझा जा सकता है कि यज्ञ का मनुष्य के जीवन में कितना बड़़ा प्रभाव है, कितना लाभकारी है यज्ञ।

वेदों में प्रार्थना की गयी है ‘निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु’ अर्थात् जब-जब हम कामना करें तो बादल वर्षा करें मतलब समय-समय पर वर्षा हो जिससे धरती धान्य से लहलहाती रहे, लोगों को प्रचुर मात्र में अन्न-धन की प्राप्ति हो, पर्यावरण की शुद्धि-संतुलन बना रहे। समय चाहे कैसा भी हो, काल विकराल रूप धारण कर ले फिर भी काल को सुकाल बनाने के लिये, प्रतिकूल समय को अनुकूल बनाने के लिये, रोग महामारी को दूर करने के लिये व्यक्ति को यज्ञ करना चाहिये।

यज्ञ की एक परम्परा है कि यज्ञ में जो भी आहुति दी जाती है तो वह कई गुणा बढ़कर पूरे ब्रह्माण्ड में उसकी सुगन्ध छा जाती है। अर्थात् यज्ञ अग्नि यज्ञ में किये हुए व्यय को कई गुणा बढ़ाकर यज्ञीय लाभ के रूप में वापस कर देती है। इसीलिए अग्नि को कहा गया है कि ‘‘अग्निर्वै मुखं देवानां’’ अर्थात् अग्नि देवी-देवताओं का मुख है। अग्नि में जो कुछ भी भेंट किया जाता है वह सब देवी-देवताओं को मिलता है और यज्ञ-आहुति से प्रसन्न होकर देवी-देवता अपनी कृपा बरसाते हैं। इसलिए देवी-देवताओं को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाने के लिए हमें यज्ञ अवश्य करना चाहिए।

किसी भी कार्य के शुभारम्भ में सर्वश्रेष्ठ काल ब्रह्मवेला मानी जाती है। ब्रह्मवेला के सम्बन्ध में महाराजश्री कहते हैं कि उस समय प्रकृति मुक्त हाथों से स्वास्थ्य, सुख-शांति, धन-समृद्धि, यश-कीर्ति बांट रही होती है। ऐसे समय का जो सदुपयोग करता है, उसके जीवन में ये सभी तरह के वैभव भगवान की कृपा से प्राप्त होते हैं। प्रातःकाल ब्रह्मवेला में जो यज्ञ किया जाता है उसे ब्रह्मयज्ञ कहते हैं। नववर्ष की प्रथम जनवरी देखा जाय तो पूरे वर्ष की एकतरह से ब्रह्मवेला है।

नववर्ष को शुभमंगल और कल्याणकारी बनाने के उद्देश्य से प्रथम जनवरी को पूज्य गुरुवर श्री सुधांशु जी महाराज अपनी तपोभूमि आनन्दधाम आश्रम में भक्तों के लिए नवप्रभात यज्ञ अर्थात् ब्रह्मयज्ञ का आयोजन करवा रहे हैं। यह यज्ञ विश्व जागृति मिशन के तत्वावधान में युगट्टषि पूजा अनुष्ठान केन्द्र के विद्वान ब्राह्मणों द्वारा पूरे वैदिक विधि-विधान से सम्पन्न कराया जायेगा। यज्ञ नारायण भगवान की कृपा और गुरुवर के आशीष से यह नवप्रभात यज्ञ भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला होगा।

नवप्रभात यज्ञ में यजमान बनने एवं यज्ञ सम्बन्धी अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए आप युगट्टषि पूजा अनुष्ठान केन्द्र के पदाधिकारियों से नीचे दिये गये सम्पर्क सूत्रें पर फोन कर सकते हैं। यह यज्ञ ऑनलाइन और स्वयं उपस्थित होकर दोनों विधियों से सम्पन्न कराया जायेगा।
केन्द्रीय एवं दिल्ली सरकार द्वारा जारी कोविड-19 के निर्देशों का पालन करते हुए आनन्दधाम आश्रम परिसर में आकर आप स्वयं यज्ञ में भाग ले सकते हैं। जो यजमान किन्हीं कारणोंवश स्वयं यज्ञ में भाग नहीं ले सकते वह ऑनलाइन यजमान बनकर मानसिक रूप से यज्ञ का लाभ प्राप्त कर सकते है। मानसिक पूजन और यज्ञ के सम्बन्ध में महाराजश्री कहते हैं कि मानसिक पूजन-यज्ञ में व्यक्ति भावनात्मक रूप से ईश्वर के अत्यन्त नजदीक हो जाता है। आप आनन्दधाम आश्रम में हो रहे नवप्रभात यज्ञ में ऑनलाइन जुड़कर घर बैठे यज्ञ में मानसिक रूप से आहुतियां दें, पूर्ण मनोयोग से आनन्दधाम में हो रहे यज्ञ में वहीं से भगवान को अपनी भावनाओं में बिठाकर स्वाहाकार करते हुए यज्ञ अर्चन करें। प्रभु आपकी हर मनोकामना पूर्ण करेंगे। यज्ञ में यजमान बनने के लिए अब समय बहुत कम है, शीघ्रता से अपना स्थान सुनिश्चित करवाने के लिए आप सम्पर्क करें |

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